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वन नेशन वन इलेक्शन एक अच्छी योजना है ।

वन नेशन वन इलेक्शन एक अच्छी योजना है ।

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क्या वन नेशन वन इलेक्शन नीति कंजुसाई (पैसा बचाने की नीति) सोच नहीं है , मैं नहीं विपक्षी (लीब्रां डू गेंग) सोच रहा है, क्या पैसा बचाना लोकतंत्र की हत्या माना जाएगा ?वन नेशन वन इलेक्शन एक अच्छी योजना है । इसके फायदे ज्यादा हैं , नुकसान कम हैं । अमेरिका में भी चुनाव का निश्चित टाइम टेबल है । नवंबर माह के प्रथम मंगलवार को चुनाव हर चौथे साल होते हैं । नई सरकार उसके 3 महीने बाद 20 जनवरी को शपथ ग्रहण करती है । बीच के 3 महीने अनाड़ी लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए होते हैं कि सरकार चलाने में क्या करना है और क्या नहीं करना है । वहां सरकार 4 साल के लिए चुनी जाती है । केंद्रीय सरकार में राष्ट्रपति का चुनाव उपराष्ट्रपति के साथ जनता द्वारा सीधे होता है । उसी समय राज्यों के गवर्नर का चुनाव भी होता है । राष्ट्रपति के इस्तीफा देने, मृत्यु या महाभियोग की स्थिति में उपराष्ट्रपति जो उसी पार्ट...
भारतीय परिवारों की भौतिक आस्तियों में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर है

भारतीय परिवारों की भौतिक आस्तियों में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर है

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किसी भी देश के लिए शुद्ध वित्तीय बचत की दर अधिक होना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा मापदंड माना जाता है क्योंकि वित्तीय बचत की राशि अंततः पूंजी निर्माण करते हुए देश के आर्थिक विकास को गति देने में मुख्य भूमिका निभाती है। बचत दरअसल दो प्रकार की होती है, एक, वित्तीय बचत एवं द्वितीय, भौतिक आस्तियों के रूप में की गई बचत। भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत के परिवारों में हाल ही के समय में वित्तीय बचत की दर कुछ कम होकर परिवारों द्वारा भौतिक आस्तियों के रूप में की गई बचत में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत जो केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं गैर वित्तीय संस्थानों के लिए आय का मुख्य साधन है, वित्तीय वर्ष 2022-23 में गिरकर सकल घरेलू उत्पाद का 5.1 प्रतिशत रह गई है। यह बचत दर वित्तीय वर्ष 2020-21 में 11...
नेहरू द्वारा मिशनरियों को प्रचार की खुली छूट..

नेहरू द्वारा मिशनरियों को प्रचार की खुली छूट..

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9 अक्टूबर 1952 को भारत में ईसाइयों की एक प्रमुख प्रतिनिधि राजकुमारी अमृत कोर (कपूरथला के राजा के भाई, All India Conference of Indian Christians के पहले अध्यक्ष हरनाम सिंह KCIE/ Knight Commander of the Most Eminent Order of the Indian Empire/की बेटी और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री) ने नेहरू जी को बिहार और मध्यप्रदेश में भारतीय और विदेशी ईसाई मिशनों और मिशनरियों के प्रति भेदभाव बरतने की शिकायत की। (राजकुमारी जी को Dame of Grace of the Order of St John of Jerusalem की उपाधि प्राप्त थी)।इस पर नेहरू जी ने मुख्यमंत्रियों को आदेश और ज्ञान देने के लिए लगभग पाक्षिक तौर पर लिखे जाने पत्रों में से एक, 17 अक्टूबर 1952 को लिखे पत्र में आदेश दिया। इसका मूल अँग्रेजी और उसका (इस पोस्ट के लेखक द्वारा किया गया) हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है। "I have sometimes recieved complaints from Chr...
आतंकवाद : क्या कनाडा-पाकिस्तान साथ-साथ हैं?

आतंकवाद : क्या कनाडा-पाकिस्तान साथ-साथ हैं?

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क्या कनाडा ‘दूसरा पाकिस्तान’ बन गया है? खालिस्तानी आतंकवाद और हिंसा को लेकर दोनों देश आपस में साजिशें रच रहे हैं। पाकिस्तान में सरेआम सक्रिय रहे खालिस्तानी अब दहशत के खौफ में भी हैं।जिस तरह पाकिस्तान आतंकियों की ‘पनाहगाह’ है, कनाडा भी उसी राह पर है। पंजाब में जो नौजवान मौजूदा व्यवस्था से नाराज हैं और लंबे वक्त से बेरोजगार हैं, उन्हें खालिस्तान-समर्थक एक खास पत्र देते हैं। उसके आधार पर उन्हें आसानी से कनाडा का वीजा मिल जाता है। लोकसभा सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने ऐसे पत्र की पुष्टि की है। पत्र लेने वाले 35,000 रुपए से एक लाख रुपए अथवा डेढ़-दो लाख रुपए तक का चंदा पार्टी को देते हैं। कनाडा जाने वाले ऐसे पंजाबियों को वहां प्लंबर, ड्राइवर, सेवादार, मैकेनिक, पाठी और रागी आदि के काम भी दिलवा दिए जाते हैं, लेकिन खालिस्तान के भारत-विरोधी धंधों में भी उन्हें शामिल किया जाता है। कनाडा में ऐसे 3...
क़ानून : सहज, सरल और बोधगम्य हो

क़ानून : सहज, सरल और बोधगम्य हो

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यह शत प्रतिशत सही सोच है कि देश में कानून की व्याख्या और क़ानून उस भाषा में सहजता-सरलता से पेश होना चाहिए, जिसे देश का आम आदमी भी समझ सके। किसी भी लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके नागरिकों को आर्थिक, सामाजिक और कानूनी न्याय सहजता से मिल सके। इसी कड़ी में देश के अंतिम व्यक्ति को न्याय प्रक्रिया से सहजता से न्याय मिलना भी उतना ही जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय अधिवक्ता सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की उपस्थिति में कहा कि सरकार की कोशिश है कि कानूनों को आसान व भारतीय भाषाओं में बनाने का प्रयास किया जाए। निस्संदेह, यह एक सार्थक पहल कही जाएगी। निश्चित रूप से कानून का मसौदा देश में उस भाषा में सहजता-सरलता से उपलब्ध होना चाहिए, जिसे देश का आम आदमी भी समझ सके। सही मायने में यही सोच देश के शीर्ष स्वतंत्रता सेनानियों की ...
27 सितंबर को ‘विश्व पर्यटन दिवस’ है। हालांकि

27 सितंबर को ‘विश्व पर्यटन दिवस’ है। हालांकि

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भारत अपना राष्ट्रीय पर्यटन दिवस 25 जनवरी को मनाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व पर्यटन दिवस के दिन आज बहुत से देशों में अलग-अलग गतिविधियां, कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले तक लगाये जाते हैं। पर्यटन किसी भी देश के विकास का साक्षी बनता है इसलिए हमें यह चाहिए कि हम विभिन्न पर्यटन स्थलों का विकास करके, उनका संरक्षण करके लोगों के आपसी संपर्क को बढ़ा कर मित्रता व आपसी सहयोग व सद्भाव को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें। जानकारी देना चाहूंगा कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान होता है। पर्यटन स्थलों पर देश-विदेश से आने वाले विभिन्न पर्यटक विभिन्न परिवहन साधनों से लेकर होटल, रेस्तरां और पर्यटन स्थलों के टिकट पर व्यय करते हैं और देश को बड़ी आय या इनकम होती है। वास्तव में विदेशी पर्यटकों को अपने देश में आकर्षित करने और पर्यटन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष विश्व ...
घरेलू वित्तीय बचत घट गई है, जनाब !

घरेलू वित्तीय बचत घट गई है, जनाब !

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देश के रिज़र्व बैंक अर्थात् भारतीय रिजर्व बैंक ने घरेलू वित्तीय बचत के जो आंकड़े पेश किए हैं, उन्होंने अर्थशास्त्र के विद्वानों को चौंका दिया है और इनका मध्यम अवधि की वृद्धि पर गहरा असर हो सकता है। आंकड़ों से पता चलता है कि विशुद्ध घरेलू वित्तीय बचत 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5.1 प्रतिशत के बराबर ही रह गई, जो कई दशकों में इसका सबसे कम स्तर है। पिछले वर्ष यह 7.2 प्रतिशत थी। वित्तीय बचत में ऐसी गिरावट की कई वजह हो सकती हैं। चूंकि बचत में कुल मिलाकर गिरावट हुई है इसलिए संभव है कि महामारी के दौरान जिन परिवारों की आय को झटका लगा था उनकी आय पूरी तरह पटरी पर नहीं लौट पाई हो। इससिए हो सकता है कि अर्थव्यवस्था में सुधार कंपनियों के मुनाफे की वजह से दिखा हो, जिसमें पिछली कई तिमाहियों से अच्छी बढ़त रही है। एक और कारण यह भी हो सकता है कि निरंतर बढ़ती महंगाई के कारण परिवार बच...
भारत : पर्याप्त रोजगार नहीं

भारत : पर्याप्त रोजगार नहीं

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, साहित्य संवाद
सरकारी आँकड़े भले ही कुछ भी कहें देश में बीते वर्षों में अच्छे वेतन वाले नियमित रोजगार हासिल नहीं हुए। सन 1983 और 2019 के बीच गैर कृषि रोजगारों की हिस्सेदारी में करीब 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ,परंतु नियमित वेतन वाले रोजगार केवल तीन प्रतिशत ही बढ़े। संगठित क्षेत्र में यह इजाफा दो फीसदी से भी कम था। देश के लिए सबसे बड़ी नीतिगत चुनौतियों में से एक यही रही है “युवाओं और बढ़ती श्रम योग्य आबादी के लिए रोजगार की व्यवस्था करना”। सन 1980 के दशक के मध्य से ही हमारी आर्थिक वृद्धि में तेजी आ रही है लेकिन रोजगार की स्थिति में कोई वांछित बदलाव नहीं आ रहा है।कुछ पहलुओं में सुधार हुआ है। सरकार के रोजगार सर्वेक्षण और स्वतंत्र आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन रोजगार संबंधी नतीजों की ढांचागत खामियों को समय-समय पर रेखांकित करते रहे हैं। हाल ही में आई अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक नई रिपोर्ट ...
आईना नहीं, चेहरे बदलिए जनाब !

आईना नहीं, चेहरे बदलिए जनाब !

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“बहिष्कार और असहयोग” हाल ही में यह दोनों पुराने शब्द भारत की राजनीति में फिर तेज़ी से उछले हैं। देश में बने नए राजनीतिक गठबंधन ‘इंडिया’ गठबंधन ने घोषणा की है कि वह मीडिया के कुछ एंकरों का बहिष्कार करेगा । उनका तर्क है कि कुछ समाचार चैनलों के एंकर यानी कार्यक्रम के प्रस्तोता सरकारी प्रचार के काम में इस तरह लगे हुए हैं कि निर्भयता और निष्पक्षता के पत्रकारीय दायित्व को छोड़ बैठे हैं। ऐसे मीडिया को उन्होंने ‘गोदी मीडिया’ नाम दिया है। 14 एंकरों के नाम लेकर कहा गया है कि वे निर्बाध रूप से भाजपा सरकार के पक्ष में हवा बनाने का काम कर रहे हैं। वैसे यह आरोप अपने आप में नया नहीं है। अर्से से कुछ चैनलों पर ‘सरकारी’ होने की बात कही जाती रही है। इससे ऐसे चैनलों पर कुछ असर नहीं लग रहा। मीडिया की भूमिका सवालों के घेरे में यदा-कदा आती रही है। पत्रकारिता से हमेशा यह अपेक्षा रही है कि वह विवेकपूर्ण त...
नई संसद : सबसे बड़ा लोकतंत्र होना सार्थक हो

नई संसद : सबसे बड़ा लोकतंत्र होना सार्थक हो

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बीते कल भले ही देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन संविधान भवन बन गया हो, लेकिन यह भवन भारतीय संविधान की रचना से लेकर लोकतंत्र के उदय व परिपक्व हो जाने का साक्षी है। पांच दिवसीय विशेष संसद सत्र का पहला दिन इसी संसद भवन की संसदीय कार्यवाही का आखिरी दिन बना। संसद भवन में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक के कार्यकाल को याद किया गया। वहीं पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक के संबोधन का स्मरण किया गया। निस्संदेह, इस भवन को देश के पंद्रह प्रधानमंत्रियों का नेतृत्व मिला। सदन ने संवाद के जरिये देश की दशा सुधारने और नई दिशा देने का गुरुतर दायित्व निभाया। एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में पिछले साढ़े सात दशक में सामूहिकता के निर्णय इसकी जीवंतता को ही दर्शाते हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र...