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बालिकाओं की घटती संख्या की त्रासदी

बालिकाओं की घटती संख्या की त्रासदी

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देश में हुई 2016 की जनगणना में लड़कों की तुलना में लड़कियों की घटती संख्या के आंकडे़ चैंकाते ही नहीं बल्कि दुखी भी करते हैं। जिस तरह से लड़के-लड़कियों का अनुपात असंतुलित हो रहा है, उससे ऐसी चिन्ता भी जतायी जाने लगी है कि यही स्थिति बनी रही तो लड़कियां कहां से लाएंगे? हालत यह है कि आंध्र प्रदेश में 2016 में प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले महज आठ सौ छह लड़कियों का जन्म दर्ज किया गया। यह आंकड़ा सबसे निम्न स्तर पर मौजूद राजस्थान के बराबर है।  तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी तस्वीर बहुत बेहतर नहीं है। बालिकाओं की घटती संख्या एक गंभीर चिन्ता का विषय है। देश में स्त्री-पुरुष अनुपात को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। अब तक इस मसले पर अमूमन उत्तर भारत के राज्यों को कठघरे में खड़ा पाया जाता रहा है। दक्षिण भारत के राज्यों में स्त्री-पुरुष अनुपात का आंकड़ा काफी अच्छी स्थिति में रहा है। पर एक नए ...
Controlling traffic-jams, food-wastage and other evils in marriage-functions

Controlling traffic-jams, food-wastage and other evils in marriage-functions

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It refers to Delhi government drafting a plan to follow Supreme Court observations for preventing wastage of food and traffic-jams in marriage-functions. Delhi can reintroduce guest-control orders in emergency-era where only snacks and beverages were allowed in marriage-related functions. Such a system will auto-prevent number of guests many of whom attend marriage-functions just to enjoy lavish food. Distribution of cash-envelopes, sweet-boxes and gift-hampers should also be banned which is a forced burden on parents of brides. An estimated outlay of marriage-expenditure mentioning number of guests should also be printed on marriage-cards which should also contain details of catering-agency, tent-decorators, card-printers and event-managers. Personal details like dates ...
Follow great ideals of Nanaji Deshmukh in practice while honouring him with Bharat Ratna

Follow great ideals of Nanaji Deshmukh in practice while honouring him with Bharat Ratna

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Great social activist Chandikadas Amritrao Deshmukh (Nanaji Deshmukh) who devoted big last part of life by dedicated social service in remote tribal areas definitely deserved greatest national honour of Bharat Ratna. But need of the hour is to adopt ideal principles advocated by him public life. He declined post of Union Cabinet Minister in Morarji Desai government after emergency-era of 1975-77 only on the ground that he advocated the principle to stay away from politics after age of 60 years. But now politicians even at the age of eighties or nineties kept glued to legislative posts with some ones dreaming to be Prime Minister even at such high age. In present era of too many aspirants in opposition for post of Prime Minister, only present BJP government at the centre can and do massi...
ग्राम विकास व राष्ट्र-धर्म के अग्रदूत भारत रत्न नानाजी देशमुख

ग्राम विकास व राष्ट्र-धर्म के अग्रदूत भारत रत्न नानाजी देशमुख

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यूं तो हमारा देश पुरातन काल से ही ॠषियों, मुनियों, मनीषियों, समाज सुधारकों व महापुरुषों का जनक रहा है जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर जगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। किंतु आधुनिक युग की बदलती हुई परिस्थितियों में ऐसे महापुरुष बिरले ही हैं। ग्यारह अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से ग्राम कडोली में जन्मे चंडिका दास अमृतराव देशमुख ने अपने बाल्यावस्था में शायद ही ऐसी कल्पना की होगी कि वह अपने जीवन काल में किये गये सेवा, संस्कार व शिक्षा के प्रसार के माध्यम से 50,000से अधिक विद्यालयों की स्थापना, 500 से अधिक ग्रामों का विकास, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, दीनदयाल शोध संस्थान, राष्ट्र, धर्म, पांचजन्य व‘दैनिक स्वदेश’ का संपादन/प्रबंधन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम पूरे विश्व में फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा पायेगा। भारत सरकार उ...
सफलता का मंत्र है कल नहीं, आज

सफलता का मंत्र है कल नहीं, आज

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‘कल नहीं आज’ यह ही सफलता का परम मंत्र है। हमें जीवन के हर क्षेत्र में उसका अनुसरण करना चाहिए। एक अंग्रेज विचारक ने लिखा है-भूतकाल इतिहास है, भविष्य रहस्य है, वर्तमान उपहार है। इसलिए वर्तमान को प्रजेंट कहते हैं। अतः हमें आज के प्रति वफादार और जागरूक बनना चाहिए। जो आज को सार्थक बनाता है, उसके भूत और भविष्य दोनों सफल बन जाते हैं। एक सबक हमेशा गांठ बांधकर रखना होगा कि खेल छोड़ देने वाला कभी नहीं जीतता और जीतने वाला कभी खेल नहीं छोड़ता। यदि बड़े काम नहीं कर सकते, तो छोटे काम बड़े ढंग से करने चाहिए। हर बार हां ही नहीं ना भी कहना सफलता के लिये जरूरी होता है। क्योंकि हमारी ‘हां’ की तरह ‘ना’ के भी मायने होते हैं। एक समय में हम सब कुछ नहीं चुन सकते। हमें अपनी और अपनों की बेहतरी को ध्यान में रखते हुए चुनाव करने होते हैं। यूं भी हर ‘हां’, कहीं ‘ना’ होती है और हर ‘ना’, कहीं ‘हां’ हो ...
सपनों की सुन्दरता पर यकीन करें

सपनों की सुन्दरता पर यकीन करें

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सफल जिंदगी के लिये चुनौतियां होना जरूरी है। कुछ चुनौतियों से आप आसानी से पार पा लेते हैं, पर कुछ आपसे खुद को बदलने की मांग करती हैं। कामयाबी इस पर निर्भर करती है कि आप कितने बेहतर ढंग से खुद को बदल पाते हैं? चुनौतियों से पार पाने के लिये जीवन में सहने का अभ्यास जरूरी है। इसके बिना किसी का भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। जेन मास्टर मैरी जैक्श कहती हैं, ‘अपनी उलझनों का सामना करते हुए अनजान चीजों को गले लगाना हमें विकास की ओर ले जाता है। हमें आगे बढ़ाता है।’ जीव-विज्ञान बायोलोजी के अनुसार जीव-जंतुओं की वे ही प्रजातियाँ अपना अस्तित्व सुरक्षित रख सकती हैं जिनमें हर परिस्थिति और चुनौती को झेलने की क्षमता होती है। ‘सरलाईवल आॅफ दि फिटेस्ट’ डार्विन के इस सिद्धांत का भी यही तात्पर्य है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना होता है। यह एक सार्वभौम सत्य है। कोई घटना हो, व्यक्ति...
समय की पुकार : हो नई पौध तैयार

समय की पुकार : हो नई पौध तैयार

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प्रकृति का नियम है पका फल पेड़ पर अधिक देर तक लगा रह ही नहीं सकता वह टपकेगा ही कभी न कभी। पेड़ की फल देने की भी एक क्षमता होती है उसके बाद नए पेड़ आते हैं। यही क्रिया मानव जीवन की भी है। नई पीढ़ी को तैयार करना ही मानव धर्म है। पुरानों को जो कि अपना कर्म कर चुके होते हैं, उन्हें जाना ही होता है। उनका कर्म कैसा रहा, उनका योगदान क्या रहा या उन्हें क्या करना चाहिए था। इन सब बातों की आलोचना और विवेचना में अब और ऊर्जा व समय नहीं गंवाना है। पुरानी त्रुटियों से यह सीखना है कि हमें यह नहीं करना होगा। धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में जो भी विकृतियां आ गई हैं उन्हें अपने प्रेम, सत्य व कर्म से दूर करने का पुरुषार्थ ही अब नए प्रभात की ओर जाने का मार्ग है। हमारी सारी समस्याओं की जड़ यह है कि हम समस्याओं के हल अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार निकालकर उसी से जूझते रहते हैं। हल को लागू करने म...
सफलता का महत्वपूण मंत्र है ‘फॉलोअप’

सफलता का महत्वपूण मंत्र है ‘फॉलोअप’

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हालही में मैंने एक अत्यधिक प्रतिष्ठित संगठन के लिए रणथंभौर में ऑफसाइट/आउटबाउंड कार्यक्रम आयोजित किया था। मेरी एक गतिविधि मेरे द्वारा डिजाइन की गई एक विस्तृत प्रश्नावली के माध्यम से आत्म-विश्लेषण की थी। इसके दो भाग हैं- 'अपने आप को एक व्यक्ति के रूप में जानें’ और दूसरा भाग है 'अपने आप को एक प्रोफेशनल के रूप में जानें’। एक प्रश्न में मैंने पूछा कि अपनी पांच कमजोरियों को लिखें, तो एक व्यक्ति ने अपनी एक कमजोरी के रूप में लिखा था 'फॉलो अप में कमजोर’। जिस क्षण मैंने यह देखा, इसने मेरे कान खड़े कर दिए। मैं स्वयं इस कमजोरी का शिकार रहा हूं और जो लोग मुझे जानते हैं वे इससे सहमत भी होंगे। और तथ्य यह है कि, मैंने लंबे समय तक इसकी उपेक्षा की है। मैंने इस पर हाल ही में आधे-अधूरे मन से काम करना शुरू किया है। मेरे मन में हमेशा यह डर था कि अगर मैं बार-बार फॉलो अप करता हूं, तो दूसरा व्यक्ति परेशान हो सक...
स्वयंसेवी संस्थाओं की  धूमिल होती छवि

स्वयंसेवी संस्थाओं की धूमिल होती छवि

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  भारत को स्वयं सेवी संस्थाओं का देश कहा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के अनुपालन में भारत सरकार ने संपूर्ण देश में पंजीकृत स्वयंसेवी संस्थाओं की गणना कराई थी। इसके अनुसार देश भर के राज्यों में 38 लाख से कुछ अधिक एवं संघीय प्रदेशों में 72000 स्वयं सेवी संस्थाएं पंजीकृत थी। तीन राज्यों ने अपने आंकड़े नहीं भेजे थे। इस प्रकार ऐसी संस्थाओं की संख्या 35 लाख अनुमानित की जा सकती हैै। भारत में कुल 35 लाख सरकारी स्कूल काम कर रहे हैं एवं सरकारी अस्पतालों की संख्या केवल 36000 के लगभग है। पूरे देश में 89 लाख 30 हजार पुलिस कर्मी कार्यरत हैं जबकि इनकी स्वीकृत संख्या 39 लाख है। ऐसा अनुमान लगाया गया है पूरे विश्व में स्वयं सेवी संस्थाओं की संख्या एक करोड़ के लगभग है एवं दुनिया की कुल आबादी लगभग 8 अरब से कुछ ज्यादा है। इस प्रकार हमारे देश में विश्व की जनसंख्या का लगभग 16-17 प्रतिशत निवास क...
Unfair politics on an ultra-reformative step to ban Triple Talaq: More reforms necessary

Unfair politics on an ultra-reformative step to ban Triple Talaq: More reforms necessary

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Central government deserves compliments to get passed reformative bill on Triple Talaq by Lok Sabha on 27.12.2018 with practical amendments ruling out all possibility of interference of non-family-members of the victim-wife when only victim or her blood-relation could file a police-complaint. Other amendments including dropping the case in case the couple compromise and magistrate granting bail only after hearing the victim-wife were enough to get passed the bill unanimously. It is evident that opposition did not support a reformative move in interest of Muslim women that too at a time when even several Muslim countries have banned Triple Talaq. If it was an interference in religious matters, then opposition should have cried for abolition of Dowry Act also. Union government should now ...