Shadow

साहित्य संवाद

सनातन का सूर्योदय : हृदयनारायण दीक्षित

सनातन का सूर्योदय : हृदयनारायण दीक्षित

TOP STORIES, राष्ट्रीय, साहित्य संवाद
प्रकृति सदा से है। सदा रहती है। प्रलय में भी सब कुछ नष्ट नहीं होता। प्रकृति की शक्ति विराट है। यह दिव्य है सो देवता है। विभिन्न आर्य भाषाओं में देवता या देवी का सम्बंध प्रकाशवाची है। संस्कृत में जो देव हैं ग्रीक में वही थेओस् हैं। लैटिन में देउस हैं। आयरिश में दिया हैं। अमेरिकी विद्वान ब्लूमफील्ड ने ‘रिलीजन ऑफ दि वेद‘ में कहा है कि, ‘‘आर्यों ने देवता विषयक अपनी धारणा प्रकाश या प्रकाशमान आकाश से प्राप्त की थी।‘‘ जहां जहां दिव्यता वहां वहां देवता। भारतीय अनुभूति में अनेक देवता हैं। देवी भी हैं। देवी माता हैं। हम सब मां का विस्तार हैं। दुनिया की तमाम आस्थाओं में ईश अवतरण हैं। दैवी ज्ञान देने वाले देवदूत हैं। परमसत्ता या देवशक्ति भी इस जगत् में मां के माध्यम से ही आती है। मां न होती तो वे कैसे आते? हम सब इस जगत् में कैसे होते?सृष्टि का विकास जल से हुआ। यूनानी दार्शनिक थेल्स, चार्ल्स डार्विन स...
सतत विकास की सार्थकता है स्वच्छता और स्वच्छ जल

सतत विकास की सार्थकता है स्वच्छता और स्वच्छ जल

राज्य, साहित्य संवाद
विश्व जल दिवस बनाम सतत विकास लक्ष्य डॉ. शंकर सुवन सिंहजल, प्रकृति द्वारा मानवता के लिए एक अनमोल उपहार है। तभी तो कहा गया है प्यासे कोपानी पिलाना सबसे बड़ी मानवता है। जल को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे पानी,वारि, नीर, तोय, सलिल, अंबु, शम्बर आदि। जल एक रासायनिक पदार्थ है। जल का एकअणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना होता है। यही ऑक्सीजनगैस प्राणवायु कहलाती है। प्राणवायु जीवन का प्रतीक है। जल का मुख्य घटक प्राणवायु हीहै। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। पानी मुख्यत: तीन रूपों में पाया जाता है ठोसद्रव और गैस । आमतौर पर जल शब्द का प्रयोग द्रव अवस्था के लिए किया जाता है। जलकी ठोस अवस्था का नाम बर्फ है। जल की गैसीय अवस्था को भाप या वाष्प के रूप में जानाजाता है। वैदिक संस्कृति में जल को आप और फ़ारसी भाषा में आब नाम से जाना जाता है।ऋग्वेद में जल देवता को 'आपो देवता' या आपः ...
मीडिया में बड़े बदलाव की जरूरत ?

मीडिया में बड़े बदलाव की जरूरत ?

TOP STORIES, मल्टीमीडिया, साहित्य संवाद
डॉ. अजय कुमार मिश्रालोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मीडिया की पहचान सभी जगह विद्यमान है | समय-समय पर इनके कई स्वरुप सामने आये है जैसे प्रिंट मीडिया (न्यूज़ पेपर / मैगज़ीन), ब्रॉडकास्ट मीडिया (टीवी / रेडियो), डिजिटल मीडिया (इंटरनेट / सोशल मीडिया) इत्यादि | पर इन तीनों मीडिया में आज भी सबसे सटीक विश्वसनीयता प्रिंट मीडिया की मौजूद है, हाँलाकि प्रिंट मीडिया में समय के साथ-साथ पाठको की संख्या में कमी आयी है | आज के वर्तमान स्वरुप की बात करें तो प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया दोनों डिजिटल मीडिया पर भी आ गए है और सबसे तेजी से करोड़ों लोगों के मध्य पहुचनें की क्षमता भी इन्ही में विद्यमान है | बढ़तें इंटरनेट के उपयोग ने इसकी पहुँच देश के कोनें कोने में कर दी है | सभी वर्ग केलोगों ने अपना स्थान इस मीडिया में बनाना शुरू कर दिया है, इनके पास परम्परागत ज्ञान और तकनीक न होतें होए भी स...
नेमप्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया

नेमप्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
आर.के. सिन्हा पिछली 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिलाओं को घर और घर से बाहर, उनके जायज हक देने को लेकर तमाम वादे किए गए और अनेकों बातें भी हुईं। यह तो हर साल ही 8 मार्च को होता है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। यह सब आगे भी होता ही रहेगा। पर अफसोस कि घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में मां, बेटी और बहू के लिए अबतक कोई जगह नहीं है। हालांकि अब घर बनाने के लिए आमतौर पर पति-पत्नी मिलकर ही मेहनत करते हैं और फिर होम लोन भी मिलकर ही लेने लगे हैं। कहने को भले ही कहा जाता रहे कि हर सफल इंसान के पीछे किसी महिला की प्रेरणा होती है। यह बात अपने आप में सौ फीसद सही भी है। इस बारे में कोई बहस या विवाद नहीं हो सकता। सफल इंसान को जीवन में सफलता दिलाने में मां, बहन, पत्नी वगैरह किसी न किसी मातृशक्ति का रोल रहता है। पर, उन्हें घरों के बाहर लगी नेम...
तपती धरती, संकट में अस्तित्व

तपती धरती, संकट में अस्तित्व

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
भारत में, 10 सबसे गर्म वर्षों में से नौ पिछले 10 वर्षों में दर्ज किए गए हैं, और सभी 2005 के बाद से दर्ज किए गए हैं। पिछला साल रिकॉर्ड पर पांचवां सबसे गर्म वर्ष था। गर्मी की लहरों के कारण प्रेरित तनाव श्वसन और मृत्यु दर को बढ़ाता है, प्रजनन क्षमता को कम करता है, पशु व्यवहार को संशोधित करता है, और प्रतिरक्षा और अंतःस्रावी तंत्र को दबा देता है, जिससे कुछ बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। 1992 के बाद से, भारत में लू से संबंधित 34,000 से अधिक मौतें हुई हैं। गर्मी की लहरें पशुओं को गर्मी के तनाव का अनुभव करने की संभावना भी बढ़ जाती हैं, खासकर जब रात के समय तापमान अधिक रहता है और जानवर ठंडा नहीं हो पाते हैं। गर्मी से तनावग्रस्त मवेशी दूध उत्पादन में गिरावट, धीमी वृद्धि और कम गर्भाधान दर का अनुभव कर सकते हैं। गर्मी की लहरें सूखे और जंगल की आग को बढ़ा सकती हैं, जिससे कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक ...
बुढ़ापे में स्मृतिलोप का अंधेरा परिव्याप्त होने की आशंका

बुढ़ापे में स्मृतिलोप का अंधेरा परिव्याप्त होने की आशंका

विश्लेषण, सामाजिक, साहित्य संवाद
-ललित गर्ग- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान सहित दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की ओर से किए गए शोध में यह बताया गया है कि आने वाले वक्त में भारत में साठ साल या उससे ज्यादा उम्र के एक करोड़ से भी अधिक लोगों के डिमेंशिया यानी स्मृतिलोप की चपेट में आने की आशंका है। घोर उपेक्षा एवं व्यवस्थित देखभाल के अभाव में बुजुर्गों में यह बीमारी तेजी से पनप रही है। भारत का बुढ़ापा एवं उम्रदराज लोगों का जीवन किस कदर परेशानियों एवं बीमारियों से घिरता जा रहा है, उससे ऐसा प्रतीत होने लगा है कि उम्र का यह पड़ाव अभिशाप से कम नहीं है। एक आदर्श एवं संतुलित समाज व्यवस्था के लिये अपेक्षित है कि वृद्धों के प्रति स्वस्थ व सकारात्मक भाव व दृष्टिकोण रखे और उन्हें वेदना, कष्ट व संताप से सुरक्षित रखने हेतु सार्थक पहल करे ताकि वे स्मृतिलोप या मतिभ्रम का भी शिकार न हो जाएं। वास्तव में भारतीय संस्कृति तो ब...
सुख-सुविधा का पागलपन रौंद रहा मनुष्यता

सुख-सुविधा का पागलपन रौंद रहा मनुष्यता

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
आज के भागदौड़ भरे जीवन में अच्छे जीवन की एक संकीर्ण धारणा पर ध्यान केंद्रित करने से विभिन्न नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। नैतिक मूल्यों के संकट का समाधान करने के लिए अच्छे जीवन की समग्र दृष्टि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जीवन का सही अर्थ खोजने के लिए, बुद्ध ने अपना घर और धन छोड़ दिया। राजा हरिश्चंद्र, महात्मा गांधी और डॉ. कलाम के जीवन से कोई भी व्यक्ति सच्चाई, धार्मिकता, ईमानदारी और करुणा के मूल्यों को सीख सकता है। नैतिक मूल्यों के व्यापक आयामों पर जोर देने से, विशेष रूप से व्यक्तियों और समग्र रूप से समाज के दीर्घकालिक कल्याण को सुनिश्चित किया जा सकता है। -डॉ सत्यवान सौरभ  नैतिक मूल्य एक व्यक्ति के भीतर स्थायी विश्वास और विचार हैं और अच्छे या बुरे के लिए प्राथमिकता को दर्शाते हैं। आधुनिक समय में कई समाजों ने मानव जीवन के प्राथमिक लक्ष्य के रूप में भौतिक संपदा, शक्ति ...
1 मार्च 1689 सम्भाजी महाराज का बलिदान

1 मार्च 1689 सम्भाजी महाराज का बलिदान

धर्म, समाचार, साहित्य संवाद
औरंगजेब द्वारा कठोर यातनाएँ, जुबान काटी, चीरा लगाकर नमक भरा रमेश शर्मा पिछले दो हजार वर्षों में संसार का स्वरूप बदल गया है । बदलाव केवल शासन करने के तरीके या राजनैतिक सीमाओं में ही नहीं हुआ अपितु परंपरा, संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक स्वरूप में भी हुआ है । किंतु भारत इसमें अपवाद है । असंख्य आघात सहने के बाद भी यदि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ दिख रहीं हैं तो इसके पीछे ऐसे बलिदानी हैं जिन्होंने कठोरतम प्रताड़ना सहकर भी अपने स्वत्व की रक्षा की है । झुकना या रंग बदलना स्वीकार नहीं किया । ऐसे ही बलिदानी हैं सम्भाजी महाराज जिन्हें धर्म बदलने के लिये 38 दिनों तक कठोरतम यातनाएँ दीं गईं जिव्हा काटी गई, शरीर में चीरे लगाकर नमक भरा गया पर वे अपने स्वत्व पर अडिग रहे ।सम्भाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे। उन्हें धोखे से बंदी बनाकर इतनी क्रूरतम प्रताड़ना दी गयी जिसकी कल्पना तक नहीं की...
वह स्त्री है

वह स्त्री है

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, साहित्य संवाद
वह स्त्री है बैठाया तो इसलिए गया था उसेकि अपनी अग्निप्रतिरोधी चादर के चलतेवह बच जाएगीऔर प्रह्लाद जल जाएगालेकिन जब तपिश बढ़ीतो उसने अपनी चादर प्रिय प्रह्लाद को ओढ़ा दीऔर स्वयं जल मरीस्त्री थी न! वह स्त्री है,कुछ भी कर सकती है। यह एक कविता है-अगर इसे हम कविता कह सकें! हिन्दी के एक वरिष्ठ, चर्चित वामपंथी कवि ने इसे लिखा है। यह ऐतिहासिक रूप से झूठ तो है ही। काव्यात्मक संवेदना इसकी इकहरी, भोथरी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि..वह स्त्री थी न/ वह स्त्री है, कुछ भी कर सकती है-इस नारे की आड़ में संपूर्ण हिन्दू जातीय इतिहास को मलिन करने का कुत्सित प्रयास है। यह सर्वविदित है कि वामपंथियों और कथित प्रगतिशीलों के लिए हिन्दुओं के पर्व त्योहार, उसकी अन्तर्कथाएं, उसके पात्र और संदेश हमेशा से प्रश्नों के घेरे में रहे। यह उनका प्रिय, लगभग पुश्तैनी धंधा सा रहा। भारतीय स्त्रियों की दशा पर उन्होंने बड...
समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निभा रहा है अहम भूमिका

समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निभा रहा है अहम भूमिका

विश्लेषण, साहित्य संवाद
भारत में पिछले 97 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के नागरिकों में देशप्रेम की भावना का संचार करने का लगातार प्रयास कर रहा है। वर्ष 1925 (27 सितम्बर) में विजयदशमी के दिन संघ के कार्य की शुरुआत ही इस कल्पना के साथ हुई थी कि देश के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत और व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होने चाहिए। आज संघ, एक विराट रूप धारण करते हुए, विश्व में सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन बन गया है। संघ के शून्य से इस स्तर तक पहुंचने के पीछे इसके द्वारा अपनाई गई विशेषताएं यथा परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण विकास की कामना व सामूहिक पहचान आदि विशेष रूप से जिम्मेदार हैं। संघ के स्वयंसेवकों के स्वभाव में परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग तथा परिवार के लिये अधिकाधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता और आपस में विश्वास की भावना...