
शक्ति के उपासक बनें
भारत भूमि के महान सपूत महर्षि अरविन्द ने वर्षों पूर्व जब हम अंग्रेजों के अधीन थे, अपनी एक छोटी रचना 'भवानी मंदिर' की भूमिका में लिखा था कि "हमने शक्ति को छोड़ दिया है , इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया"। अतः पराधीनता में रहना हमारी दुर्बलता का ही परिणाम था। अनेक मनीषियों ने लिखा व कहा भी था कि सदियों की पराधीनता से हमारी शक्तियाँ दुर्बल हुई हैं , अतः इससे मुक्त होना सर्वाधिक आवश्यक है।स्वामी विवेकानंद ने भी हिन्दुओं को निर्भीक व बलवान बनने के लिए प्रेरित किया था । हिन्दू समाज की दुर्बलता, कायरता व भीरुता को गोरखनाथ पीठ के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ व महंत अवैद्यनाथ जी भी समझते थे और इस आत्मघाती अवगुण से समाज को बाहर लाने का निरंतर प्रयास करते रहे । उसी धरोहर और परंपराओं को अनेक अवरोधों के उपरान्त भी निभाने वाला एक संत आज अपने समाज का अग्रणी सारथी बन गया है।
अपने अथक परिश्रम...