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सामाजिक

आसिफा के लिए कैंडिल मार्च करने वाले लोग अब कहां छिपे हैं?

आसिफा के लिए कैंडिल मार्च करने वाले लोग अब कहां छिपे हैं?

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फिर से एक बच्ची हैवानियत का शिकार हुई. इस बार इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुई है. मंगलवार को इस बच्ची के दादा ने उसे स्कूल छोड़ा था. स्कूल में छुट्टी हो गई लेकिन वो घऱ नहीं पहुंची. परिवारवालो ने उसे हर जगह ढूंढा. जब सूरज डूबने लगा तो परिवारवालों ने पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. रात भर ये 8 साल की बच्ची कहां रही? इसके साथ क्या हुआ इसका पता तब चला जब बुधवार को मंदसौर बस स्टैंड के पीछे ये मासूम सी बच्ची घायल हालत में मिली. वो बेसुध पड़ी थी. वो लहुलुहान था. गर्दन पर गहरा घाव था. शरीर पर जगह जगह चोट के निशान थे. गाल पर के पास गहरा जख्म था मानों किसी जानवर ने उसे काटा हो. इस नन्हीं सी बच्ची को देखते ही मजारा समझ में आ गया. इस बच्ची के साथ वही हुआ जो दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था. बच्ची का इलाज कर रहे डाक्टर्स ने बताया कि हैवानों ने बच्ची के सिर, च...
I was So Angry that I Left Home

I was So Angry that I Left Home

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One day, I was so angry, that I left home, swearing not to return, till I became a big guy.Parents, who can't even buy me a Bike, have no rights to dream to make me an Engineer. ​ ​ In my fit of anger, I didn't even realise that I was wearing my father's Shoes. ​ ​ I even stole his wallet, which had some papers, torn as well, which my mother won't seen...While, I was rushing on foot towards the bus station, I realised some prickly pain in my foot. I also felt dampness inside the shoe. ​ ​ That is when I realised the shoe had a hole underneath. ​ ​ There were no buses around. ​ ​ Not knowing what to do, I started to look in my Dad's wallet. I found a loan receipt of Rs. 40,000, which he taken from his office. A laptop bill (he had bought for me). ​ ​ To my utter shock, also foun...
‘नानक शाह फकीर’ फिल्म पर विवाद क्यों?

‘नानक शाह फकीर’ फिल्म पर विवाद क्यों?

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सिक्ख धर्म संस्थापक परमादरणीय गुरू नानक देव जी के जीवन व शिक्षाओं पर आधारित फिल्म ‘नानक शाह फकीर’ काफी विवादों में है। सुना है कि शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी और कुछ सिक्ख नेता इसे रिलीज नहीं होने देना चाहते। उनका कहना है कि गुरू नानक जी पर फिल्म नहीं बनाई जा सकती । क्योंकि उनका किरदार कोई मनुष्य नहीं निभा सकता। उनकी और बाकी गुरुओं की सारी शिक्षा  गुरू ग्रंथ साहिब में संग्रहीत है। गुरु गोविंद सिंह जी ने हुकुम दिया था, "गुरु मान्यो ग्रंथ" ।  इसी भाव से हर गुरूद्वारे में ग्रंथ साहब की सेवा-अर्चना की जाती है। अकसर ही एतिहासिक फिल्मों पर विवाद होते रहते हैं। ताजा उदाहरण 'पद्मावत’ का है। इसमें राजपूतों की प्रतिष्ठा धूमिल करने का आरोप लगाकर राजपूत समाज ने काफी लम्बा विवाद खड़ा किया। राजपूत समाज के हस्तक्षेप के बाद फिल्म के निर्माता संजय लीला भंसाली ने फिल्म के कुछ दृश्यों या कुछ डायलग्स को ब...
यह इंटरनेट नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए निजता का सौदा है जिसे फ्री में बेचकर जाना है

यह इंटरनेट नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए निजता का सौदा है जिसे फ्री में बेचकर जाना है

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यह इंटरनेट नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए निजता का सौदा है जिसे फ्री में बेचकर जाना है सुन्दर पिचाई का कथन कि एआई यानी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस आग और पहिये के अविष्कार से ज्यादा ताकतवर सिद्ध होगा, ने इन्टरनेट और तकनीकी उद्भव को ऐच्छिक आवश्यकता से हटा कर, पञ्चभूतों की तरह ही अनिवार्य आवश्यकताओं में ला खड़ा किया है। इस कथन ने भविष्य की दुनिया के कुछ ऐसे कल्प वृक्षों की तस्वीर उकेरी थी, जो पहले सतह के नीचे ही अंकुरित हो रहे थे, और सीमित लोग ही इस बदलाव को भांप रहे थे। इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि आज पहिये और आग के बगैर मुख्यधारा में संलंग्न मानवता कुछ घंटों के लिए भी क्रियाशील नहीं रह सकती है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की अनिवार्यता प्रकृति प्रदत्त पंचभूतों की तरह ही हमारे जीवन के प्रत्येक विस्तार में समाहित होने को आतुर है, ऐसे में सम्पूर्ण मानवता के हितार्थ, इसे किसी...
फेसबुक डाटा कांड

फेसबुक डाटा कांड

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कुछ दिनों से फेसबुक द्वारा किए गए यूजर डाटा को लीक करने की खबरें सामने आ रही हैं। अमेरिका में सोशल नेटवर्किंग साइट ने अपने यूजर्स के डेटा को चुराकर एक एजेंसी को दिया था। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स और ब्रिटेन के ऑब्जर्वर की संयुक्त जांच में खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक के पांच करोड़ यूजरों के बारे में जानकारियां बिना उनके अनुमति के दुरुपयोग किया। यह सब 2016 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए किया गया। कंपनी ने इन जानकारियों के आधार पर एक ऐप के जरिए वोटरों के व्यवहार की भविष्यवाणी की थी। इस खुलासे के बाद भारत की राजनीति में हड़कंप मच गया है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी की सेवाएं लेने का आरोप लगाया है। प्रसाद का कहना है कि साल 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस इस एजेंसी की मदद...

Human Management

सामाजिक
मानवीय प्रबंधन की समझ इस कहानी को कई प्रबंधन गुरु सुना चुके हैं। मैं बस इसे भारतीय नामों के साथ दोहरा रहा हूँ रामू शिमला के आसपास एक ईमानदार लकड़हारा था। वह पिछले 20 वर्षोंं से लाला अमृतलाल के लिए काम कर रहा था। एक दिन, एक और युवा कटर किशोरी को रामू को मिलने वाले आधे वेतन पर रखा। दोनों ही अपने मालिक के लिए मिलकर काम कर रहे थे कुछ दिनों के भीतर, लाला जी ने देखा कि किशोरी का उत्पादन रामू की तुलना में बहुत अधिक था। मगर उसे पिछले बीस सालों से वफादार रहे रामू से आधा ही वेतन मिल रहा था। लेकिन लाला जी किशोरी के आउटपुट के से बहुत खुश हुए और उसके दो ही महीनों में किशोरी का वेतन बढ़ा दिया। किशोरी खुश था और जोश (उत्साह) के साथ उसने काम करना शुरू कर दिया लेकिन रामू खुश नहीं था। एक और दो महीने बीत गए और किशोरी का वेतन रामू के बराबर हो गया, रामू को बहुत बुरा महसूस हुआ और उसने लाल...
क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?

क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?

सामाजिक
लेखक : अरुण तिवारी क़ानूनी तौर पर अभी लिंग परीक्षण, एक प्रतिबंधित कर्म है। ''इसकी आज़ादी ही नहीं, बल्कि अनिवार्यता होनी चाहिए।'' - श्रीमती मेनका गांधी ने बतौर महिला एवम् बाल विकास मंत्री कभी यह बयान देकर, भ्रूण हत्या रोक के उपायों को लेकर एक नई बहस छेङ दी थी। उनका तर्क था कि अनिवार्यता के कारण, हर जन्मना पर कानून की प्रशासन की नज़र रहेगी। उनका यह तर्क सही हो सकता है, किंतु भ्रष्टाचार के वर्तमान आलम के मद्देनज़र क्या यह गारंटी देना संभव है कि प्रशासन की नज़र इस अनिवार्यता के कारण कमाई पर नहीं रहेगी ? प्रश्न यह भी है कि क्या क़ानून बनाकर, भ्रूण हत्या या लिंग भेद को रोका जा सकता है ? क्या लिंग परीक्षण को प्रतिबंधित कर यह संभव हुआ है ? आइये, जानें कि भ्रूण हत्या और इस पर रोक के प्रयासों की हक़ीकत क्या है ? कानून के बावजूद लिंगानुपात में घटती बेटियां : एक ओर बेटे के सानिध्य, संपर्क और संबल ...
फरिश्ते आसमान से नहीं उतरते

फरिश्ते आसमान से नहीं उतरते

सामाजिक
-विनीत नारायण ये किस्सा सुनकर शायद आप यकीन न करें। पर है सच। मुंबई के एक मशहूर उद्योगपति अपने मित्रों के सहित स्वीट्जरलैंड के शहर जेनेवा के पांच सितारा होटल से चैक आउट कर चुके थे। सीधे एयरर्पोट जाने की तैयारी थी। तीन घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट से लौटना था। तभी उनके निजी सचिव का मुंबई दफ्तर से फोन आया। जिसे सुनकर ये सज्जन अचानक अपनी पत्नी और मित्रों की ओर मुड़े और बोले, ‘आप सब लोग जाईए। मैं देर रात की फ्लाइट से आउंगा’। इस तरह अचानक उनका ये फैसला सुनकर सब चैंक गये। उनसे इसकी वजह पूछी, तो उन्होंने बताया कि, ‘अभी मेरे दफ्तर में कोई महिला आई है, जिसका पति कैंसर से पीड़ित है। उसे एक मंहगे इंजैक्शन की जरूरत है। जो यहीं जेनेवा में मिलता है। मैं वो इंजैक्शन लेकर कल सुबह तक मुबई आ जाउंगा। परिवार और साथी असमंजस्य में पड़ गये, बोले इंजेक्शन कोरियर से आ जायेगा, आप तो साथ चलिए। उनका जबाव था, ‘उस आदमी...
मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में  मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
ललित गर्ग  आज धर्म एवं धर्मगुरु जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर अनेक संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो। बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं चुक जाती हैं। मर्यादा धर्म संगठनों का त्राण है, प्राण है, जीवन रस है। अंधियारी निशा में उज्ज्वल दीपशिखा है। समंदर के अथाह प्रवाह में बहते जहाज के लिए रोशनी की मीनार है। मैंने देखा है कि तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन सम...
bachpan

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सामाजिक
बच्चों और बुजुर्गों के साझे और संवाद को प्रेरित करता एक प्रसंग सांझ सकारे सूर्योदय लेखक: अरुण तिवारी राजनाथ शर्मा, वैसे तो काफी गंभीर आदमी थे। लेकिन जब से पचपन के हुए, उन पर अचानक जैसे बचपन का भूत सवार हो गया। जब देखो, तब बचपन की बातें और यादें। रास्ते चलते बच्चों को अक्सर छेड़ देते। रोता हो, तो हंसा देते। हंसता हो, तो चिढ़ा देते। 'हैलो दोस्त' कहकर किसी भी बच्चे के आगे अपना हाथ बढ़ा देते। उनकी जेबें टाॅफी, लाॅलीपाॅप, खट्टी-मिट्ठी गोलियों जैसी बच्चों को प्रिय चीजों से भरी रहतीं। कभी पतंग, तो कभी गुब्बारे खरीद लेते और बच्चों में बांट देते। तुतलाकर बोलते। कभी किसी के कान में अचानक से 'हू' से कर देते। बच्चों जैसी हरकते करने में उन्हे मज़ा आने लगा। अब वह जेब में एक सीटी भी रखने लगे थे। उसे बजाकर बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते। यहां तक कि उनके कदम पार्क में भी जाकर बच्चों के बीच ही टिकते। बच्...