संपादकीय प्रकाशन के संदर्भ में
महिला सशक्तिकरण की दिशा में अड़ंगे लगा रहे है राजनीतिक दल
निखिल अरविन्दु
@NikhilArvindu
“खेत खलियान से लेकर, देश की सीमाओं तक
गगन से लेकर, समुद्री नौकाओं तक
है अब ऐसा कोई क्षेत्र नही
जहां आज महिलाएं नही”
भारत की महिलाएं अब देश ही नहीं विदेश में भी बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं, जहां भी महिलाओं को मौका मिलता है वहां भी अपना बेहतर प्रदर्शन दे रही हैं। महिला सशक्तिकरण को ले करके एक बार फिर से भारत में चर्चाओं का बाजार गर्म है। वजह है विगत दिनों भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा महिला मैच की फीस पुरुषों की मैच फीस के बराबर कर दी है। जो की एक सराहनीय कदम है। एक शब्दों में कहें तो भारत की संस्थाएं महिला सशक्तिकरण को क्रियान्वित करने का काम कर रही है, उसे धार देने का काम कर रही है, उसे मुख्यधारा में लाने का काम कर रही हैं। लेकिन बात जब राजनीतिक दलों की आती है या फिर चुनावी मैदान की आती है तो यहां महिलाओं की भूमिका बहुत कम नजर आती है। राजनीतिक पार्टियां महिला सशक्तिकरण को लेकर जितना उग्र होते है, क्या वो महिलाओं को पुरुषों के भांति समान अवसर दिए जाने के मुद्दे पर उग्र होते है। आपने देखा होगा कि नारी के सम्मान में फलाने पार्टियां मैदान में कहती हुई नजर आती हैं, लेकिन अधिकांश चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को मौका देने के मामले में 10 फीसदी का आंकड़ा छूने में भी हांफती नजर आती है।
वर्तमान समय में दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। गुजरात राज्य विधानसभा चुनाव के तारीख की घोषणा अभी तक नहीं हुई है लेकिन हिमाचल प्रदेश में आगामी 12 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं और 8 दिसंबर को चुनाव परिणाम सामने आएंगे। हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों पर इस बार कुल 413 प्रत्याशी मैदान में हैं। कुल 413 प्रत्याशियों में से अगर आप महिला प्रत्याशियों की स्थिति देखेंगे तो भारतीय जनता पार्टी ने 6, कांग्रेस ने 3 और आम आदमी पार्टी ने कुल 5 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। वही 5 महिलाएं निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं। कुल मिलाकर 19 महिलाएं इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। पिछली बार के विधानसभा में महिला प्रत्याशियों संख्या 18 थी। इस तरह से देखेंगे तो मुख्य राजनीतिक दल हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 10% सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उतार पाने में हांफते नजर आए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 9% सीटों पर कांग्रेस ने 4% सीटों पर आम आदमी पार्टी ने 7% सीटों पर महिला प्रत्याशियों को मौका दिया है। 4% सीटों पर महिलाओं को मौका देने वाली कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में “लड़की हूं लड़ सकती हुं” नारे को प्रयोग करते हुए 50 फीसदी सीटों पर महिला प्रत्याशियों को मौका दिया था। लेकिन तमाम गड़बड़ियों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच बीच कांग्रेस का यह मॉडल बुरी तरह से विफल हो गया था। शायद इसीलिए कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस पर अमल करना जरूरी नही समझा।
लेकिन हिमाचल प्रदेश में महिला प्रत्याशियों को मौके दिए जाने को लेकर जो स्थिति सामने आई है। उससे यह सवाल उठता है क्या हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भूमिका निर्णायक नहीं मानी जाती है? तमाम रिपोर्टों को आधार मानकर औसत रूप से देखा जाए तो हिमांचल प्रदेश के करीब 16 विधानसभा सीटों पर महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में होती हैं। यानी हार जीत को लेकर फैसला महिला वोटर ही करती हैं। राज्य की कुल आबादी में 49 फ़ीसदी हिस्सा महिलाओं का है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 55 लाख 92 हजार 828 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। जिसमें से पुरुष मतदाताओं की संख्या 28 लाख 54 हजार 945 है और महिला मतदाताओं की संख्या 27 लाख 37 हजार 845 है। यानी कि महिला मतदाताओं से पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 17 हजार 100 अधिक है। अब महिला मतदाताओं के मुकाबले महिला प्रत्याशियों के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो जमीन और आसमान का फर्क साफ नजर आता है। ऐसे में राजनीतिक दलों से क्या उम्मीद की जा सकती है? जो राजनीतिक दल महिला मुद्दों पर जोर शोर से अपनी आवाज तो उठाते हैं लेकिन बात जब पुरुषों के बराबर महिलाओं को मौका देने की हो तो चूहों की तरह बिलों में घुसे हुए नजर आते हैं।
जरूरत है भारत के संस्थानों की ही तरह राजनीतिक दल भी पुरुषों की भांति महिलाओं को समान अवसर देने का काम करें। जिससे महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को शीघ्रता से हासिल किया जा सके और वैश्विक स्तर महिला सशक्तिकरण के मामले में भारत की एक सुनहरी तस्वीर को मूर्त रूप दिया जा सके।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है और जुड़ापुर, जौनपुर के मूल निवासी है।)