ईसाईयत (आर्मीनिया) पर इस्लाम ( अजरबेजान) का हमला हो चुका है। आर्मीनिया के साथ इसराइल, अमेरिका फ़्रांस, ब्रिटेन व भारत आदि नाटो देश हैं तो अजरबेजान के साथ इस्लामिक जगत का स्वयंभू ख़लीफ़ा तुर्की,पाकिस्तान ईरान, उत्तरी कोरिया व चीन जैसी ताक़तें हैं। प्रथम विश्वयुद्ध (१९१४-१८)के बाद ४० देशों में बंटे ख़लीफ़ा ऐ इस्लाम तुर्की ( ऑटमन गणराज्य) को मित्र देशों ने युद्धोपरांत संधि के अंतर्गत सौ साल तक अपमानजनक संधि से बांधकर रखा हुआ था , जो अब पूरी होने जा रही है। इसीलिय मध्य एशिया में उबाल है।कोई बड़ी बात नहीं कि यह चिंगारी यूरोप को भी लपेट ले।विश्व के सबसे बड़े युद्ध क्षेत्र में हो रही यह लड़ाई चंद दिनो के अंदर विश्व युद्ध की शुरुआत मानी जाएगी। इस क्षेत्र में इसराइल बहुत आक्रामक हो ही चुका है और अपने दुश्मन चीन समर्थक इस्लामिक देशी को निशाना बना ही रहा है। अमेरिका पहल पर यूएई से संधि कर इसराइल ने इस्लामी जगत में दो फाड़ करवा दी है। युद्ध का दूसरा मैदान दक्षिण व पूर्वी चीन सागर बनेंगे (क्योंकि समुद्री खनिज व समुद्री व्यापारिक मार्गों पर क़ब्ज़े की लड़ाई यहाँ निर्णायक रूप लेती जा रही है)और तीसरा दक्षिण एशिया( चीन को घेरने की पेंटागन की रणनीति में यह बहुत हाई महत्वपूर्ण क्षेत्र है)। जिस स्तर पर आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत युद्ध की तैयारी कर रहे हैं उससे स्पष्ट हैं कि चीन व उसके समर्थक देशों को घेरकर बुरी तरह निबटाया जाएगा। युद्ध की विभीषिका में बड़ी तबाही के साथ हो कई देशों के नक़्शे हाई बदल जाएँगे। चीन की सबसे बड़ी ताक़त उसके “छः विशेष आर्थिक क्षेत्र” हैं जहाँ से पूरी दुनिया को विभिन्न सामानो की आपूर्ति की जाती है। इनके लिए पेंटागन व नाटो देशों की रणनीति यह है कि या तो इनको चीन से अलग थलग कर क़ब्ज़ा कर लिया जाए या पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए। आगे क्या होगा यह इसी पर निर्भर करता है कि हालात क्या मोड़ लेते हैं। जहाँ तक भारत का प्रश्न है वाह चाहे कितना ही चीन के ख़िलाफ़ आग उगल ले मगर युद्ध की पहल नही करेग और चीन भी भारत पर हमला करने से परहेज़ हाई करेगा क्योंकि विश्व युद्ध की स्थिति में वह कई मोर्चों पर उलझने से बचेगा। हाँ दोनो के बीच नूरा कुश्ती अवश्य चलती रहेगी।हाँ, अगर मजबूरी हुई तो भारत पाकिस्तान पर हमला बोलेगा और अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान का नक़्शा ज़रूर बिगड़ेगा चाहे चीन उसकी कितनी भी मदद कर ले।
अफ़्रीका व दक्षिण अमेरिका का भी युद्ध का मैदान बनना तय है क्योंकि यहाँ भी चीन की ख़ासी घुसपैठ है और उत्तरी अमेरिका का प्रमुख देश यानि अमेरिका ही इस युद्ध को निर्देशित करेगा क्योंकि चीन के जैविक युध (कोरोना वायरस) का सबसे बड़ा शिकार भी तो वो ही है।
तो फिर रुस कहाँ है? अरे ये दोनो देश जो भिड़े है वे पूर्व सोवियत संघ से ही तो जुड़े थे। सच्चाई तो यही है कि दुनिया के मिडिल मेन के रूप में उभरे रुस ने ही लड़ाई का मुद्दा दिया है। अब वह पूरी दुनिया को उसी तरह हथियार बेचेगा जैसे कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका बेचेगा। युद्ध के बाद निश्चित रूप से अमेरिका व चीन कमजोर हो चुके होंगे , ऐसे में दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त कौन होगा ? अरे रुस ही तो मित्रों!
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
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