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कोरोना संकट और जिंदगी की जंग से घिरा मेरा परिवार

कोरोना संकट और जिंदगी की जंग से घिरा मेरा परिवार

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मानव जीवन व सभ्यता के लिए अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में कोरोना ने हर मनुष्य के जीवन को हिलाकर रख दिया है। पिछले कुछ दिनों में इसके दुष्परिणाम मैंने स्वयं भोगे हैं व बहुत करीब से बड़े दर्दनाक अनुभवों से गुजरा हूं। आज जब उस दुष्चक्र से निकला हूं तो लगा आप सभी मित्रों से भी अपने अनुभव साझा कर लूं ताकि आप भी समय रहते जरूरी सावधानी बरत लें। मेरे साथ मेरे परिवार में पत्नी, दो बच्चों के साथ मेरे माता-पिता व ससुर जी भी रहते हैं। तीनों बुजुर्ग ही 80 वर्ष से ऊपर के। मेरे पिताजी कुछ दिनों से गैस, सीने में दर्द व बेचैनी से परेशान थे। डॉक्टर की सलाह पर गैस से संबंधित दवाएं भी ले रहे थे। किंतु कोई राहत नहीं। पिछले सप्ताह दर्द कुछ अधिक ही बढ़ गया तो लगा चूंकि वे ह्रदय रोगी भी हैं, तो लगा ह्रदय चिकित्सक को भी दिखा लें। मैं अपने बड़े भाई के साथ उनको उनके पुराने विशेषज्ञ के पास नोएडा के एक बड़े...
कोरोना का असर-तो क्या चीन छोड़कर भारत आएंगे निवेशक

कोरोना का असर-तो क्या चीन छोड़कर भारत आएंगे निवेशक

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आर.के. सिन्हा   वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण सारी दुनिया के हाथ-पैर फूल गए हैं। धरती पर भय और त्रात्रि-त्राहि के हालात बन चुके हैं I तब भारत के लिए एक अवसर बन रहा है। अवसर यह हैकि भारत दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब बन सकता है । भारत चाहे तो चीन के खिलाफ दुनिया की नफरत का इस्तेमाल अपने लिए एक बड़े आर्थिक अवसर के रूप में कर सकता है। इसबेहतरीन मौके को किसी भी सूरत में भारत को छोड़ना नहीं चाहिए । यह ऐसा  वक्त है जब देश के नीति निर्धारकों को बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित करने के उपाय तलाशने होंगे। पर क्या ये संभव है? असंभव तो दुनिया में कुछ भी नहीं है । पर  इसके लिए भारत के सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार और लालफीताशाही पर हल्ला बोलना होगा। सरकारों को इस दिशामें कठोर कदम उठाने होंगे। काहिल और निकम्मे सरकारी अफसरों पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई करनी होगी । निवेश संबंधी नियमों को ...
इरफान की मौत पर कुछ सवाल मुसलमानों से

इरफान की मौत पर कुछ सवाल मुसलमानों से

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एक तो कोरोना वायरस के कारण फैली विश्वव्यापी हताशा और ऊपर से हिन्दी सिनेमा के दो बेहद सशक्त अभिनेताओं इरफान खान और फिर ऋषि कपूर  के संसार से कूच कर जाने ने मानो देश को शोक के महासागर में धकेल दिया है। दोनों असाधारण कलाकार थे। दोनों ने हिन्दी सिनेमा पर लगभग आधी सदी तक अपना प्रभाव छोड़ा। अगर बात इऱफान खान की करें तो वे बेहद शानदार कलाकार होने के साथ-साथ एक गहरी शख्यिसत के भी मालिक थे। वे बहुत सोच समझकर ही किसी विषय पर अपनी राय रखते थे। यूं तो वे सामान्यतः फिल्मों से इत्तर विषयों पर बोलते नहीं थे, पर बोलते थे तो उन्हें कायदे से सुना जाता था। इरफान खान बाकी सितारों से अलग थे। दरअसल वे स्टार नहीं कलाकार थे। वे  "सेकुलर " कहलाने की ख्वाहिश रखने वाले नहीं थे । उन्हें  भारत में डर भी नहीं लगता था। उन्होंने कभी "माई नेम इज़ खान" का हौव्वा भी खड़ा नहीं किया। उन्होंने अंडरवर्ल्ड के पैसे पर फलने-फूलने...
धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

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जब से कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से अपनी जान बचाने के अलावा दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चर्चा का विषय वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर है। हर आदमी खासकर व्यापारी, कारखानेदार और मजदूर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अर्थव्यवस्था के इस तेजी से पिछड़ जाने के कारण प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्रीगण तक सार्वजनिक रूप से आर्थिक तंगी, वेतन में कटौती, सरकारी खर्च में फिजूल खर्च रोकना और जनता से दान देने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में सबका ध्यान भारत के धर्म स्थलों में जमा अकूत दौलत की तरफ भी गया है। बार-बार यह बात उठाई जा रही है कि इस धन को धर्म स्थलों से वसूल कर समाज कल्याण के या विकास कार्यों में लगाया जाए। आरोप लगाया जा रहा है कि भारी मात्रा में जमा यह धन, निष्क्रिय पड़ा है। या इसका दुरुपयोग हो रहा है। कुछ सीमा तक उपरोक्त आरोप में दम हो सकता है। पर इस धन को सरकारी तंत्र के हाथ में दिए जाने के बहुतसे लोग श...
चुनौती को अवसर में बदलें पूर्वी राज्य

चुनौती को अवसर में बदलें पूर्वी राज्य

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आर.के.सिन्हा कोरोना वायरस के बहाने देश दीन-हीन प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक हालात से रू ब रू हो गया है। कोराना वायरस की चेन को ध्वस्त करने के लिए शुरू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद पैदा हुए हालातों से समझ आ गया कि हमारे यहां बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उडीसा, छतीसगढ़ और असम आदि राज्यों के मजदूरों को लेकर कई राज्य सरकारों और नौकरशाही का रवैया कितना निर्ममतापूर्ण रहा है। गुजरात में भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूरों पर लाठियां बरसाई जाती हैं। पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडू में भी इन्हें इंसान तक नहीं समझा गया। अब कहीं जाकर इन्हें घर भेजने की व्यवस्था शुरू हुई है। यह पहले भी हो सकती थी । इसके कार्यान्वयन में देरी ने सशक्त मजदूरों का दयनीय और मजबूर दृश्य देश के सामने प्रस्तुत किया है जिससे बचा जा एकता था । इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की लचर आपदा प्रबंधन, लापरवाह कार्य यो...
मौतों के दौर में सोनिया की सियासत

मौतों के दौर में सोनिया की सियासत

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अफसोस कि जब देश को कोरोना वायरस के संक्रमण की राष्ट्रीय आपदा और उससे पैदा हुई समस्याओं से एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए था, तब भी हमारे देश में ओछी राजनीति हो रहीहै। लगता है कि मौतों और लाशों की खबरें देख सुनकर भी कुछ नेताओं में मनुष्यता अबतक जागी नहीं है। उनके दिल तो अभी भी पत्थर के समान कठोर हैं। उन्हें तो सस्ती सियासत हीकरनी है। चाहे देश और जनता जाये चूल्हें में उनकी अपनी रोटी सिंकना जरूरी है, चिता की आग हो या दंगों की आगजनी। उन्हें कहाँ कोई फर्क पड़ता है। अब जरा देख लें कि देश की सबसे पुरानी और बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस लॉकडाउन के कारण फंसे रहे मजदूरों को उनके अपने गृह राज्यों में रेल से भेजने के प्रश्न पर अकारण राजनीतिकरने लगीं। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी विगत 4 मई को कहने लगी कि कांग्रेस पार्टी प्रवासी मजदूरों का रेल किराया देने के लिए तैयार है। बाकायदा लिखित बयान जारी कर झूठेआरो...
सनातनी, सेवाभावी व कर्मयोगी  डॉ मदन मोहन अग्रवाल

सनातनी, सेवाभावी व कर्मयोगी डॉ मदन मोहन अग्रवाल

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स्वर्गीय डॉ मदन मोहन जी : जीवन वृत सनातनी, सेवाभावी व कर्मयोगी डॉ मदन मोहन अग्रवाल एक समाजसेवी, व्यवसायी व गृहस्थ के रूप में  एक क्षेत्रीय बैंक के लिपिक बाबू धनप्रकाश गुप्ता और उनकी पत्नी द्रौपदी देवी के घर पर बिजनौर जिले के धामपुर कस्बे के आवास में 13 अगस्त 1938 को  पुत्र 'मदन’ का जन्म हुआ तो मानो समय ही बदल गया। भाग्य लक्ष्मी ने घर में डेरा डाल दिया। पिता धन प्रकाश कुछ ही दिनों में बैंक के प्रबंधक बन गए और गरीबी में जी रहे परिवार के तो जैसे दिलद्दर ही दूर हो गए। एक ओर जहां धन प्रकाश के घर खुशियों की बरसात होने लगी वहीं कुल 6 बहन (मिथलेश, राजेश्वरी, लक्ष्मी, सुमन, नीरजा, साधना) व एक भाई (रामअवतार) के आगमन के साथ ही अगले कुछ वर्षों में 'मदन’ एक बड़े किंतु प्रतिष्ठित परिवार के लाडले व केंद्र बिंदु बनते गए। धामपुर के प्रसिद्ध कॉलेज एस एन इन्टर कॉलेज से 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद...
कब तक रहेगा वर्क फ्रॉम होम

कब तक रहेगा वर्क फ्रॉम होम

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अब यह कमोबेश सबको समझ आ गया होगा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के साथ हमें रहना सीखना ही होगा। इस बात को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जब तक इस भयानक महामारी की कोई वैक्सीन ईजाद नहीं होती तब तक तो बचाव के अलावा कोई दूसरा कोई रास्ता नहीं है। इसलिए जरूरी है कि फैक्ट्रियां, दफ्तर आदि भी खुलें । देश में विगत मार्च महीने के तीसरे हफ्ते से ही लॉकडाउन के हालात बने हुए हैं। ये अनिश्चितकाल के लिए तो नहीं रहेंगे। केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और लघु उद्योग मंत्री नितिन गडकरी ने भी तो अब यह कहा कि सरकार सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए सार्वजनिक परिवहनों के संचालन के लिए दिशा-निर्देश तैयार कर रही है। उन्होंने कहा, 'पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी जल्द ही शुरू हो सकता है।' गडकरी जी ने जो कहा उसके संकेतों से साफ है कि सरकार अब जिंदगी दुबारा से पहले की तरह बहाल करने की तरफ बढ़ रही है। वह ऑरेंज और ग्रीन जोनों...
क्या शराब और तम्बाकू से कोरोना वायरस रोकथाम खतरे में पड़ जायेगी?

क्या शराब और तम्बाकू से कोरोना वायरस रोकथाम खतरे में पड़ जायेगी?

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू और शराब दोनों से कोरोना वायरस रोग होने पर गंभीर परिणाम होने का खतरा बढ़ता है और मृत्यु तक हो सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू और शराब दोनों के सेवन की, कोई भी सुरक्षित सीमा नहीं है – यानि कि, हर रूप में और हर मात्रा में, यह हानिकारक हैं. जब देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा था और तालाबंदी हो गयी थी, तब शराब कंपनियां सरकार पर यह दबाव बनाने का प्रयास कर रही थीं कि शराब को ‘अति-आवश्यक श्रेणी’ में लाया जाए क्योंकि खाद्य सामग्री की तरह शराब ही अति-आवश्यक है. कोरोना वायरस महामारी में शायद पृथ्वी पर हर इंसान को यह समझ में आ गया है कि भोजन कितना आवश्यक है परन्तु शराब और तम्बाकू, न केवल, गैर ज़रूरी हैं बल्कि कोरोना वायरस रोग का खतरा भी बढ़ाते हैं. शराब और कोरोना वायरस रोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के दौरान शर...
देश कब समझेगा रील और ऱीयल दुनिया के नायकों का अंतर

देश कब समझेगा रील और ऱीयल दुनिया के नायकों का अंतर

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  अभी हाल ही में देश के दो रीयल और रील लाइफ के नायकों के संसार से विदा होने पर जिस तरह की प्रतिक्रिया देश में देखने को मिलीं वह सबकों हैरान करने वाली थी। पहले सशक्त अभिनेता और पीकू, लंच बॉक्स, पान सिंह तोमर जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपने यादगार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले इरफान खान और उसके बाद राज कपूर के छोटे बेटे ऋषि कपूर की मृत्यु पर देश में जिस तरह की शोक की लहर उमड़ी वह निश्चित रूप से अभूतपूर्व और अप्रत्याशित मानी जाएगी ऋषि कपूर ने अपने लगभग आधी सदी लंबे फिल्मी सफर में बॉबी, मुल्क,  लैला-मजनूं जैसी दर्जनों उम्दा फिल्मों में नायक का रोल निभाया । हालांकि वे बीच-बीच में अपने कुछ विवादास्पद बयानों के कारण खबरों में भी आ जाते थे। तो भी यह तो  मानना ही होगा कि वे एक लोकप्रिय सितारें थे। पर इन दोनों के दिवंगत होने के फौरन बाद कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए सेन...