विकलांग लड़कियां और महिलायें अन्य महिलाओं की अपेक्षा कई गुना अधिक सामाजिक और आर्थिक असमानता झेलती हैं। महिला हिंसा का खतरा भी विकलांग महिला के लिए 4 गुना अधिक है, परंतु हिंसा उपरांत न्यायिक सहायता और सहयोग मिलने की संभावना अत्यंत संकीर्ण।
आबिया अकरम जो विकलांगता न्याय के लिए जुझारू कार्यकर्ता हैं और बीबीसी की 100 सबसे प्रभावशाली महिला नेत्री के रूप में चिन्हित हो चुकी हैं, ने “शी एंड राइट्स” सत्र में अपने व्याख्यान में कहा कि अक्सर उन्हें अपने लिए व्हील चेयर सुलभ आवागमन के रास्ते नहीं मिल पाते हैं जिससे कि वह विभिन्न कार्यालयों (जिनमें पुलिस स्टेशन भी शामिल है), राहत केंद्रों या स्वास्थ्य केंद्रों में जा सकें।
विकलांगता न्याय और जेंडर समानता को मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में लागू किए बिना हम सतत विकास लक्ष्यों पर कैसे खरे उतरेंगे?
चाहे वो सरकारी परिवहन सेवा हो या सरकारी स्वास्थ्य केंद्र या शैक्षिक संस्थान- अक्सर उनमें विकलांग लोगों के आवागमन के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं होते। आबिया ने कहा कि विकलांगता को विस्तार से समझना ज़रूरी है क्योंकि उनके लिए व्यवस्था परिवर्तन सिर्फ़ पहियादार कुर्सी और उसके लिए ढलान बनाने तक सीमित नहीं है। दृष्टि बाधित या कर्ण बाधित, अथवा चलने में असमर्थ व्यक्ति आदि सभी को आवश्यकता अनुसार सुविधा मिलने का अधिकार होना चाहिए । आबिया ने कहा कि “जो लोग मोटर वाहन में आते जाते हैं वो भी तो एक प्रकार की पहियादार कुर्सी पर बैठे हैं – तो फिर केवल पहियादार कुर्सी (व्हीलचेयर) का उपयोग करने वाले विकलांग को शोषण क्यों झेलना पड़ता है?”
10 दिसम्बर मानवाधिकार दिवस और 12 दिसंबर सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा दिवस
महिला हिंसा को समाप्त करने हेतु प्रति वर्ष 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक चलाया जाने वाला 16 दिवसीय अभियान विश्व भर में सक्रिय है। परंतु मानवाधिकार-विरोधी पितृसत्तात्मकता की मुहिम बढ़ोतरी पर है।
अधिवक्ता और कैटलिस्ट्स अफ़्रीका की समन्वयक स्टेफ़नी मूशो ने कहा कि केवल ‘जेनेवा’ का नाम शामिल कर लेने से हर घोषणापत्र मानवाधिकार के समर्थन में नहीं हो जाता। उनका इशारा, ‘जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन’ की ओर है जो पारिवारिक मूल्यों की आड़ में महिला स्वास्थ्य सेवा को उनके लिए दुर्लभ बना रहा है – जैसे कि सुरक्षित गर्भपात का विरोध करके।
विकलांग समेत सभी महिलाओं को आवश्यकतानुसार प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाएं अधिकार-स्वरूप मिलनी चाहिए।
वूमेन्स ग्लोबल नेटवर्क फॉर रीप्रोडक्टिव राइट्स (प्रजनन अधिकार के लिए वैश्विक महिला समूह) की अध्यक्ष देबांजना चौधुरी का कहना है कि कुछ सरकारें, महिला अधिकार को कम महत्व दे रही हैं, जिसमें प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं। हर ओर एक नकारात्मक दबाव है जिसके कारण अधिकार, समानता और समता की पैरवी कमजोर पड़ रही है। अमरीका के अगले राष्ट्रपति के संदर्भ में भी महिला अधिकार और समानता को धक्का लगने की संभावना है क्योंकि अमरीका में हो रहे परिवर्तन का प्रभाव अनेक देशों में पड़ता है जिसमें एशिया के देश भी शामिल हैं।
देबांजना चौधुरी ने कहा कि महिला-अधिकार विरोधी शक्तियां अत्यंत सामर्थ्यवान हैं। इनके चलते प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाएं अधिक दुर्लभ होती जाएँगी। यह चिंताजनक है कि आगामी महीनों में प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य, सुरक्षित गर्भपात, आदि की पैरवी में कटौती अपेक्षित है – इसका सीधा असर लड़कियों और महिलाओं पर पड़ेगा। उनकी अपनी शारीरिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति का ह्रास होता है। यदि हम सब एक न हुए तो महिला-अधिकार विरोधी ताकतें, ‘पारिवारिक प्रक्रिया’ और ‘पारंपरिक मूल्यों’ की आड़ में एक नुकसानदायक भ्रामक विचार फैलाने में सफल हो जाएगी, जिसका भयावह प्रभाव महिलाओं को झेलना पड़ेगा।
देबांजना का कहना है कि प्रजनन स्वास्थ्य और यौनिक स्वास्थ्य के विरोध में वक्रपटुता अथवा बयानबाज़ी बढ़ रही है। भाँति-भाँति प्रकार से हमें यह सुनने में आता है कि पारंपरिक मूल्यों के संदर्भ में ‘महिला का स्थान तो रसोई में है’, या फिर एशिया के अनेक देश प्रजनन दर में गिरावट से नाखुश हैं और महिलाओं पर दबाव बना रहे हैं कि वे अधिक बच्चे पैदा करें।
देबांजना के अनुसार, भारत में सुरक्षित गर्भपात के कानून में सकारात्मक बदलाव आए हैं परंतु ये बदलाव पूरी तरह जमीनी हकीकत में परिवर्तित नहीं हुए हैं। गर्भपात के संदर्भ में चिंताजनक शोषण और चुप्पी अभी भी है।
महिला हिंसा की समाप्ति के लिए अंतर्संबंधी आंदोलन आवश्यक है
बेनेडिक्टा ओयडायो ओयवोले जो इंटरनेशनल प्लैंड पैरेंटहुड फेडरेशन (आईपीपीएफ) अफ्रीका में कार्यरत हैं, ने बताया कि जब तक अंतरसंबंधी (इंटरसेक्शनल) पहल नहीं होगी तब तक महिला हिंसा को समाप्त करना संभव नहीं है। सामाजिक ढाँचें और प्रक्रियाएं ऐसी हैं कि हाशिए पर रह रहे लोग प्रायःअधिक ख़तरे में पड़ जाते हैं।
विकलांगता न्याय और जेंडर समानता को झटका लगता है जब अफ़्रीकी देश जैसे कि युगांडा समलैंगिकता के ख़िलाफ़ क़ानून लाते हैं। बेनेडिक्टा ने कहा कि पितृसत्तात्मक राजनीति और सांस्कृतिक ताकतें बढ़ रही हैं और वो उन प्रगतिशील कार्यों को खत्म करने पर लगी है जो महिला आंदोलनों के चलते संभव हुए हैं । इन्हीं अधिकार विरोधी ताकतों के कारण जेंडर समानता के कार्य पर निवेश में भी कटौती हो रही है।
हम सबको एकजुट हो कर जेंडर समानता और विकलांगता न्याय की माँग करनी होगी। बेनेडिक्टा का मानना है कि विकलांगता न्याय और जेंडर समानता के बगैर मानवाधिकारों को सुरक्षित रखना संभव ही नहीं है। हर प्रकार की महिला हिंसा का अंत आवश्यक है।
स्टेफनी मूशो ने बताया कि केन्या देश के संविधान में सुरक्षित गर्भपात का क़ानूनी अधिकार है परंतु केन्या सरकार ने अधिकार-विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन को समर्थन दे कर सुरक्षित गर्भपात अधिकार को ज़बरदस्त धक्का पहुंचाया है। उसी तरह केन्या के राष्ट्रपति ने 2023 में एक नया क़ानून पारित किया है जिसके माध्यम से महिलाओं को ‘परिवार’ की ख़ातिर ऐसे अपमानजनक वैवाहिक संबंध में भी रहने के लिए दबाव बनाया जा रहा है जहाँ उनका अनेक प्रकार से शोषण हो रहा हो। दो साल पहले मोज़िला फाउंडेशन ने उजागर किया था कि पूर्वी अफ्रीका में स्पेन का सिटीजन-गो नामक समूह काफ़ी सक्रिय है। इस समूह ने बेरोजगार युवाओं को सोशल मीडिया पर ग़लत सूचना और भ्रामक जानकारियाँ फैलाने के लिए पैसे दे रहे हैं। सिटीजन-गो जैसे समूहों द्वारा चलाए जा रहे महिला अधिकार विरोधी आंदोलनों के कारण प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य अधिकार के प्रयास खंडित हुए हैं।
स्टेफ़नी का मानना है कि मानव अधिकारों को आगे बढ़ाने के प्रयास सफल नहीं होंगे यदि हम मन-मुताबिक चंद लक्ष्यों को अपनायेंगे और बाक़ी को नज़रअंदाज़ करेंगे। यदि हम विकलांगता न्याय पर कार्य करेंगे परंतु सुरक्षित गर्भपात के ख़िलाफ़ बात करेंगे तो यह दोहरी भूमिका नहीं चलेगी क्योंकि इसमें अंतर्विरोध है। मानवाधिकार अभिवाज्य हैं और हम उन्हें अपनी इच्छानुसार नहीं चुन सकते।
शी एंड राइट्स (सेक्सुअल हेल्थ विथ इक्विटी एंड राइट्स) की समन्वयक शोभा शुक्ला का कहना है कि सुरक्षित गर्भपात के अधिकार पर कार्य करने के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य की सभी सेवाएँ सब के लिए उपलब्ध हों। परिवार नियोजन और गर्भ निरोधक विकल्पों का उपयोग करने की ज़िम्मेदारी केवल महिला की नहीं है। पुरुषों की भी समान सहभागिता होनी आवश्यक है। चिकित्सकीय आदि कारणों के अलावा अनचाहा गर्भ ही क्यों हो? सुरक्षित गर्भपात अधिकार हर ज़रूरतमंद के लिए सभी जगह उपलब्ध होना चाहिए।
शोभा ने कहा कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा कैसे होगी यदि समस्त स्वास्थ सेवाएं सबके लिए अधिकार और सम्मान के साथ, बिना किसी शोषण के, उपलब्ध नहीं होंगी? सुरक्षित गर्भपात हो या गर्भनिरोधक सेवाएं (जैसे कि पुरुष नसबंदी) सहजता से उपलब्ध होनी चाहिए।
सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि जेंडर समानता हो, और विकास का मॉडल, चंद उद्योगों को मुनाफा पहुँचाने के बजाय सामाजिक न्याय पर आधारित हो।