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रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

रोबोटिक समाज की ओर बढ़ रहे हैं हम

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हाल ही में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केअर की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2011 से 2017 तक दुनिया भर में सेल्फी लेते समय 259 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 159 मौतें  अकेले भारत में हुईं। जब 1876 में पहली बार फोन का आविष्कार हुआ था तब किसने सोचा था कि यह अविष्कार जो आज विज्ञान जगत में सूचना के क्षेत्र में क्रांति लेकर आया है कल मानव समाज की सभ्यता और संस्कारों में क्रांतिकारी बदलाव का कारण भी बनेगा। किसने कल्पना की थी जिस फोन से हम दूर बैठे अपने अपनों की आवाज़ सुनकर एक सुकून महसूस किया करते थे उनके प्रति अपनी फिक्र के जज्बातों पर काबू पाया करते थे एक समय ऐसा भी आएगा जब उनसे बात किए बिना ही बात हो जाएगी।  जी हाँ आज का दौर फोन नहीं स्मार्ट फोन का है  जिसने एक नई सभ्यता को जन्म दिया है। इसमें फेसबुक व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ट्विटर जैसे अनेक ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जहाँ बिन बात...
अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय से विश्व की समस्याओं का समाधान होगा!

अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय से विश्व की समस्याओं का समाधान होगा!

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4 जुलाई - स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि पर शत् शत् नमन! भारत के महानतम समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि के प्रबल समर्थक थे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘‘लोकतंत्र में पूजा जनता की होनी चाहिए। क्योंकि दुनिया में जितने भी पशु-पक्षी तथा मानव हैं वे सभी परमात्मा के अंश हैं।’’ स्वामी जी ने युवाओं को जीवन का उच्चतम सफलता का अचूक मंत्र इस विचार के रूप में दिया था - ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।’’ स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता के एक सफल वकील थे और मां श्रीमती भुवनेश्वरी देवी एक शिक्षित महिला थी। अध्यात्म एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नरेन्द्र के मस्तिष्क में ईश्वर के सत्य को जानने क...
करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार

करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार

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हर आँख नम है हर शख्स शर्मिंदा है क्योंकि आज मानवता शर्मसार है इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने इंसान होने का गुरूर था लेकिन आज का मानव तो  खुद से ही शर्मिंदा है। क्योंकि आज उस पिशाच के लिए न उम्र की सीमा है न शर्म का कोई बंधन। ढाई साल की बच्ची हो या आठ माह की क्या फर्क पड़ता है। मासूमियत पर हैवानियत हावी हो जाती है। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि ऐसी घटनाएं आज हमारे समाज का हिस्सा बन चुकी हैं। और खेद का विषय यह है कि ऐसी घटनाएं केवल एक खबर के रूप में अखबारों की सुर्खियां बनकर रह जाती हैं समाज में आत्ममंथन का कारण नहीं बन पातीं। नहीं...
स्वामित्व मानसिकता

स्वामित्व मानसिकता

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इस विषय को मैं दो आर्मी कर्नल, कर्नल राठौड़ और कर्नल शर्मा की कहानी से शुरू करता हूं। ये दोनों एनडीए के दिनों से बैच मेट थे। जैसा कि सेना में पदोन्नति के लिए पिरामिड बहुत संकीर्ण है, दोनों की ही लगभग 23 वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के बावजूद ब्रिगेडियर रैंक तक पदोन्नति नहीं हो पाई। इसलिए उन्होंने 'प्री-मेच्योर रिटायरमेंट’ का विकल्प चुना और सिविल जगत में अपने कौशल को आजमाना चाहा। दोनों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिली। लेकिन कर्नल राठौड़ को प्रबंधन के साथ कुछ अनबन के कारण लगभग छह महीनों बाद ही अपनी नौकरी छोडऩी पड़ी। उन्होंने 3 या 4 महीने के बाद दूसरी नौकरी की, लेकिन वह भी सिर्फ डेढ़ साल के लिए ही कर पाए। इसके बाद, वह ज्यादातर समय घर पर ही बैठे रहते थे और कभी-कभी कुछ अस्थायी कार्य कर लेते थे। दूसरी ओर, कर्नल शर्मा ने जो नौकरी प्राप्त की उस कंपनी में एक साल बाद ही वीपी के रूप में अपनी पहली पदो...
सीख लो कुछ चीन से भी, रोक लो आबादी

सीख लो कुछ चीन से भी, रोक लो आबादी

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17 वीं लोकसभा चुनाव की सारी प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है और केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) ने अपना कामकाज फिर से शुरू कर दिया है। यूं तो इस सरकार को देश हित में बहुत से अहम निर्णय लेने हैं, यदि सरकार देश में आबादी को रोकने के लिए भी कोई ठोस नीति लेकर आए तो इसका चौतरफा स्वागत ही होगा। अब इस मसले पर अविलंब निर्णय लेने की आवशयकता है। वैसे ही हमने अपनी आबादी को कम या काबू में करने में भारी देरी कर दी है। इसके पीछे लंबे समय तक सत्तासीन पार्टियों की वोट की राजनीति ही जिम्मेदार थी। तब एक खास समुदाय को खुश करके उनके वोट हथियाने के लिए कभी भी सत्ताधारी नेताओं ने आबादी को रोकने के संबंध में सोचा ही नहीं गया। इसी सोच के कारण उस खास समाज को भी भारी नुकसान हुआ। वह विकास की दौड़ से पिछड़ गये । इस बीच,योग गुरु बाबा रामदेव ने भी देश में जनसंख्या नियंत्र...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है  विश्व की समस्याओं का समाधान

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान

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31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख     (1) भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। देश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम...
राष्ट्रवाद के प्रेरक : वीर सावरकर

राष्ट्रवाद के प्रेरक : वीर सावरकर

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भारत को अजेय शक्ति बनाने के लिए "हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है और राष्ट्रीयत्व ही हिंदुत्व है' के उद्द्घोषक स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर आज तन से हमारे मध्य नहीं हैं। लेकिन उनकी संघर्षमय प्रेरणादायी अविस्मरणीय मातृभूमि के प्रति समर्पित गाथा युगों युगों तक भारतभक्तों का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। मुख्यतः हम उनकी पुण्य जन्म व निर्वाण दिवसों पर अपनी अपनी श्रद्धांजलियां देकर दशकों पुरानी परंपरा को निभा कर राष्ट्रवाद के वाहक बन जाते है। लेकिन विचार अवश्य करना होगा कि राष्ट्र चेतना के धधकते अंगारे व हिन्दू राष्ट्र के प्रचंड योद्धा वीर सावरकर के सौपें उत्तराधिकार के लिए आज हम कितने सजग हैं? हिन्दुत्वनिष्ठ समाज को एकजुट व संगठित करके संगोष्ठी व वार्ताओं के विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा वीर सावरकर जी के अथाह राष्ट्रप्रेम से आने वाली पीढ़ी को भी अवगत करा कर उनमें भारतभक्ति की भावनाओं को अंकुरित कर...
Regulation of NGOs necessary

Regulation of NGOs necessary

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Intelligence Bureau’s report indicated about misuse of Indian NGO’s for any anti-national agenda by foreign-contributors where it was revealed that India’s GDP has been adversely affected to big extent of 2-3 percent through such foreign-funding to NGOs. Many NGOs are said to have been funded for cultural evasion in India. Foreign-funded NGOs spend in rupees and receive funds in dollars by sending these foreign-contributors exaggerated photos and videos of events dramatised to get huge foreign-funding. Many NGOs are tools to divert foreign-funds of individuals. Siphoning of government-funds for NGOs run by influential ones in political and bureaucratic circles in name of their family-members should be prevented by stopping any kind of direct or indirect funding of NGOs at public-expense...
Cartooning politicians is sin while portraying Hindu goddesses naked secularism in India

Cartooning politicians is sin while portraying Hindu goddesses naked secularism in India

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It refers to the strict but justified observations of vacation-bench of Supreme Court on 15.05.2019 finding that Supreme Court order of 14.05.2019 to release Priyanka Sharma was not immediately implemented by West Bengal government. It is also violation of Supreme Court order that she was forced to sign a written apology before her release. Other recent happening in West Bengal including large-scale poll-related violence look like that the state is not a part of India especially when state Chief Minister calls democratically elected Prime Minister of the country not as Prime Minister. It is also beyond understanding that no pseudo-secular politician objects to portraying Hindu goddesses nude by internationally renowned artist Maqbool Hussain, but a young politician was thrown into jail ...
Ever-increasing disparity between rich and poor: Fix upper salary-limit in private sector

Ever-increasing disparity between rich and poor: Fix upper salary-limit in private sector

सामाजिक
Disparity between rich and poor is increasing day by day, which needs to be curtailed to the extent possible. There must be an upper-limit on salaries paid in private sector. It is ridiculous that our top cricketers earning heavily through commercial advertisements get annual salary of upto rupees seven crores apart from match-money, award-money and life-time heavy pension. Upper salary-limit in private sector can be fixed as twice the maximum salary fixed for bureaucrats. If private organisations wish to pay extra, then all such incentives over and above fixed maximum salary may attract Goods and service Tax GST in slab of 18-percent like for others in service-sector. Upper salary-limit and service-conditions including post-retirement benefits fixed by Pay Commission should be appli...