बीते कल भोपाल का तापमान 36 डिग्री था । अगले 4 दिनो में इसके 39 डिग्री तक पहुँचने की भविष्यवाणी मौसम विभाग कर रहा है। यह सब ऋतु-चक्र में आये बदलाव के कारण हैं । अब तो बारह महीने लोगों से हम यह सुनते आ रहे हैं- इस बार तो गर्मी ने हद कर दी… ऐसी गर्मी तो मैंने कभी नहीं झेली। बरसात में इस बार की बरसात ने तो हाहाकार मचवा दिया… जिधर देखो पानी ही पानी। इसी तरह जाड़ा – ऐसा जाड़ा कि हड्डियां हिलाकर रख दीं। बारह महीने ऋतुओं के बदलाव ने सभी को परेशान कर दिया है।
पिछले साल जून में उत्तर भारत सहित देश के तकरीबन सभी हिस्सों में बेहाल कर देने वाली गर्मी पड़ी। दिल्ली में पारा जब 48 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर पहुंचा तो लोगों पर ही इसका असर नहीं दिखा बल्कि पशु-पक्षी भी हलकान दिखे। इस साल राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित तमाम प्रदेशों में कड़ाके की ठंड ने सबको बेहाल कर दिया। इस फरवरी 2023 में जिस तरह दिल्ली सहित उत्तर भारत में तापमान सामान्य से ऊपर गया है। मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इस बार प्रचंड गर्मी पड़ सकती है।
40-50 साल पहले के मौसम की जानकारी रखने वाले कहते है कि तब भी दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना और कानपुर में ऐसा ही मौसम हुआ करता था। लेलोग तब मौसम के असर को लेकर हो-हल्ला नहीं मचाते थे। बदलते ऋतु-चक्र की वजह से दिक्कतें बढ़ी हैं लेकिन इन समस्याओं का सामना कैसे करना चाहिए इस तरफ कोई गौर नहीं करता । दूसरी तरफ महानगरों और शहरों में लोगों के अंदर सहनशीलता सुख-सुविधाओं के कारण बहुत कम होती जा रही है। चंद लोग ही होंगे जो मौसम का मजा उठाने के लिए खुद को तैयार रखते होंगे। संपन्न परिवारों के लोग सुख-सुविधाओं में जीने के आदी हो गए हैं। वहीं मध्यम वर्गीय, निम्न मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय परिवार बारहों महीने अपनी सहनशीलता बढ़ाने के बजाय बदलते मौसम अनुकूल साधन-सुविधाएं जुटाने में ही लगे रहते हैं। ऐसे में उनके बारे में सोचिए जिनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है। वे शीत की रात कैसे काटते होंगे? बेतहाशा बढ़ी गर्मी को सहन कैसे करते होंगे? क्या वे कभी सरकार या किसी और से अपनी दुर्दशा बताने जाते हैं?
अब तो गांवों में भी लोग ऋतु-चक्र के बदलाव का सामना करने में हाय-तौबा मचाने लगे हैं। फिर भी वे भयंकर ठंड के आतंक से घबराते नहीं। अलाव जलाकर ठंड का सामना करते हैं। असल में मौसम का रोना वही रोता है जो मौसम का मजा लेने के लिए तैयार नहीं होता। भूल जाते हैं कि हर मौसम का महत्व है। जाड़ा यदि न पड़े तो रबी की फसल नहीं हो सकती। बरसात न हो जो खरीफ की फसल तैयार नहीं हो सकती है। बिना मौसम बदलाव के धरती पर न तो वनस्पति रह सकती है और न जीव-जंतु।
मौसम में पिछले 30-40 वर्षों से कुछ अधिक बदलाव सारी दुनिया में महसूस किया जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और सुनामी का कहर ही नहीं ग्लेशियरों के पिघलने से बाढ़ के बढ़ते खतरे का अहसास आंतकित-अचंभित करने वाला है। ग्रीन हाउस गैसों से बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर कई दूसरी समस्याएं भी पैदा होने लगी हैं। इससे दुनिया में मौसमी आतंक की छाया देखने को मिलने लगी है। अमेरिका जैसे देश में बर्फीले तूफान ने पिछले वर्षों में जो कहर ढहाया, उसे वहां के लोग शायद कभी न भुला पाएं। ऐसे ही भारत में पिछले वर्षों में उत्तराखंड, बिहार और तमिलनाडु में आई बाढ़ और बेमौसम बरसात ने लोगों को परेशानी में डाल दिया। दरअसल, मौसम में उतना बदलाव नहीं आया है जितना कि हमारी जीवनशैली में। मौसम में थोड़ा भी बदलाव आया कि हम परेशान होने लगते हैं।
लोग रोजगार के लिए नगरों और महानगरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन यहां आकर अभावों भरी जिंदगी जीते हैं। मौसम की मार ऐसे लोगों को हलकान ही नहीं करती बल्कि मौत का कारण बन जाती है।, मौसम के मुताबिक जिंदगी बसर करना सबके वश की बात नहीं रह गई है, सोचना होगा ॰॰॰ सबको मिलकर सोचना होगा।
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