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अंधकार का प्रतीक बुर्का बने इतिहास की बात

अंधकार का प्रतीक बुर्का बने इतिहास की बात

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श्रीलंका में दिल-दहलाने वाले बम धमाकों के बाद  वहां की सरकार ने बुर्का पहनने पर रोक लगा दी। इसके तुरंत बाद अपने केरल  राज्य में एक मुस्लिम शिक्षा निकाय ने अपने कॉलेजों और स्कूलों में ड्रेस कोड पर सर्कुलर जारी कर दिया है। सर्कुलर के अनुसार छात्राओं को अपने चेहरे को बुर्के से ढकने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हो सकता है कि कुछ मुसलमान और छदम सेक्यूलर वादी कहे जाने वाले मित्र श्रीलंका में बुर्के पर बैन को गंभीरता से न लें पर हमारे अपने देश की एक मुस्लिम शिक्षण ने संस्था ने सच में एक मील का पत्थर फैसला लिया है। उसने अपने फैसले को लागू करने के संबंध में उच्च न्यायालय के निर्देश का हवाला दिया है। यह एक बेहद क्रांतिकारी फैसला माना जाएगा। क्षमा चाहता  हूं कि मुसलमानों का एक बड़ा समूह अपने को प्रगति विरोधी के रूप में साबित करने पर आमादा रहता है। इन हालातों में केरल की उपर्युक्त संस्था ने उन  कठमुल्ला म...
दबाव एवं हिंसा की त्रासदी का शिकार बचपन

दबाव एवं हिंसा की त्रासदी का शिकार बचपन

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आज का बचपन केवल अपने घर में ही नहीं, बल्कि स्कूली परिवेश में बुलीइंग यानी दबाव एवं हिंसा का शिकार है। यह सच है कि इसकी टूटन का परिणाम सिर्फ आज ही नहीं होता, बल्कि युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते यह एक महाबीमारी एवं त्रासदी का रूप ले लेता है। यह केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया की एक बड़ी समस्या है। लंदन के लैंकस्टर यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट स्कूल के अर्थशास्त्र विभाग में असोसिएट रह चुकीं एम्मा गॉरमैन ने इस पर लम्बा शोध किया है। उन्होंने अपने इस शोध के लिए यूके के 7000 छात्र-छात्राओं को चुना। उन्होंने पहले उनसे तब बात की जब वे 14-16 की उम्र के थे। उसके बाद तकरीबन दस वर्षों तक उनसे समय-समय पर बातचीत की गई। गॉरमैन ने पाया कि किशोरावस्था की बुलीइंग यानी बच्चों को अभित्रस्त करना, उन पर अनुचित दबाव डालना या धौंस दिखाना, चिढ़ाना-मजाक उड़ाना या पीटना की घटनाओं ने बच्चों के भीतर के आत्मविश्वास, स्वतंत्र व्यक्...
एक खामोश क्रांति, लाखों युवक लेते कारोबार के लिए लोन

एक खामोश क्रांति, लाखों युवक लेते कारोबार के लिए लोन

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देश में लोकसभा चुनावों के स्वाभाविक कोलाहल के बीच एक अहम खबर दब सी गई है। पर यह अपने आप में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। खबर यह है कि सरकार ने मुद्रा लोन योजना के तहत अपने 2018-19 के लक्ष्य को पूरा कर लिया है। ये राशि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 23 फीसद अधिक है । सरकार ने इस अवधि के दौरान 3 लाख करोड़ रुपये का लोन देने का लक्ष्य बनाया था। आपको पता ही है कि उपर्युक्त मुद्रा योजना के तहत देशभर के उन नवयुवकों / नवयुवतियों को आसान दरों पर लोन उपलब्ध करवाया जाता है, जो पहली बार अपना कोई कारोबार शुरू करना चाहते हैं। आज से बीसेक साल पहले जिन कारोबारियों ने अपना कोई बिजनेस शुरू किया है, वे ही बता सकते हैं कि उन्हें पूंजी जुटाने के लिए दिन में ही रात के तारे नजर आ जाते थे। बैंकों के चक्कर लगाते-लगाते जूतियाँ घिस जाती थीं । इसी वजह से ज्यादातर भावी कारोबारियों के कुछ खास करने के ख्वाब बिखर जाया करते थे...
प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है

प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है

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विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। 1991 में यूनेस्को की जनरल असेंबली के 26वें सत्र में अपनाई गई सिफारिश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने दिसंबर 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। प्रेस केवल खबरे पहुंचाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह नये युग के निर्माण और जन चेतना के उद्बोधन ए...
रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

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भारत सरकार के विदेश मंत्री और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अनेकों बार मुख्यमंत्री रह चुके दिवंगत दिग्गज नेता एनडी तिवारी के बेटे रोहित की हत्या के सनसनीखेज मामले में दिल्ली पुलिस ने उनकी पत्नी अपूर्वा को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि पूछताछ में अपूर्वा ने रोहित को मारने की बात भी कबूल ली है । रोहित की मौत से कम दुखद नहीं है, इस हत्याकांड में रोहित की पत्नी अपूर्वा का खुद संलिप्त होना। हालांकि अभी कोर्ट में अपूर्वा के जुर्म को पुलिस को साबित करना बाकी है, पर पहली नजर में यह बात शीशे की तरह से साफ नजर आ रही है कि रोहित की हत्या संपत्ति विवाद के कारण ही हुई। आरोपित अपूर्वा को संदेह था कि उसकी सास, उसे अपनी चल-अचल संपत्ति से बेदखल कर सकती है। तो जल्दी से पैसा कमाने के फेर में रोहित की पत्नी ने उसका कत्ल ही कर दिया। सच में हमारे आसपास कुछ नरपिशाच घूम रहे  हैं। ये खून के प्यासे हैं। ...
विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

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मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य लेकिन विश्व का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जहां मजदूरोें का शोषण न होता हो। बंधुआ मजदूरों खासकर महिला और बाल मजदूरों की हालत और भी दयनीय होती है जिन्हें अपनी मर्जी से न अपना जीवन जीने का अधिकार होता है और न ही सोचने का। ऐसे में मजदूरों की स्थिति में सुधार आवश्यक भी है और उसका अधिकार भी। दुनियाभर के मजदूरों को कई श्रेणियों में बांटा जाता रहा है जैसे कि संगठित-असंगठित क्षेत्र के मजदूर, कुशल-अकुशल आदि। समय-दर-समय मजदूरों की स्थिति में कुछ सुधार आया तो कुछ मामलों में स्थिति और भी बदतर हुई है। सुधारवाद की बात करें तो मजदूरों का पारिश्रमिक तय किया जाने लगा, उसके अधिकारों क...
किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

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2019 के लोकसभा चुनावों पर आगे चलकर जब कभी भी चर्चा होगी या कोई शोधार्थी जब कोई शोध पत्र लिखेगा तो यह भी बताया जाएगा कि उस चुनाव में 1993 के मुम्बई में हुए बम विस्फोटों का गुनाहगार संजय दत्त खुल्लम-खुल्ला तरीके से कांग्रेस के लिए वोट मांग रहा था। मुंबई बम विस्फोट में 270 निर्दोष नागरिक मार गए थे और सैकड़ों जीवन  भर के लिए विकलांग भी हो गए थे। सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई थी। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई कई दिनों तक पंगु हो गई थी। उन धमाकों के बाद मुंबई पहले वाली रौनक और बेख़ौफ़ जीवन कभी रही ही नहीं। दरअसल 12 मार्च,1993 को मुंबई में कई जगहों पर बम धमाके हुए थे।  जब वो भयानक धमाके हुए थे तब मुंबई पुलिस के कमिश्नर एम.एन.सिंह थे। सरकार कांग्रेस की थी पर पुलिस कमिश्नर कड़क अफसर थे। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यदि संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त को यह जानकारी दे देते कि उनके घर में हथ...
75% आबादी प्यासी लेकिन इसकी चिंता कौन करे?

75% आबादी प्यासी लेकिन इसकी चिंता कौन करे?

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लोकसभा चुनावों में व्यस्त देश को आगामी 23 मई को इनके नतीजों के आने के बाद जल संकट से जुड़े सवाल पर गहराई से सोचना होगा। भले ही चुनावों में राजनीतिक दलों में वैचारिक मतभेद रहते हैं, पर जल संकट का सामना करने के बिंदु पर तो कोई मतभेद हरगिज़ नहीं होने चाहिए। देश वास्तव में भीषण जल संकट से गंभीरता से जूझ रहा है। गर्मियों में मांग बढ़ने के कारण स्थिति और भी बदतर हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक देश के 60 करोड़ आबादी को आज के दिन भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। देश के नीति आयोग का तो यहां तक कहना है कि देश के 70 फीसद घरों में साफ पेयजल नहीं मिल रहा है। ये दोनों ही आंकड़ें किसी को डराने के लिए पर्याप्त हैं। इनसे समझा जा सकता है कि देश में जल संकट ने कितना विकराल रूप ले चुका है। पर हैरानी तो यह होती है कि जल संकट इस लोकसभा चुनाव का कोई मुद्दा ही नहीं बना पाया।   दक्षिण अफ्रीका शहर केपटाउन को...
क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

क्यों बदजुबान सिद्धू हुए बेलगाम ?

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नवजोत सिंह सिद्धू बदजुबान तो पहले से ही थे, वे अब पूरी तरह बेलगाम भी हो चुके हैं। वे कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगने के नाम पर समाज को तोड़ रहे हैं। वे एक भयानक खेल रहे हैं। उन्हें शायद खुद ही मालूम नहीं है कि वे अपनीगैर-जिम्मेदारानाबयानबाजी से समाज और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। अपने हालिया बिहार के दौरे के समय वे मुसलमानों से खुलेआम कह रहे थे कि इस क्षेत्र में उनकी'आबादी 64 फीसद है' और यदि वे'मिल जाएं' तो मोदी को' हरा सकते' हैं। बसपा नेत्री मायावती ने भी सहारनपुर की सभा में इस तरह का आहवान किया है । पर सिद्धू तो बार-बार मुसलमानों को गोलबंद होने के लिए कह रहे हैं। याद नहीं आता कि कभी किसी ने इस तरह से, किसी धर्म विशेष के मतदाताओं का आहवान किया हो। वे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जाकर इमरान प्रतापगढ़ी के हक में भी  मुसलमानों को वही सलाह देते हैं,जो बिहार के कटिहार में जाकर दे आए थ...
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

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चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है। फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...