दिल्ली म्यूनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव परिणामों की समीक्षा करते हुए इन तथ्यों का भी ध्यान रखिए.
दिल्ली म्यूनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव में जनता ने भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं है. मुफ्त रेवड़ी की सच्चाइयों को भी जनता ने याद रखा है. यही कारण है कि 42% वोट के साथ केजरीवाल ने 134 सीट जीती तो भाजपा ने 39% वोट के साथ 104 सीट जीती है.
भ्रष्टाचारियों का हाल यह रहा कि तिहाड़ जेल में बंद और वहीं मसाज सेंटर चला रहे सत्येंद्र जैन की शकूर बस्ती विधानसभा के सारे वार्ड पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया तो एमसीडी के टिकट बेचने के आरोपी अखिलेश पति त्रिपाठी और चर्चित आप नेता आतिशी के क्षेत्र से आम आदमी पार्टी का एक भी पार्षद नहीं जीत सका.
इसी तरह दिल्ली की गली गली में दारू का ठेका खोलने वाले मनीष सिसोदिया के पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र, दिलीप पांडे, अमानुल्ला खां, गोपाल राय के क्षेत्र से महज एक एक सीट ही आम आदमी पार्टी जीती है.
एमसीडी के परिणाम केजरीवाल को खुश नहीं, चिंतित कर रहे हैं. क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को 55% वोट मिला था और दो साल बाद हुए एमसीडी चुनाव में 42%. मतलब केजरीवाल को सीधा-सीधा 13% वोटों का नुकसान हुआ है और यह केजरीवाल के लिए चिंता का विषय है.
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दिल्ली MCD चुनाव में BJP
100 से कम अंतर में 2 सीट
500 से कम अंतर में 8
1000 से कम अंतर में 14
1500 से कम अंतर में 11 सीट हारी।
अगर पांच परसेंट हिंदुओ ने भी थोड़ा बडकर वोट डाले होते तो नतीजा कुछ और ही होता।
Few statistics for yesterday’s polls.
Gautam Gambhir 22/36=61%
Dr. Harshvardhan 16/30=53%
Manoj Tiwari 20/41=48%
Ramesh Bidhuri 13/37=35%
Pravesh Verma 13/38=34%
Hansraj Hans 14/43=32%
Meenakshi Lekhi 5/25=20%
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एमसीडी चुनाव से सबक लेकर लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग जाएं, वरना खतरे की घंटी बज चुकी है
दिल्ली एमसीडी चुनाव में पिछले चुनाव से वोट प्रतिशत कम पड़ा। लोग चुनाव के दिन घर से निकलते नहीं है और चुनाव परिणाम के बाद विशेषज्ञ बन जाते हैं। दूसरा पक्ष थोक भाव में वोट देता है और उसके साथ कुछ वोट प्रतिशत मिल जाते हैं तो वह सीट निकाल लेता है। यह जीत का पुराना और आजमाया हुआ समीकरण है।
इसका स्याह पक्ष यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा देते हुए सभी धर्मों और वर्ग के हितों का ख्याल रखा, लेकिन वो ये भूल गए कि इस सरकार से सबसे अधिक लाभ लेने वाले भाजपा और संघ के नाम से ही बिदकते हैं, वोट देना तो दूर की बात।
पाकिस्तान से आए हिंदुओं को आजतक वोटिंग का अधिकार नहीं मिला, वो टेंट में रहने को बाध्य हैं और दूसरी तरफ एक पक्ष को हर तरह की सुविधाएं मिल रही हैं।
भ्रष्टाचार और आपराधिक चरित्र के नेताओं पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा हुआ है। एमसीडी और बीएमसी देश की दो सबसे बड़ी और भ्रष्ट संस्था है। इसका बजट कई राज्यों के बजट से ज्यादा है। इसके बावजूद इनके अधीन आने वाले सड़क, नाली, स्कूल, अस्पताल की हालत दयनीय है।
चुनाव से पहले ही जीत का दावा कर घर बैठने वालों के लिए यह आखिरी चेतावनी है। 2024 में लोकसभा का चुनाव है। अभी भी सुधर जाने का समय है। वरना एमसीडी चुनाव के परिणाम को आधार मान लें तो लोकसभा चुनाव के लिए यह खतरे की घंटी है।
एमसीडी में भाजपा 15 साल रही। इसके खिलाफ एंटी इनकंबेसी फैक्टर था। यहां के लोगों की एक विचित्र मानसिकता है कि वो सत्ता में रह रहे लोगों को बदलने के लिए पूरा मन बना लेते हैं। उनके बदले चाहे जो आए, लेकिन बदल देना है।
इन सबके बावजूद गौतम गंभीर के क्षेत्र में एमसीडी में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। मनोज तिवारी के क्षेत्र में भी कुल मिलाकर ठीकठाक प्रदर्शन रहा है, लेकिन यह उनके जीत की गारंटी नहीं कही जा सकती। बाकी सांसदों मीनाक्षी लेखी, हंस राज हंस, डॉक्टर हर्षवर्द्धन, रमेश बिधुड़ी, परवेश वर्मा के क्षेत्रों में भाजपा बुरी तरह से पिछड़ गई है। इसके कारणों पर समय रहते विचार करने की जरूरत है, ताकि लोकसभा में इस तरह के परिणाम न हों।
फ्री बिजली, फ्री पानी और डीटीसी में महिलाओं को मुफ्त यात्रा व शराब के धंधे से कमाए पैसे के बूते आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने एमसीडी पर कब्जा पाने में सफलता पाई है। यह सब तब है जबकि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के नेतृत्व में सुनयोजित दंगा हुआ था और इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 55 लोग मारे गए थे और हजारों करोड़ की क्षति हुई थी। आईबी के अंकित शर्मा को चाकुओं से गोद डाला गया था। वहीं, दिलबर नेगी को जिंदा जलाया गया था। नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के नाम पर 101 दिन जामिया नगर के रास्ते को बंद रखा गया था। वहीं, तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर गुंडागर्दी को दुनियाभर के लोगों ने देखा।
हम इतने जाति और वर्गों में बंटे हुए हैं कि हम अपनी व्यक्तिगत आकांक्षा के वशीभूत होकर सबकुछ भूल जाते हैं। यही कारण है कि यह देश इतने साल गुलाम रहा।
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चुनाव में हार-जीत होते रहते हैं। ध्येयनिष्ठ कार्यकर्त्ता चुनाव परिणामों की परबाह किए बिना देश, धर्म, संस्कृति और संगठन के लिए अहर्निश काम करते हैं। उन्हें अपना मार्ग पता है। देश, धर्म, संस्कृति व संगठन उनका अपना चयन है, इसलिए बाहरी एवं हर प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियाँ उन्हें विचलित भी नहीं करतीं। उन्हें जो करना है, वे अनथक-अहर्निश वही करेंगें।
पर भाजपा को अवश्य विचार करना चाहिए। क्या वे जिस ध्येय को लेकर आगे बढ़े थे, उसी पथ पर अग्रसर हैं? क्या कार्यकर्त्ताओं के साथ उनका वही चूल्हे-चौके का संबंध है? क्या आपत्ति-विपत्ति-संकट में वे अपने कार्यकर्त्ताओं के साथ दृढ़तापूर्वक खड़े हैं? क्या विचारधारा के प्रति उनमें वही समर्पण व त्याग है, जो संगठन के आम कार्यकर्त्ताओं-स्वयंसेवकों में पाया जाता है? क्या ज़मीन पर काम करने वाले नेताओं-कार्यकर्त्ताओं का वैसा ही मान-सम्मान है, जैसा पहले होता था?
अनेकानेक कार्यकर्त्ताओं से सुना है, स्वयं अनुभव भी किया है, संगठन के शीर्ष पदों पर बैठे लोग कार्यकर्त्ताओं का फोन तक नहीं रिसीव करते। मिलने जाने पर कोई-न-कोई बहाना बनाकर टाल देते हैं। सत्ता के लिए विचारधारा से सब प्रकार के समझौते करते हैं, परंतु किसी काम के लिए कहने पर शुचिता एवं नैतिकता की घुट्टी पिलाते हैं। और तो और संगठन से भेजे गए संगठन-मंत्री तक फोन नहीं उठाते! किसी दल के लिए उसके कार्यकर्त्ता से महत्त्वपूर्ण भला और कौन हो सकता है! कोई भी योजना, रणनीति, अभियान या प्रचार कार्यकर्त्ताओं के त्याग, समर्पण व ध्येय से बढ़कर नहीं। कैसी भी व्यस्तता हो, उससे सहानुभूति-संवेदना के धरातल पर मिला जा सकता है, संग-साथ-सहयोग का प्रयास किया जा सकता है।
तमाम आयोगों-संस्थाओं-समितियों के अध्यक्षों-निदेशकों का अहंकार एवरेस्ट से भी ऊँचा है। उन्हें पिघलाने के लिए स्नेह-त्याग-समर्पण की नहीं, किसी और ही आँच की आवश्यकता होती है। वे नेपथ्य में गोटियाँ फिट करते रहते हैं। सरकार किसी की हो, पर तंत्र पर अवसरवादियों का जबरदस्त कब्ज़ा है। सुपात्र, सुयोग्य, समर्पित मुँह ताकते रह जाते हैं, और कल तक किसी और का छत्र उठाने वाले, चँवर डुलाने वाले बाजी मार ले जाते हैं। ये सारी स्थितियाँ कार्यकर्त्ताओं के भीतर टीस पैदा करती है, भीतर पिराती है। उसका मनोबल टूटता है। यद्यपि वह अपने भीतर से ही भाव बटोरकर सामर्थ्य भर सक्रिय रहता है।
चेहरा बने नेताओं को आज नहीं तो कल यह सोचना ही होगा कि वे चेहरा हैं, क्योंकि हजारों-लाखों ध्येयनिष्ठ-समर्पित लोग धरातल पर उन्हें थामे खड़े हैं। चेहरा बने नेताओं को यह सोचना ही होगा कि उनकी चमक-दमक के पीछे ज़मीन पर और भी लोगों का पसीना बहा है। चेहरा बने नेताओं को यह सोचना ही होगा कि यह संयोग है कि वे चेहरा हैं, अन्यथा वे जो आपकी जय बोल रहे हैं, वे जो आपकी जीत के लिए दिन-रात एक किए रहते हैं, वे भी संभावनाओं से भरे हुए थे, कदाचित आपसे भी बढ़कर।
पराजय आत्मावलोकन का अवसर देता है। सम्मान-सत्कार छोड़ भी दें तो कम-से-कम हर कार्यकर्त्ता अपने वरिष्ठों से मानवोचित व्यवहार डिजर्व करता है। जब आप कॉल नहीं उठाते, जब आप मिलने में आना-कानी करते हैं, जब आप सहयोग का आश्वासन देकर कार्यकर्त्ताओं को अनावश्यक दौड़ाते हैं, तो तय मानिए कि आप उसे मानवोचित गरिमा से भी वंचित करते हैं।
पूज्य सुदर्शन जी कहते थे कि राजनीति में आने के बाद चिंतन-मनन-आत्मावलोकन सब विस्मृत हो जाता है। फिर भी यदि संभव हो तो आत्मा का अवलोकन व आचरण का आकलन व्यक्तियों व दलों को सतत करते रहना चाहिए।
– *प्रणय_कुमार*
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दम्भ तो विधायक या सांसद नहीं एक आम भाजपा के पार्षद के भी सर चढ़ता है. प्रचारक संगठन मंत्री जी के तो क्या कहने! उनके मुख पर मुस्कान तक नहीं आती अपने लोगों को देखकर. मुझे याद है हमारे बचपन में हमारे मध्यप्रदेश में कांग्रेस का राज्य था, सामने तो कोई दल था ही नहीं. एक विधायक थे स्वर्गीय प्रभुदयाल गहलोत, मंत्री भी रहे. चूँकि वे विधायक थे तो विद्यालय आते थे पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को झंडा फहराने! पैदल घुमते थे, बस स्टैंड पर आकर बैठ जाते और सवारियों से गप्पे मारते. रास्ते में हम बच्चों को कहीं मिल जाते तो हम उन्हें प्रणाम करते. वे तुरंत रुकते, एक एक बच्चे को पूछते तुम किसके बच्चे हो? यह अपनत्व तब था ज़ब भाजपा के पते नहीं थे दूर दूर तक. आदिवासी बहुल राज्य में तब उनकी विजय तय थी तब भी.
हमारे पास भी थे, कुशा भाऊ, गोविंदाचार्य जी, विष्णुकांत शास्त्री और भाई महावीर जी जैसे लोग. कद्र नहीं की. अब सब एक विराट व्यक्तित्व के भरोसे! वह अनवरत कार्यरत हैं, बड़े भाग्य से ऐसा नेतृत्व मिलता है एक राष्ट्र को. लेकिन हर चुनाव में उसी से भीख मंगवाते हैं वोटों की, खुद कुछ भी करते नहीं. हर भाजपाई उसी के भरोसे कूद रहा है. क्या हमें याद आता है कि माननीय सांसद पिछली बार कब आए हमारे शहर में? अरे नेतागण! आप माननीय मोदी जी को कब तक आगे खड़े करेंगे? खुद काम न करेंगे तो कब तक जनता आशीर्वाद देगी?
– अंशुमन दलवी
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द्रोणाचार्य की पत्नी को इस बात का दुख था कि गुरु द्रोण अपने पुत्र अश्वत्थामा से भी अधिक निष्ठा से अर्जुन को धनुर्विद्या सिखाते थे। एक बार उन्होंने अपने स्वामी से इस कष्ट को बताया……। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि संसार में पुत्र से अधिक मोह किसी का नहीं होता परंतु एक गुरु के रूप में जब मैं अर्जुन की निष्ठा, परिश्रम एवं सीखने की भूख देखता हूं तो उसके प्रति मेरी गुरुता हिलोरे मारने लगती है….पितृभाव लघु होकर गुरुभाव प्रबल हो उठता है।
लेखक धर्म निभाते हुए सत्य लिखना पड़ रहा है, आम आदमी पार्टी की तमाम छोटी जीतों को छोटा न समझें। यह भविष्य का बड़ा संकट है भारतीय संस्कृति और हिंदू समाज के लिए।
जब बाहरी मुसलमान लुटेरे देश पर आक्रमण कर रहे थे कई हिंदू एवं मुसलमान सेनाओं में जो युद्ध होते थे उसके मनोविज्ञान का विश्लेषण भाजपा और आप आदमी पार्टी की तुलना करते लिख रहा हूं;
हिंदू सेनाओं में अपने राजा या सेनापति एक देवत्व का भाव होता था की वह जीतेगा तो हम जीतेंगे। आज की भाजपा में ऐसा ही भाव है की मोदी, योगी जीत रहे हैं तो हम भी जीत जायेंगे। दूसरी और तब के मुसलमानों और आज के समय के आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता सोचते हैं कि वह खुद जीतेंगे तो ही उनका नेता केजरीवाल जीतेगा।अपने नेता के प्रति देवत्व का भाव उनके अनुगामियों में निष्क्रियता भर देता है।
हिंदू अपने भगवान से अपने विजय की कामना करता था जबकि मुसलमान लड़ाके, लड़कर अपनी विजय को अपने अल्लाह को समर्पित करते थे। भाजपा और आम आदमी पार्टी में यही अंतर आज स्पष्ट है।
हिंदू सैनिक मैदान में अपने राजा को जिताने के लिए लड़ते थे जबकि मुसलमान का एक एक सैनिक यह सोचकर लड़ता था कि जीतने के बाद उसे भी लूट का माल और औरतें मिलेंगी। भाजपा और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता में यही अंतर है।
आज से 5 वर्ष में भाजपा की प्रतिद्वंदी के रूप में आम आदमी पार्टी ही रहेगी। यह पार्टी वामपंथ/ईसाइयत/इस्लाम/ खालिस्तान/देश विरोधी/पाकिस्तान परस्तों का एक कॉकटेल है जिससे भाजपा अपने सुस्त, मोदी नाम जप करने वाले श्रद्धावान भक्तों के बल पर नहीं पछाड़ पाएगी?
भाजपा में पुनराकलन और पुनरावलोकन की शक्ति होगी तभी वह मजबूत बनी रहेगी। भाजपा को भूलना नहीं चाहिए की विकल्पहीन राजनीति का जो लाभ उसे पीछे एक दशक में मिला है अब उसमें आम आदमी पार्टी की सेंध लग चुकी है।
– शिवेश प्रताप
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