Shadow

addtop

भ्रष्ट बाबुओं बाज आ जाओ

भ्रष्ट बाबुओं बाज आ जाओ

addtop, TOP STORIES, विश्लेषण
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल का शुभारंभ धमाकेदार तरीके से किया है। उनकी सरकार ने  वित्त मंत्रालय के 12 वरिष्ठ अफसरों को  जबरन रिटायर  करा दिया। दरअसल सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉम्र्स के नियम 56 के तहत  इन अफसरों को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दी। ये सभी अधिकारी आयकर  विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। यानी संदेश अब साफ है। अब मोदी के राज में निकम्मे और कामचोर सरकारी बाबुओं की खैर नहीं है। अब बाबुओं के कामकाज पर गहरी नजर रखी जाएगी। अब वे सरकारी ओहदे की मौज-मस्ती नहीं काट सकेंगे। अगर मौज काटेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। यूं तो संदिग्ध अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट द...
मुद्रा लोन पाने वाले बनेंगे भविष्य के शिव नाडार और सचिन बंसल

मुद्रा लोन पाने वाले बनेंगे भविष्य के शिव नाडार और सचिन बंसल

addtop, TOP STORIES, आर्थिक
तो अब यह तय ही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार अपने 2.0 के एजेंडे के तहत देश के नौजवानों को अपना कोई पसंदीदा बिजनेस चालू करने के लिए बड़े ही व्यापक स्तर पर कदम उठाने जा रही है। उसकी चाहत है कि देश की युवा शक्ति अपने करियर के विकल्प खुले रखें। सिर्फ नौकरी पाने के लिए न भागे। वे नौकरी देने वालों की कतार में लगें। वह बिजनेस करने के अवसर किसी भी हाल में न छोड़े। नौजवानों में ऐसा करने की इच्छा नहीं हैं, ऐसी बात नहीं है। परन्तु, उसमें सबसे बड़ी बाधा तो अब तक पूंजी का न होना ही होता था। बैंकों से ब्याज पर लोन प्राप्त करना भी भगवान के दर्शन पाने से कम नहीं था। पहले तो बैंक के पचासों चक्कर लगाओ। फिर जब किसी बैंक मैनेजर को किसी नौजवान का चेहरा पसंद आ जाये, या जाति, धर्म, प्रान्त, भाषा आदि किसी भी कारण से रहम आ जाये तब शुरू होगी प्रोजेक्ट बनाकर और फार्म भरकर जमा करने की बारी। गरीब नौजवान को प्रोजेक्ट बनाना...
सशक्त सेना सुरक्षित भारत

सशक्त सेना सुरक्षित भारत

addtop, EXCLUSIVE NEWS, राष्ट्रीय
भारतीय सेना समूचे विश्व की दूसरी बड़ी सेना है और भारतीय सेना का वार्षिक खर्च समूचे विश्व में उसे 5वां स्थान प्रदान करता है। वर्ष 2018 में भारतीय सेना का बजट शिक्षा और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के बजट का 5 गुना था, फिर भी पाकिस्तान और चीन के साथ लगती सीमाओं पर आये दिन तनाव के दृष्टिगत रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यह बजट और अधिक होना चाहिए। लगभग 3 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष सेवा निवृत्त सैनिकों को पेंशन वितरित की जाती है। अब तक भारतीय सेना के लिए रक्षा उपकरण बहुतायत विदेशों से आयात किये जाते थे, परन्तु अब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 'मेक इन इंडिया’ आह्वान के कारण भारत में कई प्रकार के रक्षा उपकरणों के निर्माण प्रारम्भ कर दिये गये हैं जिससे निकट भविष्य में भारत रक्षा उपकरणों का निर्यातक देश बनने की अवस्था में आ सकता है। मॉरीशस, श्रीलंका, वियतनाम तथा संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) जैसे देशो...
कितनी कारगर होगी नई शिक्षा नीति?

कितनी कारगर होगी नई शिक्षा नीति?

addtop, EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण
  डॉ. प्रमोद कुमार नई शिक्षा नीति के मसौदे में प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयीन शिक्षा तक कईं बड़े बदलाव के प्रस्ताव हैं। इससे स्वतंत्रता के बाद पहली बार देश की शिक्षा व्यवस्था के भारतीय पटरी पर लौटने की उम्मीद जगी है। परन्तु कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। यह सवाल इसलिए लाजिमी है क्योंकि इससे पूर्व भी कई बार अनेक शिक्षा आयोग एवं समितियां बनीं, परन्तु उनकी सिफारिशें लागू नहीं हो पायीं। देशवासियों को उम्मीद है कि प्रचंड जनादेश प्राप्त मोदी सरकार इस मोर्चे पर दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाएगी। स्वतंत्रता के बाद देश में जितनी उपेक्षा शिक्षा की हुई उतनी संभवत: किसी अन्य क्षेत्र की नहीं हुई। परिणामस्वरूप आज न तो देशभर में एक समान पाठ्यक्रम लागू है, न इतिहास की समग्र जानकारी बच्चों को दी जाती है, न नई पीढ़ी को देश की समृद्ध एवं गौरवशाली सांस...
कांग्रेस पार्टी को सही दिशाओं की तलाश

कांग्रेस पार्टी को सही दिशाओं की तलाश

addtop, BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
  कांग्रेस पार्टी तरह-तरह के अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की है। हालांकि पार्टी के निष्ठावान नेता उत्तराधिकारी के मसले पर बात करने को तैयार नहीं हैं। पार्टी को अब फिर से मूल्यों पर लौटकर अपने आप को एक नए दौर की पार्टी के तौर पर पुनर्जीवित करना होगा। चुनौतियां तो अनेक हैं, गांधी-परिवार पर निराशाजनक निर्भरता पार्टी के सामने पहली चुनौती है, दूसरी बड़ी चुनौती केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव है। बावजूद इसके किस वजह से पार्टी अब भी आगे की दिशा में बड़ा कदम उठाने से कतरा रही है। पार्टी के नेता ये बुनियादी बात ही नहीं समझ पा रहे हैं कि राहुल गांधी न पार्टी को छोड़ रहे हैं, न उन्हें छोड़ रहे हैं और न ही राजनीति को। शायद वे पहली बार समझदारी दिखा रहे हैं कि कोई गैर-गांधी परिवार का सदस्य अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृृत्व करें। यह समझद...
जमीनी बदलाव बिना  कांग्रेस की राह मुश्किल

जमीनी बदलाव बिना कांग्रेस की राह मुश्किल

addtop, BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
  सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव नतीजों को लेकर कांग्रेस कितनी आशावान थी, इसका अंदाजा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की 21 मई की प्रेस कांफ्रेंस से चलता है। चुनाव नतीजे आने के ठीक दो दिन पहले राहुल गांधी ने जिस आत्मविश्वास से कहा था कि उन्होंने नरेंद्र मोदी के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं, उससे ही साबित होता है कि पार्टी सत्ता में वापसी को लेकर कितनी आश्वस्त थी। पार्टी की इस आशावादिता को कुछ दिन बाद आई खबरों ने भी जाहिर किया, जिसमें कहा गया है कि पार्टी की आंकड़ा विश्लेषण करने वाली टीम ने 184 लोकसभा सीटें जीतने का अनुमान जताया था, जिसके चलते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी सलाहकार मंडली पूरे उत्साह में थी। यहां तक कि पार्टी ने भावी मंत्रिमंडल के लिए नाम भी तय कर लिए थे। जिसमें गृहमंत्री पद के लिए द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता स्टालिन का नाम तय करके उन्हें फोन भी कर दिया गया था। राष...
संघ के स्वयंसेवकों से इतना परहेज क्यों?

संघ के स्वयंसेवकों से इतना परहेज क्यों?

addtop, EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण
पिछले दिनों विदेश में तैनात भारत के एक राजदूत से मोदी सरकार के अनुभवों पर बात हो रही थी। उनका कहना था कि मोदी सरकार से पहले विदेशों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन दूतावास के अधिकारी ही किया करते थे। लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से अप्रवासी भारतीयों के बीच सक्रिय संघ व भाजपा के कार्यकर्ता इन कार्यक्रमों के आयोजन में काफी हस्तक्षेप करते हैं और इन पर अपनी छाप दिखाना चाहते हैं। कभी-कभी उनका हस्तक्षेप असहनीय हो जाता है। सत्तारूढ़ दल आते-जाते रहते हैं। इसलिए दूतावास अपनी निष्पक्षता बनाए रखते हैं और जो भी कार्यक्रम आयोजित करते हैं, उनका स्वरूप राष्ट्रीय होता है, न कि दलीय। इस विषय में क्या सही है और क्या गलत, इसका निर्णंय करने में भारत के नये विदेश मंत्री जयशंकर सबसे ज्यादा सक्षम हैं। क्योकि वे किसी राजनैतिक दल के न होकर, एक कैरियर डिप्लोमेट रहे हैं। कुछ ऐसी ही शिकायत देश क...
किसने किया दुर्गा मंदिर पर हमला?

किसने किया दुर्गा मंदिर पर हमला?

addtop, Today News, विश्लेषण
देश की राजधानी दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में दो समुदाय किसी छोटी सी बात पर भिड़े तो आनन-फानन में एक मंदिर पर हमला कर दिया गया। पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में 100 साल पुराने दुर्गा मंदिर को बुरी तरफ से ध्वस्त किया गया। मंदिर पर लगे शीशे तोड़ डाले गए और देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी खंडित किया गया। अब मंदिर को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों की धरपकड़ तो चालू हो गई है। कुछ आरोपी पक़ड़े भी जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में बुलाकर अपनी नाराजगी जताई  है । इससे लगता तो यही है कि शेष अपराधी भी पकड़े  जाएंगे। ऐसी आशा तो की जाती है। पर इस बेहद दुखद विवाद का एक सकारात्मक पहलू यह रहा है की सन 1650 में निर्मित फतेहपुरी मस्जिद के इमाम डा. मुफ्ती मुकर्रम ने मुसलमानों से अपील की कि वे ही मंदिर की मरम्मत करवाएं। एक तरह से उन्होंने साफतौर पर संकेत दे दिए है...
जीवाश्मी इस्पाती ढाँचा और श्रेष्ठ भारत का सपना

जीवाश्मी इस्पाती ढाँचा और श्रेष्ठ भारत का सपना

addtop, BREAKING NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय
                          " उम्मीद नहीं है कि भारत में गूगल और एप्पल जैसी बड़ी कम्पनियां तैयार हो सकती है। यहाँ जॉब करना और मर्सिडीज खरीद लेना ही सफलता है। क्रिएटिविटी कहाँ है? उपरोक्त बड़ी गम्भीर बात हाल ही में एप्पल के को-फाउंडर स्टीव वोज्नियाक ने भारत के बारे में कही है। इसका बड़ा गहरा अर्थ है देश के अतीत तथा वर्तमान से। और, बहुप्रतीक्षित श्रेष्ठ और स्वर्णिम भारत का भविष्य भी इन्हीं दो विरोधी शब्दों के समीकरण से तय होना है। श्रेष्ठ भारत का सपना देख रहे अधिकांश जनता को इस श्रेष्ठ भारत के निर्माण स्तम्भ जिसे इस्पाती ढाँचा के नाम से जानते हैं,के जर्जर हालत का पता ही नहीं है। आज भी भारत उस सामंती मानसिकता से पूर्णतः बाहर नहीं आ पाया है जहाँ सृजनात्मकता से प्राप्त नौकरी से ज्यादा एक अदद बाबूगिरी वाले सरकारी नौकरी को तवज्जो दिया जाता है। आईएएस, आईपीएस या बाबूगिरी वाला कोई नौकरी मिल...
हिंदी से तमिलों को आख़िर दिक़्क़त(परेशानी) क्या है?

हिंदी से तमिलों को आख़िर दिक़्क़त(परेशानी) क्या है?

addtop, BREAKING NEWS, TOP STORIES, राज्य
मणिशंकर अय्यर वरिष्ठ कांग्रेस नेता कस्तूरीरंगन कमिटी की रिपोर्ट में एक आधे वाक्य को लेकर तमिलनाडु में जो हंगामा और विरोध हुआ, उससे तमिलनाडु के बाहर रहने वाले भारतीय हैरान हो गए. उन्हें समझ में नहीं आया कि आख़िर तमिलनाडु में हिंदी का इतना विरोध क्यों हो रहा है. कस्तूरीरंगन कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की थी कि तमिलनाडु समेत सभी ग़ैर-हिंदी भाषी राज्यों में एक क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेज़ी के अलावा सभी सेकेंडरी स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए. इस सुझाव का सबसे कड़ा विरोध तमिलनाडु में हुआ. इस पर हैरान होने वालों को स्कूलों में हिंदी पढ़ने की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ (विरुद्ध)तमिलभाषियों के आंदोलन का इतिहास याद करना चाहिए. ये क़िस्सा क़रीब दो सदी पुराना है. 1833 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को क़ाबू में रखने वाली अपनी अक़्लमंदी (समझधार) भरी नीति को तिलांजलि दे दी. इसके बाद ...