अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाड ट्रंप की कृपा कुछ ऐसी है, जो ईरान को चीन की गोद में बिठा देगी। ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने एक 18 पृष्ठ का दस्तावेज उजागर किया है, जिससे पता चलता है कि ईरान में चीन अगले 25 साल में 400 बिलियन डाॅलर्स का विनियोग करेगा। इस पैसे का इस्तेमाल किस-किस क्षेत्र में घुसने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, यह जानकर ही आप दंग रह जाएंगे। ईरान में रेलें, सड़कें, पुल, बंदरगाह आदि के निर्माण में तो चीनी पूंजी लगेगी ही, चीन का बस चलेगा तो वह ईरान की बैंकों, दूर-संचार और फौजी जरुरतों पर भी अपना वर्चस्व कायम करना चाहेगा। ईरान के जरिए वह दक्षिण और मध्य एशिया के राष्ट्रों में अपनी सामरिक उपस्थिति बढ़ाने की पूरी कोशिश करेगा। दक्षिण एशिया के साथ 2000 तक चीन का व्यापार सिर्फ 5.57 बिलियन डाॅलकर का था, पिछले 18-19 साल में वह 23 गुना बढ़कर 127.36 बिलियन डाॅलर का हो गया है। पाकिस्तान पर तो चीन की पकड़ काफी मजबूत है ही वह अफगानिस्तान में भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यदि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान- इन तीनों देशों में चीन का वर्चस्व बढ़ गया तो भारतीय विदेश नीति के लिए यह काफी चिंता का विषय बन जाएगा। ऐसा लगता है कि चाहबहार बंदरगाह और रेल्वे लाइन डालने की भारतीय योजना अब खटाई में पड़ जाएगी। इसकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा अमेरिका पर होगी, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी अतिवादी और बड़बोली नीतियों के कारण ईरान को चीन पर निर्भर कर दिया है। ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के पहले से यह एलान कर रखा था कि वे ईरान के साथ हुए बहुराष्ट्रीय परमाणु समझौते को गलत मानते हैं और यदि वे राष्ट्रपति बन गए तो उसे वे रद्द कर देंगे।
2015 में वह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और छह राष्ट्रों ने मिलकर किया था। दो साल की कड़ी मेहनत के बाद वह अंतरराष्ट्रीय समझौता संपन्न हुआ था और ईरान पर लगे प्रतिबंध उठा लिए गए थे लेकिन ट्रंप ने उस समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया और 2018 से ईरान पर सारे प्रतिबंध दुबारा थोप दिए। उसने उन देशों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दे दी, जो ईरान से तेल खरीदते हैं या व्यापार करते हैं। ईरान की अर्थ-व्यवस्था लगभग चौपट हो गई है। मरता, क्या नहीं करता ? 2016 में चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने अपनी ईरान-यात्रा के दौरान सामरिक सहयोग का जो प्रस्ताव रखा था, उसे अब ईरान ने स्वीकार कर लिया है। इस समय चीन अपना 70 प्रतिशत तेल आयात करता है। उसे अब वह सस्ता और आसानी से मिलेगा। इस समय ईरान-चीन व्यापार सिर्फ 23 बिलियन डाॅलर का है लेकिन चीनी राष्ट्रपति के अनुसार वह 600 बिलियन डाॅलर तक पहुंच सकता है। यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा चिंता सउदी अरब और इस्राइल को ही होगी, क्योकि इन दोनों देशों के विरोधियों को टेका लगाने का दोष ईरान के मत्थे ही मढ़ा जाता है। यदि नवंबर में अमेरिका में सत्ता-परिवर्तन हो जाता है तो निश्चय ही ईरान के साथ उसके संबंध सुधरेंगे और एशिया के इस क्षेत्र में तनाव घटेगा। www.drvaidik.in
डॉ. वेदप्रताप वैदिक