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लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

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लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे खाली चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे। जो विचार सामने आया वह यह था कि चुनाव प्रहरी मूकदर्शक नहीं रह सकता और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन पर कुछ वादों के अवांछनीय प्रभाव को नजरअंदाज कर सकता है। चुनाव आयोग ने कहा कि एक निर्धारित प्रारूप में वादों का खुलासा सूचना की प्रकृति में मानकीकरण लाएगा और मतदाताओं को तुलना करने और एक सूचित निर्णय लेने में मदद करेगा। यह सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए समान अवसर बनाए रखने में मदद करेगा। इन कदमों को अनिवार्य बनाने के लिए, चुनाव आयोग की योजना आदर्श आचार संहिता में संबंधित धाराओं में संशोधन की जरूरत है। -डॉ सत्यवान सौरभ देश में चुनाव के दौरान हमने अक्सर अलग अलग राजनीतिक दलों की तरफ से बड़े बड़े वादों की भरमार देखते है।  जैसे फ्री लैपटॉप, स्कूटी, फ्री हवाई यात्रा, मुफ्त टीवी, मुफ...
सउदी अरब में नया इस्लाम

सउदी अरब में नया इस्लाम

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सउदी अरब में नया इस्लाम* *डॉ. वेदप्रताप वैदिक* सउदी अरब आजकल जितने प्रगतिशील कदम उठा रहा है, वह दुनिया के सारे मुसलमानों के लिए एक सबक सिद्ध होना चाहिए। लगभग डेढ़ हजार साल पहले अरब देशों में जब इस्लाम शुरु हुआ था तब की परिस्थितियों में और आज की स्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। लेकिन इसके बावजूद दुनिया के ज्यादातर मुसलमान पुराने ढर्रे पर ही अपनी गाड़ी धकाते चले आ रहे हैं। सउदी अरब उनका तीर्थ है। मक्का-मदीना उनका साक्षात स्वर्ग है। उसके द्वार अब औरतें के लिए भी खुल गए हैं। यह इतिहास में पहली बार हुआ है। वरना, पहले कोई अकेली मुस्लिम औरत हज या उमरा करने जा ही नहीं सकती थी। उसके साथ एक ‘महरम’ (रक्षक) का रहना अनिवार्य था। इसमें कोई बुराई उस समय नहीं थी, जब इस्लाम शुरु हुआ था। उस समय अरब लोग जहालत में रहते थे। औरतों के साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया जाता था लेकिन दुनिया इतनी ब...
भारत में अभी भी गरीबी भारी, कारण जनसंख्या और बेरोजगारी

भारत में अभी भी गरीबी भारी, कारण जनसंख्या और बेरोजगारी

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7 अक्टूबर 2022, (गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस) भारत में अभी भी गरीबी भारी, कारण जनसंख्या और बेरोजगारी अधिकांश ग्रामीण गरीब खेतिहर मजदूर (जो आम तौर पर भूमिहीन होते हैं) और स्वरोजगार करने वाले छोटे किसान हैं जिनके पास 2 एकड़ से कम जमीन है। उन्हें साल भर रोजगार भी नहीं मिल पाता है। परिणामस्वरूप, वे एक वर्ष में बड़ी संख्या में दिनों तक बेरोजगार और अल्प-रोजगार में रहते हैं मुद्रास्फीति, विशेष रूप से खाद्य कीमतों में वृद्धि, बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग व्यय की लागत को बढ़ा देती है। इस प्रकार, मुद्रास्फीति कई परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल देती है। भूमि और अन्य संपत्तियों के असमान वितरण के कारण, प्रत्यक्ष गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का लाभ गैर-गरीबों द्वारा विनियोजित किया गया है। गरीबी की भयावहता की तुलना में इन कार्यक्रमों के लिए आवंटित संसाधनो...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सकारात्मक पहल*

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सकारात्मक पहल*

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सकारात्मक पहल* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत जी अपने क्रान्तिकारी निर्णयों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने ही संघ वेशभूषा में परिवर्तन करके कार्यकर्ताओं की निक्कर वाली छवि को बदलकर पेंट पहनने की सुविधा प्रदान की। अब उनका स्वप्न तथा आगामी लक्ष्य संघ के सिद्धान्तों को वर्ष 2025 तक भारत के प्रत्येक नगर तथा गांव-गांव में पहुँचाने का है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उन्होंने संघ को मुस्लिम जनता के हृदय में स्थान प्राप्त करने हेतु आगे बढ़ाया है वो वास्तव में देशहित में अत्यधिक प्रशंसनीय कार्य है, जिसकी देश का प्रत्येक बुद्धिजीवी मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता श्री इन्द्रेश जी विगत कई वर्षों से मुस्लिम जनसंख्या को संघ से जोड़ने के कार्य में लगे हुए हैं। इसी के अन्तर्गत उन्होंने कई मुस्लिम बेटियों की शा...
‘हाइपरटेंशन का पूर्व-संकेत हो सकती है अनुवांशिक भिन्नता’

‘हाइपरटेंशन का पूर्व-संकेत हो सकती है अनुवांशिक भिन्नता’

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'हाइपरटेंशन का पूर्व-संकेत हो सकती है अनुवांशिक भिन्नता'नई दिल्ली, 14 अक्टूबर(इंडिया साइंस वायर):भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आईआईटी)मद्रास के शोधकर्ताओंने अपने एक ताजा अध्ययन में उच्च रक्तचाप के पीछे जिम्मेदार अनुवांशिक भिन्नता का पता लगाय है।शोधकर्ताओं की खोज में यह तथ्य निकलकर सामने आया है कि मैट्रिक्स मटालो प्रोटीनेज (एमएमपीएस)नामक एक जीन के ‘डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक’ में बदलाव से लोगों में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ सकताहै। इस निष्कर्ष तक पहुँचने के क्रम में अध्ययनकर्ताओं ने उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगिओं और सामान्यरक्तचाप वाले स्वस्थ लोगों के अनुवांशिक प्रोफाइल का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया है।उच्च रक्तचाप के कारण रक्त नलिकाओं की दीवार और धमनियां, दीवारों पर अत्यधिक कोलेजन जमाहोने के कारण सख्त हो जाती हैं। कोलेजन शरीर में पैदा होने वाले प्रोटीन का सबसे प्रचुर मात्रा में पायाजाने वाला प्रकार ...
हिजाब : इतना जोर क्यों देते हो?

हिजाब : इतना जोर क्यों देते हो?

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इतना जोर क्यों देते हो? हिंदुस्तान की लड़कियां यदि हिजाब पहनना चाहती हैं, तो उन्हें पहनने दीजिए! हिजाब पहनें या नकाब या बुर्का, कोई एतराज क्यों करे? बस इतना जरूर है कि स्कूल कालेज जाएं तो स्कूल ड्रेस पहनें, फौज में जाएं तो यूनिफॉर्म पहनें और स्पेस में जाएं तो स्पेस सूट? बाकी उनकी मर्जी, बाजार में, घर में, कोर्ट में, हिल स्टेशन पर, ब्याह शादियों में जहां भी हिजाब पहनना चाहें, शौंक से पहनें! किसी को क्या परेशानी है उनकी पोशाक से? वैसे कितनी लड़कियां हैं जो फिल्म इंडस्ट्री में हैं, टीवी में हैं, अस्पतालों और न्यायालयों में हैं, मॉडलिंग में हैं, कोई हिजाब नहीं पहनती? उर्फी जावेद का नाम सुना है कभी? रोजाना नई नई ड्रेस पहनती हैं। इतनी अजीबोगरीब पोशाकें कि बेशर्मी भी गश खा जाए। फिल्म इंडस्ट्री ने मधुबाला, नर्गिस, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, जीनत अमान, निगार, मुमताज, सायरा बानो, नसीम बानो जैस...
क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी?

क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी?

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क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी?------------------------------------------------1950 ई. में बने भारतीय संविधान की “प्रस्तावना” ने भारत को ‘लोकतांत्रिक गणराज्य’ कहा था। उस में छब्बीस वर्ष बाद दो भारी राजनीतिक शब्द जोड़ दिये गये – ‘सेक्यूलर’ और ‘सोशलिस्ट’ । तब से भारत को ‘लोकतांत्रिक समाजवादी सेक्यूलर गणराज्य’ कर डाला गया। अब सुप्रीम कोर्ट डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करने वाली है, कि इसे पूर्ववत् किया जाए क्योंकि इस ने पूरे संविधान को ही बिगाड़ा है। स्मरणीय है कि यह परिवर्तन 1975-76 ई. की कुख्यात ‘इमरजेंसी’ के दौरान किया गया था, जब केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय केंद्रीय मंत्रियों को भी रेडियो से मालूम होते थे! जब विपक्ष जेल-बंद था, और प्रेस पर सेंसरशिप थी। अर्थात वह संशोधन बिना विचार-विमर्श, जबरन हुआ था। वह संविधान की आमूल विकृति थी। यहाँ चार तथ्यों पर विचार क...
ईसाई मिशन्स और भारत

ईसाई मिशन्स और भारत

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ईसाई मिशन्स और भारत-प्रस्तुतकर्ता- राजेश गंभावाईसाई धर्मवेत्ताओं, विद्वानों, मिशनरीयों और लेखकों के यीशु ख्रिस्त (Jesus Christ) विषयक सदीयों से बडे-बडे दावों के बावजूद, योरोप और अमरिका के बुद्धिजीवी वर्ग ने ईसाई विश्वास के यीशु ख्रिस्त का स्वीकार करने से मना कर दिया है। आज-कल वहाँ उपन्यासों के कल्पित यीशु (Jesus of Fiction) का ही बोल-बाला है। भारतविद्याविद् डॉ. कोनराड एल्स्ट का कहना है कि पश्चिम में, विशेषकर योरोप में, ईसाईयत की लोकप्रियता और वहाँ के चर्चों में ईसाई विश्वासीयों की उपस्थिति निरन्तर कम होती जा रही है। वहाँ के समाज में पादरी के व्यवसाय के प्रति दिलचस्पी का अभाव भी चिंता का विषय बन गया है। योरोप में केथोलिक पादरीयों की एवरेज वय 55 साल है; नेदरलैंड में यह 62 है, और बढती ही जा रही है। वास्तविकता यह है कि योरोप और अमरिका के आधुनिक लोगों की ईसाईयत में अब कोई रूचि नहीं रही है।आर्थ...
*दलितों का आरक्षण क्यों लूटना चाहते हैं मुस्लिम और ईसाई ?*

*दलितों का आरक्षण क्यों लूटना चाहते हैं मुस्लिम और ईसाई ?*

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*राष्ट्र-चिंतन* *सर्विस और लैंड जिहाद का शिकार भी दलित और आदिवासियों को बना रहे हैं मुसलमान* *दलितों का आरक्षण क्यों लूटना चाहते हैं मुस्लिम और ईसाई ?* *आचार्य श्री विष्णुगुप्त*=================== दलितों का आरक्षण लूटना क्यों चाहते हैं मुस्लिम और ईसाई? इस प्रश्न पर अब दलित राजनीति धीरे-धीरे गर्म हो रही है। दलित संगठनों में इसको लेकर न केवल चिंता है बल्कि आक्रोश भी कम नहीं है। अब छोटे-छोटे विचार संगोष्ठियों में दलितों के आरक्षण पर डाका डालने को लेकर विचार-विमर्श शुरू भी हो चुका है। अगर इस पर आधारित विचार-विमर्श आगे बढ़ता है तो फिर यह प्रसंग विस्फोटक हो सकता है। यह प्रसंग विस्फोटक होगा तो फिर इसके चपेट में मुस्लिम-ईसाई की मजहबी राजनीति के साथ ही साथ उनकी कथित मित्रता भी आयेगी, इसके अलावा दलितों के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाने वाले वामपंथियों, एनजीओ छाप के लोग भी आयेंगे। दलितों के न...
म.प्र. ने जलाई हिंदी की मशाल

म.प्र. ने जलाई हिंदी की मशाल

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*डॉ. वेदप्रताप वैदिक* केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्रमशः मुख्यमंत्री, मंत्री और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि उनके प्रदेशों पर हिंदी न थोपी जाए। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि संसद की राजभाषा समिति ने केंद्र सरकार की भर्ती-परीक्षाओं में हिंदी अनिवार्य करने और आईआईटी तथा आईआईएम शिक्षा संस्थाओं में भी हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। एक तरफ दक्षिण भारत से हिंदी विरोध की यह आवाज उठ रही है और दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है। उन्होंने एक गजब का एतिहासिक कार्य करके दिखा दिया है। उनके प्रयत्नों से एमबीबीएस के पहले वर्ष की किताबों के हिंदी संस्करण तैयार हो गए हैं। उनका विमोचन भोपाल में 16 अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। गृहमंत्री के तौर पर राजभाषा को बढ़ाने के लिए अमित शाह के उत्...