क़ानून, व्यवस्था व व्यवहार को आइना दिखाती एक जंगल बुक वाइल्डलाइफ इण्डिया@50
समीक्षक: अरुण तिवारी
जब दिमाग और दुनिया...दोनो का पारा चढ़ रहा हो, खुशियों की हरियाली घट रही हो और मन का रेगिस्तान बढ़ रहा हो तो किसी को आइना भी झूठ लग सकता है। किन्तु सच यह है कि आइना झूठ नहीं बोलता। कहते हैं कि किताबें वक्त का आइना होती हैं। किन्तु दूसरी ओर अनुभव कहता है कि ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए राइटर्स से ज्यादा प्रेक्टिशनर्स पर यकीन किया जाना चाहिए। इस वर्ष - 2022 के ऐसे वैश्विक माहौल में एक ऐसी भारतीय किताब का आना बेहद अहम् है, जिसे लिखने वाले वे हैं, जिन्होने जंगली जीवों की संवेदनाओं व उनसे इंसानी रिश्तों को खुद जिया है; जिसके एडीटर व राइटर्स पर उनका अनुभवी प्रेक्टिशनर हावी है। किताब के संपादक - मनोज कुमार मिश्र, खुद एक वरिष्ठ वन अधिकारी रहे हैं। अनुभव ने उन्हे अब वाया 'यमुना जिये अभियान' और 'इंडिया रिवर वीक', भारत की नदियां संजोने के काम में लगा दिया है...