१) सामान्यतः देश को जितनी आवश्यकता है उससे दोगुना अनाज उगाया जा रहा है। ऐसे में अनाज गोदामों में सड़ता है व शराब बनाने वाली कम्पनियाँ उनको सस्ते में ख़रीद लेती हैं। बेहतर हो कि किसान कम मात्रा में उगाए किंतु अच्छी गुणवत्ता का अनाज उगाए व ज़ेविक कृषि की ओर बढ़े तो उसको अपनी फसल के दाम मनचाहे मिलने शुरू हो जाएँगे। क्योंकि ऐसे अनाज की माँग अधिक होगी व आपूर्ति काम तो दाम बढ़ेंगे।
२) किसान देश में मांसाहार पर प्रतिबंध लगाने अथवा सीमित करने की माँग करे क्योंकि इसके कारण लोग अनाज कम खाते हैं व किसान का अनाज सस्ते में बिकता है। मांसाहार पर प्रतिबंध लगने से अनाज की माँग बढ़ जाएगी व दाम भी।
३) किसान नक़दी फसलें, फल व सब्ज़ी का उत्पादन बढ़ाए जो उसको अतिरिक्त आमदनी करवाएँगे। इसके साथ ही पूर्व की तरह गाय , भेंस आदि दूध देने वाले पशुओं का पालन पुन शुरू करें जो उनकी सेहत भी सुधरेगा और आमदनी भी।
४) छोटे किसान पंचायत स्तर सहकारी समिति बनाकर अपने गाँव, ब्लॉक ,तहसील व ज़िले में अपने उत्पादों की दुकाने खोले यानि जो उगाए उसे बिना बिचोलियो के अपने स्टोर्स पर स्वयं बेचे जिससे उनको अपने उत्पाद के सही दाम मिलने लगेंगे। इसमें सरकार की पूरी मदद ली जाए तो अच्छा होगा।
५) किसान ज़ेविक कृषि व मोटे अनाज का उत्पादन जेसे जैसे बढ़ाएँगे व लोग उसका प्रयोग बढ़ाएँगे तो आम जनता बीमार होना कम होती जाएगी यानि सभी का बीमारियों का खर्च कम होता जाएगा जिससे जनता व किसान सभी की बचत होगी।
६) किसान याद रखें एमएसपी उनको सरकारी ख़रीद में ही सीमित मात्रा में आमदनी की गारंटी हो सकती है किंतु अगर माँग बढ़ेगी तो वे मनचाहे दाम नहीं बढ़ा पाएँगे।
७) किसान याद रखें अच्छी गुणवत्ता का अनाज , डाक , सब्ज़ी व दूध उनके दामन की अंतरराष्ट्रीय माँग बढ़ाता जाएगा और उनकी आमदनी भी।
८) दूरगामी योजना के अनुरूप किसान अपने परिवार के एक सदस्य को कृषि उत्पादन व प्रबंधन से जुड़े कोर्स अवश्य करवाए व स्वयं कृषि संबंधित उद्योग लगाए जिसमे भरपूर सरकारी सहायता, अनुदान व ऋण ले ।
मौलिक भारत मानता है कि बेशक आंदोलन कई बार ज़रूरी होते हैं किंतु किसान आंदोलन का इतिहास रहा है कि इनके नेता हर बार राजनीतिक दलो की चाल में फँसकर टूट व बिखर जाते है या फिर बिक जाते है या फिर सरकारें इनको कुचल देती हैं। कोरोना संकट ने विकास के वर्तमान मॉडल पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं व कृषि, ग्रामीण उद्योग, प्रकृति केंद्रित जीवन शेली की ओर लोटने की बातें मुख्यधारा में तेही से उठी हैं। ऐसे में किसान आंदोलन राजनीति का शिकार बने बिना एक वेकल्पिक मॉडल पर मंथन कर देश, समाज व सरकार के सामने रखे तो उस पर सर्व स्वीकृति बनने में देर नहीं लगेगी अन्यथा छल, बल व भ्रम का शिकार होकर इस आंदोलन का बिखरना तय है।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
महासचिव, मौलिक भारत
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