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मास्टर जी, मत मारो बच्चों को

मास्टर जी, मत मारो बच्चों को

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मास्टर जी, मत मारो बच्चों को आर.के. सिन्हा दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया अपने आप को किसी महान शिक्षाविद से कम नहीं मानते। उनके विधानसभा क्षेत्र में, जिधर उनका दफ्तर है, उससे सटे हुए  दिल्ली सरकार के एक स्कूल के शिक्षक ने अपने 15 साल के छात्र की ऐसी बेरहमी से पिटाई की कि किसी का भी कलेजा कांप उठेगा। उस कथित अध्यापक ने बच्चे को इतना  पीटा कि उसे सीरियस हालत में अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। उसका दोष सिर्फ इतना था कि छात्र होमवर्क का नोटबुक घर पर ही भूल गया था।  विगत दिनों जब इस घटना का खुलासा हुआ तो सभी के होश उड़ गए। रात को बच्चा ट्यूशन से घर लौटा तो उसके कान में दर्द उठने लगा। थोड़ी ही देर में उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। उसके माता-पिता उसे अस्पताल ले गये। जहां तीन दिन तक उसका इलाज करके उसकी जान तो बचा ली गई पर कान का नुकसान तो वह जिंदगी भर ही झेलेगा I वह बहरा हो जाये तो उस शिक्...
*कांवड़ यात्रा – श्रृद्धा को नमन*

*कांवड़ यात्रा – श्रृद्धा को नमन*

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*कांवड़ यात्रा - श्रृद्धा को नमन* कांवड़ यात्रा का चलन 1990 के दशक के उत्तरार्ध से प्रारम्भ होता है, जब 15-20 युवा, महादेव की भक्ति में लीन होकर हरिद्वार से नंगे पैर पैदल चलकर कांवड़ लेकर चले थे। उस समय उन सभी का एकमात्र उद्देश्य श्रवण कुमार की भांति अपने माता-पिता को पुण्य दिलाने का था। श्रवण कुमार अपने माता-पिता को एक कांवड़ में बिठाकर, मिट्टी के पात्र में गंगा जल भर कर अपने कंधे पर उठाकर तीर्थ यात्रा कराने के लिए निकले थे और मार्ग में जितने भी शिवालय पड़ते थे, वहाँ पर वो यदि उनके हाथ से सम्भव हुआ तो ठीक नहीं तो उनके निमित्त थोड़ा सा जल चढ़ाते हुए आगे बढ़ते थे। अर्थात् उनका कांवड़ यात्रा करने का उद्देश्य विशुद्ध रूप से माता-पिता का कल्याण एवं उनके स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का प्रयास था। समय के साथ-साथ कांवड यात्रा का स्वरूप भी शनै-शनै बदलता चला गया। जहाँ पूर्व में इस यात्रा में मात्र पुरु...
जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं?

जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं?

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जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं? बॉबी रमाकांत - सीएनएस पैसिफ़िक क्षेत्र के द्वीप देश, फ़िजी, की मेनका गौंदन ने कहा कि पैसिफ़िक महासागर (प्रशांत महासागर) दुनिया का सबसे विशाल सागर है परंतु भीषण जलवायु आपदाएँ भी यहीं पर व्याप्त हैं। पैसिफ़िक क्षेत्र के द्वीप देशों ने जलवायु को सबसे कम क्षति पहुँचायी है परंतु जलवायु आपदा का सबसे भीषण कुप्रभाव इन्हीं को झेलना पड़ रहा है। प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ रहा है जिसके कारणवश जल-स्तर में बढ़ोतरी हो रही है और छोटे पैसिफ़िक द्वीप देश जैसे कि नाउरु और तुवालू पर यह ख़तरा मंडरा रहा है कि कहीं वह समुद्री जल में विलुप्त न हो जाएँ। मेनका गौंदन, फ़िजी महिला कोश की अध्यक्ष हैं और २४वें इंटरनेशनल एड्स कॉन्फ़्रेन्स में हिंदी-भाषी प्रकाशन के विमोचन सत्र को सम्बोधित कर रही थीं। यह हिंदी-भाषी प...
पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प

पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प

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पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प -ः ललित गर्ग :- भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप मंे देश के सर्वाेच्च पद पर, प्रथम नागरिक के आसन पर एक व्यक्ति नहीं, निष्पक्षता और नैतिकता, पर्यावरण एवं प्रकृति, जमीन एवं जनजातीयता के मूल्य आसीन हुए हैं। आजाद भारत में पैदा होकर आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में एक ऐसा व्यक्तित्व द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के आसन पर विराजमान हुई है, जिससे पूरा देश गर्व एवं गौरव का अनुभव कर रहा है। उनके शपथ ग्रहण के साथ देश के जनजाति और वनवासी समुदाय का सिर जिस तरह गर्व से ऊंचा उठा है, वह भारतीय राष्ट्र की नई ताकत और भारतीय राजनीति के नए विस्तार की ओर इशारा करता है। निश्चित ही आदिवासी समुदाय का राष्ट्र की मूलधारा में विस्तार होगा। शपथ ग्रहण के बाद अपने पहले संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मू ने आजादी के अमृत महोत्सव को याद किया, जिसे हम कुछ ही दिनों में मनाने वाले है...
“या तो मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा, या फिर उसमें लिपटकर वापस आऊंगा”

“या तो मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा, या फिर उसमें लिपटकर वापस आऊंगा”

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“या तो मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा, या फिर उसमें लिपटकर वापस आऊंगा" कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के प्रयासों और बलिदानों को याद करने के लिए हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन कारगिल युद्ध 1999 के शहीदों को समर्पित है। कारगिल विजय दिवस कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की जीत का प्रतीक है। हमने 527 साहसी आत्माओं को खो दिया, और युद्ध में 1363 सैनिक घायल हो गए। उन बहादुर बलिदानों की उपेक्षा कौन कर सकता है? आइए उनके धैर्य को याद करें और उनके आभारी रहें.-सत्यवान 'सौरभ' कारगिल युद्ध में सैनिकों द्वारा किए गए बलिदान को याद करने के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। भारतीय सेना के एक मिशन 'ऑपरेशन विजय' ने भारत के लिए अंतिम सफलता हासिल की। कारगिल विजय दिवस प्रत्येक भारतीय द्वारा हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन कारगिल युद्ध 1999 के शहीदों को सम...
बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस)

बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस)

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बोथ पैरेंट्स वर्किंग सिन्ड्रोम (बी पी डब्ल्यू एस) समाज में जब भी परिवर्त्तन की स्थिति बनती है तो उस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा वो प्रभावित होते हैं जो लोग अपनी अधिकांश जरूरतों के लिए किसी और पर निर्भर होते हैं जैसे कि स्त्रियाँ, बच्चे और बुजुर्ग। घर, कार्य स्थल, समाज और देश में परिवार के इन तीन सदस्यों को अपनी सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए किसी न किसी रूप में अनन्योश्रित होना पड़ता है। स्त्रियाँ घर में अपनी जगह तो कभी अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए अपने पति, अपने सास-ससुर और कभी-कभी अपने बच्चों तक पर निर्भर रहती हैं। कार्य स्थल पर अपनी वाज़िब प्रोन्नति के लिए भी अपने बॉस तो कभी सहकर्मियों का सहारा लेती हुई देखी जा सकती हैं। समाज में अपनी हैसियत और पहचान के लिए समाज के धार्मिक और राजनीतिक ढाँचों में इन्हें अपनी "आइडेंटिटी" तलाश करनी पड़ती है। और अपने ही देश में अपने...
उत्तर प्रदेश को अशांत करने का षड्यंत्र?

उत्तर प्रदेश को अशांत करने का षड्यंत्र?

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उत्तर प्रदेश को अशांत करने का षड्यंत्र? मृत्युंजय दीक्षित सावन के पवित्र माह में लाखों की संख्या में शिवभक्त कांवड़िये भोलेनाथ की भक्ति में डूबकर पवित्र कांवड में जल लेकर भगवान शिव पर चढाने जा रहे हैं । सभी प्रसिद्ध व ऐतिहासिक शिव मंदिरों में इनकी भारी भीड़ पहुंच रही है। उत्तरांड के हरिद्वार में ही लाखों शिवभक्त कांवड़िये पहुंच रहे है जो एक अदभुत कीर्तिमान बन रहा है । उत्तर प्रदेश सरकार तथा उत्तराखंड की सरकारों की ओर से कांवड़ यात्रा को ध्यान में रखते हुए अति विशिष्ट प्रबंध किये गये हैं लेकिन यह भीड़ इतनी अधिक है कि यह भी कम लग रहे हैं। वर्ष 2017 से ही योगी अदियानाथ की सरकार कांवड़ यात्रियों की सुविधा का विशेष ध्यान रख रही है और उनकी सुविधा के लिए व्यस्थाएं करती है । उनके भक्ति भाव के सम्मान के लिए उन पर पुष्पवर्षा भी की जाती रही है जो इस बार उत्तराखंड में भी हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्...
डिजिटल शासन के नए युग में परास्त होते गरीब

डिजिटल शासन के नए युग में परास्त होते गरीब

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डिजिटल शासन के नए युग में परास्त होते गरीब डिजिटल डिवाइड आबादी के अमीर-गरीब, पुरुष-महिला, शहरी-ग्रामीण आदि क्षेत्रों में बनता है। इस अंतर को कम करने की जरूरत है, तभी ई-गवर्नेंस के लाभों का समान रूप से उपयोग किया जा सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस की पहल जमीनी हकीकत की पहचान और विश्लेषण करके की जानी चाहिए। प्लेटफॉर्म और ऐप-आधारित समाधान गरीबों को पूरी तरह से सेवाओं से वंचित कर सकते हैं या आगे स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच को कम कर सकते हैं। जैसे स्लॉट बुक करना फोन, कंप्यूटर और इंटरनेट के बिना उन लोगों के लिये बहुत कठिन हों सकता है।-प्रियंका 'सौरभ' सम्मान के साथ जीने का अधिकार एक संवैधानिक अनिवार्यता है। हालाँकि, यह आज शासन में डिजिटल पहल की चर्चाओं में शायद ही कभी प्रकट होता है। केंद्रीकृत डेटा डैशबोर्ड नीतियों का आकलन करने, मानवीय गरिमा और अधिकारों तक पहुँचने में जितनी...
समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

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समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता सम्पूर्ण राम-साहित्य हमारी सनातन संस्कृति का पोषक है। उसका प्रत्येक क्रियाकलाप तथा घटनाक्रम श्रीराम भक्त का मार्गदर्शन करते हैं। जीवन के नकारात्मक विचारों को नष्ट कर सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस का पंचम काण्ड सुन्दरकाण्ड हमारा पग-पग पर मार्गदर्शन करता है। समाज के कतिपय प्रमुख वर्ग के लिए सुन्दरकाण्ड कितना उपयोगी है इस विषय पर हम अपने विचार व्यक्त करने का प्रयत्न करेंगे- विद्यार्थी वर्ग - बालक के जीवन की सुदृढ़ नींव उसकी बाल्यावस्था में ही रखी जाती है। उस समय उसमें जिन आदतों का बीजारोपण कर दिया जाता है, वहीं से उसके जीवन का विकासक्रम प्रारंभ हो जाता है। श्रीराम की बाल्यावस्था पर दृष्टिपात करें तो हमें बालकाण्ड पढ़ना होगा- 'प्रात:काल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।। आयसु मागि कर...
महामहिम जी का हिन्दी में शपथ लेने का संदेश तो समझिए

महामहिम जी का हिन्दी में शपथ लेने का संदेश तो समझिए

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महामहिम जी का हिन्दी में शपथ लेने का संदेश तो समझिए  आर.के. सिन्हा भारत के 15 वें राष्ट्रपति पद की शपथ हिन्दी में लेकर श्रीमती द्रौपदी मूर्मू ने सारे देश को एक बेहद महत्वपूर्ण संदेश दिया है। मूल रूप से उड़ीसा से संबंध रखने वाली श्रीमती द्रौपदी मूर्मू अगर उड़िया या किसी अन्य भाषा में भी शपथ लेती तो कोई अंतर नहीं पड़ता। देश को अपनी सभी भाषाओं और बोलियों पर गर्व है। पर, वह हिन्दी में शपथ लेकर तो अचानक से सारे देश में पहुंच गई। समूचे देश ने उन्हें हिंदी में शपथ लेते हुए देखा-सुना। बेशक, हिन्दी देश की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। इस संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता। हिन्दी की सारे देश में स्वीकार्यता है और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ भी रही है। अगर छुद्र राजनीति को छोड़ दिया जाए तो इसे सारे देश में बोला और समझा जा रहा है। कुछ समय पहले ही देश के आठ पूर्वोतर राज्यों के स्कूलों में दसवीं क...