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गीता प्रैस को पुरस्कार पर राजनीति ठीक नहीं !

हाल ही में गीता प्रेस गोरखपुर गांधी शांति पुरस्कार मिलने की वजह से चर्चा में है। भारत सरकार ने समाज की सेवा करने के लिए गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का निर्णय लिया है, यह बहुत ही काबिले तारिफ कदम है क्यों कि आजादी के बाद से गीता प्रेस हमारे देश की सनातन परंपराओं, हमारी संस्कृति की गरिमा को बनाए रखते हुए लगातार विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर बहुत ही शानदार कार्य कर रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में हमारे देश के संस्कृति मंत्रालय ने यह घोषणा की है कि 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को ” अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान” के लिए दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस पुरस्कार में एक करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्तम पारंपरिक हस्तशिल्प/हथकरघा वस्तु शामिल किया जाता है। पाठकों को यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि गांधी शांति पुरस्कार भारत सरकार द्वारा 1995 में महात्मा गांधी की 125 वीं जयंती के अवसर पर महात्मा गांधी द्वारा समर्थित आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है। यह पुरस्कार राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों के लिए खुला है। वास्तव में, विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार गीता प्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर शहर के गीता प्रेस रोड क्षेत्र में स्थित एक भवन में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है।जानकारी देना चाहूंगा कि गीता प्रेस भारत के सबसे पुराने प्रकाशनों में से एक है और शायद ही इस देश का कोई व्यक्ति होगा, जिसे इस प्रतिष्ठित प्रेस के बारे में जानकारी नहीं होगी। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि इसकी स्थापना समाजसेवी संस्थापक जयदयाल गोयन्दका ने वर्ष 1923 में 29 अप्रैल के दिन कोलकाता में की थी। घनश्याम दास गोयनका और साहित्यकार हनुमान दास पोद्दार का गीता प्रेस की स्थापना में मुख्य योगदान रहा है। वर्ष 2023 में गीता प्रेस के 100 साल पूरे हो गए हैं। गीता प्रैस प्रकाशन की खासियत यह है कि यह धार्मिक पुस्तकों को बेहद कम दाम पर उपलब्ध कराती है, जिससे इन पुस्तकों की पहुंच देश के घर-घर, देश के कोने कोने तक आज सुनिश्चित हो सकी है। सच तो यह है कि आज गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों की दुनिया की सबसे बड़ी पब्लिशर है। अभी इसके विक्रय केंद्र भारत और नेपाल में कई जगहों पर हैं। भारत के विभिन्न स्थानों यहां तक कि विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर भी गीता प्रैस की पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं और इन पुस्तकों के रेट इतने अधिक वाजिब हैं कि कोई भी इनके रेट देखकर हैरान रह जाता है। कम रेट में अच्छी छपाई व बढ़िया क्वालिटी के पेपर पर पुस्तकें उपलब्ध कराना गीता प्रैस की विशेषता रही है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि यह एक गैर-लाभकारी प्रकाशन है और यही कारण है कि गीता प्रेस ने गांधी शांति पुरस्कार के साथ मिलने वाले 1 करोड़ रुपये की बड़ी राशि को भी लेने से मना कर दिया है। प्रेस का इस संबंध में यह कहना है कि दान नहीं लेना उसकी नीति का एक हिस्सा है। बताया गया है कि धनराशि नहीं लेने का निर्णय गीता प्रैस की परंपरा और सिद्धांतों के निर्वहन क्रम में आपसी सहमति से लिया गया निर्णय है। गीता प्रैस के बारे में यह बात सभी जानते हैं कि गीता प्रैस कोई अनुदान,चंदा या पुरस्कार की धनराशि नहीं लेती, क्यों कि गीता प्रैस का यह मानना है कि चंदा या अनुदान देने वाली संस्थाओं का जीवन सुदीर्घ नहीं होता है। इस संबंध में जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ समय पहले कर्मचारियों के आंदोलन के चलते कुछ समय के लिए प्रैस को बंद करना पड़ा था लेकिन उस समय प्रैस ने अपने बैंक खाते तक को भी मात्र इसलिए बंद कर दिया था ताकि कोई आर्थिक सहायता या चंदा खाते में न भेज दें। बहुत से स्थानों से इसके लिए अनुरोध भी किया गया था लेकिन उस आग्रह को सम्मान के साथ अस्वीकार कर दिया गया था और यह परंपरा गीता प्रैस में आज भी कायम है। यह हमारे देश के लिए अत्यंत गौरव की बात है कि अपने 100 सालों के इतिहास में गीता प्रेस ने 41.7 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन किया है, जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी संख्या है। जानकारी मिलती है कि गीता प्रेस के पास 3000 से ज्यादा धार्मिक व सामाजिक महत्व के पुस्तकों का विशाल संग्रह है, जिनका प्रकाशन 14 विभिन्न भाषाओं में किया जाता है। गीता प्रैस ने अब तक भागवद गीता की 16.21 करोड़ कॉपी की बिक्री की है।इसके बाद 11.73 करोड़ कॉपी के आंकड़े के साथ गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस और हनुमान चालीसा का स्थान है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, गीता प्रेस की सालाना बिक्री 2016 में 39 करोड़ रुपये रही, जो 2021 में 78 करोड़ रुपये पर पहुंच गई. 2022 में गीता प्रेस की बिक्री 100 करोड़ रुपये से ज्यादा रहने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि गीता प्रेस की वर्तमान में देशभर में 20 शाखाएं हैं और यह हर महीने लगभग 500 टन पेपर छापते हैं। इस प्रेस में रोजाना छोटी-बड़ी पुस्तकें मिलाकर कुल 70 हजार किताबें पब्लिश होती हैं। इसके अलावा वेबसाइट पर 100 से ज्यादा ऐसी किताबें हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति मुफ्त में डाउनलोड कर पढ़ सकता है। गीता प्रेस ने पिछले साल यानी 2022 में लगभग 87 करोड़ रुपए की किताबें बिकीं थीं और इस साल अब तक 111 करोड़ रुपए की किताबें बिक चुकी हैं।गीता प्रेस में प्रकाशित महिला और बालोपयोगी साहित्य की 10.30 करोड़ प्रतियों पुस्तकों की बिक्री हो चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि गीता प्रेस की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण की हर माह 2.30 लाख प्रतियां बिकती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार हर रोज 50,000 से ज्यादा किताबें बेची जाती हैं। दुनिया में किसी भी पब्लिशिंग हाउस की इतनी पुस्तकें नहीं बिकती हैं। धार्मिक किताबों में आज की तारीख में सबसे ज्यादा माँग रामचरित मानस की है। आंकड़े बताते हैं कि  कुल कारोबार में 35 फीसदी योगदान रामचरित मानस का है। इसके बाद 20 से 25 प्रतिशत का योगदान भगवद्गीता की बिक्री का है। यहां रूचिकर तथ्य यह है कि गीता प्रेस की पुस्तकों में हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू होती है। गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा कल्याण (हिन्दी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है। सच तो यह है कि गीता प्रेस को लोकप्रिय बनाने में भागवद गीता, रामचरित मानस और हनुमान चालीसा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। बेहतरीन छपाई, आंखों को सुहाना लगने वाला मोटा कलर्ड फोंट, काग़ज़ की अच्छी क्वालिटी व पुस्तकों का सस्ता होना गीता प्रैस की विशेषता है। कोई भी आयु वर्ग का व्यक्ति गीता प्रैस की पुस्तकों को आसानी से, सहजता से पढ़ सकता है, क्यों कि इसका फोंट साइज वाकई बहुत ही शानदार व बेहतरीन बनाया गया है और धार्मिक पुस्तकों में छपे चित्रों का तो कहना ही क्या है, ये बहुत ही सुंदर और बेहतरीन हैं। गीता प्रेस गोरखपुर के पत्रों और उसकी कल्याण पत्रिका के घर-घर पहुंचने का कारण यह है कि यह प्रैस केवल लाभ- हानि के बिना ही पुस्तकों की बिक्री करती है। शायद यही कारण भी है कि आज घर-घर में हनुमान चालीसा, गीता और रामायण की प्रतियां आसानी से मिल जाती हैं। लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि गीता प्रेस गोरखपुर अनावश्यक राजनीतिक विवाद में घिरता नजर आ रहा है।यह संस्था पिछले सौ साल से भारत की सनातनी प्रथा का परिष्कार अपने सस्ते प्रकाशनों से कर रही है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शांति एवं सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रैस के योगदान को याद किया और गीता प्रैस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई। वास्तव में,गीता प्रैस के योगदान को देखते हुए इसे गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा बहुत समीचीन लगती है। भारत की आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इसने अपना सांस्कृतिक प्रसार जारी रखा। गांधी जी और उनके दर्शन को एक गहरी पहचान देने में गीता प्रैस का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत में जहां विभिन्न प्रकाशक विज्ञापनों के लिए लालायित और आतुर रहते हैं, वहीं गीता प्रैस की पत्रिका कल्याण बिना विज्ञापन के छपती है। सच तो यह है कि भारतीय दर्शन का समर्थन इसके हर प्रकाशन में साफ नजर आता है। कितनी बड़ी बात है कि संस्था ने राजस्व सृजन के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों में विज्ञापन पर भरोसा नहीं किया है। यहां यह भी बताता चलूं कि गीता प्रेस को मिलने वाला यह पुरस्कार पहला नहीं है। इससे पहले भी गीता प्रैस को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। गीता प्रैस को पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर अब सियासत शुरू हो गई है, जो शर्मनाक है। एक राजनीतिक दल के नेता द्वारा अब यह बयान दिया गया है कि  गीता प्रेस को यह सम्मान देने का फैसला सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। वास्तव में, सम्मान की आलोचनाओं को किसी भी हाल व परिस्थितियों में ठीक नहीं कहा जा सकता है। गीता प्रैस भारत का गौरव है और यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं को नित नवीन ऊंचाइयों पर ले जाने का अभूतपूर्व कार्य कर रही है। यहां यक्ष सवाल यह उठता है कि आखिर गीता प्रैस को पुरस्कार दिया जाना भला धर्मनिरपेक्षता की नीति के विरुद्ध कैसे हो सकता है ? संस्था सदा सदा से गांधीवादी आदर्शों पर चल रही है और यदि ऐसी संस्था का अभिनंदन होता है, उसे पुरस्कृत किया जाता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।गीता प्रेस ने युगों से इस देश के संस्कारों, संस्कृति और देश की समावेशी सोच को सुरक्षित रखा है, इसको पुरस्कार दिए जाने पर राजनीति करना उचित नहीं है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर कालमिस्ट व युवा साहित्यकार उत्तराखंड।

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