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Tag: जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

भारत की प्रतिक्रिया का और विस्तार ज़रूरी

भारत की प्रतिक्रिया का और विस्तार ज़रूरी

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भारत की प्रतिक्रिया का और विस्तार ज़रूरी पहलगाम आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में भारत की मोदी सरकार ने पाकिस्तान के विरुद्ध कुछ कठोर कदम उठाए हैं, राजनयिक संबंध लगभग तोड़ दिए गए हैं और 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि तुरंत प्रभाव से स्थगित कर दी गई है। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। अब पाकिस्तान वालों को भारत आने का, किसी भी तरह का, वीजा नहीं दिया जाएगा। सार्क देश होने के कारण जो छूट थी, उसे भी रद्द कर दिया गया है। राजनयिकों को भारत छोडऩे को मात्र एक सप्ताह का वक्त दिया गया है। नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान के उच्चायोग में रक्षा, नौसेना, वायुसेना, थलसेना आदि के सलाहकारों को भी 48 घंटे में भारत छोडऩे के आदेश दे दिए गए हैं। अटारी-वाघा सीमा चेकपोस्ट को बंद कर दिया गया है। इस रास्ते से भारत में प्रवेश करने वाले पाकिस्तानी एक मई से पहले लौट जाएं। पाकिस्तान उच्चायोग में 55 कर्मचारियों...
पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

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पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी-ललित गर्ग- पाकिस्तान की पहचान एक ऐसे देश के रूप में है जो कमजोर है, असफल है, कर्ज में डूबा है, अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने में नाकाम है, आतंक की नर्सरी एवं प्रयोगशाला है, ढहती अर्थव्यवस्था है, इन बड़ी नाकामियों को ढ़कने के लिये ही वह कश्मीर का राग अलापता रहा है, वहां के नेता एवं सैन्य अधिकारी तमाम जर्जरताओं एवं निराशाओं के बावजूद आज भी हिन्दू और भारत विरोध को ढ़ाल बनाकर ही अपनी सत्ता मजबूत करते रहे हैं। लेकिन अब उसका चेहरा इतना बदनुमा बन गया है कि उसने धर्म के नाम पर निर्दोष एवं बेगुनाह लोगों का खून बहाना शुरु कर दिया है। भारत ही नहीं, दुनिया में आतंक को फैलाने में अपनी जमीन, संसाधन एवं ताकत का प्रयोग खुलेआम करना शुरु कर दिया है, यह उसकी बौखलाहट ही है, यह उसकी निराशा ही है, यह उसकी विकृत सोच ही है। इस घिनौनी सोच का पर्दापाश पहलगाम क...
रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग

रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग

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रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग भारतीय मिसाइलों व रक्षा उपकरणों का बज रहा दुनिया में डंकामृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सर्वांगीण विकास के पथ पर बढ़ता हुआ आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। रक्षा क्षेत्र भी इस धारा से अछूता नहीं है इसमें भी अहम और व्यापक परिवर्तन दिख रहा है । 2014 के पूर्व मात्र एक दशक पूर्व तक भारत की पहचान रक्षा उपकरणों के खरीदार की हुआ करती थी। रक्षा खरीद में घोटालों के समाचार आना सामान्य बात थी फिर भी ख़रीदे गए हथियारों की समय पर आपूर्ति नहीं होती थी। मोदी जी के नेतृत्व में ये परिस्थितियाँ तीव्रता के साथ बदल रही हैं। अब भारत जल, थल और नभ तीनों सेनाओं के सभी अंगों को सुदृढ़ करने के लिए दिन-रात प्रयास कर रहा है जिससे रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता और बल दोनों निरंतर बढ़ रहे हैं। भारत के रक्षा वैज्ञानिक निरंतर शोध में में व्यस्त ...
उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

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उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय  उप राष्ट्रपति जी ने सुप्रीम कोर्ट को बहुत कायदे से धोया है.. पूरा पढ़िए और समझिए कि कैसे उनको उनकी औक़ात दिखाई। 1. "आप राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते!" – राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, कोई अदालत का क्लर्क नहीं। 2. "अनुच्छेद 145(3) कहता है – संवैधानिक व्याख्या के लिए कम-से-कम 5 जज!" – फिर यह तीन जजों की फौज संविधान पर भाषण क्यों दे रही है? 3. "राष्ट्रपति को परमादेश देना सीधे-सीधे संविधान का अपमान है!" – क्या अब जज राष्ट्रपति से ऊपर हो गए? 4. "अनुच्छेद 142 अब 24×7 परमाणु मिसाइल बन गया है!" – हर चीज़ में 142 लगाओ और फैसला सुना दो, यही नया खेल है क्या? सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति...
देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

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देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए आँकड़े सामने है कि बीते साल विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। इसमें भी अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में 36 और कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या में 34 प्रतिशत की कमी आई है। यही स्थिति ब्रिटेन की भी है। आंकड़े वर्ष 2024 के हैं। निश्चित तौर पर जब ट्रंप काल में उखाड़-पछाड़ के दौर के आंकड़े सामने आएंगे, तो वे ज्यादा चौंकाने वाले होंगे। एक समय था कि छात्रों में परदेस जाकर पढ़ाई करने का जुनून उफान पर था। हर साल मां-बाप खून-पसीने की कमाई से और अपना पेट काटकर बच्चों को पढ़ने के लिये विदेश भेज रहे थे। कहीं-कहीं तो खेत बेचकर और घर गिरवी रखकर बच्चों को विदेश पढ़ाने के लिए भेजने के मामले भी प्रकाश में आए। देश में बैंकों से एजुकेशन लोन मिलने की सुविधा ने भी छात्रों की विदेश यात्रा को सुगम बनाया। हर साल लाखों छात्र...
भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज

भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज

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भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज-ललित गर्ग- प्रत्येक वर्ष हम भगवान महावीर की जन्म-जयन्ती मनाते हैं। महावीर जयन्ती मनाने का अर्थ है महावीर के उपदेशों को जीवन में धारण करने के लिये संकल्पित होना, महावीर बनने की तैयारी करते हुए देश एवं दुनिया में अहिंसा, शांति, करूणा, प्रेम, सह-जीवन को साकार करना। शांतिपपूर्ण, उन्नत एवं संतुलित समाज निर्माण के लिए जरूरी है महावीर के बताये मार्ग पर चलना। सफल एवं सार्थक जीवन के लिये महावीर-सी गुणात्मकता को जन-जन में स्थापित करना। कोरा उपदेश तक महावीर को सीमित न बनाएं, बल्कि महावीर को जीवन का हिस्सा बनाएं, जीवन में ढालें। भगवान महावीर एक युग प्रवर्तक, कालजयी महापुरुष थे। उन्होंने एक क्रांति द्रष्टा के रूप में मानवजाति के हृदय में नवीन चेतना का संचार अपने जीवन-अनुभवों, उपदेशों, शिक्षा और सिद्धांतों के द्वारा किया। भगवान महावीर सामाजिक क्रांति के शिखर पुर...
वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

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वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्तिमृत्युंजय दीक्षितस्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसदीय इतिहास में हुई सबसे लंबी बहस के बाद ऐतिहासिक वक्फ़ संशोधन विधेयक -2025 पारित हुआ, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और अधिसूचना जारी होने के बाद अब यह कानून बन चुका है। कुछ लोग इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं जहाँ केंद्र सरकार ने एक कैविएट दाखिल करते हुए कहा है कि बिना उसकी बात सुने कोर्ट कोई फैसला न सुनाए। वक्फ़ संशोधन कानून बन जाने के बाद भी उस पर पक्ष और विपक्ष की राजनीति का दौर जारी है। संसद में बहस व संसदीय गणित में हार जाने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण में संलिप्त ऐसे -ऐसे संगठन याचिकाएं लेकर जा रहे हैं जो राष्ट्रद्रोह के अंतर्गत प्रतिबंधित हैं या उनके खिलाफ राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। यह समाचार पुष्ट होने के साथ ही कि सरकार संसद के बजट सत्र में ही वक्फ़ विधेयक पारित...
(अंबेडकर जयंती विशेष)

(अंबेडकर जयंती विशेष)

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(अंबेडकर जयंती विशेष) "लोकतांत्रिक भारत: हमारा कर्तव्य, हमारी जिम्मेवारी"जनतंत्र की जान: सजग नागरिक और सतत भागीदारी लोकतंत्र केवल अधिकारों का मंच नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का साझेधार भी है। भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका केवल वोट देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्हें न्याय, समानता, संवाद, स्वच्छता, कर भुगतान, और संस्थाओं के प्रति सम्मान जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। लोकतंत्र की मजबूती सत्ता पर निगरानी, सूचनाओं की सत्यता, और सामाजिक सहभागिता से आती है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं, तब लोकतंत्र केवल एक दिखावटी ढांचा रह जाता है। अतः लोकतंत्र को जीवित, सशक्त और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए हर नागरिक को आत्मनिरीक्षण करते हुए यह पूछना होगा: “क्या मैं केवल अधिकार चाहता हूँ या जिम्मेदार भी हूँ?” ...
इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

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राकेश दुबे इन्हें तो कठोर सजा दीजिए निश्चित ही उन लोगों को कठोर सजा मिलना चाहिए। जिनकी लापरवाही से किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज बर्बाद हो गई। सोचिए जिस देश में करोड़ों लोग कुपोषण व खाद्यान्न की किल्लत से जूझ रहे हों, उसके सिर्फ एक राज्य में ही, चार साल में 8191 मीट्रिक टन अनाज सड़ जाए, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। हमारा गैर-जिम्मेदार तंत्र व अदूरदर्शी नेतृत्व इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकता। ये लापरवाही की अंतहीन शृंखला की दुर्भाग्यपूर्ण परिणति है। किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज का यूं बर्बाद होना बताता है कि हमारे तंत्र में प्रबंधन से जुड़े अधिकारी कितने संवेदनहीन और गैर-जिम्मेदार हैं। चिंता की बात यह है कि पंजाब में साल-दर-साल बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा लगातार बढ़ती ही जा रही है। यानी ...
जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

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प्रियंका सौरभ जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट हाल ही में एक प्रमुख अखबार की हेडलाइन ने ध्यान खींचा—“शहर में बंदरों और कुत्तों का आतंक।” यह वाक्य पढ़ते ही एक गहरी असहजता महसूस हुई। शायद इसलिए नहीं कि खबर गलत थी, बल्कि इसलिए कि वह अधूरी थी। सवाल यह नहीं है कि जानवर शहरों में क्यों आ गए, बल्कि यह है कि वे जंगलों से क्यों चले आए? हम जिस "आतंक" की बात कर रहे हैं, वह वास्तव में प्रकृति का प्रतिवाद है—उस दोहरी मार का नतीजा जो हमने जंगलों और वन्यजीवों पर एक लंबे अरसे से चलाया है। विकास के नाम पर हमने जंगलों को काटा, नदियों को मोड़ा, और पहाड़ों को तोड़ा। वन्यजीवों के लिए न तो रहने की जगह छोड़ी, न भोजन का साधन। जब उनका प्राकृतिक निवास उजड़ गया, तब वे हमारी बस्तियों की ओर बढ़े। और अब, जब वे हमारी छतों, गलियों और पार्कों में दिखते हैं, तो हम उन्हें ‘आतंकी’ करार देते हैं। यह नजरिय...