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कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़

कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़

BREAKING NEWS, TOP STORIES, राज्य, संस्कृति और अध्यात्म
अतिप्राचीन भारत में कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजा का भी साम्राज्य था। ऐसा माना जाता है कि कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा थे। कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया था और कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम पड़ा था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप की एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई। आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही कई स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी हुआ करता था। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्...
Why Congress abandoned the Ram temple issue

Why Congress abandoned the Ram temple issue

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Vivek ShuklaIt is almost certain that once the G-20 summit would come to an end and head of the states of member countries of powerful forum of the world would leave in the month of coming September, 2023, India would be in a election mode. They are slated in the month of April-May, 2024.Even before the poll dates would be announced, the nation would see huge euphoria when the Ram temple would be unveiled in Ayodhya in January, 2024. Of course, the Ram temple has been the life and soul of BJP's politics since it came into being in 1980. Will the Ram temple would be an issue in the 2024 Lok Sabha polls too?Will the BJP reap the fruits of construction of Ram Temple ? This question is rife in the air.The saffron party wants the temple to open before the Lok Sabha polls. It goes without s...
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए

राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (17 अप्रैल, 2023) नई दिल्ली में राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए और राष्ट्रीय पंचायत प्रोत्साहन सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में तेजी से हुए शहरीकरण के बावजूद, अधिकांश आबादी अभी भी गांवों में रहती है। शहरों में रहने वाले लोग भी किसी न किसी रूप में गांवों से जुड़े हुए हैं। गांवों के विकास से देश की समग्र प्रगति हो सकती है। राष्ट्रपति ने कहा कि ग्रामीणों को यह तय करने में सक्षम होना चाहिए कि गांव के विकास के लिए कौन-सा मॉडल उपयुक्त है और इसे कैसे लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंचायतें न केवल सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने का माध्यम हैं, बल्कि नेतृत्व प्रदान करने वाले नए लोगों, योजनाकारों, नीति-निर्माताओं और नवोन्मेषकों को प्रोत्साहित करने के स्थान भी हैं। एक पंचायत के सर्वोत्तम ...
मौसम : लौटिए, पूर्वजों की संस्तुति की ओर

मौसम : लौटिए, पूर्वजों की संस्तुति की ओर

BREAKING NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, सामाजिक
बीते कल भोपाल बेहद गर्म था। तापमान 40 डिग्री को पार कर गया था, महसूस ज़्यादा हो रहा था। अब हमें बिना न-नुकुर इस हकीकत को स्वीकार लेना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों ने हमारे जीवन को गहरे तक प्रभावित कर दिया है। इस माह के आरंभ में जहां लोग वातावरण में ठंड महसूस कर रहे थे, पहाड़ों में बर्फबारी हो रही थी और मैदानों में ओला व वर्षा जारी थी। वहीं पिछले कुछ दिनों में मौसम अचानक बदला और बात पारे के अनपेक्षित रूप से ऊपर जाने की भी सामने आ गई है। यहां तक कि मौसम विज्ञानी दिल्ली सहित कई राज्यों में लू की चेतावनी देने लगे हैं। निस्संदेह, मौसम में बदलाव कुदरत का नियम है। ठंड के बाद गरमी और गरमी के बाद बरसात कुदरत के शाश्वत नियम हैं। लेकिन यह परिवर्तन निर्धारित समय के साथ धीरे-धीरे होता है। जिसमें मानव शरीर धीरे-धीरे उसके अनुकूल खुद को ढाल लेता है। ऐसा ही फसलों व फलों के वृक्षों का भी है, व...
विकास की दौड़, मौसम के कारण पिछड़ता किसान

विकास की दौड़, मौसम के कारण पिछड़ता किसान

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कहावत है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती लेकिन यदि इंसान किसान की भूमिका में हो तो कृषि व्यवसाय में मेहनत भी शिकस्त का दंश झेलने को मजबूर रहती है। मार्च व अप्रैल महीने में रबी की फसल पूरे शबाब पर होती है। मगर बारिश व ओलावृष्टि के कहर ने किसानों व बागवानों की कई महीनों की मेहनत पर पानी फेर कर किसानों को मायूस कर दिया है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बेमौसम बरसात से ‘ब्लॉज्म ब्लाइट’ रोग ने आम की पैदावार को भारी नुकसान पहुंचाया है। कृषि अर्थशास्त्र की बुलंद इमारत अन्नदाता अतीत से एक बड़े परीक्षार्थी की तरह जीवनयापन करता आ रहा है। मौसम अपने तल्ख तेवरों व बेरूखे मिजाज से किसान वर्ग की सबसे बड़ी परीक्षा लेता है। फसल तैयार होने पर बाजार नाम की व्यवस्था व उपभोक्ता किसानों की परीक्षा लेते हैं। कभी व्यवस्थाओं में बैठे अहलकार तो कभी सरकारें किसानों की परीक्षा लेती हैं। कृषि उत्पादन में क...
क्यों उठते हैं एनकाउंटर पर सवाल?

क्यों उठते हैं एनकाउंटर पर सवाल?

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विनीत नारायणउत्तर प्रदेश के व्यापारी आजकल कहते हैं कि योगी राज में मुसलमानों का आतंक ख़त्म हो गया है। इसलिये माफिया डॉन अतीक अहमद के बेटे असद अहमद की एनकाउंटर में मौत का समाचार उन लोगों को सुखद लगा। एनकाउंटर के विषय में कुछ तथ्य और क़ानूनी पेचीदगियों का ज़िक्र मैं इस लेख में आगे करूँगा। पर यहाँ एक सवाल जो समाजवादी पार्टी ने उठाया है वो भी महत्वपूर्ण है। वो ये कि ऐन चुनावों के पहले ही इस एनकाउंटर को करने का योगी सरकार का क्या उद्देश्य था? सिवाय इसके कि इस एनकाउंटर की खबर को दिन-रात टीवी चैनलों पर चलवाकर इसका फ़ायदा अगले महीने होने वाले निकायों के चुनावों में लिया जाए। इसलिये सरकार की नीयत पर शक होता है। क़ानून की नज़र में सब बराबर होने चाहिए। किसी अपराधी का कोई जाति या धर्म नहीं होता। इसलिए बिना भय और पक्षपात के अगर प्रदेश के माफ़ियाओं के विरुद्ध योगी सरकार कड़े कदम उठाती है तो उसका स्...
बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है-ग्रामीण पत्रकारिता !

बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है-ग्रामीण पत्रकारिता !

BREAKING NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, साहित्य संवाद
भारत आज भी गांवों का ही देश है। भारतीय जनमानस में भी ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण जन के प्रति गहरी संवेदनाएं हैं, लेकिन लोकतंत्र का चौथा पाया प्रेस आज गांवों से नहीं बल्कि शहरों से ही चलता प्रतीत होता है। सच तो यह है कि भारत आज भी गांवों में ही परिलक्षित और प्रतिबिंबित होता है। भारत की पहचान आज भी उसके गांवों से ही है, शहरों से नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत का अतीत भी गांव ही है और भारत का वर्तमान भी गांव ही हैं, इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में भी गांवों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। गांवों की पत्रकारिता को एक तरह से नजरअंदाज सा किया जा रहा है और अक्सर यह देखा जाता है कि छोटे-छोटे गाँवों की बहुत सी ऐसी खबरें होती हैं जो राष्ट्रीय स्तर की बनती हैं। वास्तव में सीमित संसाधनों के साथ आज ग्रामीण पत्रकारिता करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। गानों में संसाधनों की कमी होती है और गा...
विपक्षी एकता योजना सिरे चढ़ेगी?

विपक्षी एकता योजना सिरे चढ़ेगी?

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देश का राजनीतिक माहौल भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट होने की दिशा में यात्रा कर रहा है।राहुल प्रकरण ने विपक्षी दलों को असुरक्षाबोध से भर दिया और यह निष्कर्ष समझ में आने लगा कि यदि एकजुट न हुए तो तंत्र के निरंकुश व्यवहार का शिकार होना पड़ सकता है। जिसके चलते कई राजनीतिक दल, जो पहले विपक्षी एकता में कांग्रेस की भूमिका के प्रति किंतु-परंतु करते थे, वे भी अब एकता के प्रयासों को नई उम्मीद से देख रहे हैं।यह तो पहले से ही तय था कि आगामी वर्ष आम चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की कोशिशें तेज होंगी। लेकिन कर्नाटक चुनाव से पहले ही एकजुटता की कवायद शुरू हो जाएगी, ऐसी उम्मीद कम ही थी। मानहानि मामले में राहुल गांधी की सांसद के रूप में सदस्यता समाप्त किये जाने और फिर उनसे सरकारी आवास खाली कराये जाने के घटनाक्रम ने विपक्षी दलों को एकजुट होने के लिये भी प्रेरित किया है । बीते बुधवार को बिहार के म...
त्योहार और परम्पराएँ

त्योहार और परम्पराएँ

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परम्पराएं पढ़ना भी सिखाती हैं। एक ख़ास आयातित विचारधारा के प्रभाव से शिक्षा का अच्छा ख़ासा नुकसान हुआ है। अभिभावकों को ये अच्छी तरह पता होता है कि स्कूल का पाठ्यक्रम उनके बच्चों को रट्टू तोता बना रहा है। जैसे रबी और खरीफ की फसलों का ही सोचिये, कौन सी कब उपजती-कटती है इसे याद क्यों करना पड़ता है? 14 जनवरी के आसपास मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा खाने कि परम्परा है, नए धान की फसल उस वक्त आती है तो चूड़ा। अप्रैल की शुरुआत का समय बिहार के लिए सतुआनी और मिथिलांचल में जूड़ शीतल नाम के पर्व का होता है। लिट्टी के अन्दर भरे होने, या घर से लौटते बिहारियों के पास होने के कारण जिस सत्तू को पहचाना जाता है, इस पर्व में उसे खाने की परम्परा है। अप्रैल दलहन की फसलों और गेहूं का समय होता है, इसलिए ये त्यौहार उससे जुड़ा है। परम्पराओं को पोंगापंथी बताने वालों को फसलों का समय रटना पड़ता है। ऐसे त्योहारों को मना...
खालिस्तान के विचार की जड़ पर हो प्रहार

खालिस्तान के विचार की जड़ पर हो प्रहार

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-बलबीर पुंज भगोड़े अमृतपाल सिंह की वजह से खालिस्तान का मुद्दा एक बार फिर सतह पर है। यह मुद्दा किसी न किसी रूप में प्रकट हो ही जाता है। आखिर खालिस्तान का रक्तबीज जड़ से खत्म क्यों नहीं होता? यह प्रश्न अमृतपाल और उसके समर्थकों पर हुई हालिया कार्रवाई के कारण प्रासंगिक है। यूं तो सभी राष्ट्रीय दलों ने प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से कार्रवाई का समर्थन किया, किंतु अकाली दल दबे स्वर में इसका विरोध कर रहा है। वहीं सिखों के पांच तख्तों में सबसे पुराने और अमृतसर स्थित श्री अकाल तख्त साहिब के साथ ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने भी सरकार को चेतावनी दी है कि यदि गिरफ्तार युवा रिहा नहीं हुए, तो वे आगे की योजना पर काम करेंगे। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर दो बातें स्पष्ट हैं। पहली-खालिस्तान विरोधी अभियान से पंजाब लगभग अप्रभावित और शांत है। अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया आदि देशों में बसे चरमपंथियों द्...