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साहित्य संवाद

जहां सर्वत्र अनैतिकता है, वहां राष्ट्रीय चरित्र कैसे बने?

जहां सर्वत्र अनैतिकता है, वहां राष्ट्रीय चरित्र कैसे बने?

सामाजिक, साहित्य संवाद
-ललित गर्ग -किसी वकील, डॉक्टर या राजनेता को ढूंढना कठिन नहीं, जो अपने विषय के विशेषज्ञ हों और ख्याति प्राप्त हों, पर ऐसे मनुष्य को खोज पाना कठिन है जो वकील, डॉक्टर या राजनेता से पहले मनुष्य हो, नैतिक हो, ईमानदार हो, विश्वस्त हो। पर राष्ट्र केवल व्यवस्था से ही नहीं जी सकता। उसका सिद्धांत पक्ष यानी नैतिकता भी सशक्त होनी चाहिए। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के नागरिकों के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है। हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के बाद भी राष्ट्रीय चरित्र नहीं बन पाया। सशक्त भारत-नया भारत को निर्मित करते हुए भी राष्ट्रीय चरित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृस हो रहा है। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कर्त्तव्य को गौण कर दिया है। इस तरह से जन्म...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व का विराट दर्शन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व का विराट दर्शन

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
हमलोगों को "हिंदू" कब से कहा जाया जाने लगा ये तो ठीक-ठीक नहीं पता पर मेरे ख्याल से ये नाम हमारे लिए सबसे उपयुक्त नाम है क्योंकि ये सर्वसमावेशी नाम है जो हमारी सामूहिक प्रकृति को सबसे ठीक से परिभाषित करती है। महाभारत के बाद से भारत कई अवैदिक मतों की उद्भव स्थली बनी। बौद्ध, जैन और सिख मत जन्में। अगर और ज्यादा विस्तृत रूप में कहें तो हिंदुत्व वो है जिसमें सनातनी, बौद्ध, जैन, निंबार्ककी, सिख (सिखों में भी सहजधारी, केशधारी) लिंगायत, गृहस्थ, संन्यासी, नास्तिक, वैदिक, अवैदिक, अज्ञेयवादी, निरंकारी, प्रकृति पूजक, मशान पूजक, सुधारवादी, जड़वादी, कैवल्य, रामस्नेही सबके सब इस के अंदर समाहित है। दिक्कत ये हुई कि ये सब जो पंथ-उपपंथ-मत- संप्रदाय आदि जन्में इन सबके अपने गुरु, अपने इष्ट, अपने प्रवर्तक और अपने तीर्थंकर हैं। इनके अपने तीर्थ हैं। अपनी परंपराएं हैं। अपने आश्रम और कर्मकांड हैं तो जब तक इन...
संघ विचार-परिवार के वैचारिक अधिष्ठान की नींव – श्री गुरूजी

संघ विचार-परिवार के वैचारिक अधिष्ठान की नींव – श्री गुरूजी

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, समाचार, साहित्य संवाद
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के धुर-से-धुर विरोधी एवं आलोचक भी कदाचित इस बात को स्वीकार करेंगें कि संघ विचार-परिवार जिस सुदृढ़ वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ा है उसके मूल में माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरूजी के विचार ही बीज रूप में विद्यमान हैं। संघ का स्थूल-शरीरिक ढाँचा यदि डॉक्टर हेडगेवार की देन है तो उसकी आत्मा उसके द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी के द्वारा रची-गढ़ी गई है। उनका वास्तविक आकलन-मूल्यांकन होना अभी शेष है, क्योंकि संघ-विचार परिवार के विस्तार और व्याप्ति का क्रम आज भी लगातार जारी है। किसी भी नेतृत्व का मूल्यांकन तात्कालिकता से अधिक उसकी दूरदर्शिता पर केंद्रित होता है। यह उदार मन से आकलित करने का विषय है कि एक ही स्थापना-वर्ष के बावजूद क्या कारण हैं कि तीन-तीन प्रतिबंधों को झेलकर भी संघ विचार-परिवार विशाल वटवृक्ष की भाँति संपूर्ण भारतवर्ष में फैलता गया, उसकी जड़ें और मज़बूत एव...
कैसे बनी हिंदी विश्व भाषा

कैसे बनी हिंदी विश्व भाषा

EXCLUSIVE NEWS, साहित्य संवाद
आर.के. सिन्हा भारत से दूर प्रशांत महासागर के द्वीप लघु भारत फीजी में 12 वां विश्व हिन्दी सम्मेलन वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधिवत उद्घाटन फिजी के राष्ट्रपति रातू विनिमाये कोटो निवरी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त रूप से किया I इस अवसर पर विश्व के पचासों देशों के हिंदी के विद्वान हिंदी प्रेमी सम्मलेन में भाग लेने के लिए एकत्र होकर इसके विश्व स्तरीय प्रसार-प्रचार पर चर्चा कर रहे हैं। वहां पर अनेकों शोध पत्र पढ़े जा रहे हैं तथा सारगर्भित चर्चाएं हो रही हैं। पर हिन्दी तो अब विश्व भाषा बन चुकी है। अंग्रेजी और चीनी (मैंडरिन) के बाद  हिंदी ही एक वडी और लोकप्रिय भाषा के रूप में उभरी है I फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश को पीछे छोड़ते हुए हिंदी लगातार आगे बढ़ रही है I आप दुबई, सिंगापुर, न्यूयार्क, सिडनी, लंदन जैसे...
विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?

समाचार, साहित्य संवाद
डॉ. वेदप्रताप वैदिक फिजी में 15 फरवरी से 12 वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन 1975 में नागपुर से शुरु हुआ था। उसके बाद यह दुनिया के कई देशों में आयोजित होता रहा है। जैसे मोरिशस, त्रिनिदाद, सूरिनाम, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत आदि! पिछले दो सम्मेलनों को छोड़कर बाकी सभी सम्मेलनों के निमंत्रण मुझे मिलते रहे हैं। मुझे 1975 के पहले सम्मेलन से ही लग रहा था कि यह सम्मेलन हिंदी के नाम पर करोड़ों रु. फिजूल बहा देने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। नागपुर सम्मेलन के दौरान मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ में एक संपादकीय लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘‘हिंदी मेलाः आगे क्या?’’ 38 साल बीत गए लेकिन जो सवाल मैंने उस समय उठाए थे, वे आज भी ज्यों के त्यों जीवित हैं। तत्कालीन दो प्रधानमंत्रियों के आग्रह पर मैंने मोरिशस और सूरिनाम के सम्मेलनों में भाग लिया। वहां दो-तीन सत्रों की अध्यक्षता भी की और दो-टूक भाषण...
अंश बनाम पूर्णता : हृदयनारायण दीक्षित

अंश बनाम पूर्णता : हृदयनारायण दीक्षित

TOP STORIES, विश्लेषण, संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
अंश के आधार पर पूर्ण का विवेचन नहीं हो सकता। विवेचन में देश काल के प्रभाव का ध्यान रखना जरूरी होता है। देश काल के प्रभाव में समाज की मान्यताएं बदलती रहती हैं। वाल्मीकि रामायण विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य है। रामायण का रचनाकाल लगभग ईसा पूर्व 500 वर्ष माना जाता है। तुलसीदास ने रामकथा पर आधारित रामचरितमानस सोलहवीं सदी में लिखी थी। रामचरितमानस उत्कृष्ट काव्य है। करोड़ों हिन्दू इसे धर्मग्रन्थ जैसा सम्मान देते हैं। एक समय सूरीनाम, मारीशस, कम्बोडिया, थाईलैण्ड आदि देशों में भारत से जाकर बसने वाले लोग रामचरितमानस की प्रतियां भी साथ ले गए थे। लेकिन कुछ राजनेता मानस की कथित नारी अपमान व शूद्र सम्बंधी चैपाइयों को लेकर आक्रामक हैं। वे इसे जलाने या प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं। शूद्र शब्द भी इस विवाद का हिस्सा है। उनके वक्तव्यों से सामाजिक विभाजन का खतरा है। वे अगड़े पिछड़े के विभाजन में राजनैतिक भविष्...
दुबई में नए इस्लाम की पुकार !

दुबई में नए इस्लाम की पुकार !

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, साहित्य संवाद
*डॉ. वेदप्रताप वैदिक दुबई में कल विश्व बंधुत्व-दिवस मनाया गया। इस मुस्लिम राष्ट्र में पिछले 10-15 साल से मुझे किसी न किसी समारोह में भाग लेने कई बार आना पड़ता है। सात देशों का यह महासंघ ‘संयुक्त अरब अमारात’ कहलाता है। यह सिर्फ सात देशों का महासंघ ही नहीं है, यह कम से कम 100 देशों का मिलन-स्थल है। जैसे हम न्यूयार्क स्थित संयुक्तराष्ट्र संघ के भवन में दर्जनों राष्ट्रों के लोगों से एक साथ मिलते हैं, बिल्कुल वैसे ही दुबई और अबू धाबी वगैरह में सारी दुनिया के विविध लोगों के दर्शन कर सकते हैं। जैसे भारत में आप दर्जनों धर्मों-संप्रदायों, जातियों, रंगों, भाषाओं, वेशभूषाओं और भोजनोंवाले लोगों को एक साथ रहते हुए देखते हैं, बिल्कुल वैसा ही नज्जारा यहां देखने को मिलता है याने दूसरे शब्दों में यह छोटा-मोटा भारत ही है। इस संयुक्त महासंघ की संपन्नता और भव्यता देखने लायक है। कल यहां जो विश्व-बंधुत्व दि...
भारत का दर्शन – हृदयनारायण दीक्षित

भारत का दर्शन – हृदयनारायण दीक्षित

राज्य, साहित्य संवाद
भारत विशिष्ट जीवनशैली वाला राष्ट्र है। इसका मूल आधार संस्कृति है। इस संस्कृति का विकास अनुभूत दर्शन के आधार पर हुआ है। यहाँ सांस्कृतिक निरंतरता है। दर्शन और विज्ञान की उपलब्धियां संस्कृति में जुड़ती जाती हैं। संस्कृति को समृद्ध करती हैं और कालवाह्य विषय छूटते जाते हैं। संस्कृति का मूल स्रोत वैदिक धर्म और संस्कृति है। यजुर्वेद के एक गुनगुनाने योग्य मंत्र (22-2) में स्तुति है, ‘‘हमारे राष्ट्र के राजन्य्ा शूरवीर हों। गाय दूध देने वाली हों। परिवार संरक्षक माताएं हों। तेजस्वी गतिशील युवा हों। मेघ मनोनुकूल वर्षा करें। इस राष्ट्र के विद्वान समग्रता में सम्पूर्णता के ज्ञाता हों - ब्रह्मवर्चसी जायताम। समग्रता में विचार से लोकमंगल के अमृतफल मिलते हैं। खण्डों में विचार से सुखद परिणाम नहीं आते। समग्र विचार उपयोगी है, ऋग्वेद (9-113-10,11) में सोम देवता से स्तुति है, ‘‘जहां सारी कामनाएं पूरी होती हों। ...
ग़ायब होता जा रहा “सरकार नागरिक संवाद”

ग़ायब होता जा रहा “सरकार नागरिक संवाद”

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
हर रोज़ मीडिया में खबरें भरी पड़ी हैं- छोटी और बड़ी, लोगबाग सड़कों पर निकलकर प्रदर्शन-धरने कर रहे हैं, जुलूस निकल रहे हैं, नारेबाजी हो रही है, पर्चे बांटे जा रहे हैं, यह सब इसलिए कि किसी तरह प्रशासन-सरकार उनकी शिकायतें सुन ले। सरकार शिकायतें तो सुनती है,पर निराकरण नहीं होता ? आम आदमी सड़कों पर आकर यह सब करने को बमुश्किल होता है,क्योंकि उसके लिए यह कीमती वक्त और प्रयास बेकार करने जैसा है, जिसका उपयोग दो जून की रोटी कमाने में करना ज्यादा जरूरी है। र्निविकार बना प्रशासन जन समस्याओं का निवारण करना तो दूर, सुनने तक को राजी न हो तो और चारा भी क्या बचता है?समस्या चाहे पंचायत स्तर की मामूली हो या फिर राज्य अथवा राष्ट्रीय स्तर की, आम आदमी के लिए सड़क पर आने का विकल्प ही बचा है। महिला पहलवानों का उदाहरण नवीनतम है, जिन्हें भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष द्वारा किये गए कथित अनुचित यौन दुर्व्यवहार क...
भाषा किसी देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है

भाषा किसी देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है

साहित्य संवाद
लेखिका - डॉ कामिनी वर्मालखनऊ ( उत्तर प्रदेश ) वैचारिक संप्रेषण के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। धरती पर जब से मनुष्य का अस्तित्व है तभी से वह भाषा का प्रयोग कर रहा है। ध्वनि एवं संकेत दोनों रूपों में वैचारिक आदान - प्रदान होता रहा है । भारत भाषा और बोलियों की दृष्टि से समृद्ध देश है । भारत के लिए कहा जाता है कि *कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी* यहाँ अनगिनत भाषाएं व बोलियां बोली जाती हैं। वर्तमान में लगभग 780 भाषाएं व 2000 बोलियां प्रचलित है । भाषा और बोली देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है । परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है , जैसे जैसे जीवन परिवर्तित होता है वैसे वैसे सांस्कृतिक मूल्य भी परिवर्तित होते हैं। मनुष्य का जीवन स्तर, आचार - विचार, रहन -सहन में बदलाव का प्रभाव भाषा व बोली पर भी पड़ता है। पिछले 50 वर्षों में भारत में  220 भाषाएं प्रचलन से बाहर हो गईं ...