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भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है  विश्व की समस्याओं का समाधान

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान

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  (1) भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई की महान आत्मा 13 अगस्त 1795 को नश्वर देह से निकलकर अखिल विश्वात्मा में विलीन हो गयी। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ दिवस के रूप में मनाने के लिए प्रस्ताव पारित करें।  (2) वह भारत की ऐसी प्रथम नारी शासिका थी जिन्होंने अपनी प्रजा को अपनी संतानों की तरह लोकमाता के रूप में संरक्षण दिया। साथ ही अत्यन्त ही लोक कल्याण...
‘मानव तस्करी’ ने अपना तीसरे कुख्यात व्यापार के रूप में स्थान बना लिया है!

‘मानव तस्करी’ ने अपना तीसरे कुख्यात व्यापार के रूप में स्थान बना लिया है!

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मानव तस्करी के विरूद्ध जागरूकता और पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार प्रतिवर्ष विश्व भर में 30 जुलाई को मानव तस्करी के विरूद्ध विश्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य पीड़ितों की समस्याओं व संभावित समाधानों पर रोशनी डालना है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व भर में लगभग 21 मिलियन लोग बंधुआ मजदूरी के शिकार हैं। इस अनुमान में श्रम व यौन शोषण के लिए तस्करी किये गए लोग भी शामिल हैं। मानव तस्करी से सभी देश किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं। यू.एन. कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी के लगभग एक तिहाई शिकार बच्चे ही हैं, जबकि 71 प्रतिशत मानव तस्करी की शिकार महिलाएँ व लड़कियाँ हैं। मानव जाति के विनाशक पहला ‘ड्रग्स’ तथा दूसरा ‘हथियार’ के दुनिया के सबसे बडे़ कुख्यात दो व्यापारों के बाद ‘मानव तस्करी’ के कुख्यात व्यापार के र...
मर्दों का क्या है, ये तो ऐसे ही होते हैं!

मर्दों का क्या है, ये तो ऐसे ही होते हैं!

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अंकल परिवार के साथ अच्छी जगह डिनर करने आए हैं। बगल में बीवी है, दो बड़े बच्चे भी बैठे हैं.. सब बहुत खुश हैं, जोर जोर से हँस रहे हैं लेकिन अंकल के लिए इतना काफी नहीं है। अंकल को सामने वाली टेबल पर बैठी लड़की को घूरना है। कभी रँगे हुए बालों को ठीक करते हुए, कभी फोन पर बात करते हुए उनको बस सामने वाली लड़की को लीचड़ता की हद पार करते हुए निहारना है। उनने ठरक के साथ बहुत सारा धन भी संचय किया है तो उनको लगता है कि उनकी लीचड़ता किसी सड़क छाप लड़के की लीचड़ता से बेहतर है। बीवी बगल में बैठी बच्चों का ध्यान रख रही है, उनको क्या खाना है, क्या नहीं सब फरमाइश सुन रही है, खुद को भी सँवार रही है लेकिन पति के कमीनेपन से अंजान है। उसका पति भगवान है उसे यही बताया गया है और भगवान को जिंदा रखने के लिए वो हर साल बस नियम से करवा चौथ करते आ रही है। वह पति की आंखें खुली रखना चाहती है और पति अपने पैंट की चैन। ऐसे तो हर...
Adopting spiritualism and sainthood at student- age in Jainism becoming fast popular

Adopting spiritualism and sainthood at student- age in Jainism becoming fast popular

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It refers to reports that one more young 17-year old girl from an affluent Jain family in Surat now going to become monk. In November 2018, another young IAS aspirant girl from a very well-to-do Jain family from Surat left coaching-classes become Jain monk. Two other school-going sisters from another affluent Jain family of Surat have finally decided to become Jain monks even though their parents gave them full opportunity for change of mind by sending them for an extra luxurious world tour. Only some time back, a topper in examinations left all materialistic world to become Jain monk. Leaving materialistic life and adopting spiritualism by become Jain monk does give much required mental peace in present era full of tensions. But if such trend becomes a latest craze amongst intelligent st...
रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

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हाल ही में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केअर की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2011 से 2017 तक दुनिया भर में सेल्फी लेते समय 259 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 159 मौतें  अकेले भारत में हुईं। जब 1876 में पहली बार फोन का आविष्कार हुआ था तब किसने सोचा था कि यह अविष्कार जो आज विज्ञान जगत में सूचना के क्षेत्र में क्रांति लेकर आया है कल मानव समाज की सभ्यता और संस्कारों में क्रांतिकारी बदलाव का कारण भी बनेगा। किसने कल्पना की थी जिस फोन से हम दूर बैठे अपने अपनों की आवाज़ सुनकर एक सुकून महसूस किया करते थे उनके प्रति अपनी फिक्र के जज्बातों पर काबू पाया करते थे एक समय ऐसा भी आएगा जब उनसे बात किए बिना ही बात हो जाएगी।  जी हाँ आज का दौर फोन नहीं स्मार्ट फोन का है  जिसने एक नई सभ्यता को जन्म दिया है। इसमें फेसबुक व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ट्विटर जैसे अनेक ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जहाँ बिन बात...
अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय से विश्व की समस्याओं का समाधान होगा!

अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय से विश्व की समस्याओं का समाधान होगा!

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4 जुलाई - स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि पर शत् शत् नमन! भारत के महानतम समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि के प्रबल समर्थक थे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘‘लोकतंत्र में पूजा जनता की होनी चाहिए। क्योंकि दुनिया में जितने भी पशु-पक्षी तथा मानव हैं वे सभी परमात्मा के अंश हैं।’’ स्वामी जी ने युवाओं को जीवन का उच्चतम सफलता का अचूक मंत्र इस विचार के रूप में दिया था - ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।’’ स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता के एक सफल वकील थे और मां श्रीमती भुवनेश्वरी देवी एक शिक्षित महिला थी। अध्यात्म एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नरेन्द्र के मस्तिष्क में ईश्वर के सत्य को जानने क...
करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार

करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार

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हर आँख नम है हर शख्स शर्मिंदा है क्योंकि आज मानवता शर्मसार है इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने इंसान होने का गुरूर था लेकिन आज का मानव तो  खुद से ही शर्मिंदा है। क्योंकि आज उस पिशाच के लिए न उम्र की सीमा है न शर्म का कोई बंधन। ढाई साल की बच्ची हो या आठ माह की क्या फर्क पड़ता है। मासूमियत पर हैवानियत हावी हो जाती है। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि ऐसी घटनाएं आज हमारे समाज का हिस्सा बन चुकी हैं। और खेद का विषय यह है कि ऐसी घटनाएं केवल एक खबर के रूप में अखबारों की सुर्खियां बनकर रह जाती हैं समाज में आत्ममंथन का कारण नहीं बन पातीं। नहीं...
स्वामित्व मानसिकता

स्वामित्व मानसिकता

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इस विषय को मैं दो आर्मी कर्नल, कर्नल राठौड़ और कर्नल शर्मा की कहानी से शुरू करता हूं। ये दोनों एनडीए के दिनों से बैच मेट थे। जैसा कि सेना में पदोन्नति के लिए पिरामिड बहुत संकीर्ण है, दोनों की ही लगभग 23 वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के बावजूद ब्रिगेडियर रैंक तक पदोन्नति नहीं हो पाई। इसलिए उन्होंने 'प्री-मेच्योर रिटायरमेंट’ का विकल्प चुना और सिविल जगत में अपने कौशल को आजमाना चाहा। दोनों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिली। लेकिन कर्नल राठौड़ को प्रबंधन के साथ कुछ अनबन के कारण लगभग छह महीनों बाद ही अपनी नौकरी छोडऩी पड़ी। उन्होंने 3 या 4 महीने के बाद दूसरी नौकरी की, लेकिन वह भी सिर्फ डेढ़ साल के लिए ही कर पाए। इसके बाद, वह ज्यादातर समय घर पर ही बैठे रहते थे और कभी-कभी कुछ अस्थायी कार्य कर लेते थे। दूसरी ओर, कर्नल शर्मा ने जो नौकरी प्राप्त की उस कंपनी में एक साल बाद ही वीपी के रूप में अपनी पहली पदो...
सीख लो कुछ चीन से भी, रोक लो आबादी

सीख लो कुछ चीन से भी, रोक लो आबादी

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17 वीं लोकसभा चुनाव की सारी प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है और केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) ने अपना कामकाज फिर से शुरू कर दिया है। यूं तो इस सरकार को देश हित में बहुत से अहम निर्णय लेने हैं, यदि सरकार देश में आबादी को रोकने के लिए भी कोई ठोस नीति लेकर आए तो इसका चौतरफा स्वागत ही होगा। अब इस मसले पर अविलंब निर्णय लेने की आवशयकता है। वैसे ही हमने अपनी आबादी को कम या काबू में करने में भारी देरी कर दी है। इसके पीछे लंबे समय तक सत्तासीन पार्टियों की वोट की राजनीति ही जिम्मेदार थी। तब एक खास समुदाय को खुश करके उनके वोट हथियाने के लिए कभी भी सत्ताधारी नेताओं ने आबादी को रोकने के संबंध में सोचा ही नहीं गया। इसी सोच के कारण उस खास समाज को भी भारी नुकसान हुआ। वह विकास की दौड़ से पिछड़ गये । इस बीच,योग गुरु बाबा रामदेव ने भी देश में जनसंख्या नियंत्र...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है  विश्व की समस्याओं का समाधान

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान

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31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख     (1) भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। देश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम...