मजदूरों के लिए विपरीत समय
यह एक जटिल और कन्फ्यूज़्ड समय है, जहां बदलाव की गति इतनी तेज और व्यापक है कि उसे ठीक से दर्ज करना भी मुश्किल हो रहा है. पूरी दुनिया में एक खास तरह की बैचनी महसूस की जा रही है. पुराने मॉडल और मिथ टूट रहे हैं. यहाँ तक कि अमरीका और यूरोप जैसे लोकतान्त्रिक मुल्कों में लोग उदार पूंजावादी व्यवस्था से निराश होकर करिश्माई और धुर दक्षिणपंथी नेताओं के शरण में पनाह तलाश रहे हैं. फ्रेंच अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने पहले ही इस संकट की तरफ इशारा कर दिया था, 2013 में प्रकाशित अपनी बहुचर्चित पुस्तक “कैपिटल इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी” में बताया कि पश्चिमी दुनिया में कैसे आर्थिक विषमता बढती जा रही है. आंकड़ों के सहारे उन्होंने समझाया था कि पूंजीवाद व्यवस्थाओं में विषमता घटने को लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता. 1914 से 1974 के बीच भले ही विषमता कम हुई हो जोकि केंस जैसे अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित कल्य...