सरकारी स्कूल, शिक्षा और गुणवत्ता
ऐसा प्रतीत होता है कि आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी सरकारें यह नहीं समझ सकी हैं कि देश के नौनिहालों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए बच्चों को केवल स्कूल तक पहुंचा देने भर से ही काम नहीं बनेगा। तमाम सरकारी एवं गैरसरकारी आंकड़ें यह सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि शिक्षा का अधिकार कानून, मिड डे मिल योजना, निशुल्क पुस्तकें, यूनिफॉर्म आदि योजनाओं के परिणामस्वरूप स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या तो बढ़ी हैं लेकिन छात्रों के सीखने का स्तर बेहद ही खराब रहा है। देश में भारी तादात में छात्र गणित, अंग्रेजी जैसे विषय ही नहीं, बल्कि सामान्य पाठ पढऩे में भी समर्थ नहीं हैं। यहां तक कि 5वीं कक्षा के छात्र पहली कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाते। यूं तो यह ट्रेंड पूरे देश का है लेकिन लैपटॉप और स्मार्ट फोन बांटने वाला उत्तर प्रदेश शिक्षा की गुणवत्ता की गिरावट के मामले में नए प्रतिमान स्थापि...