मुंबई,12 अगस्त 1997। इसी दिनएक छोटी सी म्यूजिक कैसेट कंपनी से शुरू करके म्यूजिक की दुनिया में तहलका मचाने वाले गुलशन कुमार की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या का षडयंत्र रचने के मामले में संगीत निर्देशक नदीम सैफी का नाम आया था। नदीम सैफी मामले में अपना नाम आते ही देश से ब्रिटेन के लिए भाग गया। देश के इतने संभावनाओं से लबरेज कारोबारी का हत्यारा ब्रिटेन में है और अब सारा देश लगभग गुलशन कुमार के कैसेट तो रोज ही सुनता रहता है परन्तु निर्मम हत्याकांड को भूल चुका है। इसी तरह से 1992 में मुंबई धमाकों का गुनाहगार दाऊद इब्राहीम और छोटा शकील पाकिस्तान में मौज कर रहे हैं। पाकिस्तान जाने से पहले मुंबई पुलिस के सब इंस्पेक्टर का बेटा दाऊद इब्राहीम दुबई में अपने काले कारोबार को चला रहा था।क्या कभी नदीम सैफी, दाऊद इब्राहीम, बैंकों का हजारों करोड़ रुपये का लोन डकारने वाला विजय माल्या, ललित मोदी देश वापस लाए जा सकेंगे? क्या ये कभी जेल में चक्की पीस पायेंगे?
दरअसल देखने में यह आ रहा है भारत में भांति-भांति के अपराध करने के बाद कथित सफेदपोश से लेकर शातिर अपराधी देश से बाहर निकल लेते हैं। इस तरह के भगोड़ों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले पर नाराजगी जताते हुए बीती 25 नवंबर को केंद्र सरकार पर तंज कसा। कहा,“आजकल कोई भी भारत से भाग जाता है।”सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि ऐसे लोगों को कार्यवाही के लिए विदेश से जल्द भारत लाया जाना चाहिए। जस्टिस जी एस केहर और जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की कि लोग आसानी से देश छोड़कर भाग जाते हैं। केंद्र को न्याय के लिए उन लोगों को वापस लाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या का नाम तो नहीं लिया पर हाल ही में कई बैंकों का कर्ज लेकर फरार हुए विजय माल्या भी भगोड़ों की सूची में शामिल हैं। मेरा मानना है कि का से कम सुप्रीम कोर्ट की इस चिंता से सारा देश सहमत होगा।
बेशक, माल्या, दाऊद, ललित मोदी सरीखे आरोपियों और अपराधियों को देश वापस लाने की कार्यवाही को गति देनी होगी। निर्विवाद रूप से इन भगोड़ों को पकड़ना जरूरी इसलिए भी है ताकि देश में यह सख्त संदेश जाए कि कानून चाहे तो किसी को भी कहीं से भी पकड़ सकता है। भारत ने 37 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि की है और आठ देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौता किया है। इसमें उन बातों का ब्योरा भी दिया गया है जिसे जांच एजेंसियों को प्रत्यर्पण का आग्रह करते वक्त अनुसरण करना चाहिए। भारत ने परस्पर कानून सहयोग समझौता भी 39 देशों के साथ किया है। ऐसे समझौते में शामिल देश वांछित अपराधी पर मुकदमा चलाने के लिए एक-दूसरे के साथ कानूनी सहयोग करते हैं, जिसमें शरण देने वाले देश में मौजूद उस व्यक्ति की संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान भी होता है। हाल के दिनों में भारत अबु सलेम का प्रत्यर्पण पुर्तगाल से और गैंगस्टर छोटा राजन का निर्वासन इंडोनेशिया से कराने में सफल रहा है।
मौज में नदीम
लंदन में भाग जाने के बाद से विजय माल्या वहां पर मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हो गए हैं। ललित मोदी भी लंदन की पेज थ्री पार्टीज में सक्रिय हैं। उन्हें कई बार किसी भारतीय टीवी चैनल को इंटरव्यू भी देते हुए देखा जाता है। वे पूरे ठसके के साथ इंटरव्यू दे रहे होते हैं। गुलशन कुमार का गुनाहगार भी लंदन के एक शानदार अपार्टमेंट में रहता है। वहां पर ही रहकर वह कई फिल्मों का म्युजिक भी तैयार करता है। यानी उसकी जिंदगी पहले की तरह से ही चल रही है। भगोड़ों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह बातें बिजनेसवूमैन रितिका अवस्थी को लेकर हो रही सुनवाई के वक्त कहीं। कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया कि उन्हें लंदन वाले उनके घर से जल्द से जल्द भारत लाया जाए। रितिका अवस्थी को कोर्ट ने उनके पति से मिलने के लिए लंदन जाने की इजाजत दी थी। लेकिन रितिका ने कोर्ट का भरोसा तोड़ा और वह वापस ही नहीं आईं। अब उन्होंने अपने खिलाफ चल रहे क्रिमिनल केस की कार्यवाही में भाग लेने से भी मना कर दिया है।
अब छोटा शकील का हाल भी सुन लीजिए। उसे दाऊद इब्राहिम का सबसे खासमखास माना जाता है। अफसोस कि छोटा शकील को भी भारत लाने में सरकार को कोई कामयाबी नहीं मिली है। अपराध का पर्यायवाची बन गया छोटा शकील खुल्लम-खुल्ला देश के एक चोटी के अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देता रहता है। इंटरव्यू में छोटा शकील कहता है,“अब वह छोटा राजन को छोड़ेंगा नहीं।” हालांकि सारा संसार जानता है कि वह मैच फिक्सिंग का धंधा करता है। पर शकील इंटरव्यू में दावा करता है कि वह मैच फिक्सिंग में किसी तरह से लिप्त नहीं है। “ऊपरवाले का दिया बहुत कुछ है।” दाऊद-शकील पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगते रहे हैं। ये अरबों रुपये का सट्टा खिलवाते रहे हैं। जानने वाले जानते हैं कि अब दाऊद के सारे काम छोटा शकील ही करता है। यानी सभी भगौड़े देश से बाहर जाकर मौज में हैं।
लंबी प्रक्रिया
मैं मानता हूं कि यदि निर्वासित करने वाले देश के साथ भारत के अच्छे संबंध हों, तो प्रत्यर्पण की तुलना में निर्वासन ज्यादा कारगर रहता है।प्रत्यर्पण में एक तो लंबी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। दूसरे भारत लाए जाने पर भी आरोपी को सजा देने में प्रत्यर्पण करनेवाले देश के कानून का ध्यान रखना पड़ता है। निर्वासन के मामले अपेक्षाकृत आसान होते हैं। दो देशों के बीच अच्छे संबंधों के आधार पर यह काम तेज गति से हो सकता है। साथ ही, मुकदमा चलाकर आरोपी को भारतीय कानून के अनुसार सजा दिलाई जा सकती है।
संभवतः यही कारण रहा होगा कि तीन देशों के संयुक्त ऑपरेशन में भारत ने राजन को ऑस्ट्रेलिया से प्रत्यर्पित करवाने के बजाय इंडोनेशिया से निर्वासित करवाना ज्यादा बेहतर समझा। ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है, जबकि इंडोनेशिया के साथ नहीं है। लेकिन इंडोनेशिया के साथ भारत के राजनयिक संबंध अच्छे हैं।
आपको याद होगा कि प्रत्यर्पण के दो मामलों में भारत सरकार पहले धोखा खा चुकी है। गुलशन कुमार हत्याकांड का आरोपी संगीतकार नदीम इस मामले में अपना नाम आते ही लंदन भाग गया था। इंग्लैंड के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है। लेकिन सितंबर 1999 में लंदन की एक अदालत ने यह मानने से ही इन्कार कर दिया कि नदीम के खिलाफ पहली नजर में कोई मामला बनता भी है।
फिर भारत सरकार इस मामले को वहां के उच्च न्यायालय में ले गई। वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी। 18 मार्च, 2001 को वहां की सर्वोच्च अदालत हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने भी उच्च न्यायालय के फैसले पर मुहर लगाकर नदीम के प्रत्यर्पण पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया। यानी अब नदीम सैफी मौज करेगा।
एक और उदाहरण लें। प्रत्यर्पण का दूसरा चर्चित मामला अबू सलेम का है। उसे पुर्तगाल से प्रत्यर्पित करके लाया गया है। लेकिन इस प्रत्यर्पण के साथ बहुत सी कानूनी बाध्यताएं भी जुड़ गई हैं। इसलिए कई हत्याओं के आरोप में शामिल सलेम को भारतीय कानून के मुताबिक फांसी नहीं दी जा सकती। विदेश में रह रहे किसी भारतीय आरोपी को स्वदेश लाने के दो ही तरीके हो सकते हैं।
पहला कानूनी तौर पर उसे प्रत्यर्पित करवाकर लाया जाए। दूसरा वह देश उसे गिरफ्तार कर उसे निर्वासित कर दे और भारतीय एजेंसी उसे यहां के हवाई अड्डे पर उतरते ही गिरफ्तार कर ले।
मेरे कुछ कानून के जानकार मित्र कह रहे हैं कि चूंकि विजय माल्या प्रवासी भारतीय (एनआरआई) हैं, इसलिए उन्हें भारत लाना मुमकिन नहीं होगा। उनके पास 1992 से ही ब्रिटेन का रेसीडेंसी परमिट है। वे पासपोर्ट रद्द किए जाने के बाद भी ब्रिटेन में वैध वीजा के साथ रह रहे हैं।
फिलहाल यह नहीं लगता है कि भारतीय जांच एजेंसियां जल्द ही देश में उद्योगपति विजय माल्या से पूछताछ भी कर पाएंगी। ब्रिटेन ने भी सरकार से कहा है कि उनके देश के कानून के मुताबिक माल्या को भारत निर्वासित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। ब्रिटेन ने कहा कि माल्या को बुलाने के लिए भारत को प्रत्यर्पण कानून के तहत कार्रवाई करनी चाहिए। उसने कहा कि इस मामले में प्रत्यर्पण को लेकर वह भारत की मांग के लिए सहयोग करेगा।
हालांकि, निर्वासन या देश निकाला देने के मुकाबले प्रत्यर्पण ज्यादा वक्त लगने वाली प्रक्रिया है। इससे कम से कम कागजी स्तर पर माल्या को इस बहाने से भारत सरकार के कदमों को बाधित करने के कई मौके मिल सकते हैं कि उनके राजनीतिक विचारों की वजह से उन्हें परेशान किया जा रहा है और उनके मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है। और, सबको मालूम है कि इंडियन प्रीमियर लीग के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी भी ब्रिटेन में ही मजे में रह रहे हैं।
अब यह हैरानी की तो बात है ही कि दाऊद से लेकर ललित मोदी और माल्या के परिवार भारत में हैं। पर सरकार विभिन्न कारणों से इन जैसों को देश नहीं ला पा रही है। दाऊद का भाई इकबाल कसकर साऊथ मुंबई के मुसाफिरखाना नाम के इलाके में सपरिवार रहता है। उसके घर के पास ही उसकी बहन का परिवार भी रहता है। बहन हसीना का कुछ समय पहले निधन हो गया था। ये नामुमकिन है कि उन्हें दाऊद के मौजूदा ठिकाने के संबंध में कोई जानकारी न हो। क्या वे 1993 के मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड से बात नहीं करते होंगे? लेकिन, सरकार पता नहीं क्यूँ सख्ती से पेश आने में परहेज करती रही है।सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी के बाद बेशक सरकार को दाऊद, छोटा शकील और नदीम सैफी जैसों को देश लाने के लिए कुछ कठोर कदम तो उठाने ही होंगें ।
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
आर.के.सिन्हा