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मजबूर होती कांग्रेस

कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुल नाथ के खंडन को भले ही स्वीकार कर लें परंतु भाजपा के बढ़ते प्रभाव और कांग्रेस की कमजोर पड़ती सत्ता से कांग्रेसियों में भगदड़ मची हुई है। दरअसल कांग्रेस के राजनीतिक जहाज में सवार नेताओं को अपना भविष्य डूबने का खतरा सता रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस की हालत आयाराम-गयाराम जैसी हो गई है।

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोडऩे वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त सामने आ चुकी है। यह सिलसिला लोकसभा चुनाव तक चलते रहने की उम्मीद है। कांग्रेस में बदहवासी का आलम यह है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरते-गिरते बची है। राज्यसभा के निर्वाचन में हुई क्रास वोटिंग का सर्वाधिक खामियाजा कांग्रेस ने भुगता है। क्रास वोटिंग करने वाले नेताओं को इस बात का अंदाजा लग गया कि इस राजनीतिक पार्टी में भविष्य सुरक्षित नहीं है। यही वजह रही कि बहती गंगा में हाथ धोने से कांग्रेस के नेता बाज नहीं आ रहे । आश्चर्य की बात यह है कि एक तरफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहले देश में एकता यात्रा और उसके बाद अब न्याय यात्रा निकाल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता कांग्रेस में व्याप्त हताशा को रोकने के लिए कोई मजबूत उपाय नहीं कर सके। पार्टी से एक के बाद एक वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोडऩे में लगे हुए हैं। कांग्रेस की बात करें तो पांच बड़े नेताओं ने पिछले एक महीने के अंदर पार्टी छोड़ी है।

कमलनाथ इस सूची में छठा नाम हो सकते थे । चुनाव की तारीख का ऐलान होने में एक महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए नई रणनीति बनाना और जीत हासिल करना बेहद मुश्किल होगा। बड़े नेताओं के दल बदलने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है, लेकिन भाजपा भी इससे नहीं बच पाई है। सत्ताधारी पार्टी के तीन बड़े नेता पाला बदल चुके हैं। खास बात यह है कि तीनों नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के अशोक तंवर भी भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं।

चर्चा है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पार्टी के हाईकमान से नाराज हैं,अगर कमलनाथ कांग्रेस छोड़ते तो वह ऐसा करने वाले कांग्रेस के पहले नेता नहीं होते । उनसे पहले 12 नेता ऐसा कर चुके हैं। खास बात यह है कि कमलनाथ की वजह से कांग्रेस छोडऩे वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा का प्रभावशाली हिस्सा हैं। कुछ नेताओं ने अपनी पार्टी बनाई तो वहीं कुछ नेता दूसरी पार्टी में शामिल हो गए। इस सूची में सबसे ज्यादा तीन पूर्व मुख्यमंत्री गोवा के हैं। गोवा के दिगंबर कामत, रवि नाइक और लुइजिन्हो फलेरियो ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे, लेकिन बाद में पार्टी छोड़ दी। इनमें से दिगंबर और रवि ने तो अंत में बीजेपी का दामन थामा, लेकिन फलेरियो पहले टीएमसी में रहे, फिर इस पार्टी से भी अलग हो गए।

अगले कुछ महीनों में लोकसभा के चुनाव हैं। इससे ठीक पहले जिस तरह कांग्रेस से दिग्गज नेता अलग हो रहे हैं, वो चौंकाने वाला है। कांग्रेस को झटके पर झटका उनकी पार्टी के नेता ही दे रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले ही कांग्रेस के नेता पार्टी को छोडऩा शुरू कर देते हैं।

कांग्रेस ने पूरे देश में विपक्ष को एनडीए के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए इंडिया गठबंधन तैयार किया, तब उसे लगा था कि देश की सत्ता तक पहुंचने के लिए यह रास्ता आसान होगा, लेकिन, एक-एक कर इंडिया गठबंधन से पार्टियां अलग होती चली गईं। सबसे पहले नीतीश कुमार, जिन्होंने इस गठबंधन के लिए सबको इकट्ठा किया था, भाजपा के साथ हो लिए। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को भी कांग्रेस का साथ रास नहीं आ रहा। ममता कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं तो अरविंद केजरीवाल जिस तरह से लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रहे हैं, उससे साफ हो गया है कि वह ‘एकला चलो रे’ की राह पर बढ़ रहे हैं। एनसीपी और शिवसेना टूटी और उनका नेतृत्व जिनके हाथ में है, वह कांग्रेस का विरोध करते रहे हैं। कांग्रेस के 10 साल के समय को देखें तो पता चल जाएगा कि एक तरफ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी की जमीन देश में मजबूत करने की कोशिश हो रही है, दूसरी तरफ पार्टी के दिग्गज और युवा नेताओं ने एक-एक कर पार्टी का साथ छोड़ दिया है। कांग्रेस को छोड़ते समय इनमें से ज्यादातर नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और खासकर राहुल गांधी पर उनकी अनदेखी के आरोप लगाए।

कांग्रेस के नेताओं के असंतोष पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि बड़े-छोटे देशभर के हर प्रदेश से कुल मिलाकर 400 से ज्यादा की संख्या में अलग-अलग स्तर के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं। जर्जर होती कांग्रेस की इसी हालत का फायदा इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय दलों ने उठाया है। क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ लोकसभा की सीटों के मोलभाव अपनी सुविधा के हिसाब से कर रहे हैं। लाचार कांग्रेस के पास क्षेत्रीय दलों की शर्तें मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है।

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