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पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

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पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी-ललित गर्ग- पाकिस्तान की पहचान एक ऐसे देश के रूप में है जो कमजोर है, असफल है, कर्ज में डूबा है, अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने में नाकाम है, आतंक की नर्सरी एवं प्रयोगशाला है, ढहती अर्थव्यवस्था है, इन बड़ी नाकामियों को ढ़कने के लिये ही वह कश्मीर का राग अलापता रहा है, वहां के नेता एवं सैन्य अधिकारी तमाम जर्जरताओं एवं निराशाओं के बावजूद आज भी हिन्दू और भारत विरोध को ढ़ाल बनाकर ही अपनी सत्ता मजबूत करते रहे हैं। लेकिन अब उसका चेहरा इतना बदनुमा बन गया है कि उसने धर्म के नाम पर निर्दोष एवं बेगुनाह लोगों का खून बहाना शुरु कर दिया है। भारत ही नहीं, दुनिया में आतंक को फैलाने में अपनी जमीन, संसाधन एवं ताकत का प्रयोग खुलेआम करना शुरु कर दिया है, यह उसकी बौखलाहट ही है, यह उसकी निराशा ही है, यह उसकी विकृत सोच ही है। इस घिनौनी सोच का पर्दापाश पहलगाम क...
बीजेपी की मजबूरी है तमिलनाडु में गठबंधन की सियासत

बीजेपी की मजबूरी है तमिलनाडु में गठबंधन की सियासत

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बीजेपी की मजबूरी है तमिलनाडु में गठबंधन की सियासतसंजय सक्सेनाभारतीय जनता पार्टी और दिवंगत जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके के बीच तमिलनाडु में 2026 के विधानसभा चुनाव को लेकर हुआ गठबंधन ने तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक पार्टी की नींद उड़ा दी है। यह गठबंधन बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह की देन बताई जा रही है।हालांकि अभी तक दोनों दलों के दिल मिलते नहीं दिखाई दे रहे हैं। वजह हैं एआईएडीएमके नेता ई. पलानीस्वामी के बयानों में बार-बार आ रहा असमंजस। तमिलनाडु की राजनीति में यह कोई पहला मौका नहीं है जब चुनावी गणित के चलते विरोधी दलों ने हाथ मिलाया हो, लेकिन सत्ता साझा करने को लेकर जो स्पष्टता होनी चाहिए, उसकी यहां भारी कमी नजर आ रही है। अमित शाह ने खुद चेन्नई जाकर गठबंधन की सार्वजनिक घोषणा की, यहां तक कि दावा भी कर दिया कि अगली सरकार तमिलनाडु में एआईएडीएमके-बीजेपी की होगी। लेकिन जब पलानीस्वामी से इस बयान ...
पहलगाम में मजहबी आतंक का सबसे बर्बर चेहरा

पहलगाम में मजहबी आतंक का सबसे बर्बर चेहरा

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पहलगाम में मजहबी आतंक का सबसे बर्बर चेहरा-ललित गर्ग-जम्मू-कश्मीर में स्थित पहलगाम, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है, मंगलवार को एक भीषण, दर्दनाक एवं अमानवीय आतंकी हमले का गवाह बना, एक बार फिर जिहादी आतंक का घिनौना-बर्बर चेहरा दिखा। आतंकियों ने पहलगाम में निर्दाेष-निहत्थे पर्यटकों की जिस तरह पहचान पता करके गोलियां बरसाईं, उससे यही पता चलता है कि वे केवल खौफ ही नहीं पैदा करना चाहते थे, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों का खून बहाकर दुनिया का ध्यान भी खींचना चाहते थे। यह आतंकवाद एवं सांप्रदायिक घृणा का अब तक का सबसे घिनौना एवं बर्बर हमला एवं चेहरा है, जिसमें हिन्दू सुनकर चलाई गोलियां। जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मूल एजेंडे का हिस्सा है। इस जघन्य एवं त्रासद घटना में निर्दोष पर्यटकों को तब मौत की गहरी नींद सुलाया गया, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत में हैं और भारतीय प्रधानमंत्री स...
पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू

पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू

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पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू पहलगाम का आतंकी हमला हताशा में किया गया एक ऐसा कुकृत्य है, जिस पर हमेशा की तरह सुई पाकिस्तान की तरफ घूमती है। खुद आतंकवाद का दंश झेल रहा एक देश सरकारी और तैयार आतंकियों के जरिये भारत को बार-बार गहरे जख्म देने की नापाक नीति पर चल रहा है। पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के एक संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट ने पर्यटकों पर हुए इस कायरतापूर्ण हमले की जिम्मेदारी ली है। इस दुखद घटना ने वर्ष 2008 में दुस्साहसपूर्ण ढंग से मुंबई और भारत को हिलाकर रख देने वाले लश्कर-ए-तैयबा द्वारा रचे गए नरसंहार की याद दिला दी है। यह महज संयोग नहीं कि यह हमला 26/11 के आरोपी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण और पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के भारत विरोधी बयान के बीच हुआ है। मुनीर ने पिछले हफ्ते ही कश्मीर को अपने देश की ‘गले की नस’ बताकर 22 अप्रैल के हमले की भयावहता की जमीन तैया...
पहलगाम – हिन्दुओं पर आतंक की कुदृष्टिआतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी

पहलगाम – हिन्दुओं पर आतंक की कुदृष्टिआतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी

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पहलगाम – हिन्दुओं पर आतंक की कुदृष्टि आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगीमृत्युंजय दीक्षितजब ऐसा प्रतीत होने लगा कि कश्मीर आतंकवाद के साए से निकलकर विकास और शांति के पथ पर आगे बढ़ रहा है तब ही पाकिस्तान ने अपने आतंकी संगठनों और कश्मीर में अपने बचे खुचे स्लीपर सेल की सहायता से एक बार फिर आतंक का नंगा नाच किया। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में जो हुआ उसने देश की नब्बे के दशक की डरावनी स्मृतियां ताज़ी कर दीं। हथियारबंद आतंकवादियों ने बैसरन पहुंचे हिन्दू पर्यटकों अंधाधुंध फायरिंग कर मौत के घाट उतार दिया। हिन्दुओं से उनका धर्म पूछा, कलमा सुनाने को कहा, नीचे के कपड़े उतारकर मजहब जांचा और सिर में गोली मार दी। बिलखते हुए औरतों और बच्चों से कहा जाओ- मोदी को बताओ। आतंकवादियों ने यह घृणित काम उस समय किया जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वेंस भारत में थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के...
एक ज़रूरी बचाव, साइबर सतर्कता या शोरगुल?

एक ज़रूरी बचाव, साइबर सतर्कता या शोरगुल?

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एक ज़रूरी बचाव, लेकिन क्या लोग ऊब गए हैं?1930 की चेतावनी और पकते कान: साइबर सतर्कता या शोरगुल? साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 और ऑनलाइन ठगी से बचाव की चेतावनियाँ इतनी बार सुनाई देने लगी हैं कि लोग अब इनसे ऊबने लगे हैं। बैंक, फोन कंपनियाँ, न्यूज़ चैनल्स, और सोशल मीडिया हर जगह साइबर फ्रॉड के अलर्ट्स छाए हुए हैं, जिससे लोग ठगी से कम और चेतावनी से ज़्यादा परेशान हैं। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि असली कॉल्स और स्कैम्स में फर्क करना भी मुश्किल हो रहा है—हर मैसेज पर शक, हर कॉल पर संदेह! लोग इतने सतर्क हो गए हैं कि जरूरत पड़ने पर भी मदद माँगने वालों से पहले आधार कार्ड और पैन नंबर मांगने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि अगर किसी को गुप्त एजेंसी के लिए जासूसी करनी हो, तो उन्हें "साइबर क्राइम से बचें" जैसे संदेशों को बैकग्राउंड म्यूजिक बना देना चाहिए। जितनी बार हम अपने फोन, टीवी, बैंक मैसेज, या ...
रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग

रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग

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रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग भारतीय मिसाइलों व रक्षा उपकरणों का बज रहा दुनिया में डंकामृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सर्वांगीण विकास के पथ पर बढ़ता हुआ आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। रक्षा क्षेत्र भी इस धारा से अछूता नहीं है इसमें भी अहम और व्यापक परिवर्तन दिख रहा है । 2014 के पूर्व मात्र एक दशक पूर्व तक भारत की पहचान रक्षा उपकरणों के खरीदार की हुआ करती थी। रक्षा खरीद में घोटालों के समाचार आना सामान्य बात थी फिर भी ख़रीदे गए हथियारों की समय पर आपूर्ति नहीं होती थी। मोदी जी के नेतृत्व में ये परिस्थितियाँ तीव्रता के साथ बदल रही हैं। अब भारत जल, थल और नभ तीनों सेनाओं के सभी अंगों को सुदृढ़ करने के लिए दिन-रात प्रयास कर रहा है जिससे रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता और बल दोनों निरंतर बढ़ रहे हैं। भारत के रक्षा वैज्ञानिक निरंतर शोध में में व्यस्त ...
“डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें”

“डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें”

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"डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें" -डॉ. सत्यवान सौरभ "क्लासरूम से कॉर्पोरेट तक: उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच की दूरी""डिग्री से दक्षता तक: शिक्षा प्रणाली को उद्योग से जोड़ने की चुनौती""डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें""कुशल भारत की कुंजी: उद्योग अनुरूप विश्वविद्यालय शिक्षा" वर्तमान में, उच्च शिक्षा प्रणाली उद्योग की तेजी से बदलती आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश स्नातक रोजगार के लिए अपर्याप्त होते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, केवल 45.9% स्नातक ही रोजगार योग्य हैं, जबकि तकनीकी क्षेत्र में भी यह आंकड़ा बहुत कम है। विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों को नियमित रूप से उद्योग के विशेषज्ञों से समीक्षा कराना चाहिए, ताकि छात्रों को भविष्य की नौकरी के लिए तैयार किया जा सके। इसके अलावा, शिक्षा में मानवीय मूल्यों, सॉफ्ट स...
उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

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उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय  उप राष्ट्रपति जी ने सुप्रीम कोर्ट को बहुत कायदे से धोया है.. पूरा पढ़िए और समझिए कि कैसे उनको उनकी औक़ात दिखाई। 1. "आप राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते!" – राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, कोई अदालत का क्लर्क नहीं। 2. "अनुच्छेद 145(3) कहता है – संवैधानिक व्याख्या के लिए कम-से-कम 5 जज!" – फिर यह तीन जजों की फौज संविधान पर भाषण क्यों दे रही है? 3. "राष्ट्रपति को परमादेश देना सीधे-सीधे संविधान का अपमान है!" – क्या अब जज राष्ट्रपति से ऊपर हो गए? 4. "अनुच्छेद 142 अब 24×7 परमाणु मिसाइल बन गया है!" – हर चीज़ में 142 लगाओ और फैसला सुना दो, यही नया खेल है क्या? सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति...
देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

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देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए आँकड़े सामने है कि बीते साल विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। इसमें भी अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में 36 और कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या में 34 प्रतिशत की कमी आई है। यही स्थिति ब्रिटेन की भी है। आंकड़े वर्ष 2024 के हैं। निश्चित तौर पर जब ट्रंप काल में उखाड़-पछाड़ के दौर के आंकड़े सामने आएंगे, तो वे ज्यादा चौंकाने वाले होंगे। एक समय था कि छात्रों में परदेस जाकर पढ़ाई करने का जुनून उफान पर था। हर साल मां-बाप खून-पसीने की कमाई से और अपना पेट काटकर बच्चों को पढ़ने के लिये विदेश भेज रहे थे। कहीं-कहीं तो खेत बेचकर और घर गिरवी रखकर बच्चों को विदेश पढ़ाने के लिए भेजने के मामले भी प्रकाश में आए। देश में बैंकों से एजुकेशन लोन मिलने की सुविधा ने भी छात्रों की विदेश यात्रा को सुगम बनाया। हर साल लाखों छात्र...