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सामाजिक

Create Rules For Your Life That Serve You Well

Create Rules For Your Life That Serve You Well

addtop, सामाजिक
Having rules that govern your life, behavior, and choices might seem confining and restrictive. But there’s a profound freedom that comes from living by a set of rules that you’ve chosen for yourself. You can refrain from toiling over as many decisions. You simply follow your own rules. Suppose you had the rule that you’re never going to lie to your partner. Then you never have to fight with yourself about whether or not to tell the truth. You simply tell the truth and get on with life. Develop your own set of rules for each aspect of your life. Rules provide the framework for having a more productive and stress-free life. This example can guide you in creating a unique set of rules for your own life: 1. I always go to bed and get up at times that provide me with the opportunity to get...
शहर-शहर जंगल का सफर

शहर-शहर जंगल का सफर

सामाजिक
- शुभेंदू शर्मा जैसे-जैसे विकास हो रहा है, हरियाली और जंगल खत्म होते जा रहे हैं। इसका असर पर्यावरण पर भी दिखने लगा है। इसके बावजूद हम पेड़-पौधों को लेकर जागरूक नहीं हो रहे हैं। कुछ लोग पेड़-पौधे लगाने की बात तो करते हैं, ताकि पर्यावरण स्वच्छ रहे, लेकिन जब बारी खुद हो, तो पीछे हट जाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पर्यावरण को बचाने के लिए अलग-अलग तरीके से काम कर रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं शुभेंदू शर्मा। पेशे से इंजीनियर शुभेंदू एक कार कंपनी में नौकरी करते थे, जहां उन्हें काफी अच्छी सैलेरी मिलती थी। लेकिन प्रकृति से लगाव की वजह से वे ज्यादा दिन तक नौकरी नहीं कर पाए। उनकी जिद थी कि हर व्यक्ति प्रकृति का अनुभव ले और हर ओर हरियाली हो, इस जिद में आकर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। शुभेंदू शर्मा बताते हैं कि एक बार उन्होंने एक जंगल देखा, जिसे जापान की एक डाॅक्टर अकिरा मियावकी ने डिजाइन किय...
गरीबों को मुफ्त में दवा बांटना मेरा मिशन है – ओमकार नाथ शर्मा

गरीबों को मुफ्त में दवा बांटना मेरा मिशन है – ओमकार नाथ शर्मा

सामाजिक
मैं उदयपुर, राजस्थान का रहने वाला हूं। मैंने नोएडा के कैलाश अस्पताल में बारह-तेरह साल नौकरी की है। मैं गरीबों को मुफ्त में दवाएं बांटने के मिशन से कैसे जुडा, इसकी एक कहानी है। वर्ष 2008 में दिल्ली के लक्ष्मीनगर में जब मेट्रो का काम चल रहा था, तब वहां एक दुर्घटना हुई, जिसमें कुछ लोग मरे, तो कुछ घायल हुए। ये सभी गरीब लोग थे। मैं तब संयोग से लक्ष्मीनगर से गुजर रहा था और बस में बैठा था। दुर्घटनास्थल पर मैं उतर गया। चूंकि अस्पताल में काम करने का मेरा अनुभव था, इसलिए मैं भी घायलों के साथ तेगबहादुर मेडिकल काॅलेज अस्पताल में चला गया। वहां मीडिया की भारी भीड़ थी, इसलिए मरीजों के प्रति डाॅक्टरों का रवैया रक्षात्मक था। लेकिन मैंने देखा कि गंभीर रूप से घायल मरीजों को भी डाॅक्टर दवा न होने की बात कहकर लौटा रहे हंै। मैं यह देखकर स्तब्ध रह गया। मेरे मन में सवाल उठने लगे कि दवा के अभाव में होने वाली मौतों ...
आसान नहीं शख्सियतें रचना – गरिमा विशाल

आसान नहीं शख्सियतें रचना – गरिमा विशाल

सामाजिक
हमें एक ऐसे युवा समाज की जरूरत है, जो ज्यादा से ज्यादा योगदान कर सके और जो अपने जुनून को अपनी आजीविका बनाने में सक्षम हो। ऐसा मानना है बिहार के मुजफ्फरपुर की 28 वर्षीय गरिमा विशाल का, जिन्होंने ऐसे ही युवा तैयार करने के उद्देश्य से एक खास स्कूल ‘डेजावू स्कूल आॅफ इनोवेशन’ की शुरूआत की है। पांच लोगों की टीम द्वारा शुरू किए गए इस स्कूल में बच्चों की पढ़ाई में उन बातों का ध्यान रखा जाता है, जो उनकी सोच को साकार कर पूरा कर सकें। सोच की शुरूआत बच्चों को पढ़ाने में शुरू से ही गहरी रूचि रखने वाली गरिमा की गणित में अच्छी पकड़ रही। करियर की मांग को देखते हुए मणिपाल इंस्टीटयूट आॅफ टेक्नोलाॅजी से सूचना प्रौद्योगिकी में उन्होंने बीटेक की पढ़ाई 2011 में पूरी कर ली। कैंपस प्लेसमेंट भी इंफोसिस कंपनी में हो गया। सामाजिक और व्यावहारिक पैमाने के हिसाब से करियर की गाड़ी तेज रफ्तार से चलने लगी, लेकिन उनके मन क...
दूषित सोच से लोकतंत्र का कमजोर होना

दूषित सोच से लोकतंत्र का कमजोर होना

सामाजिक
-ललित गर्ग- पिछले दिनों हमारी संकीर्ण सोच एवं वीआईपी संस्कृति में कुछ विरोधाभासी घटनाओं ने न केवल संस्कृति को बल्कि हमारे लोकतंत्र को भी शर्मसार किया है। एक घटना गुजरात की है जिसमें गुजरात विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा गलत जगह पार्किंग करने पर गार्ड द्वारा सही पार्किग लगाने की सलाह देना उसके लिये नौकरी से हाथ धोने का कारण बनी, वही दूसरी दिल्ली के गोल्फ क्लब में नस्ली भेदभाव की घटना जिसमें परम्परागत पोशाक जैनसेम पहनकर आने पर मैनेजर द्वारा उसे बाहर कर देने की घटना भी हमारे लिये चिन्ता का कारण बनी है। शालीन व्यवहार, संस्कृति, परम्पराएं, विरासत, व्यक्ति, विचार, लोकाचरण से लोकजीवन बनता है और लोकजीवन अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति, मर्यादा एवं संयमित व्यवहार से ही लोकतंत्र को मजबूती देता है, जहां लोक का शासन, लोक द्वारा, लोक के लिए शुद्ध तंत्र का स्वरूप बनता है। लेकिन यहां तो लोकतंत्र को हांकने वाले ल...
जब मैंने पहली बार पांच सौ का नोट देखा

जब मैंने पहली बार पांच सौ का नोट देखा

सामाजिक
हनुमक्का रोज मेरे पिता दुर्गा दास कन्नड़ थियेटर के एक सम्मानित कलाकार जरूर थे, मगर घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। कर्नाटक के बेल्लारी जिले के एक छोटे से कस्बे मरियम्मनहल्ली में मेरा जन्म हुआ था और बचपन से हमें रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। पिताजी को देखकर ही मेरे मन में थियेटर के प्रति झुकाव होता गया और जब एक दिन मैंने घर में कहा कि मैं भी थियेटर जाना चाहती हूं और काम करना चाहती हूं, तो परिवार में कोई इसके लिए राजी नहीं था। मैंने घर में कहा कि इसमें गलत क्या है? आखिर मैं परिवार की विरासत को ही तो आगे बढ़ाना चाहती हूं? मगर वह आज का समय नहीं था। उन दिनों थियेटर की महिला कलाकारों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता था। उनके चरित्र पर छींटाकशी की जाती थी और यहां तक कहा जाता था कि उनकी शादी नहीं हो सकती। मेरे घर वालों की भी यही चिंता थी। पर मैंने तय कर लि...
“रोजा इफ्तार और साम्प्रदायिक सौहार्द”

“रोजा इफ्तार और साम्प्रदायिक सौहार्द”

सामाजिक
"रोजा इफ्तार" जो केवल मुस्लिम सम्प्रदाय का मज़हबी कार्यक्रम होता है जिसमें पूरे दिन का उपवास (रोजा) रखा जाता है और फिर शाम को भोजन सामग्री ग्रहण करना आरंभ किया जाता है, इसको इफ्तार (रोजा खोलना) कहते है। जब यह कार्यक्रम सामुहिक रुप से विभिन्न नेताओं व अधिकारियों द्वारा बड़े स्तर से आयोजित किया जाता है तो वह "इफ्तार पार्टी" हो जाती है। परंतु इस अवसर पर प्रायः सामूहिक कार्यक्रम करने वालो का मुख्य लक्ष्य राजनैतिक लाभ उठाना होता है। लेकिन क्या कभी मुस्लिम संप्रदाय ने अन्य धर्मानुयाईयों की भावनाओं का सम्मान रखते हुए उनके त्यौहारों आदि पर कभी इसप्रकार की सह्रदयता का परिचय दिया है ? उल्टा अनेक गैर मुस्लिम धार्मिक अवसरों व शोभा यात्राओं पर बाधाये ही उत्पन्न करके साम्प्रदायिक दंगे अवश्य भड़के है । हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने पूर्व प्रधानमंत्रियों के समान अपने 3 वर्ष के कार्यकाल में अपने निवास व का...
पढ़ाई के लिए छोड़ना पड़ा घर 16 फ्रैक्चर, 8 सर्जरी के बाद भी आईएएस बनीं

पढ़ाई के लिए छोड़ना पड़ा घर 16 फ्रैक्चर, 8 सर्जरी के बाद भी आईएएस बनीं

सामाजिक
उम्मुल खेर, सिविल सेवा आईएएस 2017 में चयनित राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल की मां बहुत बीमार रहती थीं। पापा उन्हें छोड़कर दिल्ली आ गए। मां ने कुछ दिन तो अकेले संघर्ष किया, पर सेहत ज्यादा बिगड़ी, तो बेटी को पापा के पास दिल्ली भेज दिया। तब उम्मूल पांच साल की थी। दिल्ली आकर पता चला कि पापा ने दूसरी शादी कर ली है। वह अपनी नई बीवी के साथ एक झुग्गी में रहते हैं। नई मां का व्यवहार शुरू से अच्छा नहीं रहा। पापा निजामुद्दीन स्टेशन के पास पटरी पर दुकान लगाते थे। मुश्किल से गुजारा चल पाता था। उम्मुल के आने के बाद खर्च बढ़ गया। यह बात नई मां को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। पापा ने झुग्गी के करीब एक स्कूल में उनका दाखिला करा दिया। बरसात के दिनों में घर टपकने लगता, तो पूरी रात जागकर गुजारनी पड़ती। आस-पास गंदगी का अंबार होता था। मां की बड़ी याद आती थी। बाद में पता चला मां नहीं रहीं। उम्मुल का पढ़ाई मे...
भारत को अमेरिका बनाने के संकल्प का सत्य

भारत को अमेरिका बनाने के संकल्प का सत्य

सामाजिक
ललित गर्ग- अमेरिका के वर्जीनिया में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को अमेरिका बनाकर दिखाने का संकल्प व्यक्त किया है। 66 साल के मोदी ने अपनी इसी जिन्दगी में ऐसा करने का विश्वास व्यक्त करना कहीं अतिश्योक्ति तो नहीं है? लेकिन बड़े सपने हमें वहां तक नही ंतो उसके आसपास तो पहुंचा ही देते हैं, इसलिये मोदी के इस संकल्प को सकारात्मक नजरिये से ही देखा जाना देश के हित में है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनाव में जीत के बाद भाजपा मुख्यालय, दिल्ली में नये भारत को निर्मित करने का संकल्प लिया था। इन सुनहरे सपनों के बीच का यथार्थ बड़ा डरावना एवं बेचैनियों भरा है। देश की युवापीढ़ी बेचैन है, परेशान है, आकांक्षी है और उसके सपने लगातार टूट रहे हैं। देश का व्यापार धराशायी है, आमजनता अब शंका करने लगी है। इन हालातों में नया भारत बनाना या उसे अमेरिका बनाकर दिखाना एक बड़ी चुन...
Delay in execution dilutes death-sentence to life-sentence: Reforms necessary

Delay in execution dilutes death-sentence to life-sentence: Reforms necessary

सामाजिक
It refers to decision of Delhi High Court on 29.06.2017 diluting death-sentence of some Sonu Sardar to life-sentence despite President, State-Governor both rejecting his mercy-petitions and even Supreme Court rejecting review of death-sentence earlier endorsed by the Apex Court. Relief was granted because of late decision on mercy-petition. Strict-most measures must be taken like to decide mercy-petitions in a time-bound period of say one month followed by time-bound execution of say one week after rejection of mercy-petition. There must not be any provision to approach courts after rejection of mercy-petitions. Cases attracting death-penalty must be disposed of fast crossing all legal-channels till Supreme Court say within say three years. Fast execution will relieve from unbear...