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खड़गे – कांग्रेस का लोकतंत्र*

खड़गे – कांग्रेस का लोकतंत्र*

कांग्रेस पार्टी में 24 वर्षो के पश्चात अब पुनः लोकतंत्र की स्थापना हुई है। अब परिवारवाद का मजबूत किला ध्वस्त हो गया है। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव सम्पन्न हुआ और मल्लिकार्जुन खरगे का राज्याभिषेक हुआ। खरगे जो कर्नाटक के निवासी हैं और गांधी परिवार के निकटस्थ माने जाते हैं। यदि हम उनके अतीत पर दृष्टिपात करें तो उनका बाल्यकाल अत्यधिक संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने 7 वर्ष की अल्प आयु में एक दुर्घटना में अपनी माता को खो दिया था। तत्पश्चात खरगे ने अपने राजनीतिक जीवन का शुभारम्भ छात्रसंघ नेता के रूप में किया। वर्ष 1969 में वे एमएसके मिल्स कर्मचारी संघ के कानूनी सलाहकार बने, वे संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली श्रमिक नेता भी थे एवं उन्होंने मजदूरों के हितार्थ अनेको आन्दोलनों का नेतृत्व भी किया। वर्ष 1969 में ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में सम्मिलत हो गए और गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। वे राजनीति के एक सफल योद्धा माने जाते हैं। उन्होंने प्रथम बार वर्ष 1972 में कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई, तत्पश्चात उन्होंने निरन्तर 10 चुनावों में विजयश्री प्राप्त की। इसी श्रृखला में उन्होंने अनेक पदों, यथा – प्राथमिक शिक्षा राज्य मंत्री, ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज्य मंत्री, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आदि का कार्यभार सम्भाला। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर होने पर भी उन्हें विजयश्री प्राप्त हुई, यद्यपि आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रथम बार पराजय का सामना करना पड़ा। इसके पश्चात वे पुनः प्रगति की ओर अग्रसर हुए और 12 जून 2020 को उन्हें कर्नाटक से राज्यसभा हेतु एवं फरवरी 2021 में उन्हें विपक्ष का नेता चुना गया। इसी श्रृखंला उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में पदस्थ होकर श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग का कार्यभार सम्भाला। कांग्रेस पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष खरगे जी के समक्ष अनेकों चुनौतियां हैं। सर्वप्रथम जीर्ण-शीर्ण कांग्रेस पार्टी को पुनः सशक्त करना, कार्यकर्ताओं के मनोबल को जाग्रत करना, साथ ही हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात में नवम्बर तथा दिसम्बर माह में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की साख की रक्षा करना प्रमुख चुनौती है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों की चुनौती को भी स्वीकार करना है। इसी के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के अनेकों महत्वाकांक्षी नेताओं को पार्टी में विभिन्न पदों पर समायोजित करना उनके समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है।
खरगे जी ने अपने प्रतिद्वंद्वी शशी थरूर जी, जोकि एक युवा, अच्छे वक्ता और शिक्षित नेता हैं, को परास्त किया, क्योंकि उनको कांग्रेस पार्टी में जी-3 का आश्रय प्राप्त है और पार्टी में जीत उसी की होनी थी जिसको इनका आशीर्वाद प्राप्त हो। परन्तु अब भविष्य में देखना यह है कि वे अपना कार्य स्वयं के विवेक से करेंगे अथवा जी-3 का मुखौटा बन कर रह जाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो वे अपने जीवनभर की राजनीतिक साख को स्वयं समाप्त कर देंगे। यदि कांग्रेस का भला करना है तो खरगे का निर्णय अपने विवेक पर आधारित होना चाहिए, क्योंकि वे एक बहुत ही अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। कांग्रेस में वे एक आशा की लौ प्रज्जवलित कर देंगे।
खरगे जी की आयु 80 वर्ष की हो चुकी है, इस अवस्था में इतना बड़ा उत्तरदायित्व लेना कोई आसान कार्य नहीं है। अब देखना यह होगा कि इनकी अवस्था पार्टी में कितना सम्मान दिलाती है और उसी के ऊपर पार्टी की दिशा एवं दशा निर्धारित हो पाएगी।

*योगेश मोहन*

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