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वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

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वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्तिमृत्युंजय दीक्षितस्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसदीय इतिहास में हुई सबसे लंबी बहस के बाद ऐतिहासिक वक्फ़ संशोधन विधेयक -2025 पारित हुआ, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और अधिसूचना जारी होने के बाद अब यह कानून बन चुका है। कुछ लोग इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं जहाँ केंद्र सरकार ने एक कैविएट दाखिल करते हुए कहा है कि बिना उसकी बात सुने कोर्ट कोई फैसला न सुनाए। वक्फ़ संशोधन कानून बन जाने के बाद भी उस पर पक्ष और विपक्ष की राजनीति का दौर जारी है। संसद में बहस व संसदीय गणित में हार जाने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण में संलिप्त ऐसे -ऐसे संगठन याचिकाएं लेकर जा रहे हैं जो राष्ट्रद्रोह के अंतर्गत प्रतिबंधित हैं या उनके खिलाफ राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। यह समाचार पुष्ट होने के साथ ही कि सरकार संसद के बजट सत्र में ही वक्फ़ विधेयक पारित...
भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने हेतु सांस्कृतिक संगठनों को भी विशेष भूमिका निभानी होगी

भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने हेतु सांस्कृतिक संगठनों को भी विशेष भूमिका निभानी होगी

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भारत को पुनः विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने हेतु सांस्कृतिक संगठनों को भी विशेष भूमिका निभानी होगी प्रहलाद सबनानी  प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु रहा है इस विषय पर अब कोई शक की गुंजाईश नहीं रही है क्योंकि अब तो पश्चिमी देशों द्वारा पूरे विश्व के प्राचीन काल के संदर्भ में की गई रिसर्च में भी यह तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं। भारत क्यों और कैसे विश्व गुरु के पद पर आसीन रहा है, इस संदर्भ में कहा जा रहा है कि भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के नियमों के आधार पर भारतीय नागरिक समाज में अपने दैनंदिनी कार्य कलाप करते रहे हैं। साथ ही,  भारतीयों के डीएनए में आध्यतम पाया जाता रहा है जिसके चलते वे विभिन्न क्षेत्रों में किए जाने वाले अपने कार्यों को धर्म से जोड़कर करते रहे हैं। लगभग समस्त भारतीय, काम, अर्थ एवं कर्म को भी धर्म से जोड़कर करते रहे हैं। काम, अर्थ एवं कर्म में चूंकि तामसी प्रवृत्ति का ...
“जयंती का शोर, विचारों से ग़ैरहाज़िरी”, “मूर्ति की पूजा, विचारों की हत्या”, “हाथ में माला, मन में पाखंड”

“जयंती का शोर, विचारों से ग़ैरहाज़िरी”, “मूर्ति की पूजा, विचारों की हत्या”, “हाथ में माला, मन में पाखंड”

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"जयंती का शोर, विचारों से ग़ैरहाज़िरी", "मूर्ति की पूजा, विचारों की हत्या", "हाथ में माला, मन में पाखंड" बाबा साहेब की विरासत पर सत्ता की सियासत, जयंती या सत्ता का स्वार्थी तमाशा? बाबा साहब के विचारों—जैसे सामाजिक न्याय, जातिवाद का उन्मूलन, दलित-पिछड़ों को सत्ता में हिस्सेदारी, और संविधान की गरिमा की रक्षा—को आज के राजनेता पूरी तरह नजरअंदाज कर रहे हैं। राजनीतिक दल केवल वोट बैंक के लिए अंबेडकर की जयंती मनाते हैं, जबकि वे उनके विचारों से कोसों दूर हैं। जिन मुद्दों के लिए बाबा साहब ने जीवन भर संघर्ष किया—जैसे आरक्षण की सामाजिक भूमिका, जातिगत जनगणना, आर्थिक आधार पर प्रतिनिधित्व—उन्हें आज भी दरकिनार किया जा रहा है। संसद और विधानसभाओं में पूंजीपतियों, सेलेब्रिटीज़ को भेजा जा रहा है, जबकि वंचित वर्ग हाशिए पर है। क्या बाबा साहब की आत्मा तब तक संतुष्ट हो सकती है जब तक उनके सपनों का भारत साका...
(अंबेडकर जयंती विशेष)

(अंबेडकर जयंती विशेष)

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(अंबेडकर जयंती विशेष) "लोकतांत्रिक भारत: हमारा कर्तव्य, हमारी जिम्मेवारी"जनतंत्र की जान: सजग नागरिक और सतत भागीदारी लोकतंत्र केवल अधिकारों का मंच नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का साझेधार भी है। भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका केवल वोट देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्हें न्याय, समानता, संवाद, स्वच्छता, कर भुगतान, और संस्थाओं के प्रति सम्मान जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। लोकतंत्र की मजबूती सत्ता पर निगरानी, सूचनाओं की सत्यता, और सामाजिक सहभागिता से आती है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं, तब लोकतंत्र केवल एक दिखावटी ढांचा रह जाता है। अतः लोकतंत्र को जीवित, सशक्त और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए हर नागरिक को आत्मनिरीक्षण करते हुए यह पूछना होगा: “क्या मैं केवल अधिकार चाहता हूँ या जिम्मेदार भी हूँ?” ...
इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

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राकेश दुबे इन्हें तो कठोर सजा दीजिए निश्चित ही उन लोगों को कठोर सजा मिलना चाहिए। जिनकी लापरवाही से किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज बर्बाद हो गई। सोचिए जिस देश में करोड़ों लोग कुपोषण व खाद्यान्न की किल्लत से जूझ रहे हों, उसके सिर्फ एक राज्य में ही, चार साल में 8191 मीट्रिक टन अनाज सड़ जाए, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। हमारा गैर-जिम्मेदार तंत्र व अदूरदर्शी नेतृत्व इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकता। ये लापरवाही की अंतहीन शृंखला की दुर्भाग्यपूर्ण परिणति है। किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज का यूं बर्बाद होना बताता है कि हमारे तंत्र में प्रबंधन से जुड़े अधिकारी कितने संवेदनहीन और गैर-जिम्मेदार हैं। चिंता की बात यह है कि पंजाब में साल-दर-साल बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा लगातार बढ़ती ही जा रही है। यानी ...
जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

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प्रियंका सौरभ जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट हाल ही में एक प्रमुख अखबार की हेडलाइन ने ध्यान खींचा—“शहर में बंदरों और कुत्तों का आतंक।” यह वाक्य पढ़ते ही एक गहरी असहजता महसूस हुई। शायद इसलिए नहीं कि खबर गलत थी, बल्कि इसलिए कि वह अधूरी थी। सवाल यह नहीं है कि जानवर शहरों में क्यों आ गए, बल्कि यह है कि वे जंगलों से क्यों चले आए? हम जिस "आतंक" की बात कर रहे हैं, वह वास्तव में प्रकृति का प्रतिवाद है—उस दोहरी मार का नतीजा जो हमने जंगलों और वन्यजीवों पर एक लंबे अरसे से चलाया है। विकास के नाम पर हमने जंगलों को काटा, नदियों को मोड़ा, और पहाड़ों को तोड़ा। वन्यजीवों के लिए न तो रहने की जगह छोड़ी, न भोजन का साधन। जब उनका प्राकृतिक निवास उजड़ गया, तब वे हमारी बस्तियों की ओर बढ़े। और अब, जब वे हमारी छतों, गलियों और पार्कों में दिखते हैं, तो हम उन्हें ‘आतंकी’ करार देते हैं। यह नजरिय...
इतनी हिंसा – कारण?

इतनी हिंसा – कारण?

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इतनी हिंसा – कारण? राकेश दुबे देश में बढ़ती भौतिक विलासिता की चकाचौंध और सोशल मीडिया का जिंदगी में बढ़ता दखल, पारिवारिक-सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर रहा है। संबंधों में तकरार और फिर नृशंस तरीके से हत्या जैसे मामलों ने देश को झकझोर कर रख दिया है। मेरठ की मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ राजपूत की हत्या कर दी। ऐसे ही मुजफ्फरनगर की पिंकी ने अपने आशिक के लिए अपने पति अनुज को जहर पिलाकर मार दिया। रिश्तों में हत्या का ऐसा ही प्रकरण बेंगलुरू में देखने को मिला, वहां के हुलीमावु क्षेत्र में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या करके उसकी बॉडी को सूटकेस में भर दिया। देश के अलग-अलग शहरों में हो रही ऐसी हत्याओं ने देश की जनता को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। आखिर यह सिलसिला कहां जकर थमेगा? इन घटनाओं ने सोचने-समझने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर यह देश किस दिशा...
यह तो “‘टैरिफ युद्ध’ है

यह तो “‘टैरिफ युद्ध’ है

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राकेश दुबे यह तो “‘टैरिफ युद्ध’ है अमरीका के ‘जैसे को तैसा टैरिफ’ से भारत की जीडीपी को 0.7 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है। बेशक यह बहुत कम आंकड़ा लगता है, लेकिन नुकसान 2.5-3 लाख करोड़ रुपए तक का हो सकता है। यह कोई सामान्य राशि नहीं है। विशेषज्ञों के ही आकलन हैं कि यदि जीडीपी कम हुई, तो उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा, लिहाजा फैक्टरियां या तो कर्मचारियों की छंटनी करेंगी अथवा वेतन कम करेंगी। आकलन यहां तक हैं कि 7-8 लाख नौकरियां जा सकती हैं। ऐसा ही प्रभाव तमिलनाडु की कंपनियों पर पड़ सकता है, जहां कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक्स का व्यापार करती हैं। भारत के गुजरात से प्रमुख तौर पर 78,000 करोड़ रुपए के रत्न-आभूषण, पत्थरों का कारोबार अमरीका के साथ किया जाता है। टैरिफ बढऩे से वे ज्यादा महंगे उत्पाद हो जाएंगे। एक उदाहरण एप्पल आईफोन का है, जिसकी फैक्टरियां भारत और चीन में हैं। चीन पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाया...
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं

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न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं, विनीत नारायण भारत के इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस रामस्वामी पर अनैतिक आचरण के चलते 1993 मेंसंसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। पर कांग्रेस पार्टी ने मतदान के पहले लोकसभा से बहिर्गमन करके उन्हेंबचा लिया। 1997 में मैंने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस वर्मा के अनैतिक आचरण को उजागरकिया तो सर्वोच्च अदालत, संसद व मीडिया तूफ़ान खड़ा हो गया था। पर अंततः उन्हें भी सज़ा के बदले तत्कालीनसत्ता व विपक्ष दोनों का संरक्षण मिला। 2000 में एक बार फिर मैंने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डॉ ए एसआनंद के छह ज़मीन घोटाले उजागर किए तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये मामला चर्चा में रहा व तत्कालीन क़ानून मंत्रीराम जेठमलानी की कुर्सी चली गई। पर तत्कालीन बीजेपी सरकार ने विपक्ष के सहयोग से उन्हें सज़ा देने के बदलेभारत के मानव...
Best Scholarships Opportunities for a Brighter Future: The Career Plus Group Scholarship Programme

Best Scholarships Opportunities for a Brighter Future: The Career Plus Group Scholarship Programme

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Free Coaching in India In today’s fast-paced world, where education is the gateway to success, countless young minds are left behind due to their socio-economic backgrounds. Despite their talent and potential, many students from underprivileged sections of society find themselves unable to access quality coaching, thus missing out on life-changing opportunities. However, the Career Plus Group Scholarship Programme, funded by the Government of India and supported by various NGOs, is a beacon of hope for these deserving students. This welfare program offers FREE coaching to students from socially and economically weaker sections of society, empowering them to realize their full potential. With the backing of the Government of India and various NGOs, Career Plus Group has mad...