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घोषणापत्रों में कहीं फिर छूट ना जाये पर्यावरण के सवाल

घोषणापत्रों में कहीं फिर छूट ना जाये पर्यावरण के सवाल

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देश में लोकसभा चुनाव अगले माह ही शुरू होने जा रहे हैं। चुनाव का माहौल अब गरम होता ही जा रहा है। होली के बाद चुनावी रैलियों से लेकर नुक्कड़ सभाओं के दौर भी शुरू हो जाएंगे। इसी के साथ ही सभी दल अपने-अपने मेनिफेस्टो या संकल्प पत्रों को भी जारी करने लगेंगे। उनमें वर्णित तमाम बिन्दुओं पर चर्चा भी होगी, वादे और संकल्प भी दुहराये जाएंगे। लेकिन, अब पर्यावरण से जुड़े सवालों पर भी एक बार फिर से फोकस करने का समय आ गया है। सभी दलों को अपने-अपने घोषणापत्रों में देश को यह तो बताना ही होगा कि उनकी पर्यावरण से जुड़े सवालों पर किस तरह की सोच है। अभी भारत में यूरोपीय देशों की तर्ज पर ग्रीन पार्टी बनाने के संबंध में अब कौन सोचेगा? पर अगर कोई पार्टी सिर्फ पर्यावरण से जुड़े सवालों को लेकर चुनाव मैदान में भी उतरे तो भी उसका स्वागत ही होना चाहिए। यही तो भविष्य के लिए, आने वाली पीढिय़ों के हित में की जाने वाली सा...
बढ़ती नफरत का त्रासद दौर

बढ़ती नफरत का त्रासद दौर

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  न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुई त्रासद एवं अमानवीय हिंसक घटना आतंकवाद का एक नया संस्करण है। इस आतंकी वारदात ने यह बता दिया है कि जब तक नफरत, संकीर्णता और उन्माद इस दुनिया में सक्रिय है। कोई भी पूरी तरह से सुरक्षित एवं संरक्षित नहीं है। हालही में अल नूर मस्जिद और लिनवुड मस्जिद में नमाज पढऩे गए लोगों पर हथियारबंद हमलावरों ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 50 के आसपास लोग मारे गए और कई घायल हो गए। इस तरह की आतंकी वारदात सिर्फ हमारे भरोसे को ही नहीं हिलाती, बल्कि उन सारी सच्चाइयों को हमारे सामने ला खड़ी करती है, जिनसे चाहे-अनचाहे हम मुंह चुराते रहे हैं। इस प्रकार की यह आतंकी हिंसा एवं विस्फोटों की शृंखला, अमानवीय कृत्य अनेक सवाल पैदा कर रहे हैं। कुछ सवाल लाशों के साथ सो गये। कुछ घायलों के साथ घायल हुए पड़े हैं। कुछ समय को मालूम है, जो भविष्य में उद्घाटित होंगे। इसके पीछे जिस तरह की ...
मोदीराज में “डिफेंस डील : रक्षा सौदे”

मोदीराज में “डिफेंस डील : रक्षा सौदे”

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मोदी सरकार ने 2014 के बाद 4.26 लाख करोड़ से अधिक के रक्षा अनुबंधों पर हस्ताक्षर किया है. ● 36 :- राफेल मल्टीरोल फाइटर : 59,000 करोड़ ● 7 :- प्रोजेक्ट-17A क्लास युद्ध-पोत : 50,000 करोड़ ● 5 :- एयर डिफेंस SAM S-400 : 39,000 करोड़ ● 22 :- अपाचे AH-64 और 15 शिनूक : 3 अरब डॉलर ● पुर्जे और गोला बारूद : 3 अरब डॉलर ● 6 :- अरिहंत क्लास सबमरीन : 23,652 करोड़ ● 1 :- अकुला II क्लास न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बी : 3.3 अरब डॉलर ● बराक-8 MRSAM एयर डिफेंस : 2 अरब डॉलर ● 73 :- ALH ध्रुव : 14,151 करोड़ ● 464 :- मेन बैटल टैंक T-90 MS : 13,448 करोड़ ● 7.47 लाख :- AK-203 असॉल्ट राइफल : 12,280 करोड़ ● LRSAM बराक-8 : 1.41 अरब डॉलर ● 2 :- 'आकाश - NG' SAM रेजिमेंट : 9,100 करोड़ ● 2 :- मल्टी यूटिलिटी वेसल 'HSL' : 9,000 करोड़ ● 4 :- P-8i 'Poseidon' : 1 अरब डॉलर ● 'NASAMS' SAM : 1 अरब डॉलर ● 2 :- प्रोजे...
गणगौर है दाम्पत्य की खुशहाली का पर्व

गणगौर है दाम्पत्य की खुशहाली का पर्व

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गणगौर राजस्थानी आन-बान-शान का प्राचीन पर्व हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है किन्तु जीवन मूल्यों की सुरक्षा एवं वैवाहिक जीवन की सुदृढ़ता में यह एक सार्थक प्रेरणा भी बना है। यह पर्व सांस्कृतिक, पारिवारिक एवं धार्मिक चेतना की ज्योति किरण है। इससे हमारी पारिवारिक चेतना जाग्रत होती है, जीवन एवं जगत में प्रसन्नता, गति, संगति, सौहार्द, ऊर्जा, आत्मशुद्धि एवं नवप्रेरणा का प्रकाश परिव्याप्त होता है। यह पर्व जीवन के श्रेष्ठ एवं मंगलकारी व्रतों, संकल्पों तथा विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है। गणगौर शब्द का गौरव अंतहीन पवित्र दाम्पत्य जीवन की खुशहाली से जुड़ा है। कुंआरी कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए और नवविवाहिताएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह त्यौहार ह...
जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

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असन्तुलन एवं अस्तव्यस्तता ने जीवन को जटिल बना दिया है। बढ़ती प्रतियोगिता, आगे बढ़ने की होड़ और अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा ने इंसान के जीवन से सुख, चैन व शांति को दूर कर दिया है। सब कुछ पा लेने की इस दौड़ में इंसान सबसे ज्यादा अनदेखा खुद को कर रहा है। बेहतर कल के सपनों को पूरा करने के चक्कर में अपने आज को नजरअंदाज कर रहा है। वह भूल रहा है कि बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, इसलिए कुछ समय अपने लिए, अपने शरीर, अपने शौकों और उन कामों के लिए, जो आपको खुशियां देते हैं, रखना भी बहुत जरूरी है। समय ही नहीं मिलता! कितनी ही बार ये शब्द आप दूसरों को बोलते हैं तो कितनी ही बार दूसरे आपको। क्या वाकई समय नहीं मिलता? सच ये भी तो है कि जिनसे हम बात करना या मिलना चाहते हैं, उनके लिए समय निकाल ही लेते हैं। यही समय प्रबन्धन है, इसके लिये लेखिका पैट होलिंगर पिकेट कहती हैं, ‘ये आपको तय करना है कि ...
राष्ट्रीय ध्वज और सैनिकों का सम्मान

राष्ट्रीय ध्वज और सैनिकों का सम्मान

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आर्य समाजी विद्यालय में शिक्षा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में समाजसेवा के संगम से मेरे दिल और दिमाग पर राष्ट्रभक्ति की विशेष छाप है। मेरा सारा राजनीतिक जीवन राष्ट्रभक्ति के भावों के बिना शून्य ही रह जाता। जब मन पर समाज और राष्ट्र की सुरक्षा से सम्बन्धित विचारों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति स्वार्थ में बहकर राजनीतिक जीवन को भ्रष्टाचारी कार्यों की बलि नहीं चढ़ाता। आज यदि राजनीतिक जीवन में या किसी भी अन्य क्षेत्र में जब भी भ्रष्टाचार, अपराध, अनैतिकता, लड़ाई-झगड़ा या लूट-खसोट आदि अनैतिक आचरण दिखाई देते हैं तो एक सहज कल्पना की जा सकती है कि ऐसे कार्यों में लिप्त लोग राष्ट्रभक्ति की अवधारणाओं और मान्यताओं से कोसों दूर हैं। इसलिए मेरा यह निश्चित मत है कि समाज से यदि हर प्रकार की अनैतिकता और दुराचार आदि को समाप्त करना है तो हमें देश के नागरिकों को बचपन से ही राष्ट्रभक्ति और समाजसेवा का भरपूर पाठ पढ़ान...
लोकतांत्रिक मज़बूती के पांच सूत्र

लोकतांत्रिक मज़बूती के पांच सूत्र

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पार्टिंयां चुनावों की तैयारी करती हैं। पार्टियां ही उम्मीदवार तय करती हैं। पांच साल वे क्या करेंगी; इसका घोषणापत्र भी पार्टियां ही बनाती हैं। चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जायेगा; मीडिया के साथ मिलकर ये भी पार्टियां ही तय कर रही हैं। मतदान की मशीन पर चुनने के लिए छपे हुए निशान भी पािर्टंयों के ही होते हैं। मतदाता भी अपना मत, उम्मीदवार से ज्यादा, पार्टियों को ध्यान में रखकर ही देता है। यह लोकसभा के लिए लोक-प्रतिनिधि चुनने का चुनाव है कि पार्टिंयां चुनने का ? लोगों  को अपना प्रतिनिधि चुनना है। क्या चुनाव से पूर्व कभी लोगों से पूछा जाता है, ''हां भई, आप बताइए कि किस-किस को उम्मीदवार बनाया जाए ?'' सोचिए।    स्वयं से पूछिए कि इस चुनाव में चुनाव आयोग है, मतदाता है, मतदान की मशीन है; किंतु इसमें लोक कहां है ? लोक-प्रतिनिधियों का चुनाव है, तो उम्मीदवार, चुनावी प्रक्रिया, और तौर-तरीके से लेकर चुनावी ए...
चीन, कश्मीर पर नेहरु की मूर्खतापूर्ण चूक से त्रस्त भारत

चीन, कश्मीर पर नेहरु की मूर्खतापूर्ण चूक से त्रस्त भारत

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जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को 'वैश्विक आतंकी' घोषित होने से बचाने के लिए चीन ने उस वीटो का इस्तेमाल किया जो उसे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की जबर्दस्त पैरवी की बदौलत प्राप्त हुआ था। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने अपनी पुस्तक ' नेहरु-दि इनवेंशन आफ इंडिया' में लिखा है कि नेहरु ने (1950 के दशक में) अमेरिका के भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थायी सदस्य बनवाने की पेशकश को ठुकरा दिया था। तब नेहरु जी ने कहा कि भारत की जगह चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले लिया जाए। तब तक ताइवान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य था।’ नेहरुजी का अमेरिकी पेशकश को अस्वीकार करने सेसिद्ध होता है कि वे  देश के सामरिक हितों को लेकर कितने लापरवाह थे। क्या उन्होंने इतना बड़ा फैसला लेने से किसी बड़े कांग्रेसी नेता से पूछा था या पहले संसद को जानकारी दी थी? अब चीन ने जैश ए मोहम्मद को जीवदान ...
विटामिन की कमी से ग्रस्त हैं स्वस्थ दिखने वाले शहरी लोग

विटामिन की कमी से ग्रस्त हैं स्वस्थ दिखने वाले शहरी लोग

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एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में स्वस्थ दिखने वाले अधिकतर शहरी लोग विटामिन की कमी से ग्रस्त हैं। हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान के वैज्ञानिक 30-70 वर्ष के लोगों में विटामिन के स्तर का अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस अध्ययन में 270 प्रतिभागी (147 पुरुष और 123 महिलाएं) शामिल थे। शोधकर्ताओं ने रक्त के नमूनों की मदद से विटामिन के विभिन्न रूपों (ए, बी1, बी2, बी6, बी12, फोलेट और डी) तथा होमोसिस्टीन की मात्रा का मूल्यांकन किया है। शरीर में कोशिकीय एवं आणविक कार्यों, ऊतकों की वृद्धि और रखरखाव के लिए आवश्यक विटामिन एक प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। इस अध्ययन में आधे लोग विटामिन बी2 और 46 प्रतिशत लोग विटामिन बी6 की कमी से ग्रस्त पाए गए हैं। ये परिणाम महत्वपूर्ण हैं, जो विटामिन बी2 की कमी को गंभीरता से लेने का संकेत करते हैं। हालांकि, लोग विटामिन की कमी को आमत...
कुपोषण से हृदय रोग तक लड़ने में मदद कर सकते हैं गांधी के सिद्धांत

कुपोषण से हृदय रोग तक लड़ने में मदद कर सकते हैं गांधी के सिद्धांत

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पैदल चलना, शारीरिक गतिविधियां, ताजा सब्जियों व फलों का सेवन, शर्करा, नमक तथा वसा वाले खाद्य पदार्थों का कम सेवन, तंबाकू तथा शराब से दूरी और पर्यावरणीय एवं व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखना। कुछ लोगों को ये बातें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी गैर-संचारी एवं संचारी रोगों से बचाव के लिए जारी सलाह लग सकती हैं। पर, अच्छे स्वास्थ्य से जुड़े ये कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जिन पर एक सदी पहले खुद महात्मा गांधी अमल करते थे और लोगों के बीच इनका प्रचार भी करते थे। इनमें से कई विचारों को आज वैज्ञानिक साक्ष्यों का समर्थन प्राप्त है और पोषण विशेषज्ञ भी उन्हें प्रासंगिक मानते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण से लेकर हृदय रोगों जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ने में ये सिद्धांत मदद कर सकते हैं। जून 1945 में बिड़ला हाउस, मुंबई में वजन तोलते हुए महात्मा गांधी (फोटो : आईजेएमआर) गांधी का मानना था कि अत...