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पर्रिकर का विकल्प न ढूंढ पाना भारी पड़ रहा भाजपा को

पर्रिकर का विकल्प न ढूंढ पाना भारी पड़ रहा भाजपा को

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कभी कभी कोई व्यक्ति इतना बड़ा बन जाता है कि उसका विकल्प न ढूंढ पाना भी सत्ता वापसी में रोड़े लगा देता है। ऐसा ही कुछ है रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ। वह गोवा छोड़कर केंद्र की राजनीति में क्या गये, गोवा की भाजपा अनाथ हो गयी। एक अच्छी ख़ासी चल रही सरकार, जो सत्ता में पुनर्वापसी कर सकती थी। आज ऐसी स्थिति में है जहां उसकी दोबारा वापसी तो दूर सबसे बड़ी पार्टी बनने के भी लाले पड़े हुये हैं। गोवा की राजनीति पर विशेष संवाददाता अमित त्यागी का एक आलेख गोवा एक कम क्षेत्रफल वाला राज्य है। कई सालों से यहां कांग्रेस बनाम भाजपा की ज़ंग रही है। इन दोनों दलों के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। इस समय वहां भाजपा की सरकार है। गोवा में कांग्रेस कमजोर है इसलिए आम आदमी पार्टी वहां एक विकल्प के तौर पर उभर चुकी है। जबसे मनोहर पर्रिकर केंद्र में रक्षामंत्री बने हैं तबसे गोवा में किसी बड़े चेहरे के लि...
अप्रवासियों की सक्रियता से रोचक बनता पंजाब चुनाव

अप्रवासियों की सक्रियता से रोचक बनता पंजाब चुनाव

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गोवा और पंजाब दो ऐसे राज्य हैं जहां आम आदमी पार्टी न सिर्फ राजनैतिक परिदृश्य में दिखाई दे रही है बल्कि अपना एक खासा प्रभाव भी रख रही है। एक ओर पंजाब में भाजपा-अकाली दल की सरकार है तो दूसरी ओर गोवा में भी भाजपा की सरकार है। इन दोनों प्रदेशों में नशा और उससे जुड़े कारोबार एक अहम चुनावी मुद्दा है। चूंकि नशे के बड़े दुष्प्रभाव होते हैं इसलिए इसका विरोध करने वाली पार्टी जनभावना की प्रतीक बन जाती है। दोनों जगह वर्तमान सरकार के विरोध स्वरूप आम आदमी पार्टी स्वयं को एक विकल्प दिखाने में सफल रही है। हालांकि, दोनों प्रदेशों में आप बहुमत से दूर दिख रही है फिर भी सत्तासीन दलों को नाको चने चबवाने का काम तो कर ही रही है। गोवा और पंजाब को विश्लेषित करता विशेष संवाददाता अमित त्यागी का एक आलेख। पंजाब की एक बड़ी आबादी विदेशों में निवास करती है। यह अप्रवासी भारतीय विदेश में रहकर अपने पंजाब पर निगाहें लगाये...
11 घटनाएं जो साबित करती हैं कि अखिलेश दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लायक़ नहीं…।

11 घटनाएं जो साबित करती हैं कि अखिलेश दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लायक़ नहीं…।

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मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश यादव खुद सपा के अध्यक्ष बन गये हैं। जनता में बड़ा पॉजिटिव माहौल बना है। पर ये लग रहा है कि अखिलेश हर तरह के ब्लेम से मुक्त हैं। सारी गलती सपा पार्टी की है। सपा के पुराने नेताओं की है। अखिलेश सरकार तो एकदम काम करने के मोड में थी। पिछले छह महीनों में अखिलेश ने यही इमेज बनाने की कोशिश की है और सफल भी रहे हैं। जून 2016 से मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय को लेकर शिवपाल के खिलाफ निशाना साधा अखिलेश ने। तो तुरंत इमेज बन गई कि अखिलेश गुंडई के खिलाफ लड़ रहे हैं। पर पिछले 5 साल में अगर अखिलेश यादव की सरकार के काम-काज पर ध्यान दें तो कई चीजें ऐसी निकलेंगी जिससे पता चलेगा कि अखिलेश शासन काल के अंत में जागे हैं। ये काम तो हर मुख्यमंत्री करता है। आइए देखते हैं अखिलेश सरकार की नाकामियों को। दंगे जिन्हें अखिलेश रोक नहीं पाये इसकी शुरूआत हुई...
आम बजट २०१७ या भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद!

आम बजट २०१७ या भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद!

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आठ नवम्बर २०१६ की रात्रि ८ बजे प्रधान मंत्री द्वारा देश की ८६% मुद्रा के एक झटके में विमुद्रीकरण (५०० व १००० के नोट बंदी) की घोषणा के बाद अब केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरूण जेटली ने भी संसद में वर्ष २०१७-१८ का आम बजट पेश करते हुए अनेक कीर्तिमान बना डाले हैं.  उनके बजट भाषण में देश की रग-रग में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के संकल्प की अभिव्यक्ति भी स्पष्ट नजर आती है. जहां आयकर की दर १० से घटाकर ५ प्रतिशत कर ईमानदार करदाताओं या वेतनभोगी कर्मचारियों या यूं कहें कि उस तबके को जो नोटबंदी से सर्वाधिक परेशान हुआ, किन्तु धैर्य नहीं खोया, को, विशेष राहत प्रदान की है वहीँ, विविध सरकारी योजनाओं का लाभ गरीवों किसानों कामगारों अनुसूचित जातियों अनुसूचित जन जातियों युवाओं महिलाओं तथा समाज के अन्य निचले तबकों तक सीधा पहुंचाए जाने हेतु विविध प्रबंध भी साफ़ देखे जा सकते हैं. ...
धूर्त बिल्डरों पर लगाम; ग्राहकों के चेहरे पर मुस्कान

धूर्त बिल्डरों पर लगाम; ग्राहकों के चेहरे पर मुस्कान

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आप ये मानेंगे कि किसी भी इंसान की माली हालात चाहे कितनी ही खस्ता क्यों न हो पर उसके जीवन का एक बड़ा सपना होता है कि उसकी अपनी भी एक छत हो।  उसका अपना एक अदद घर हो, जिसे वह अपना आशियाना कह सके। और, इस सपने को साकार करने की दिशा में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने 2017-18 के आम बजट में बहुत से अहम कदम उठाए हैं और यह आशा की किरण गरीबों और मेहनतकश भारतीयों के मन में जगा ही दी है कि जल्दी ही उनका सपना साकार हो जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो 2022 तक हरेक भारतीय को घर देने का वादा कर ही दिया हैं। उस वादे को पूरा करने की दिशा में अरुण जेटली ने इस बार की बजट में दो दूरदर्शी कदम उठाए हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में सस्ते घरों को“इंफ्रास्ट्रक्चर” का दर्जा दे दिया है। इससे गरीबों के लिए सस्ते घरों की आपूर्ति में तेजी से वृद्धि की संभावना तेजी से बढ़ेगी। सरकार की चाहत है कि सा...
पर्यावरण के इस उजाले को कोई तो बांचे

पर्यावरण के इस उजाले को कोई तो बांचे

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आदर्श की बात जुबान पर है, पर मन में नहीं। उड़ने के लिए आकाश दिखाते हैं पर खड़े होने के लिए जमीन नहीं। दर्पण आज भी सच बोलता है पर हमने मुखौटे लगा रखे हैं। ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व के सामने सबसे बड़ी गंभीर समस्या है और हम पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन प्रदूषित करते जा रहे हैं। ऐसी निराशा, गिरावट व अनिश्चितता की स्थिति में एक व्यक्ति पर्यावरण को बचाने के लिये बराबर प्रयास कर रहा है। यह व्यक्ति नहीं है, यह नेता नहीं है, यह विचार है, एक मिशन है। और येे श्री अवधूत बाबा जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर अरुणगिरीजी के रूप पहचाने जाते हैं और उनका मिशन है अवधूत यज्ञ हरित पदयात्रा। पर्यावरण संरक्षण का यह अनूठा एवं अनुकरणीय उपक्रम है, जो वैष्णोदेवी से कन्याकुमारी तक निरन्तर चलित यज्ञ और पांच करोड़ पौधारोपण द्वारा विश्व पर्यावरण की शु़िद्ध के संकल्प के साथ चलयमान एक महायात्रा है। अगस्त 2017 तक चलने वाली करीब 4500 किलो...
हम  हवा-पानी सोखन लगे,  तो को कर सकै उद्धार

हम हवा-पानी सोखन लगे, तो को कर सकै उद्धार

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हर्ष की बात है कि विश्व नमभूमि दिवस - 2017 से ठीक दो दिन पहले ऑस्ट्रेलिया सरकार ने 15 लाख डाॅलर की धनराशि वाले ’वाटर एंबडेंस प्राइज’ हेतु समझौता किया है। यह समझौता, भारत के टाटा औद्योगिक घराने और अमेरिका के एक्सप्राइज़ घराने के साथ मिलकर किया गया है।    विषाद का विषय है कि जल संरक्षण के नाम पर गठित इस पुरस्कार का मकसद हवा से पानी निकालने की कम ऊर्जा खर्च वाली सस्ती प्रौद्योगिकी का विकास करने वालों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है।    जाहिर है कि सस्ती प्रौद्योगिकी से हवा से पानी निकालना सस्ता पडे़गा। परिणामस्वरूप, एक नई प्रतिस्पर्धा जन्म लेगी; हवा में से ज्यादा से ज्यादा पानी निकाल लेने की प्रतिस्पर्धा। अभी हमारी भूमि फाड़कर पानी निकालने की प्रौद्योगिकी (ट्युबवैल, समर्सिवैल और जेटवैल) नमभूमि क्षेत्रों को सुखा रही है; कल को हवा से पानी निकासी की प्रौद्योगिकियां वायुमंडल को सुखाने की दौड़ में ल...
विमुद्रीकरण एवं डिजिटल लेन-देन : नायडू समिति की अहम सिफारिशें

विमुद्रीकरण एवं डिजिटल लेन-देन : नायडू समिति की अहम सिफारिशें

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  बैंक से रुपये निकालने पर लग सकता है टैक्स देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने एवं कैशलेस अर्थव्यवस्था विकसित करने के उद्देश्य से 50 हजार रुपये से अधिक की नकद निकासी पर बैंकिंग कैश ट्रांजेक्शन कर लगाने और प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन से भुगतान पर लगने वाले मर्चेंट डिकाउंट रेट (एमडीआर) को पूरी तरह से समाप्त करने की सिफारिश की गयी है। नोटबंदी के मद्देनजर डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में बनी उप समिति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी, जिसमें ये सिफारिशें की गयी है। नायडू ने रिपोर्ट सौंपने के बाद संवाददाताओं से कहा कि 50 हजार रुपये से अधिक की नकद निकासी पर कर लगाने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही एमडीआर को पूरी तरह से समाप्त करने की सिफारिश की गयी है। सरकारी एजेंसियों में...
संसार के प्रत्येक बालक को गुणात्मक शिक्षा मिलनी चाहिए

संसार के प्रत्येक बालक को गुणात्मक शिक्षा मिलनी चाहिए

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            सरकारी बजट में विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक ध्यान रखा जाता है फिर भी बजट में शिक्षा व्यवस्था का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः अधिकांश देशों में शिक्षा का बजट रक्षा से कम होता है, यदि शिक्षा का बजट रक्षा से ज्यादा हो और सही ढंग से इसका प्रयोग हो तो रक्षा की तो जरूरत ही न पड़े। बजट ऐसा हो कि जिससे प्रत्येक युवा को नौकरी या व्यापार शुरू करने में दौड़-भाग न करनी पड़े, क्योंकि इससे व्यक्ति का मनोबल क्षीण होता है। शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। युद्ध के विचार सबसे पहले मानव के मस्तिष्क में पैदा होते हैं। मानव के मस्तिष्क में शान्ति के विचार डालने होंगे। शान्ति के विचार देने के सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। आज संसार में जो भी मारामारी हो रही है उसके लिए आज की शिक्षा दोषी है। सारे विश्व के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से शान्ति की शिक्षा मिलनी चा...
मोदी क्यों करें ट्रंप से तुलना?

मोदी क्यों करें ट्रंप से तुलना?

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लोकसभा-सदस्यों के एक रात्रि-भोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रति सहानुभूति दिखाई और कहा कि पता नहीं क्यों, उन पर लोग पत्थर बरसा रहे हैं? जैसे मैं दिल्लीवाला नहीं हूं, वैसे ही ट्रंप वाशिंगटन डीसी वाले नहीं हैं। जैसे वे बाहरी हैं, मैं भी बाहरी हूं। यह कैसा संयोग है? संयोग यह भी है कि ट्रंप ने अपने चुनाव-अभियान के दौरान भारतीय मूल के वोट पटाते वक्त मोदी की तारीफों के पुल बांध दिए थे। वह ट्रंप की मजबूरी थी। यह मोदी कि मजबूरी हो सकती है कि वे जान-बूझकर ट्रंप के तारीफ में कसीदें काढ़ रहे हैं। मोदी का यह गणित हो सकता है कि ट्रंप को वह खुश रखें, वरना ट्रंप कहीं अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के पीछे न पड़ जाए। 30 लाख भारतीय वहां रहते हैं। वे संपन्न हैं और अन्य अमेरिकियों की नजर में ईर्ष्या के पात्र हैं। यदि ट्रंप उनसे रोजगार छीनने का अभियान चला दे...