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प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम ही हैं प्राकृतिक आपदाएं !

इन दिनों बिपरजॉय को लेकर देश में काफी चर्चा है। यह एक चक्रवात है। वैसे तो बिपरजॉय का अर्थ होता है ‘बहुत खुशी’। लेकिन यह खुशी लेकर नहीं आया है और इन दिनों यह एक बहुत बड़ी मुसीबत बनकर भारत के कई समुद्री इलाकों पर मंडरा रहा है। विशेषकर बिपरजॉय का असर भारत के गुजरात, महाराष्ट्र समेत बहुत से समुद्री इलाकों में देखने को मिल रहा है। इन दिनों मुंबई के मरीन ड्राइव पर समुद्र में रह-रहकर ऊंची -ऊंची लहरें देखने को मिल रही है। यह सब इस चक्रवात के कारण हो रहा है गुजरात में तो चक्रवात को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। वास्तव में बिपरजॉय है क्या ? यहां यह हमें जानने और समझने की जरूरत है। दरअसल, कुछ समय पहले ही दक्षिण-पूर्व अरब सागर के ऊपर एक डीप-डिप्रेशन बना था, जो अब भयंकर तूफान में तब्दील हो गया है। इसी चक्रवाती तूफान को बिपरजॉय तूफान नाम दिया गया है और यह नाम बांग्लादेश द्वारा सुझाया गया है। मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि बिपरजॉय अभी पोरबंदर से 290 किलोमीटर दूर है। वहीं जखाऊ बंदरगाह से ये 360 किलोमीटर दूर है। बताया जा रहा है कि राजस्थान में भी इस चक्रवाती तूफ़ान का असर देखने को मिलेगा। इस तूफान के कारण आने वाले कुछ समय में ही राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में कई जगह भारी बारिश हो सकती है और तेज हवाएं चल सकती हैं। हालांकि इस तूफान के चलते विभिन्न राज्य सरकारें और केंद्र सरकार एहतियात के लिए जरूरी और आवश्यक कदम उठा रही हैं और इसी क्रम में गुजरात में एनडीआरएफ की 12 टीमों को तैनात किया गया है। बताया जा रहा है कि तूफान के कारण 4 मीटर से 7 मीटर उंची लहरें उठ सकती है। इस संबंध में स्वयं केन्द्रीय उर्जामंत्री ने गुजरात, राजस्थान के तटीय क्षेत्र की समीक्षा की है‌।गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र तटीय क्षेत्रों में बिपोर्जॉय साइक्लोन का खतरा देखते हुए वेस्टर्न रेलवे ने संभावित क्षेत्रों के लिए आवश्यक सुरक्षा कदम उठाए हैं और 95 से अधिक ट्रेनों को कैंसिल कर दिया गया है, यह काबिलेतारिफ कदम है। देखा जाए तो यह एक आपदा ही है और आपदाएं जब आतीं हैं तो किसी को बताकर नहीं आतीं हैं, ये अन एक्सपेक्टेड होतीं हैं और जब कभी भी कोई आपदा आती है तो ये बिना किसी चेतावनियों के आतीं हैं और जान माल का काफी नुकसान करतीं हैं। आपदाओं के कारण मानवीय, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षति होती है और जब भी आपदाएं आतीं हैं तो इनसे उबरना इतना आसान नहीं होता है‌। अतः सरकारों के साथ हम सभी को इनके लिए पहले से ही पूर्ण तैयार, मुस्तैद रहना चाहिए। प्यास लगने पर कुआं खोदने से कभी भी प्यास नहीं बुझती है। अतः मनुष्य को इनसे निपटने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। यदि हम यहां आपदा की परिभाषा की बात करें तो सरल शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है, जो ऐसी ताकतों द्वारा घटित होती है, जो मानव के नियंत्रण में नहीं हैं। यह थोड़े समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध होते हैं तथा बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है। वास्तव में, आपदा एक प्राकृतिक अथवा मानवजनित घटना हैं, जिसका व्यापक परिणाम मानव क्षति हैं, अर्थात- आपदा उन अप्रत्याशित दुष्प्रभावी चरम घटनाओं एवं प्रकोपों को कहा जाता हैं, जो प्रकृतिजन्य या मानवजनित होतीं हैं तथा जिनकें द्वारा मानव, जीव-जंतु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती हैं। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में- आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र में हुए उस विध्वंस, अनिष्ट, विपत्ति या बेहद गंभीर घटना से है, जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटनावश अथवा लापरवाही से घटित होती है और जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में मानव जीवन की हानि होती है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि आपदा शब्द की उत्पत्ति इंग्लिश में डिजास्टर से हुई हैं, जो दो शब्दों ‘डेस’ तथा ‘एस्टर’ से मिलकर बना हैं, जिसमें ‘डेस’ का अर्थ अशुभ तथा ‘एस्टर’ का अर्थ सितारा होता हैं। इस प्रकार डिजास्टर या आपदा का अर्थ अशुभ सितारा होता है। तूफान, चक्रवात,

बाढ़ आना, भूस्खलन होना, आंधी आना, भूकंप आना, ज्वालामुखी फटना, ग्लेशियर पिघलना आदि प्राकृतिक आपदाएं हैं,जिन पर मानव का नियंत्रण नहीं होता है।आग लगना, वायु या सड़क दुर्घटना, परमाणु बम विस्फोट, भूजल विषाक्तता, रासायनिक आपदा, महामारी, औधोगिक दुर्घटनाएं मानव जनित होतीं हैं। भारत में जल एवं जलवायु से जुड़ी आपदाओं में क्रमशः चक्रवात, बवण्डर एवं तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, लू व शीतलहर, हिमस्खलन, सूखा, समुद्र-क्षरण, मेघ-गर्जन व बिजली का कड़कना, भूमि संबंधी आपदाओं में क्रमशः भूस्खलन, भूकंप, बांध का टूटना, खदान में आग, दुर्घटना संबंधी आपदाओं में क्रमशः जंगलों में आग लगना, शहरों में आग लगना, खदानों में पानी भरना, तेल का फैलाव, प्रमुख इमारतों का ढहना, एक साथ कई बम विस्फोट, बिजली से आग लगना, हवाई, सड़क एवं रेल दुर्घटनाएँ, जैविक आपदाओं में क्रमशः महामारियां तथा रासायनिक, औद्योगिक एवं परमाणु संबंधी आपदाएं, रासायनिक गैस का रिसाव, परमाणु बम गिरना आदि को शामिल किया जा सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से भारत एक संवेदनशील प्रदेश रहा है, यहां
बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्‍खलन की घटनाएँ आम हैं। भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्‍न तीव्रता के भूकंपों का खतरा हमेशा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्‍टेयर से अधिक क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। यहां सूखा,सुनामी व वनों में आग लगने की घटनाएं आम हैं। किसी भी आपदा को रोकना आसान काम कभी नहीं होता है, लेकिन इनका प्रबंधन जरूर किया जा सकता है। आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व किसी न किसी प्रकार की आपदाओं से प्रभावित हैं। बढ़ती आबादी के साथ हम कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं, प्रकृति के संरक्षण की ओर हमारा ध्यान कम ही है। हम विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन करने में लगे हैं और प्रकृति समय समय पर मानवजाति को अपना रौद्र रूप दिखाती है। हमें प्रकृति के संरक्षण की ओर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए,उसका संरक्षण हमारा परम कर्तव्य भी है, क्यों कि प्रकृति से ही हमें विभिन्न संसाधन, चीजें प्राप्त होतीं हैं। आपदाओं को रोकने के लिए संपूर्ण विश्व को एक दूसरे से हाथ मिलाकर समन्वय के साथ काम करना होगा। आपदाओं से निपटने के लिए हमारी पूर्व तैयारी होनी चाहिए। हमें पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए वनों की, धरती के समस्त संसाधनों की रक्षा करनी होगी, उनका समय रहते संरक्षण करना होगा । हालांकि हमारे देश में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ हमेशा आपदाओं से निपटने के लिए तैयार रहती हैं लेकिन हम सभी को सामूहिक रूप से आपदाओं से लड़ने के लिए सदैव तैयार और मुस्तैद रहना होगा। आज मानव पहाड़ों को काट रहा है, अंधाधुंध निर्माण कार्य कर रहा है, सुरंग,पुल , बांध बना रहा है। वनों को लगातार नष्ट करने में लगा है। पानी का असीमित दोहन कर रहा है, धरती की कोख को छलनी कर रहा है। हमें आज आपदाओं का समाधान ढ़ूढ़ने की आवश्यकता अत्यंत महत्ती है। प्रकृति से तालमेल और सांमजस्य बिठाकर विकास करने की जरूरत है।बिगड़े पर्यावरण का ही परिणाम है कि मौसम चक्र में बदलाव दिखने लगा है, ग्लेशियर पिघलने लगे हैं व नदियों के जल स्तर में लगातार कमी दर्ज की जा रही है।
भूस्खलन, भूकंप, सुनामी सभी प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा कहें जा सकते हैं। विकास की दौड़ में सीमाएं लांघने का ही परिणाम है कि पर्यावरण का स्वरूप आज एकदम से बदलने लगा है। हमारे धर्म ग्रंथों में तो सदा सदा से ही प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रकृति पूजन का नियम बताये गये हैं तथा पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि और वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं, लेकिन आज हम प्रकृति के साथ अपने रिश्तों को लगातार भूल रहे हैं।हम अपने स्वार्थों,लालच की सीमाएं लांघ चुके हैं। अंग्रेजी के महान कवि व प्रकृति कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने कहा है -‘नेचर डिड नेवर बीट्रे द हर्ट दैट लव्ड हर।’ यानी कि प्रकृति कभी भी उससे विश्वासघात नहीं करती है जो कि उससे प्यार करता है। हमें प्रकृति का हर हाल में संरक्षण करना होगा तभी हम प्राकृतिक आपदाओं से बच पाएंगे अन्यथा मानवजाति का विनाश लगभग लगभग तय ही है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार पटियाला पंजाब।

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