जहां सर्वत्र अनैतिकता है, वहां राष्ट्रीय चरित्र कैसे बने?
-ललित गर्ग -किसी वकील, डॉक्टर या राजनेता को ढूंढना कठिन नहीं, जो अपने विषय के विशेषज्ञ हों और ख्याति प्राप्त हों, पर ऐसे मनुष्य को खोज पाना कठिन है जो वकील, डॉक्टर या राजनेता से पहले मनुष्य हो, नैतिक हो, ईमानदार हो, विश्वस्त हो। पर राष्ट्र केवल व्यवस्था से ही नहीं जी सकता। उसका सिद्धांत पक्ष यानी नैतिकता भी सशक्त होनी चाहिए। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के नागरिकों के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है। हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के बाद भी राष्ट्रीय चरित्र नहीं बन पाया। सशक्त भारत-नया भारत को निर्मित करते हुए भी राष्ट्रीय चरित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृस हो रहा है। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कर्त्तव्य को गौण कर दिया है। इस तरह से जन्म...