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बच्चों को कुपोषण से बचा सकती है शिक्षित मां

बच्चों को कुपोषण से बचा सकती है शिक्षित मां

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कुपोषण को दूर करने के लिए भोजन की गुणवत्ता और आहार की मात्रा पर ध्यान देना जरूरी माना जाता है। लेकिन, एक नए अध्ययन में पता चला है कि बच्चों को पर्याप्त पोषण और विविधतापूर्ण आहार देने में शिक्षित मां की भूमिका परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पारिवारिक आय और मां के शैक्षणिक स्तर का सीधा असर बच्चों को दिए जाने वाले पोषण की मात्रा और आहार विविधता पर पड़ता है। बच्चों को दिए जाने वाले आहार में विविधता बहुत कम पायी गई है। जबकि, आहार की अपर्याप्त मात्रा का प्रतिशत अधिक देखा गया है। शिशु आहार में कद्दू, गाजर, हरे पत्ते वाली सब्जियां, मांस, मछली, फलियां और मेवे जैसे अधिक पोषण युक्त आहार पर्याप्त मात्रा में शामिल करने में मां के शैक्षणिक स्तर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जबकि, घरेलू आर्थिक स्थिति का संबंध दुग्ध उत्पादों के उपभोग पर अधिक देखा ग...
जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

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असन्तुलन एवं अस्तव्यस्तता ने जीवन को जटिल बना दिया है। बढ़ती प्रतियोगिता, आगे बढ़ने की होड़ और अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा ने इंसान के जीवन से सुख, चैन व शांति को दूर कर दिया है। सब कुछ पा लेने की इस दौड़ में इंसान सबसे ज्यादा अनदेखा खुद को कर रहा है। बेहतर कल के सपनों को पूरा करने के चक्कर में अपने आज को नजरअंदाज कर रहा है। वह भूल रहा है कि बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, इसलिए कुछ समय अपने लिए, अपने शरीर, अपने शौकों और उन कामों के लिए, जो आपको खुशियां देते हैं, रखना भी बहुत जरूरी है। समय ही नहीं मिलता! कितनी ही बार ये शब्द आप दूसरों को बोलते हैं तो कितनी ही बार दूसरे आपको। क्या वाकई समय नहीं मिलता? सच ये भी तो है कि जिनसे हम बात करना या मिलना चाहते हैं, उनके लिए समय निकाल ही लेते हैं। यही समय प्रबन्धन है, इसके लिये लेखिका पैट होलिंगर पिकेट कहती हैं, ‘ये आपको तय करना है कि ...
गुड़ी पड़वा या नववर्ष क्या है?

गुड़ी पड़वा या नववर्ष क्या है?

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गुड़ी पड़वा-नवसंवत्सर-नववर्ष-वर्ष प्रतिपदा चैत्र मास की  शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष का आरम्भ माना गया है। ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है विजय पताका । ऐसा माना गया है कि शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिये। उसमें सेना की सहायता से शक्तिषाली शत्रुओं को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में प्रतीक रूप में ‘‘षालिवाहन शक’ का प्रारम्भ हुआ। पूरे महाराष्ट्र में बड़े ही उत्साह से गुड़ी पड़वा के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। कष्मीरी हिन्दुओं द्वारा नववर्ष के रूप में एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह इसे मनाया जाता है। इसे हिन्दू नव संवत्सर या नव संवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत् के नये साल का आरम्भ भी होता है। सिंधी नववर्ष चेटी...
विक्रम संवत् में शामिल है जीवन की वैज्ञानिकता का सार!

विक्रम संवत् में शामिल है जीवन की वैज्ञानिकता का सार!

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विज्ञानसम्मत हैं हिंदू पर्व और मान्यताऐं भारत एक ऐसा देश है जहां, लगभग हर दिन और हर वार कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है। यहां का हर दिन किसी न किसी धार्मिक मान्यता से जुड़ा होता है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि, हिंदू धर्म से जुड़े सभी पर्व और इन पर्वों से जुड़ी विभिन्न मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार है। हिंदू पंचांग के नववर्ष में जब हम विभिन्न पहलूओं पर चर्चा कर रहे हों, तब इन मान्यताओं की वैज्ञानिकता और भी प्रासंगिक हो जाती है। हिंदू मान्यताओं और पर्वों का विज्ञानसम्मत होने का एक कारण यह भी है कि, सभी पर्व लगभग 57 ई.पू. प्रवर्तित किए गए, विक्रम संवत् के आधार पर मनाए जाते हैं। यह संवत् प्रकृति आधारित है। विद्वानों का मानना है कि इस संवत् की मान्यताओं में विज्ञान की बातें शामिल हैं। हिंदू पंचांग जिसे विक्रम संवत् के नाम से जाना जाता है। उसका प्रत्येक माह चंद्रमा की कलाओं पर आधारित होता है। ...
स्वयं से रूबरू होने का लक्ष्य बनाएं

स्वयं से रूबरू होने का लक्ष्य बनाएं

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सफल एवं सार्थक जीवन के लिये व्यक्ति और समाज दोनांे अपना विशेष अर्थ रखते हैं। व्यक्ति समाज से जुड़कर जीता है, इसलिए समाज की आंखों से वह अपने आप को देखता है। साथ ही उसमें यह विवेकबोध भी जागृत रहता है ‘मैं जो हूं, जैसा भी हूं’ इसका मैं स्वयं जिम्मेदार हूं। उसके अच्छे बुरे चरित्र का बिम्ब समाज के दर्पण में तो प्रतिबिम्बित होता ही है, उसका स्वयं का जीवन भी इसकी प्रस्तुति करता है। यह सही है कि हम सबकी एक सामाजिक जिंदगी भी है। हमें उसे भी जीना होता है। हम एक-दूसरे से मिलते हैं, आपस की कहते-सुनते हैं। हो सकता है कि आप बहुत समझदार हों। लोग आपकी सलाह को तवज्जो देते हों। पर यह जरूरी नहीं कि आप अपने आस-पास घट रही हर घटना पर सलाह देने में लगे रहें। हम सबकी एक अपनी अलग दुनिया भी होती है, जिसके लिए समय निकालना भी जरूरी होता है। क्योंकि आध्यात्मिकता जिंदगी जीने का तरीका है खुद के साथ-साथ दूसरों से उचित व्य...
सेवानिवृत्ति के बाद स्वैच्छिक समाजसेवा

सेवानिवृत्ति के बाद स्वैच्छिक समाजसेवा

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कनाडा में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय बैठक में भाग लेकर मैं भारत वापसी के लिए कनाडा के हवाई अड्डे पर प्रतीक्षा में बैठा था तो मैंने देखा कि लगभग 70-80 वर्ष की महिला यात्रियों को भिन्न-भिन्न प्रकार का मार्गदर्शन देने के लिए एक विनम्र सहायिका के रूप में व्यस्त थी। उनकी आयु का अनुमान लगाने के बाद मेरे मन में विचार आया कि ऐसी वृद्ध महिला किस प्रकार किसी सरकारी या निजी हवाई जहाज कम्पनी में सेवारत है। इस जिज्ञासावश मैंने उनसे वार्तालाप प्रारम्भ किया तो पता लगा कि उनकी आयु 75 वर्ष पार कर चुकी है और वह लगभग 15 वर्ष पूर्व हवाई अड्डे पर ही सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुई थी। सेवानिवृत्ति के बाद जो लोग घर पर बैठ जाते हैं वे अपने आपको वृद्ध समझने लगते हैं। विश्राम से भरे जीवन में स्वाभाविक रूप से वृद्धावस्था के रोग भी जल्दी प्रवेश कर जाते हैं। शरीर को एक अनुशासित दिनचर्या में लगाये रखकर वृद्धावस्था के र...
यकीन मानिए, आप भी आ सकते हैं परीक्षा में अव्वल

यकीन मानिए, आप भी आ सकते हैं परीक्षा में अव्वल

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अब देशभर के स्कूलों में इम्तिहानों का समय एक बार फिर शुरू हो गया है । 10 वीं और 2 वीं की बोर्ड की परीक्षाओं  में पूरी तैयारी के साथ देशभर में लाखों बच्चे भाग ले रहे हैं। इन परीक्षाओं के नतीजों से ही इन नौनिहालों के भविष्य का रास्ता साफ होगा। कुछ हफ्तों के बाद परीक्षाओं के परिणाम भी घोषित होने लगेंगे। आप देखेंगे कि जैसे ही नतीजे घोषित होंगे बस तब ही अपने को करियर काउंसलर कहने वाले हजारों लोग सामने आ जाएंगे। ये दावा करेंगे कि अधिक अंक लेना या टॉपर बनना ही काफी नहीं है। ये परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों की उपलब्धियों को खारिज करते हुए आगे बढ़ेंगे। ये लेख लिखेंगे, खबरिया टीवी चैनलों में दिखाई देंगे। सब जगहों पर ये एक सा राग अलाप रहे होंगे। ये हरेक जगह पर कहते हुए मिलेंगे कि करियर में सफल होना या परीक्षाओं में बेहतरीन अंक लाने का कोई संबंध ही नहीं है। ये एक तरह से परीक्षाओं में शान...
Now share of Jain-community falling fast in Indian population after diminishing Parsi community

Now share of Jain-community falling fast in Indian population after diminishing Parsi community

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It is indeed unfortunate that the communities which have contributed maximum to the nation in many aspects are fast losing their share in population of India. Till now country was worried on fast diminishing population of Parsi community which is considered to be most talented in every aspect of life. Most admiring feature of Parsi culture is to live for the society and not for themselves. But now disturbing aspect of fast diminishing share of Jain population in the country has emerged whose share in population has declined to 0.37 percent in 2011-census as compared to 0.40 percent in 2001-census with fertility rate of just 1.2 against replacement rate of 2.1. This vegetarian community is the flag-bearer of nicest ancient Indian traditions in terms of religion, talent and tax-contributo...
वैवाहिक मूल्यों में घटती निष्ठा

वैवाहिक मूल्यों में घटती निष्ठा

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भारतीय संस्कृति आध्यात्मिकता पर आश्रित है। मानव जीवन का वास्तविक सुख, शांति और समृद्धि आध्यात्मिकता में निहित है। यहां जीवन का प्रत्येक कार्य व्यापार धर्म से आच्छादित है। धर्म से मेरा आशय हिन्दू, मुस्लिम सिख, इसाई से न होकर मानव धर्म से है, जीवन के उन मूल्यों से है जो जीवन में धारण किये जाते हैं, आत्मसात किये जाते हैं। आत्मानुशासन का  आदर्श भारतीय संस्कृति को विश्व की अन्य संस्कृतियों में विलक्षण स्थान प्रदान करता है। संस्कार, पुरूषार्थ और आश्रम यहां जीवन को पग-पग पर नियोजित करते हैं। यह एक मनोनैतिक व्यवस्था के रूप में मानव-जीवन में समाहित होकर जीवन पथ को आलोकित करते हैं। भारतीय संस्कृति में व्यवहृत सोलह संस्कारों का विधान जीवन को पशुता से उठाकर देवत्व की ओर अग्रसर करने के लिये हुआ है। ये संस्कार आत्मसंयम और इन्द्रिय निग्रह का पाठ सिखाते हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह एक संस्कार है। यहा...
आस्था ही नहीं, हिंदू जागरण का पर्व भी है कुंभ

आस्था ही नहीं, हिंदू जागरण का पर्व भी है कुंभ

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  अमृत प्राप्ति की इच्छा मनुष्य के मन में आदि काल से रही है। मनुष्य ही क्यों, देवता और राक्षस भी अजर-अमर होने की कामना रखते थे। जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो चौदह रत्न निकले, लेकिन सबसे ज्यादा छीना-झपटी मची अमृतकलश को लेकर क्योंकि जो अमृतपान करेगा वही स्वर्ग पर राज करेगा, जो अमृतपान करेगा वही देवत्व को प्राप्त करेगा। लेकिन वो अमृतपान करने वाली हंै कौन - सतोगुणी शक्तियां या तमोगुणी शक्तियां? यदि सतोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो सृष्टि का कल्याण होगा। यदि तमोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो मानवताविरोधी, विनाशकारी और विध्वंसकारी शक्तियां अमरत्व का दुरूपयोग कर तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा देंगी। अमृतकलश को किसी तरह तमोगुणी शक्तियों से बचाना था तो देवताओं ने स्वर्ग के राजा इंद्र के पुत्र जयंत को कलश थमा कर चुपचाप वहां से भगा दिया। राक्षसों को जैसे ही भनक लग...