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मोदी को कौन दे सकता है भाजपा में चुनोती ?

मोदी को कौन दे सकता है भाजपा में चुनोती ?

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मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान तीनो का कुल क्षेत्रफल 8 लाख वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्रफल 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर के एक चौथाई यानि 25% क्षेत्रफल के आसपास है। अब यह भाजपा के कब्जे से बाहर है।दूसरी बड़ी बात तीनो प्रदेश खनिज संपदा से भरपूर है और तीनों में गोवा व गुजरात सहित 2014 के लोकसभा चुनावों से पूर्व भाजपा की सरकारें थी। आज गोवा में मनोहर पर्रिकर की टूटी फूटी व गुजरात मे विजय रुपाणी की तेजहीन भाजपा सरकारें है और बाकी तीन राज्य अब हाथ से निकल गए और शिवराज, वसुंधरा व रमन अब मोदी को चुनौती देने लायक नहीं बचे। यानि 2014 से पूर्व के भाजपा क्षत्रपों का पतन और मोदीजी का भाजपा पर वर्चस्व। तीनों राज्यों में राजपूत मुख्यमंत्री केंद्र में राजपूत गृहमंत्री राजनाथ सिंह को मजबूत करते थे जो नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनोती थे। अब यह गठजोड़ पस्त और लगे हाथ इनके हाथ मजबूत करने निकले योगी आदित्यना...
भाजपा: हार और ये आरोपों की बारिश

भाजपा: हार और ये आरोपों की बारिश

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भाजपा की तीन राज्यों में करारी हार के बाद नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं ने जैसे आरोपों की बारिश ही कर दी है। हो सकता है कुछ आरोप अतिरेक हो मगर मजेदार जरूर हैं - " एंटी इंकॉम्बेन्सी" व एक बार हार-एक बार जीत की परंपरा, अहंकारी होना, जमीन से कटना, जमीनी कार्यकर्ताओ की उपेक्षा , टिकटों का गलत बँटबारा व पैसे लेना, पार्टी का कांग्रेसीकरण, परिक्रमा करने वालों को आगे बढ़ाना व पराक्रम वाले कार्यकर्ताओं के लिए "यूज़ एन्ड थ्रो" की नीति रखना तो सामान्य है ही हिंदुत्व के एजेंडे से अलग होकर विकास व जाति की राजनीति में शीर्ष नेतृत्व का उलझ जाना अधिक प्रमुख हैं। पार्टी का अपने मूल एजेंडे से भटकाव, कश्मीर, अवैध बांग्लादेशी, समान नागरिक संहिता व राम मंदिर जैसे मुद्दों का समाधान न होना, निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के साथ ही गैर भाजपाइयों को सरकारी पद व रेवड़ी बांटना भी है। भारत का भारतीयकरण न करना यानि पाश्चात्य सं...
State Poll Verdict unlikely to impact Lok Sabha Elections

State Poll Verdict unlikely to impact Lok Sabha Elections

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The verdict in the state assembly elections in three States of Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh that went against the BJP should not be taken as a negative sign for the BJP in the next year’s general elections to Lok Sabha. Contrary to opinions and comments being offered by political commentators, the BJP has reason to smile though it may sound bizarre when I use this word ‘smile’ when we have lost the elections in three States. One should not forget that 15 years of incumbency is something that is not easy to defend no matter how good work the government has done. In Delhi, Sheila Dixit who also did apperantly good work in Delhi was defeated after being in office for three terms at the hands of a dark horse like Aam Admi Party. Let’s analys the hard facts! CHHATTISGARH The po...
राष्ट्रवादियों की अवहेलना…

राष्ट्रवादियों की अवहेलना…

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पांच राज्यों के विधान सभाओं के चुनावी परिणामों में हुई भाजपा की पराजय को राष्ट्रवाद की हार कहा जाये तो अनुचित नही होगा। मोदी,शाह व योगी कौन है राष्ट्रवादी समाज की भावनाओं को न समझने का जिम्मेदार..? यह राष्ट्रवादी समाज की पराजय है। सत्तालोलुपता ने देश की संस्कृति और स्वाभिमान को सदा ठेस पहुंचायी है। 2004 में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में भाजपा की भारत भक्तो के प्रति उदासीनता ने ही सोनिया की कांग्रेस को विजयी बनाया था।  2014 में भाजपा की अद्भुत विजय भारतीय संस्कृति को आहत करने वाले सोनिया के षडयन्त्रो व मोदी जी का आक्रामक राष्ट्रवाद कारण बना था। सारे राष्ट्र में राष्ट्रवादियों को मोदी सरकार से बहुत आशा बंधी थी।जिससे आगे भी राज्यों के चुनावों में भाजपा को अच्छी विजय मिली। लेकिन अब जो परिणाम आये हैं उससे यह स्पष्ट संकेत है कि जब जब भाजपा राजमद में शपथ भूल जाती तब तब राष्ट्रवादियों...
आरबीआई बोर्ड बैठक में निकला बीच का रास्ता

आरबीआई बोर्ड बैठक में निकला बीच का रास्ता

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्ण बोर्ड की बहुप्रतीक्षित बैठक में जिस तरह के हंगामे के आसार थे, वैसा कुछ सामने नहीं आया। बैठक में वैसे तो सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच विवाद के किसी भी मुद्दे पर दो टूक फैसला नहीं हुआ, लेकिन हर मुद्दे पर बीच की राह निकालने की कोशिश होती दिखी। सरकार की मांग थी कि आरबीआई के रिजर्व फंड में उसे ज्यादा हिस्सा मिले, तो इस पर फैसला करने के लिए एक विशेष समिति गठित कर दी गई। सरकार की दूसरी मांग थी प्रॉ प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के अंकुश से सरकारी क्षेत्र के 11 बैंकों को बाहर निकालने या उसमें ढील देने की, तो इस मामले को आरबीआई की ही एक आंतरिक समिति को सौंप दिया गया। फंसे कर्ज (एनपीए) से जुड़े नए नियमों के बोझ में दबे छोटे व मझोले उद्योगों को राहत देने के मुद्दे पर आरबीआई जरूर झुकता दिख रहा है। बैठक की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह करीब ...
संदेह के घेरे में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा

संदेह के घेरे में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा

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रजनीश कपूर गत एक सप्ताह मेंं कई विचारवान लोगों तथा राजनीतिक दलों द्वारा केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के प्रमुख आलोक वर्मा को पाक साफ सिद्ध करने के लिए काफी कुछ कहा गया। दावा किया जा रहा है कि वर्मा ईमानदार अधिकारी हैं। किन्तु तथ्य इस दावे को झुठलाते हैं। 'कालचक्र’ के संपादक श्री विनीत नारायण ने कई टेलीविजन चैनलों पर आग्रहपूर्वक कहा है कि जेट एयरवेज घोटाले में हमारी शिकायत सीबीआई के पास अभी भी धूल फाक रही है, जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसका संज्ञान ले लिया है। यही नहीं, आरोप है कि एक बैंक घोटाले से जुड़े मामले में सीबीआई से जुड़े अपने एक सहयोगी को बचाने के लिए श्री वर्मा उस घपले की जांच को आगे नहीं बढऩे दे रहे हैं। 12 फरवरी, 2018 को भारतीय स्टेट बैंक वाराणसी के क्षेत्रीय प्रबंधक ने लखनउ स्थित सीबीआई के एसपी के समक्ष एक लिखित शिकायत (जिसकी प्रति कालचक्र के पास मौजूद है) दर्ज करायी, ज...
पंजाब : क्या यह दबी चिंगारी को हवा देने की कोशिश है?

पंजाब : क्या यह दबी चिंगारी को हवा देने की कोशिश है?

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  अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान पंजाब में खालिस्तान लहर के दोबारा उभरने के संकेत दिए थे। उनका यह बयान बेवजह नहीं था क्योंकि अगर हम पंजाब में अभी कुछ ही महीनों में घटित होने वाली घटनाओं पर नजर डालेंगे तो समझ में आने लगेगा कि पंजाब में सब कुछ ठीक नहीं है। बरसों पहले जिस आग को बुझा दिया गया था उसकी राख में फिर से शायद किसी चिंगारी को हवा देने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। जी हां, पंजाब की खुशहाली और भारत की अखंडता आज एक बार फिर कुछ लोगों की आंखों में खटकने लगी है। 1931 में पहली बार अंग्रेजों ने सिक्खों को अपनी हिंदुओं से अलग पहचान बनाने के लिए उकसाया था। 1940 में पहली बार वीर सिंह भट्टी ने 'खालिस्तान’ शब्द को गढ़ा था। इस सब के बावजूद 1947 में भी ये लोग अपने अलगाववादी इरादों में कामयाब नहीं हो पाए थे। लेकिन 80 के दशक में पंजाब अलगाववाद...
फिर चौराहे पर कश्मीर

फिर चौराहे पर कश्मीर

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विराग गुप्ता जम्मू कश्मीर मामले में राज्यपाल के फैसले को अदालत में चुनौती देने के लिए पीडीपी, नेशनल कांफ्रेन्स और कांग्रेस के विधायकों को एकजुट होकर आना पड़ेगा। इन दलों के अंतर्विरोध को देखते हुए ऐसा होना मुश्किल लगता है। पीडीपी की महबूबा मु ती की तरफ से सोशल मीडिया के जरिए सरकार बनाने के दावों को दरकिनार करते हुए राज्यपाल एस.पी. मलिक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग कर दिया। मामला अदालत में जाए तो भी विधानसभा का बहाल होना मुश्किल है। संविधान के अनुसार भारत के सभी राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 5 साल है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। विधानसभा भंग होने के बाद क्या लोकसभा के साथ ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे? नए चुनावों में अगर किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो खण्डित जनादेश की वजह से क्या विधानसभा फिर भंग होगी? देश के कई राज्यों में इसके पहले ...
सबकी निगाहें संसद  के अंतिम सत्र पर

सबकी निगाहें संसद के अंतिम सत्र पर

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  सर्जना शर्मा ग्यारह दिसंबर से आरंभ हो रहा संसद का शीतकालीन सत्र इस बार कई मायनों में महत्वपूर्ण और निर्णायक होगा। हालांकि पहले दिन कोई काम नहीं होगा। भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार को श्रृद्धांजलि देने के साथ ही दिन भर की कार्यवाही स्थगित हो जाएगी। लेकिन ग्यारह दिसंबर का दिन शीतकालीन सत्र की दशा दिशा तय करेगा। पांच राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम, तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ जायेंगे। परिणाम किसके पक्ष में जाएगा इसी पर सत्ता और विपक्ष दोनों का रूख निर्भर करेगा। ये चुनाव बीजेपी बनाम सभी विपक्षी दल और मोदी बनाम समूचा विपक्ष है। यदि बीजेपी की विधानसभा चुनावों में यथास्थिति रहती है तो विपक्ष उतना हावी नहीं हो पाएगा। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकारें हैं। यदि बीजेपी यहां अपना आधार खो देती ह...
बिभा चौधरी – भारतीय भौतिक विज्ञान का एक गुमनाम सितारा

बिभा चौधरी – भारतीय भौतिक विज्ञान का एक गुमनाम सितारा

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भारत में कण भौतिकी का इतिहास होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, एम.जी.के. मेनन जैसे वैज्ञानिकों और बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान, मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) एवं अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) के कार्यों से जुड़े संदर्भों से भरा पड़ा है। लेकिन, भाभा और साराभाई के साथ काम कर चुकी बिभा चौधरी (1913-1991) के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। बिभा चौधरी ने नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकशास्त्री पी.एम.एस. ब्लैकेट के साथ भी काम किया था। ब्लैकेट स्वतंत्र भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की शुरुआत करने से संबंधित मामलों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के सलाहकार थे। एम.जी.के मेनन के नेतृत्व में कोलार गोल्ड फील्ड (केजीएफ) में प्रोटॉन क्षय परीक्षण में भी चौधरी शामिल थीं। भौतिकी के क्षेत्र में अपने कई दशक लंबे करियर के दौरान चौधरी ने प्रतिष्ठ...