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भद्रलोक में सियासी जंग

भद्रलोक में सियासी जंग

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भारतीय जनता पार्टी के लिए अब तक सबसे चुनौतीपूर्व वह पश्चिम बंगाल राज्य रहा है, जहां उसके पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ। पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी बनने के बावजूद पार्टी का ना तो राज्य की विधानसभा और ना ही लोकसभा में उल्लेखनीय नुमाइंदगी रही। 1967 में जब गैरकांग्रेसवाद के नारे पर पश्चिम बंगाल में भी गैरकांग्रेसी दलों का गठबंधन बना तो उसमें तत्कालीन जनसंघ महज एक सीट जीतने में ही कामयाब रहा था। बाद के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बना तो उसमें वामविरोध की धुरी बन चुकी तब बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी शामिल हुई। इस गठबंधन का 1998 में पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ, जिसे तब दो लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। लेकिन बाद में यह गठब...
मोदी सरकार का भ्रष्टाचार पर सशक्त वार

मोदी सरकार का भ्रष्टाचार पर सशक्त वार

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नरेन्द्र मोदी सरकार ने करप्शन पर सशक्त वार करते हुए भ्रष्टाचार और पेशेवर कदाचार के आरोप में आयकर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को सेवा से जबरन रिटायर करने का सराहनीय निर्णय लेकर एक मिसाल कायम की है। वरिष्ठ और अहम पदों पर बैठे भारतीय राजस्व सेवा के इन दंडित अधिकारियों पर रिश्वतखोरी, उगाही, यौन शोषण, अफसरशाही जैसे गंभीर आरोप हैं। वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत आयकर विभाग आर्थिक और वित्तीय संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेहनत और ईमानदारी से अर्जित आय पर कर का भुगतान करनेवाले करदाताओं के बरक्स एक श्रेणी ऐसे लोगों की भी है, जो भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ-गांठ कर करोड़ों रुपये की कर चोरी करते हैं एवं प्रशासनिक शुचिता को धुंधलाते हैं। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई एक नई भोर का आगाज है। वित्तीय लेन-देन और कराधान की प्रक्रिया को सुगम, सक्षम और पारदर्शी बनाने के लिए हाल के वर्...
भ्रष्ट बाबुओं बाज आ जाओ

भ्रष्ट बाबुओं बाज आ जाओ

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल का शुभारंभ धमाकेदार तरीके से किया है। उनकी सरकार ने  वित्त मंत्रालय के 12 वरिष्ठ अफसरों को  जबरन रिटायर  करा दिया। दरअसल सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉम्र्स के नियम 56 के तहत  इन अफसरों को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दी। ये सभी अधिकारी आयकर  विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। यानी संदेश अब साफ है। अब मोदी के राज में निकम्मे और कामचोर सरकारी बाबुओं की खैर नहीं है। अब बाबुओं के कामकाज पर गहरी नजर रखी जाएगी। अब वे सरकारी ओहदे की मौज-मस्ती नहीं काट सकेंगे। अगर मौज काटेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। यूं तो संदिग्ध अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट द...
मुद्रा लोन पाने वाले बनेंगे भविष्य के शिव नाडार और सचिन बंसल

मुद्रा लोन पाने वाले बनेंगे भविष्य के शिव नाडार और सचिन बंसल

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तो अब यह तय ही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार अपने 2.0 के एजेंडे के तहत देश के नौजवानों को अपना कोई पसंदीदा बिजनेस चालू करने के लिए बड़े ही व्यापक स्तर पर कदम उठाने जा रही है। उसकी चाहत है कि देश की युवा शक्ति अपने करियर के विकल्प खुले रखें। सिर्फ नौकरी पाने के लिए न भागे। वे नौकरी देने वालों की कतार में लगें। वह बिजनेस करने के अवसर किसी भी हाल में न छोड़े। नौजवानों में ऐसा करने की इच्छा नहीं हैं, ऐसी बात नहीं है। परन्तु, उसमें सबसे बड़ी बाधा तो अब तक पूंजी का न होना ही होता था। बैंकों से ब्याज पर लोन प्राप्त करना भी भगवान के दर्शन पाने से कम नहीं था। पहले तो बैंक के पचासों चक्कर लगाओ। फिर जब किसी बैंक मैनेजर को किसी नौजवान का चेहरा पसंद आ जाये, या जाति, धर्म, प्रान्त, भाषा आदि किसी भी कारण से रहम आ जाये तब शुरू होगी प्रोजेक्ट बनाकर और फार्म भरकर जमा करने की बारी। गरीब नौजवान को प्रोजेक्ट बनाना...
कांग्रेस पार्टी को सही दिशाओं की तलाश

कांग्रेस पार्टी को सही दिशाओं की तलाश

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  कांग्रेस पार्टी तरह-तरह के अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की है। हालांकि पार्टी के निष्ठावान नेता उत्तराधिकारी के मसले पर बात करने को तैयार नहीं हैं। पार्टी को अब फिर से मूल्यों पर लौटकर अपने आप को एक नए दौर की पार्टी के तौर पर पुनर्जीवित करना होगा। चुनौतियां तो अनेक हैं, गांधी-परिवार पर निराशाजनक निर्भरता पार्टी के सामने पहली चुनौती है, दूसरी बड़ी चुनौती केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव है। बावजूद इसके किस वजह से पार्टी अब भी आगे की दिशा में बड़ा कदम उठाने से कतरा रही है। पार्टी के नेता ये बुनियादी बात ही नहीं समझ पा रहे हैं कि राहुल गांधी न पार्टी को छोड़ रहे हैं, न उन्हें छोड़ रहे हैं और न ही राजनीति को। शायद वे पहली बार समझदारी दिखा रहे हैं कि कोई गैर-गांधी परिवार का सदस्य अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृृत्व करें। यह समझद...
जमीनी बदलाव बिना  कांग्रेस की राह मुश्किल

जमीनी बदलाव बिना कांग्रेस की राह मुश्किल

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  सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव नतीजों को लेकर कांग्रेस कितनी आशावान थी, इसका अंदाजा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की 21 मई की प्रेस कांफ्रेंस से चलता है। चुनाव नतीजे आने के ठीक दो दिन पहले राहुल गांधी ने जिस आत्मविश्वास से कहा था कि उन्होंने नरेंद्र मोदी के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं, उससे ही साबित होता है कि पार्टी सत्ता में वापसी को लेकर कितनी आश्वस्त थी। पार्टी की इस आशावादिता को कुछ दिन बाद आई खबरों ने भी जाहिर किया, जिसमें कहा गया है कि पार्टी की आंकड़ा विश्लेषण करने वाली टीम ने 184 लोकसभा सीटें जीतने का अनुमान जताया था, जिसके चलते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी सलाहकार मंडली पूरे उत्साह में थी। यहां तक कि पार्टी ने भावी मंत्रिमंडल के लिए नाम भी तय कर लिए थे। जिसमें गृहमंत्री पद के लिए द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता स्टालिन का नाम तय करके उन्हें फोन भी कर दिया गया था। राष...
जीवाश्मी इस्पाती ढाँचा और श्रेष्ठ भारत का सपना

जीवाश्मी इस्पाती ढाँचा और श्रेष्ठ भारत का सपना

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                          " उम्मीद नहीं है कि भारत में गूगल और एप्पल जैसी बड़ी कम्पनियां तैयार हो सकती है। यहाँ जॉब करना और मर्सिडीज खरीद लेना ही सफलता है। क्रिएटिविटी कहाँ है? उपरोक्त बड़ी गम्भीर बात हाल ही में एप्पल के को-फाउंडर स्टीव वोज्नियाक ने भारत के बारे में कही है। इसका बड़ा गहरा अर्थ है देश के अतीत तथा वर्तमान से। और, बहुप्रतीक्षित श्रेष्ठ और स्वर्णिम भारत का भविष्य भी इन्हीं दो विरोधी शब्दों के समीकरण से तय होना है। श्रेष्ठ भारत का सपना देख रहे अधिकांश जनता को इस श्रेष्ठ भारत के निर्माण स्तम्भ जिसे इस्पाती ढाँचा के नाम से जानते हैं,के जर्जर हालत का पता ही नहीं है। आज भी भारत उस सामंती मानसिकता से पूर्णतः बाहर नहीं आ पाया है जहाँ सृजनात्मकता से प्राप्त नौकरी से ज्यादा एक अदद बाबूगिरी वाले सरकारी नौकरी को तवज्जो दिया जाता है। आईएएस, आईपीएस या बाबूगिरी वाला कोई नौकरी मिल...
हिंदी से तमिलों को आख़िर दिक़्क़त(परेशानी) क्या है?

हिंदी से तमिलों को आख़िर दिक़्क़त(परेशानी) क्या है?

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मणिशंकर अय्यर वरिष्ठ कांग्रेस नेता कस्तूरीरंगन कमिटी की रिपोर्ट में एक आधे वाक्य को लेकर तमिलनाडु में जो हंगामा और विरोध हुआ, उससे तमिलनाडु के बाहर रहने वाले भारतीय हैरान हो गए. उन्हें समझ में नहीं आया कि आख़िर तमिलनाडु में हिंदी का इतना विरोध क्यों हो रहा है. कस्तूरीरंगन कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की थी कि तमिलनाडु समेत सभी ग़ैर-हिंदी भाषी राज्यों में एक क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेज़ी के अलावा सभी सेकेंडरी स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए. इस सुझाव का सबसे कड़ा विरोध तमिलनाडु में हुआ. इस पर हैरान होने वालों को स्कूलों में हिंदी पढ़ने की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ (विरुद्ध)तमिलभाषियों के आंदोलन का इतिहास याद करना चाहिए. ये क़िस्सा क़रीब दो सदी पुराना है. 1833 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को क़ाबू में रखने वाली अपनी अक़्लमंदी (समझधार) भरी नीति को तिलांजलि दे दी. इसके बाद ...
जय श्रीराम के नारे का विरोध क्यों?

जय श्रीराम के नारे का विरोध क्यों?

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नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के बड़े अजीबोगरीब बयान ने हैरान कर दिया। उनका कहना है कि श्रीराम का बंगाली संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। भले ही अर्थशास्त्री के तौर पर उनका बहुत बड़ा नाम है लेकिन वे विदेश में रहते हुए भारत की संस्कृति एवं लोकभावनाओं से कितने जुड़े हैं, यह एक अलग चर्चा का विषय है। जय श्रीराम का नारा तो न केवल अच्छे शासन का प्रतीक है बल्कि लोक-आस्था का द्योतक भी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी राम राज्य की कल्पना की थी। गांधीजी आज जीवित होते तो जय श्रीराम के नारे का विरोध देखकर आंसू जरूर बहाते। राजनीति से प्रेरित श्री राम के चरित्र को धुंधलाने एवं जन-आस्था को बांटने की कोशिशें विडम्बनापूर्ण है, दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री राम किन्हीं जाति-वर्ग और धर्म विशेष से ही नहीं जुड़े हैं, वे सारी मानवता के प्रेरक हैं। उनका विस्तार दिल से दिल तक है। उनके चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर ह...
आतंकवाद और गृहमंत्री अमित शाह

आतंकवाद और गृहमंत्री अमित शाह

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संसद में राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद  देते हुए, भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने जितना दमदार भाषण दिया, उससे आतंकवादियों के हौसलेजरूर पस्त हुए होंगे। श्री शाह ने बिना लागलपेट के दो टूक शब्दों में आतंकवादियों, विघटनकारियों और देशद्रोहियों को चेतावनी दी कि वे सुधरजाऐं, वरना उनसे सख्ती से निपटा जाऐगा। अब तक   देश ने अमित शाह को भाजपा के अध्यक्ष रूप में देश ने देखा है । इस पद रहते हुए उन्होंने एक सेनापति के रूप में अनेक चुनावीमहाभारत जिस कुशलता से लड़े और जीते, उससे देश की राजीनीति में उनकी कड़ी धमक बनी है। उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि इरादे केपक्के, जुझारू और रातदिन जुटकर काम करने वाले अमित शाह जो चाहते हैं, उसे हासिल कर लेते हैं। इसलिए दिल्ली की सत्ता के गलियारों औरमीडिया के बीच यह चर्चा होने लगी है कि अमित शाह शायद कश्मीर समस्या का हल निकालने में सफल हो जाऐं। हालांकि इस रास्तें में चुनौति...