आपदा प्रबंधन के लिए कुछ नया करना होगा
*रजनीश कपूर
किसी भी तरह की आपातस्थिति में आम नागरिक सीधे 100 नम्बर मिलाने की सोचता है। परंतु क्या
हमारे देश का आपदा प्रबंधन इस कदर व्यवस्थित है कि किसी भी आपातस्थिति से कुशलतापूर्वक निपट
सके? इसका जवाब आपको आसानी से नहीं मिल पाएगा। आपातस्थिति में तंत्र की अव्यवस्था के चलते
नागरिकों को जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उनसे शायद हम सबको भविष्य के लिए सबक
सीखने की आवश्यकता है।
मिसाल के तौर पर दिल्ली जैसे शहर में रहने वालों को शायद यह नहीं पता कि दिल्ली में कितने दमकल
केंद्र हैं। दिल्ली अग्निशमन सेवा के अनुसार दिल्ली में 64 दमकल केंद्र हैं। प्रत्येक दमकल केंद्र का एक तय
कार्यक्षेत्र और सीमा होती है। आग लगने के स्थिति में उसी सीमा के भीतर ही दमकल की गाड़ियाँ
घटनास्थल पर जाती हैं। दिल्ली वालों को शायद यह भी नहीं पता कि सितम्बर 2019 से समस्त भारत के
लिए आपातकालीन सेवा का एक ही नम्बर 112 शुरू किया गया है। इस सेवा को आपातकालीन
प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) कहा जाता है। यदि आपको पुलिस, अग्नि शमन, स्वास्थ्य और
अन्य सेवाओं से आपातकालीन सहायता की आवश्यकता है, तो आपको सदियों से चले आ रहे 100, 101,
102 या 108 नम्बरों के बजाय केवल 112 नम्बर ही मिलाना होगा। भारत सरकार द्वारा यह एक अच्छी
पहल कही जा सकती है। परंतु इस सेवा का जितना प्रचार होना चाहिए वो शायद नहीं हुआ।
आज भी आपातस्थिति में हड़बड़ाहट में मुंह से यही निकलता है कि 100 नम्बर मिलाओ और पुलिस
बुलाओ। ईआरएसएस सेवा शुरू होने के दो सालों के बाद भी यदि हम वही पुराने 100 नम्बर को याद कर
मिला देते हैं तो मिलाई गई कॉल पर यह संदेश बजता है कि आपकी कॉल को ईआरएसएस सेवा 112 से
जोड़ी जा रही है। इस सब में थोड़ा समय बर्बाद ज़रूर होता है परंतु दिल्ली जैसे महानगर में पुलिस की
पीसीआर गाड़ी तुरंत आ जाती है।
गाड़ी पहुँचने से पहले आपके मोबाइल पर एक संदेश भी आता है जो आपके द्वारा की गई कॉल की पुष्टि
करता है और आपके पास पहुँचने वाली गाड़ी का विवरण भी दे देता है। पीसीआर की गाड़ी में तैनात
सम्बंधित अधिकारी आपको फ़ोन कर बात भी करता है और समस्या की जानकारी लेता है। जानकारी के
अनुसार वो उचित कार्यवाही प्रारम्भ भी कर देता है। जैसे ऐम्बुलेंस या दमकल की गाड़ी को घटनास्थल
पर रवाना करना। इसे दिल्ली पुलिस की दक्षता माना जा सकता है।
ईआरएसएस सेवा को चालू करने वाले भारत सरकार के गृह मंत्रालय को इन सुझावों पर भी ध्यान देना
चाहिए। जैसे देश के सभी राज्यों में आपको पीसीआर की गाड़ियाँ कई चिन्हित स्थानों पर तैनात किया
जाता है, उसी प्रकार क्या दमकल की छोटी गाड़ियों को तैनात नहीं किया जा सकता? आपात स्थिति में
यदि ऐसी दमकल की छोटी गाड़ियाँ तैनात हों तो आग लगने की स्तिथि में वो बड़ी गाड़ियों की तुलना में
घटना स्थल पर जल्दी पहुँच सकती हैं। घटना स्थल पर पहुँच कर स्तिथि का जायज़ा लेने के बाद
आवश्यकता अनुसार दमकल की बड़ी गाड़ी को बुलाया जा सकता है। तब तक उस गाड़ी में तैनात
अग्निशमन सेवा के कर्मी आग पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर सकते हैं। इन छोटे दमकल वाहनों में छोटे
पानी टैंकर के साथ-साथ प्राथमिक रोकथाम के वो सभी उपकरण भी होने चाहिए। इस छोटे प्रयास से
बड़ा नुक़सान टाला जा सकता है। दमकल की बड़ी गाड़ी के ट्राफ़िक में फँसने की वजह से हो रही देरी से
पहले ही बचाव कार्य शुरू किए जा सकते हैं।
देश भर में दिल्ली के चाँदनी चौक जैसे तंग गलियों के बाज़ारों की संख्या अनगिनत हैं। आप कल्पना
कीजिए कि तंग गलियों में यदि कहीं आग लगती है तो उससे निपटने के लिए बड़ी गाड़ी कैसे पहुँच
पाएगी? यदि हर ऐसे बाज़ार के पास एक छोटी गाड़ी की तैनाती हो तो प्राथमिक बचाव कार्य शुरू किए
जा सकते हैं। ऐसा करने से आग को फैलने से भी रोका जा सकता है और बड़े नुक़सान को रोका जा सकता
है। तंग गलियों वाले बाज़ार हों या ऐसे रिहायशी मोहल्ले, जनता का सहयोग तुरंत मिल जाता है। परंतु
जनता से सही ढंग से सहयोग लेने के लिए एक अनुभवी अग्निशमन कर्मी 100 कर्मियों के बराबर होता है।
ऐसा कर्मी जनता के सहयोग को सही दिशा में मोड़ने की क्षमता भी रखता है।
इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं में भी आपात स्थिति से निपटने के लिए छोटे-छोटे दस्तों की तैनाती से स्वास्थ्य
संबंधित बड़ी आपदा से काफ़ी हद तक बचाव किया जा सकता है। ऐसी दुर्घटना के शिकार लोगों की जान
भी बचाई जा सकती है।
अभी तक ऐसी तैनाती केवल पुलिस के वाहनों की देखी जा सकती है। अन्य आपात स्तिथि से निपटने वाले
वाहन हमें किसी बड़े आयोजनों पर ही दिखाई देते हैं जिसके लिए उन्हें अफ़सरशाही के लालफ़ीते से
गुजरना पड़ता है। यदि ऐसा प्रयोग सफल हो जाए तो कितने बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार मिलेगा
इसका अनुमान आप खुद लगा सकते हैं। ज़रूरत है तो एक ऐसी सोच की जो सुझावों को जनता के हित में
ले और उन पर अनुभवी ढंग से अमल करे।