
कांग्रेस मुक्त संवैधानिक पद अब संघी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति
अमित त्यागी
ति आधारित भारत की राजनैतिक व्यवस्था में एक समय यह बड़ा मुश्किल माना जाता था कि जाति-व्यवस्था टूट भी सकती है। मतदाता अपनी जाति से बाहर आकर राष्ट्रनिर्माण के लिये भी मत दे सकता है। जातियों में बंटा हिन्दू समाज कभी एकजुट भी हो सकता है। वोट बैंक माना जाने वाला मुस्लिम वर्ग तुष्टीकरण की राजनीति से बाहर भी आ सकता है। पर ऐसा संभव हुआ। पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ। इसके बाद कई अन्य प्रदेशों में होते हुये 2017 में उत्तर प्रदेश के चुनावों में संभव हुआ। जाति आधारित वोट बैंक टूट गया। जाति की राजनीति करने वाले नेताओं की मनमानी खत्म हुयी। लोगों ने प्रत्याशियों को नहीं, कमल और मोदी को वोट दिया। क्षेत्रीय दलों की निर्भरता सिमट कर रह गयी। केंद्र मजबूत होता चला गया। और यह तो गणित का नियम भी है कि अगर केंद्र बिन्दु मजबूत होता है तो वृत्त(विकास का पहिया) का निर्माण तेज़ होता है।
वर्तम...