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साहित्य संवाद

सभी को बोलने का अधिकार, पर भंग न हो समाज की अक्षुण्ता

सभी को बोलने का अधिकार, पर भंग न हो समाज की अक्षुण्ता

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विश्व संवाद केन्द्र जियामऊ में आयोजित हुआ वृहद कार्यक्रमलखनऊ,07 मई। विश्व संवाद केन्द्र जियामऊ के अधीश सभागार में रविवार को देवर्षि नारद जयंती का आयोजन किया गया। अतिथियों ने देवर्षि नारद और भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली के अधिवक्ता डी.के.दुबे ने कहा कि सत्य को समाज के सामने उजागर करना पत्रकारिता का धर्म है। देशहित में पत्रकारिता होनी चाहिए और पत्रकारों को लोकनीति के पक्ष में लिखना चाहिए।डी.के.दुबे ने कहा कि मीडिया को राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम सभी को बोलने का समान संवैधानिक अधिकार है लेकिन हम वह न बोलें जिससे समाज की अक्षुण्ता भंग न हो। हम समाज के सामने वही चीजें प्रस्तुत करें जिससे हमारी सम्प्रभुता बरकरार रहे। उन्होंने कहा कि अगर हम तटस्थ हो गये तो...
बदलाव का संवाहक बना -मन की बात

बदलाव का संवाहक बना -मन की बात

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बदलाव का संवाहक बना -मन की बातसनातन हिंदू संस्कृति का भी हो रहा विकासमृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम, “मन की बात” ने अपने सौ एपिसोड सफलतापूर्वक पूर्ण किए, यह आकाशवाणी के इतिहास का एक ऐसा कर्यक्रम बना जिसमें देश के प्रधानमंत्री ने मासिक रूप से आम जनता से सीधा संवाद किया और इसे राजनीति से पृथक अलग रखा। यह एक सुखद अनुभव है कि प्रधानमंत्री का मन की बात अर्यक्रम बदलाव का संवाहक बन बनकर क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है। इस कार्यक्रम ने वृहद् भारतीय समाज को निराशा व अंधकार से निकलने में सहायता दी है और विकास व प्रगति के नये पंख लगाए हैं । ”मन की बात“ कार्यक्रम से नया जोश, उत्साह व उमंग पैदा होती रही है तथा भविष्य में भी होती रहेगी। मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से ही भारत की संस्कृतिक व विरासत एक बार फिर पुनजीर्वित हो रही है।हमारा भारतीय समाज जिन परम्पराओं को भूल चुक...
इंग्लैंड में हिंदुओं का मजहब आधारित उत्पीड़न

इंग्लैंड में हिंदुओं का मजहब आधारित उत्पीड़न

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-बलबीर पुंज आखिर हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव क्यों है? तथाकथित सेकुलरवादियों की माने तो यह समस्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मई 2014 में सत्तारुढ़ होने के बाद से आरंभ हुई है और उससे पूर्व, इनके आपसी संबंधों में कटुता का कारण— राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अन्य हिंदू संगठनों का व्यवहार है। परंतु ऐसा (कु)तर्क करने वाले इस प्रश्न का उत्तर कभी नहीं देते कि इन दोनों ही समुदायों के बीच पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में संबंध क्यों ठीक नहीं है? अभी हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) स्थित प्रबुद्ध मंडल 'हैनरी जैक्सन सोसायटी' (एच.जे.एस.) की एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, जो रेखांकित करती है कि इंग्लैंड में भी हिंदू-मुस्लिमों के बीच रिश्ते काफी गर्त में है। इसका कारण यह बताया गया कि यू.के. स्थित हिंदू समाज, जिनकी संख्या वहां की मुस्लिम आबादी की लगभग एक चौथाई है— वे और उनके बच्चे मजहब के ना...
राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में आदि शंकराचार्य का योगदान

राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में आदि शंकराचार्य का योगदान

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भारत की विविधता पश्चिमी जगत के लिए तो सदैव से आकर्षण, आश्चर्य एवं शोध की विषयवस्तु रही ही है, अनेक भारतीय विद्वान भी इसे लेकर मतिभ्रम एवं सतही-सरलीकृत निष्कर्ष के शिकार रहे हैं। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि स्थूल, भेदकारी एवं कोरी राजनीतिक बुद्धि एवं दृष्टि से संपूर्ण भारतवर्ष में व्याप्त राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता का अनुभव-आकलन किया ही नहीं जा सकता। उसके लिए तो बड़ी गहरी-सूक्ष्म-समग्रतावादी-सांस्कृतिक दृष्टि चाहिए। जो लोग पश्चिमी राष्ट्र-राज्य की कसौटी पर भारत को कसते हैं, उन्हें अंततः निराशा ही हाथ लगती है। वस्तुतः भारत की सत्ता-संप्रभुता तंत्र में न होकर जन में है, राज्य(स्टेट) में न होकर धर्म, समाज और संस्कृति में है। ध्यान रहे कि भारत के लिए धर्म कर्त्तव्य-बोध या आचरणगत सदाचार है, पूजा-पद्धत्ति या निश्चित मत-पंथ का अनुसरण नहीं। हमने एक जन, एक तंत्र(स्टेट), एक भाषा, एक मत-पंथ-संप्रदाय, ...
पुस्तक संस्कृति की जीवंतता से उन्नत जीवन संभव

पुस्तक संस्कृति की जीवंतता से उन्नत जीवन संभव

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-ललित गर्ग- हर साल 23 अप्रैल को दुनियाभर में पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा देने एवं पुस्तक संकृति को जीवंत बनाये रखने के लिये विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसे कॉपीराइट डे भी कहा जाता है। इस दिवस को किताबें पढ़ने, प्रकाशन और कॉपीराइट के लाभ को पहचानने और बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इस दिन कई विश्वप्रसिद्ध लेखकांे का जन्मदिवस या पुण्यतिथि होती है। विलियम शेक्सपियर, मिगुएल डे सर्वेंट्स और जोसेप प्लाया का इसी दिन निधन हुआ था, जबकि मैनुएल मेजिया वल्लेजो और मौरिस ड्रून इसी दिन पैदा हुए थे। यूनेस्कों ने 23 अप्रैल 1995 को इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। पैरिस में यूनेस्को की एक आमसभा में फैसला लिया गया था कि दुनियाभर के लेखकों का सम्मान करने, उनको श्रद्धांजली देने और किताबों के प्रति रुचि जागृत करने के लिए इस दिवस को मनाया जाएगा।पुस्तकों को ज्ञान का बाग भी कहा जाता है। यदि कोई...
24 अप्रैल – राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस

24 अप्रैल – राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस

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बिखर गई पंचायतें, रूठ गए है पंच।भटक राह से है गए, स्वशासन के मंच।। राज्य सरकार स्थानीय नौकरशाही के माध्यम से स्थानीय सरकारों को बाध्य करती हैं। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं के अनुमोदन के लिए अक्सर ग्रामीण विकास विभाग के स्थानीय अधिकारियों से तकनीकी स्वीकृति और प्रशासनिक अनुमोदन की आवश्यकता होती है, सरपंचों के लिए एक थकाऊ प्रक्रिया जिसके लिए सरकारी कार्यालयों में बार-बार जाने की आवश्यकता होती है। स्थानीय कर्मचारियों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने की सरपंचों की क्षमता सीमित है। कई राज्यों में, पंचायत को रिपोर्ट करने वाले स्थानीय पदाधिकारियों, जैसे ग्राम चौकीदार या सफाई कर्मचारी, की भर्ती जिला या ब्लॉक स्तर पर की जाती है। अक्सर सरपंच के पास इन स्थानीय स्तर के कर्मचारियों को बर्खास्त करने की शक्ति भी नहीं होती है। -डॉ सत्यवान सौरभ आजकल हमें ऐसी ख़बरें सुनंने और पढ़ने क...
मानव जीवन को बचाने के लिये पृथ्वी संरक्षण जरूरी

मानव जीवन को बचाने के लिये पृथ्वी संरक्षण जरूरी

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विश्व पृथ्वी दिवस -22 अप्रैल 2023- ललित गर्ग- पृथ्वी सभी ग्रहों में से अकेला ऐसा ग्रह है जिसपर अभी तक जीवन संभव हैं। मनुष्य होने के नाते, हमें प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने वाली गतिविधियों में सख्ती से शामिल होना चाहिए और पृथ्वी को बचाना चाहिए क्योंकि यदि पृथ्वी रहने के लायक नहीं रही तो मनुष्य का विनाश निश्चित है। प्रदूषण और स्मॉग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए पृथ्वी दिवस विश्व भर में मनाया जाता है। वहीं, लोगों को संदेश देने के लिए सरकार द्वारा कुछ बेसिक थीम भी तय किए जाते हैं। हर साल प्रकृति एवं पर्यावरण चुनौतियों को ध्यान में रख कर पृथ्वी दिवस के लिए एक खास थीम रखी जाती है और उस थीम के अनुसार टारगेट अचीव करने का प्रयास किया जाता है। इस बार विश्व पृथ्वी दिवस की थीम ‘इन्वेस्ट इन अवर प्लैनेट’ है। पृथ्वी दिवस या अर्थ डे जैसे शब्द को दुनिया के सामने लाने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे...
जेंडर फ्लूडिटी का मुद्दा

जेंडर फ्लूडिटी का मुद्दा

EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण, साहित्य संवाद
जेंडर फ्लूडिटी का जो मुद्दा इंजस्टिस चंद्रमूढ़ ने शुरू किया है उसको हम और आप सिर्फ उसका मजाक बना कर हवा में नहीं उड़ा पाएंगे. यह वह पागलपन है जिसने पश्चिमी समाज को शिकंजे में कस लिया है, और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है. यहां अभी जेंडर पॉलिटिक्स उस स्तर पर पहुंच गई है जहां उसको कोई कुछ नहीं कह सकता. जो लोग यह महसूस कर रहे हैं कि यह बकवास बढ़ती जा रही है, उनको भी हिम्मत नहीं है कि इसके विरोध में कुछ कह सकें. ऑफिस में अपना प्रिफर्ड प्रोनाउन बताना कूल और फैशनेबल हो गया है. आपको खुद बताना है कि आप अपने आप को He/Him कहलाना चाहते हैं या She/Her... और सिर्फ इतना ही नहीं, Them जैसा जेंडर न्यूट्रल प्रोनाउन.. जो पहले बहुवचन के लिए इस्तेमाल होता था वह अब उन सिरफिरों के लिए इस्तेमाल होता है जो अपने को इंडिटरमिनेट जेंडर का बताना चाहते हैं. उसके अलावा Zer, Zem, xym, Xir वगैरह वगैरह सत्तर अलग अलग किस्म क...
बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है-ग्रामीण पत्रकारिता !

बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है-ग्रामीण पत्रकारिता !

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भारत आज भी गांवों का ही देश है। भारतीय जनमानस में भी ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण जन के प्रति गहरी संवेदनाएं हैं, लेकिन लोकतंत्र का चौथा पाया प्रेस आज गांवों से नहीं बल्कि शहरों से ही चलता प्रतीत होता है। सच तो यह है कि भारत आज भी गांवों में ही परिलक्षित और प्रतिबिंबित होता है। भारत की पहचान आज भी उसके गांवों से ही है, शहरों से नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत का अतीत भी गांव ही है और भारत का वर्तमान भी गांव ही हैं, इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में भी गांवों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। गांवों की पत्रकारिता को एक तरह से नजरअंदाज सा किया जा रहा है और अक्सर यह देखा जाता है कि छोटे-छोटे गाँवों की बहुत सी ऐसी खबरें होती हैं जो राष्ट्रीय स्तर की बनती हैं। वास्तव में सीमित संसाधनों के साथ आज ग्रामीण पत्रकारिता करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। गानों में संसाधनों की कमी होती है और गा...
देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहलाते हैं-मंगलपांडे ।

देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहलाते हैं-मंगलपांडे ।

साहित्य संवाद
भारतीय इतिहास की दृष्टि से 8 अप्रैल का दिन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्यों कि यह दिन वह दिन है जिस दिन भारत ने अपने एक वीर स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे को खो दिया था। आठ अप्रैल का दिन शहीद मंगल पांडे की पुण्यतिथि है। मंगल पांडे वह शख्सियत थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगलपांडे भारत के प्रथम क्रांतिकारी के रूप में विख्यात हैं। सच तो यह है कि वे देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी कहलाते है। उनके द्वारा शुरू किया अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, समूचे देश में दावानल (जंगल की आग) की तरफ फ़ैल गया था। इस भयंकर दावानल को अंग्रेजों ने बुझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन देश के बच्चे-बच्चे के अंदर ये आग भड़क चुकी थी, और इसी की बदौलत सन् 1947 में हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई। हम खुली हवा में सांस ले सके हैं। मंगल पाण्डेय (34वीं बंगाल इंफेन्ट्री) ...