यह हास्यास्पद है कि दुनिया भर में कोरोना के बढ़ते मरीज़ों और गिरती लाशों के बीच बढ़ते जनाक़्रोश के बीच अमेरिका ने अपनी जाँच एजेंसियों को 90 दिनो में यह जाँच करने का आदेश दिया है कि इस वायरस का उदगम चीन की विहं लेब है या नहीं और क्या चीन ने जैविक हथियार के रूप में तो इस वायरस का प्रयोग तो नाहीं किया। अमेरिका के ही आग्रह पर डबल्यूएचओ भी इन आरोपो की फिर से जाँच करने के लिए तैयार हो गया है और अंतत: भारत सरकार ने भी इन जाँचो का समर्थन किया है। जब किसी देश की गलती या जानबूझकर की गयी हरकत से आपके देश में लाखों करोड़ों लोग मर रहे हों और अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही हो तो आप उस देश के ख़िलाफ़ जाँच बैठाएँगे या उसको मिलकर कुचल देंगे। अगर जाँच के नतीजे चीन के ख़िलाफ़ आ गए तो दुनिया क्या उखाड़ लेगी चीन का ?
कोरोना वायरस और अनुत्तरित प्रश्न
क्या कोरोना एक वेश्विक साज़िश है जिसमें दुनिया की एलीट क्लास दुनिया के आम आदमी को समाप्त कर अपने सपनो की दुनिया बनाने की कोशिश कर रही है? दुनिया भर में आम जनता को जिस प्रकार भय, भूल , भ्रम , बेरोज़गारी , ग़लत दवाइयों, झूठे इलाज, संदिग्ध वेकसीन और मौत के साए में रखा जा रहा है उससे स्पष्ट है लोगों को शारीरिक, आर्थिक व मानसिक रूप से बुरी तरह तोड़कर मरने मजबूर करने का चीन व अमेरिका के नेतृत्व में एक सुनियोजित षड्यंत्र कोविड – 19 के नाम पर चल रहा है जिसमें G -20 देश भागीदार है।
1) पिछले तीन दशकों से रिपब्लिंक व डेमोक्रेटिक सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार एक वायरोलोजिस्ट एन्थनी फ़ाउची ही क्यों बने हुए हैं और इन तीन दशकों में दुनिया में एक के बाद एक वायरसो का आक्रमण क्यो हुआ ?
2) फ़ाउची और बिल गेट्स के वुहान इन्स्टिटूट ऑफ़ वायरोलोजिस्ट से जिस प्रकार और जो संवाद निरंतर चल रहा है ( जिसका खुलासा वाशिंगटन पोस्ट ने किया है) वह बिना अमेरिका सरकार की मंज़ूरी के संभव नहीं। ऐसे में कोरोना वायरस फैला कर चीन व अमेरिका किस गुप्त अजेंडे को पूरा कर रहे हैं?
3) चीन और अमेरिका के बीच शीत युद्ध व तीसरे विश्व युद्ध की खबरें जो दुनिया भर के मीडिया में प्रसारित की जा रहीं हैं वे क्या आइ वाश यानि नूरा कुश्ती या यूँ कहें जनता की आंखो में धूल झोंकने के समान हैं? क्या यह जनता में युद्ध का भय पैदा कर बड़ी मात्रा हथियारों की ख़रीद फ़रोख़्त का खेल तो नहीं? में क्या पश्चिमी देशों के विभिन्न वायरोलोजिस्ट द्वारा लगाए जा रहे आरोप भी एक सोची समझी रणनीति है?
4) अगर वायरस चीन ने अकेले ही फैलाया होता तो क़्यो यूरोपियन यूनियन, एशिया पेसिफ़िक देश , सार्क देश , अरब लीग, एशियान देश चीन पर कार्यवाही करने की जगह बड़े बड़े व्यापार समझोते कर रहे हैं? क्या सभी देश एक एक करके इस वायरस को नए वेरिएँट का नाम दे देकर फैला रहे हैं?
5) वर्ल्ड ऐकोनोमिक फ़ोरम, रॉकफ़ेलर फ़ाउंडेशन, फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन और बिल गेट्स- मिरिंडा फ़ाउंडेशन की भूमिका बार बार संदिग्ध प्रतीत होती है।
6) यह जानने के बाद भी कि डबल्यूएचओ पर चीन और फ़ार्मा कंपनियों का क़ब्ज़ा हो चुका है ,व दुनिया पर जैविक हमला हो चुका है, भारत डबल्यूएचओ कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष बना। भारत के प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री व राज्यों के मुख्यमंत्रीओं की संदिग्ध बिल गेट्स से अच्छे संबंध हैं व लगातार मुलाक़ातें होती रही हैं? क्या भारत भी अंतरराष्ट्रीय मेडिकल माफिया का हिस्सा है?
7) करोड़ों बीमार व लाखों मौत और व्यापक आर्थिक – सामाजिक नुक़सान के बाद भी भारत सरकार व पक्ष – विपक्ष के नेताओ ने कोरोना के उदगम की जाँच व दोषी को दंड देने की माँग नहीं की ? क्या भारत के नेताओ, नोकरशाहों व कारपोरेट सेक्टर की मौत के इस व्यापार में शेयर होल्डिंग है?
8) क्यों चीन से कई सो गुना केस होने के बाद भी दुनिया चीन द्वारा निर्धारित मापदण्डो व प्रोटोकोल के अनुरूप ही कोरोना का सामना कर रही है? भारत में आईसीएमआर आज तक भारत केंद्रित प्रोटोकोल, दवाइयाँ व गाइडलाइन नहीं बना रहा ?
9) कोरोना वायरस के ह्यूमन ट्रायल को भारत के नागालैंड के मिमी गाँव में अमेरिकी थ्रेट रिडक्शन एजेंसी के नेतृत्व में चीन, अमेरिका, भारत व सिंगापुर के वेज्ञानिको ने बिल गेट्स फ़ाउंडेशन की सहायता से अंजाम दिया था और उसके बाद इस पूरी दुनिया में फैलाया गया। इसमें चीन की वुहान लेब के साथ ही भारत के टाटा इन्स्टिटूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च व नेशनल सेटर ऑफ़ बायोलोजिकल रिसर्च , अमेरिका की यूनीफ़ॉर्म्ड सर्विसेज़ यूनिवर्सिटी ओफ हेल्थ साइंसेज़ ब सिंगापुर की डूयूक नेशनल यूनिवर्सिटी के वेज्ञानिक शामिल थे। इस परीक्षण के बाद इस वायरस से करोड़ों लोगों के मरने का दावा किया गया था जो सच भी साबित हुआ। अगर इस खेल को मिलकर खेल गया था तो अकेले चीन को ही दोषी क्यों कहा जा रहा है?
10)यह सामने आना ज़रूरी है किरॉथ्स्चाईल्ड, रॉकफेलर, एंथनी फाउची, बिल गेट्स, जॉन हापकिंस यूनिवरसिटी, पीएचएफआई (पब्लिक हैल्थ फैडरेशन आफ इंण्डिया) का इस तथाकथित महामारी से क्या संबंध है ? इन लोगों व संस्थाओं पर गंभीर आरोप क्यों लगते रहे हैं ? क्या इन आरोपों में कोई सच्चाई है ? हमारे प्रधानमंत्री देश के वैज्ञानिकों की बजाय बिल गेट्स व डब्ल्यूएचओं के पिछलग्गू आखिर क्यों बने हुए हैं ?
11)कोविड—19 के पहले केस के आने से करीब ढाई महीने पहले 18 अक्टूबर 2019 को न्यूयार्क के होटल पेरियर में बिल व मिलेंडा गेट्स फाउनडेशन, विश्व आर्थिक मंच एवं जॉनस् हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस का नाम था —
” इवेन्ट—201 : ए ग्लोबल पैनडेमिक एक्सरसाईज” हिन्दी में कहें तो ” कार्यक्रम 201 : एक वैश्विक महामारी का अभ्यास” ।
इस कॉन्फ्रेंस का टाईटल ही बहुत कुछ कहता है । हमने इसे आयोजन कहा है परन्तु कुछ लोग इसे कृत्रिम वैश्विक महामारी की योजना या षड़यंत्र को अंतिम रूप देने हेतु बुलाई गई बैठक मानते हैं। विदित हो कि इस बैठक के करीब ढाई महीने बाद पूर्ण तैयारियों के साथ डब्ल्यूएचओ के माध्यम से विश्व के सामने कोविड—19 वायरस के केस की पहली वैधानिक घोषणा की गई, 31 दिसम्बर 2019 को, जिसमें चीन के वुहान शहर को वायरस का केन्द्र बताया गया । ध्यान रहे वुहान की इस लैब में भी बिल गेट्स व एंथनी फाउची की आर्थिक भागीदारी बताई जाती रही है । अमेरिका की सीनेट में फाउची पर सीधे आरोप लगाये जा रहे हैं, इटली की सांसद ने बिल गेट्स को वैक्सीन अपराधी बताया है ।
——18 अक्टूबर 2019 को हुए ” इवेन्ट—201 : ए ग्लोबल पैनडेमिक एक्सरसाईज” नामक इस संदेहास्पद आयोजन में भाग लेने वाले लोगों में विश्वभर के डाक्टर या वैज्ञानिक होते तो शायद इतना संदेह नहीं होता, परन्तु यदि हम इसके आयोजक की लिस्ट को देखें तथा इसमें भाग लेने वाले लोगों के व्यवसाय को देखें तो हमारा संदेह और अधिक गहरा हो जाता है। आयोजक थे—— बिल व मिलेंडा गेट्स फाउनडेशन, विश्व आर्थिक मंच एवं जॉनस् हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ । आयोजन में भाग लेने वाले थे, विश्व व्यापी होटल चेन ‘मैरिएट’ के सीईओ, लुफ्तांसा एयरलाइंस के सीईओ, मीडिया टाईकून, साफ्टवेयर व्यसाय से जुड़े लोग एवं विश्व के लगभग सभी बड़े बड़े बैंकर्स ।
Reference links-
https://www.centerforhealthsecurity.org/event201/videos.html
https://www.centerforhealthsecurity.org/event201/videos.html
https://amp.usatoday.com/amp/5081854002
https://www.hindustantimes.com/videos/coronavirus-crisis/watch-donald-trump-wants-10-trillion-from-china-blames-wuhan-lab-for-covid-101622810048969-amp.html
घोर आशंका है-
1. क्या यह वायरस गाय/ऊँट (मानवों से बड़े जीव) के माँस खाने वालों और शेष में भेद करता है या उस प्रकार से डिजाइन किया गया है?
2. ताप, ताप ही होता है चाहे वह भीतर का हो या बाहर का। विश्व की सभी लैब में यह पाया गया कि उच्चतर ताप होते ही कोरोना वायरस की जीवन अनुकूलता क्षीण होते जाती है तब यह भारत में घोर गर्मी में कैसे विस्फोटक हुआ? मेरा क्षेत्र तो औसतन 45℃ ड्राय-हॉट है फिर यह सब क्यों। क्या इसलिए तो नहीं कि मार्च-अप्रेल में वैश्विक रूप से मनाया जाने वाला कोई ‘सबसे विशेष त्योहार’ बड़े जोरशोर से मनाया जा रहा हो? भाई सैकड़ों वायरल वीडियो तो यही कहते हैं।
3. निस्संदेह बड़े अस्त्र के नाम बड़े चाव से रखे जाते हैं हमने भी पिनाक/त्रिशूल/ब्रह्मोस आदि रखा। यदि यह वायरस विशेष रूप से बनाया गया है तो किसने इसका नाम ‘कोर-ओन-आ’ रखा। मासूम सद्दाम ने जैव हथियार बनाए ही नहीं थे या ‘कहीं सुदूर ठंडे गढ़ में’ सुरक्षित रख दिए थे।
4. परिवर्तनों का क्रम यह है- भौतिक फिर रासायनिक फिर तंत्रात्मक फिर जैविक; पिछले दशकभर में इनमें कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुए तब इतने प्रकार के वायरस,फंगस, बैक्टीरिया कैसे और वह भी म्यूटेशन मचाते हुए?? यह सब अलग अलग लाए गए हैं?
5. चीनी कोरोना वायरस किसी माचिस की डिब्बी में एकत्रित करके जेब में पटके रखने जैसी वस्तु नहीं थी। बड़ी फार्मा कंपनी के लिए सम्बंधित और आसान था। पिछले पाँच वर्षों में इस प्रकार का स्टोर रखने वाली किन किन कंपनी का सौदा हुआ या नव स्थापना हुई? पिछले तीन वर्षों में कौन सी फार्मा कम्पनियां चीन जाती रहीं।
भारत में महामारी को विघटनकारी राजनीतिज्ञों और गाजवाईयों द्वारा संरक्षण है यह 2029 तक नए नए फीडबैक लेकर आक्रामक होता रहेगा। निस्संदेह निकट भविष्य बड़ा चुनौतीपूर्ण है देश और स्वयं का कितनी हानि सहेंगे, कमर कसे रहिए।
6. जो उपचार पर अनुसंधान कर रहे हैं उन तक अनुरोध पहुँचा दें कि इन सभी वायरस पर ‘क्यूप्रस ऑक्साइड के कोलाईडी रूप’ का अनुसंधान करें, धनात्मक परिणाम निकलेंगे। – विशाल वर्मा
इस सबके बीच कुछ तथ्य एकदम स्पष्ट हैं –
1) कोरोना वायरस का उदगम दुनिया की फेक्टरी चीन का वुहान शहर ही है और यहाँ की वायरोंलोज़ी लैब व सी फ़ूड बाज़ार से ही यह वायरस दुनियाभर में फैला।
2) दुनिया के अधिकांश वायरोलोजिस्ट इस बात पर एकमत होते जा रहे हैं कि जिस प्रकार इस वायरस के नए और घातक वेरिएँट सामने आते जा रहे है यह प्रकृति के सिद्धांत के विरुद्ध है। यानि यह कृत्रिम वायरस है। प्राकृतिक वायरस में नए वेरिएँट घातक न होकर क्षीण होते जाते है किंतु कोरोना के मामले में उल्टा हो रहा है यानि लैब में इसकी प्रकृति से छेड़छाड़ कर इसको घातक व मारक बनाकर हथियार के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है। किंतु सरकारें इस तथ्य को मानने को तैयार नहीं।
3) वुहान इन्स्टिटूट ऑफ़ वायरोलोज़ी को सन 2014 से अमेरिकी मदद मिल रही है यानि यहाँ पर जो भी शोध व खेल चल रहे थे वे अमेरिका और चीन दोनो के साझा खेल हैं। इस खेल को जी -20 देशों का भी समर्थन व सहयोग है। यह खेल जैविक बीमारियाँ पैदा करने और उनका इलाज खोजने से संबंधित होते हैं। जीडीपी आधारित अर्थव्यवस्थाओं में बाज़ार और रोज़गार पैदा करने का यह स्वीकृत तरीक़ा है। इसीलिए विभिन्न परंपरागत चिकित्सा पद्दतियो को अनदेखा किया जाता है
4) कोरोना संक्रमण फैलने के बाद जिस प्रकार चीन व अमेरिका के साझा निवेश वाली दवाई, फ़ार्मा, वेक्सीन व मेडिकल उपकरण और साजोसामान वाली कंपनियाँ जी तेज़ी से दुनिया को इस बीमारी से लड़ने का ज़रूरी सामान उपलब्ध करा रही हैं और बुरी तरह फ़ायदा कमा रही है , वह अत्यंत ही संदिग्ध व गहरी व कई बरस से चल रही सुनियोजित साज़िश दिखाई दे रहा है। उससे भी यही सिद्ध होता है कि यह दोनो देशों की मिलीभगत का खेल है।
5) जिस प्रकार रुस, इंग्लेंड और फ़्रांस भी इस खेल में बड़े फ़ायदे कमा रहे हैं उससे भी लगता है क़ि यूएन की सुरक्षा परिषद में स्थायी वीटो पावर वाले ये पाँचो देश ही इस षड्यंत्र में भागीदार हैं और इन्होंने जी – 20 देशों को भी येन केन प्रक्ररेण अपने साथ जोड़ लिया है। दुनिया के बाक़ी देशों की तो बिसात ही क्या ।
(जी-20 के सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 85 फीसदी, वैश्विक व्यापार के 75 फीसदी और विश्व की आबादी के दो-तिहाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।)
किस देश की कितनी है जीडीपी और कितनी है आबादी?
1) फ्रांस: जीडीपी 2,420.4, आबादी 6.68 करोड़
2) अमेरिका: जीडीपी 19,417 आबादी 32.3 करोड़
3) इंडोनेशिया: जीडीपी 1,020.5, आबादी 25.8 करोड़
4) मेक्सिको: जीडीपी 987.30 आबादी 12.3 करोड़
5) द. अफ्रीका: जीडीपी 317.56, आबादी 5.43 करोड़
6) अर्जेंटीना: जीडीपी 628.93 आबादी 4.38 करोड़
7) जर्मनी: जीडीपी 3,423.2 आबादी 8.07 करोड़
8) चीन: जीडीपी 11,795, आबादी 138 करोड़
9) रूस: जीडीपी 1,560.7, आबादी 14.2 करोड़
10) तुर्की: जीडीपी 793.69, आबादी 8.02 करोड़
11) ब्राजील: जीडीपी 2,140.9, आबादी 20.58 करोड़
12) द. कोरिया: जीडीपी 1,498.1, आबादी 5.09 करोड़
13) भारत: जीडीपी 2,454.4, आबादी 126 करोड़
कोरोना संक्रमण से प्रभावित प्रमुख देश ( बीमारों व मृतकों के आँकड़े कई गुना कम हो सकते हैं)
देश का नाम |
कुल केस |
एक्टिव केस |
ठीक होने वालों की संख्या |
मरने वालों की संख्या |
अमेरिका |
33,044,068 |
6,812,645 |
25,475,789 |
589,207 |
भारत |
18,762,976 |
3,170,814 |
14,556,209 |
208,330 |
ब्राजील |
14,592,886 |
1,099,201 |
12,879,051 |
401,417 |
फ्रांस |
5,592,390 |
995,421 |
4,405,319 |
104,224 |
रूस |
4,787,273 |
268,145 |
4,394,639 |
109,367 |
तुर्की |
4,667,281 |
506,899 |
4,121,671 |
38,711 |
ब्रिटेन |
4,406,946 |
81,840 |
4,197,672 |
127,434 |
इटली |
3,971,114 |
452,812 |
3,398,763 |
119,539 |
स्पेन |
3,488,469 |
227,837 |
3,182,894 |
77,738 |
आँकड़े लेखक के दावों की पुष्टि करते हैं।
विश्व में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी बीमारी, मौतों और आर्थिक नुक़सान के बाद भी कोई भी देश आधिकारिक रूप से चीन को अपना शत्रु घोषित करने को तैयार नहीं। यह तथ्य इस बात को समझने के लिए पर्याप्त है कि जो भी देश चीन पर आरोप लगा रहा है वो भी उसके विरुद्ध कोई ऐक्शन नहीं ले रहा हाँ इन आरोपों की आड़ में हथियारों की ख़रीद व साझा युद्धाभ्यास के खेल ज़रूर हो रहे है जिनसे पाँचो बड़ी शक्तियों को ही फ़ायदा पहुँच रहा है। कोरोना वायरस का पता लगने के बाद उल्टे दुनिया के अधिकांश देशों का चीन से व्यापार कम होने की जगह बढ़ा ही है। अधिकांश देशों ने अतिरिक्त मुद्रा छापकर और सभी प्रकार के कच्चे माल की क़ीमत बढ़ाकर महामारी के कारण अपनी अर्थव्यवस्था को हुए घाटे की भरपाई कर ली है। अतिरिक्त मुद्रा के शेयर बाज़ार में आने से बड़ी कंपनियों का मार्केट केपीटलाईनेशन ख़ासा बढ़ गया है और वे कम उत्पादन करने के बाद भी ज़्यादा फ़ायदे में हैं। हाँ समाज व कुछ छोटी कंपनियों की स्थिति ज़रूर बिगड़ गयी है किंतु यह भी केलकुलेटेड रिस्क ही है।
अब यह भी सोचने की बात है क़ि क्यों जी – 20 देश इस आत्मघाती दिखने वाले मिशन पर एक साथ चलने को सहमत हुए ? गहराई में जाए व पिछले पंद्रह माह के घटनाक्रम को देखें तो इसके निम्न फ़ायदे नज़र आते हैं –
1) दुनिया की बेतरह बढ़ती आबादी और बढ़ती ग्लोबल वार्मिग से निपटने में यह वायरस कारगर हथियार बन गया है। मानवीय जनसंख्या व गतिविधियों के घटने से प्रकृति का दोहन कम हो रहा है और सरकारों पर दबाव भी। अघोषित लक्ष्य अगले कुछ सालों तक हर वर्ष 5 से 10 प्रतिशत तक आबादी कम करने का और वर्तमान से आधी या और भी कम करने है। बूढ़े और हर उम्र के बीमार लोगो के साथ ही मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को लपेटे में लेने का खेल योजनाबद्ध तरीक़े से खेला जा रहा है। इसलिए जिस किसी को लगता है यह बीमारी कुछ महीनो में समाप्त हो जाएगी वो ग़लतफ़हमी का शिकार हैं। यह नए विश्व और नई विश्व व्यवस्था को स्थापित करने का खेल है और इसको साझा जैविक हथियार के द्वारा खेला जा रहा है।
2) पिछले तीन दशकों की नई खोजो व तकनीक को बाज़ार में स्थापित करने व पुरानी, व प्रकृति के लिए घातक तकनीक को बाहर करने के लिए इस वायरस की आड़ ली जा रही है। अब घर, कार्यालय, विद्यालय व सामाजिक कार्यक्रमों , बाज़ार, जीवन शैली व ख़रीद फ़रोख़्त सबको स्वरूप बदलया जा रहा है।
3) जितनी तेज़ी से दुनिया के विकासशील देशो में समृद्धि बढ़ती जा रही उससे विकसित राष्ट्रों को पीछे हो जाने का भय समा गया था। अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए भी उन्होंने वायरस का सहारा लिया । इस कारण विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था घुटने पर आ हुई और व ग़रीबी, बेरोज़गारी व भुखमरी के दौर में फिर से प्रवेश करते जा रहे है जो अंतत: आंतरिक अशांति व ग्रहयुद्ध को ही जन्म देगा।
4) इस जैविक हथियार के माध्यम से विकसित देशों ने अपने अपने देश की वैध व अवैध प्रवासियों की समस्या से भी छुटकारा पाना शुरू कर दिया है। करोड़ों वैध व अवैध प्रवासी पिछले एक वर्ष में अपने मूल देश को जाने के लिए विवश हो गए हैं।
5) पिछले एक वर्ष में विश्व के लगभग सभी देशों विशेषकर जी -20 देशों ने अपने अपने देश में लंबित प्रशासनिक, वित्तीय व अन्य सुधारों को तुरत फ़ुरत में लागू कर दिया और आश्चर्यजनक रूप से ये सभी एकरूपता लिए हुए है व खुली अर्थव्यवस्था वाले एकल विश्व की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। आश्चर्य और भी बढ़ जाता है जब हरेक देश में विपक्षी दलों की भी इन बदलावों में मौन स्वीकृति दिख रही है। हाँ देशों व राजनीतिक दलों के बीच आपसी आरोप प्रत्यारोप, जाँच, छोटे मोटे युद्ध, धमकियाँ आदि चलते रहेंगे किंतु बड़ी कार्यवाही, आर्थिक प्रतिबंध या सामूहिक युद्धव परमाणु हमला जैसा कुछ नहीं होने जा रहा है। तो फिर सर्वोत्कृष्ट की उत्तरजीविता के इस दौर में आम जनता क्या करे? इसके लिए महाशक्तियों का स्पष्ट संदेश है – अपनी इम्यूनिटी मज़बूत करो, शरीर का ध्यान रखो और आर्थिक व मानसिक रूप से मज़बूत बने रहो। वायरस रूपी मौत अभी लंबे समय तक बहुरूपिया बन घूमती रहेगी , बच सको तो बचो अन्यथा अपनी मौत का इंतज़ार करो। जो बचे रहेंगे वे ही नुई दुनिया का हिस्सा होंगे, क्रूरता की नीव पर बनी तकनीक से समृद्ध अभूतपूर्व मानवीय दुनिया
“ विश्व की सरकार” का।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
कोरोना संक्रमण की सुनामी और मोदी सरकार के लिए उभरती अभूतपूर्व चुनोतियाँ
– अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया
भारत असाधारण परिस्थितियों का शिकार है। कोविड 19-20 ( कोरोना) संक्रमण की दूसरी लहर ने देश को हिलाकर रख दिया है। अनगिनत कोरोना संक्रमित मरीजो की बाढ़ में हमारा स्वास्थ्य ढाँचा बिखर गया है और जनता त्राहिमाम कर रही है। एक ही झटके में व्यवस्था व राजनेताओ का विद्रुप चेहरा जनता के सामने आ गया। हमारी राज्य सरकारें भी कोरोना संक्रमित होकर मरणासन्न हैं और भाजपा नीत केंद्र सरकार “ चुनावी हैंगओवर” की शिकार होकर दिग्भ्रमित। इस कारण केंद्र सरकार पंद्रह दिन की देरी से ‘ऐक्शन मोड’ में आ पायी मगर तब तक कोविड के डबल म्यूटेंट संक्रमण की तूफ़ानी रफ़्तार ने बवाल मचा दिया। चारों ओर बीमारों और लाशों के ढेर लगते जा रहे हैं और केंद्र व राज्य सरकारें हर मोर्चे पर असफल सिद्ध होती जा रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश के 146 जिलों में संक्रमण की स्थिति नियंत्रण से बाहर है। एक महीने पहले ऐसे ज़िले बमुश्किल 20 -30 रहे होंगे और अगले एक महीने में प्रत्येक ज़िले में स्थिति नियंत्रण के बाहर हो सकती है। जिसका सामना करना किसी भी सरकार के बूते से बाहर की बात है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च का दावा है कि यूरोप , अमेरिका , दक्षिण अफ़्रीका व ब्राज़ील की दूसरी लहर का अध्ययन कर उसने काफ़ी समय पूर्व ही सरकार को देश में दूसरी लहर आने व उसका सामना करने की तैयारी की चेतावनी दे दी थी मगर सरकार ने कुछ नहीं किया और नतीजा सामने है। मात्र 500 केस होने पर पूरे देश में “अक्यूट लॉकडाउन” लगाने वाली मोदी सरकार ने इस बार लॉकडाउन को “ अंतिम विकल्प” माना है जो बड़े आश्चर्य ब नीतिगत उलटबाँसी का प्रमाण है। महामारी ऐक्ट की आड़ में पिछले एक वर्ष में मोदी सरकार ने जिस तेज़ी से नीतिगत परिवर्तनों को लागू किया वह अभूतपूर्व है । यह खेल यह भी स्पष्ट करता है कि “ कोरोना संक्रमण” एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का परिणाम है जिसमें अकेला चीन नहीं कई और ताक़तें भी शामिल हैं और भारत सरकार व सभी राजनीतिक दल अंदरखाने इस खेल को समझते भी है और मौन समर्थन भी रखते हैं। हो सकता है यह हमारे राजनीतिक दलो की मजबूरी भी हो क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्था और वेश्विक संगठनों पर ताकतवर देशी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों का क़ब्ज़ा है और वहाँ भारत एक सीमा से अधिक अपनी बात मनवा नहीं सकता। इन ताक़तों ने अपने अपने वर्चस्व व हितों की लड़ाई के बीच दुनिया में जैविक युद्ध छेड़ दिया है। जैविक युद्ध की आड़ में किए जा रहे द्रुतगामी बदलावों ने विश्व की राजनीति और शक्ति समीकरणों को तोड़ मरोड़ कर रख दिया है। लगभग हर देश बार बार लगातार जैविक हमले (कोरोना वायरस) का शिकार हो रहा है और पहली, दूसरी, तीसरी , चौथी और पाँचवी लहर से घिरा हुआ है। ये लहरें तब तक चलती रहेंगी जब तक वह देश व उसके लोग नयी तकनीक, प्राद्योगिकी व व्यवस्थाओं के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं लेते।यह नई विश्व व्यवस्था के आकार लेने का भी समय है। निश्चित ही यह कार्य कुछ महीनों में नहीं होने वाला बल्कि कुछ वर्ष तो लेगा ही । यानि अगले कुछ वर्षों तक दुनिया के हर देश व क्षेत्र में व्यापक अनिश्चितता, तबाही, उतार-चढ़ाव, बदलाव व राजनीतिक उठापठक होना निश्चित है। दुनिया की महाशक्ति व पुलिसमेन बनने को उतावला चीन इस खेल का सूत्रधार है । विचारधारा के द्वन्द से निकल चीन अब साम्यवादी नहीं बाज़रबादी हो चुका है इसलिए उसके साथ “ वर्ल्ड इकोनोमिक फ़ोरम” , फ़ॉर्चून 500 कंपनियों का बड़ा हिस्सा और अनेक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की फ़ाउंडेशन भी जुड़ी हुई हैं। एक तरीक़े से बड़ी ताक़तों ने आधुनिकतम तकनीकी वाली सभी कंपनियों को छूट दे दो है कि वे बाज़ार पर हावी पुरानी तकनीक व खिलाड़ियों को रिप्लेस कर स्वयं को स्थापित कर लें । इस खेल में बड़ी ताक़तो के नेताओ को भी हिस्सा या शेयर मिला है और ये सब मिलकर विश्वव्यापी षड्यंत्र कर रहे हैं। विश्व का इतिहास देखा जाए तो पता लगता है कि हर सदी के बाद दुनिया में ऐसा खेल होता आया है। यह नए तरीक़े का युद्ध है और हर स्तर पर ज़ोर आज़माइश चल रही है। एक ओर अमेरिका, ब्रिटेन व फ़्रांस हैं तो दूसरी ओर चीन व रुस। G -20 के बाक़ी देश इन दोनो गुटों में बँटे हुए हैं, दुनिया के बाक़ी देशों की कोई औक़ात नहीं। दोनो गुटों की कोशिश है कि उनके पक्ष में अधिक से अधिक देश आ जायें। अधिक देश मतलब ज़्यादा संसाधनों पर क़ब्ज़ा, ज़्यादा बड़ा बाज़ार, ज़्यादा हनक और लंबे समय तक दुनिया में दबदबा। इसीलिए हर देश में पक्ष या विपक्षी दल को दोनो गुट अपने अपने पक्ष में करने में लगे हैं। चूँकि पिछले तीन दशकों से दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व था तो उसको तोड़ने के लिए चीन ने अपने साथियों की मदद से जैविक युद्ध का सहारा लिया जिसकी शिकार इन दिनो पूरी दुनिया है।
ऐसे में जबकि भारत में भाजपा व मोदी सरकार अमेरिकी पाले में है और सेकूलर विपक्षी दल चीन के साथ , तो यह संघर्ष गहराना स्वाभाविक भी है। इसीलिय भाजपा आरोप भी लगाती है कि कोरोना संक्रमण विपक्ष शासित राज्यों में ज़्यादा यही से फैलता है व वहीं से पूरे देश में फैलता है। भाजपा देश में चलाए जा रहे सीएए व किसान आंदोलन को भी चीन व उसके पिट्ठू पाकिस्तान के इशारे पर विपक्षी दलो का खेल मानती है।
कोरोना की दूसरी लहर से उत्पन्न भीषण परिस्थितियों ने मोदी सरकार को बड़े संकट में डाल दिया है। मोदी के राजनीतिक जीवन का यह सबसे बड़ा संकट है। जनता में व्यापक असंतोष के बीच विपक्ष एक और बड़े आंदोलन व विरोध प्रदर्शनो का सूत्रपात कर सकता है।यह आंतरिक ग्रहयुद्ध तक भी पहुँच सकता है। पाँच राज्यों के चुनावों के परिणाम भी इसकी दिशा तय करेंगे और बंगाल के परिणाम इसकी दिशा तय करेंगे। किंतु यह तय है कि विपक्ष के समर्थन से आंदोलन होगा। अगर भाजपा बंगाल जीत जाती है तो यह साम्प्रदायिक स्वरूप का हो सकता है और हार जाती है तो युवाओं को भड़काकर किया जाएगा। इसके साथ ही सीमा पार से चीन व पाकिस्तान फिर विवाद व आक्रामकता बढ़ाएँगे ताकि मोदी सरकार दबाव में आकार उनके पक्ष में झुक जाए। मोदी को संघ परिवार व एनडीए का सामना भी करना होगा व पार्टी में भी उनके विरोध में गुटबाज़ी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर भारत में आंतरिक और बाहरी दोनों ही स्तर पर मोदी सरकार के लिए आने वाले महीने बहुत ज़्यादा चुनोतीपूर्ण रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इन झंझावतो का सामना किस प्रकार कर पाएँगे और किस प्रकार अमेरिका उनका समर्थन करता है। स्पष्ट है कि देश की जनता के लिए आने वाला समय और कष्टप्रद रहने वाला है। यह कड़वा सत्य भी है कि राजनीति और कूटनीति की बुनियाद ही क्रूरता और अपरिमित रक्त पर खड़ी होती है और समवेदना और मानवीयता के तत्व इसमें हाथी के दाँत जैसे होते हैं।
कोरोना संकट और ये विकास के मॉडल
सामन्यत: दवाइयों, सर्जिकल उपकरणो व वैक्सीन आदि का निर्माण करने वाली कंपनियों का प्रोफ़िट दोगुने से लेकर बीस गुना तक होता है। डर के इस धंधे में मेडिकल , पेरा मेडिकल, नर्सिंग, फ़ार्मा कालेज से खेल शुरू होता है और छोटे बड़े निजी व सरकारी अस्पतालों व निजी चिकित्सकों से लेकर दवाइयों, सर्जिकल उपकरणो , किताबों व वैक्सीन आदि का निर्माण करने वाली देशी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक इनका जाल फैला हुआ है। दुनिया में ड्रग्स, पोर्न व हथियारो के साथ यह ऐसा चौथा सबसे बड़ा धंधा है जिसमें दस बीस गुना तक प्रोफ़िट होता है। ऐसे में जबकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाऐ सेचुरेशसन पर आ गयी हैं “मौत के भय” की इस धंधे ने विकराल रूप ले लिया है।ड्रग्स कंपनियों द्वारा धूर्त व विश्व विजेता बनने की होड़ में लगे चीन की सहायता से कृत्रिम रूप से विकसित कोरोना वायरस के संक्रमण को विश्वभर में फैलाकर एक घृणित खेल खड़ा कर दिया गया है। जहाँ हर ओर बस लूट है , शोषण है , सिसकियाँ है और लपलपाते गिद्ध हैं। “ आपदा में अवसर” तलाश रहे धन पिपासु कंपनियों का बाज़ार डबल्यूएचओ, अनेक देशों की सरकारें, सत्तारूढ़ व विपक्षी दल, और मुख्यधारा का मीडिया कर रहा है। अनुमान है कि पूरी दुनिया में सरकारों व जनता ने ने पिछले 18 महीनो में उससे पूर्व के एक वर्ष के खर्च का पाँच से छः गुना खर्च स्वास्थ्य के नाम पर किया है। इनमे से लगभग 80% खर्च पेनिक बाइंग के रूप में किया गया यानि बिना ज़रूरत के डर व घबराहट में। यानि पूरे स्वास्थ्य तंत्र ने अंधाधुंध कमाई की और कई गुना प्रोफ़िट कमाया व कमा रहे हैं। इस लाभ में नेताओ, नौकरशाहों, न्यायधीशो व मीडिया को भी लगातार “कट मनी” या शेयर मिल रहा है। भारत व दुनिया में इस क्षेत्र का गहराई से अध्ययन करेंगे तो पता चल जाएगा कि नेताओ, नौकरशाहों, न्यायधीशो व मीडिया की बड़ी हिस्सेदारी इन ड्रग्स व वेक्सीन कंपनियों व स्वास्थ्य से जुड़े कोलेजो में है।
भारत के संदर्भ में अगर गहराई से जाए तो आप पाएँगे कि यूपीए सरकार के समय आतंकी हमले, साम्प्रदायिक दंगे आदि बड़ी चुनोती बन गए थे और असुरक्षा की आड़ में आयातित सुरक्षा उपकरणो व निजी सुरक्षा गार्डों का बाज़ार खड़ा किया गया था। इधर एनडीए के शासनकाल में बीमारियों के नाम पर मेडिकल माफिया का जाल खड़ा कर दिया गया है जिसका अभी और कई गुना विस्तार होना है। देश में पिछले छः वर्षों में इस दिशा में कई गुना वृद्धि आश्चर्यजनक है। क्या सरकार को पहले से ही मालूम था कि बड़ी बीमारी व पेनेडेमिक आने वाली है ? जिस तरीक़े से मेडिकल के क्षेत्र में लूट , होल्डिंग, कालाबाज़ारी, एंबुलेंस, दवाइयों, अंग प्रत्यारोपण, कई गुना बिल बनाने, मृत मरीन को वेंटिलेटर के सहारे ज़िंदा दिखा बिल बढ़ाने, अस्पताल में बेड आदि की कई गुना दामों पर ख़रीद फ़रोख़्त हो रही है वह बेहद शर्मनाक व अमानवीय है और उससे भी ज्यादा अमानवीय हैं अनगिनत होने वाली अकाल मौतें।
इससे पूरा सरकारी तंत्र व मेडिकल उद्योग कठघरे में खड़ा है और इस उद्योग से जुड़े अच्छे लोग भी इस षड्यंत का शिकार होकर बदनाम हो रहे हैं।कुछ लालचियो ने देश ब दुनिया को जान बूझकर मौत के कुएँ में धकेल दिया गया है। देश सरकारी व निजी दोनो क्षेत्रों की लूट, अराजकता, कुप्रबंधन, कुशासन व निर्दयता का मूकदर्शक बन गया है और हर आम व ख़ास आदमी हर पल मौत और डर के साए में जीने को मजबूर है। सच देश का हर नागरिक अकेला , लाचार व मजबूर है और मात्र अपने ही प्रयत्नों से ज़िंदा रहने की कोशिश में जूझ रहा है।
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या यही जीडीपी बढ़ाने के , विकास के व ग्लोबलाइज़ेशन के मॉडल है यूपीए व एनडीए सरकारों के पास ?
अस्थिरता व आपातकाल का समय :
सरकार के भरोसे न रहें, सरकार खुद भगवान भरोसे है
वर्तमान समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है, जनता में भय, असुरक्षा व आक्रोश का माहोल है। जनता स्वयं को सरकार विहीन माँ रही है और ठगी हुई महसूस कर रही है। अगर सरकारें चाहे वो केंद्र की हो या राज्यों की ,न संभली तो उखड़ जाएँगी। देश का हर घर अस्पताल और हर गली शमशान बनती जा रही है और कुछ लोग बंगाल को ही हिंदुस्थान माने बैठे हैं। जनकारो के अनुसार शायद कोई गाँव ऐसा बचा हो जिसमें पिछले कुछ दिनो में 5 से 25 तक मौत न हुई हों। क़स्बों व शहरों के हालात तो सबको पता ही हैं। बिशेषज्ञो के अनुसार कोरोना की अभी और लहर आनी निश्चित हैं, ऐसे में बीमारी और मौतों का सिलसिला जल्द थमने वाला नहीं। ऐसे में आगामी कुछ समय में हालात बद से बदतर हो जाएँगे। मगर व्यवस्था द्वारा सच छुपाया जा रहा है। हर सत्तारूढ़ राजनीतिक दल में मोजूदा नेतृत्व के ख़िलाफ़ आंतरिक गुटबाज़ी व जोड़ तोड़ शुरू हो चुकी है जो जल्द ही सतह पर आने वाली है। देश जल्द ही बड़ी अस्थिरता, नए राजनीतिक गठजोड़, गुटबाज़ी व तख्ता पलट की कोशिशों के बीच आंतरिक अशांति , जनाक्रोश, सीमा पर युद्ध जैसे हालातों से दो चार हो सकता है। स्वास्थ्य आपातकाल के बीच असाधारण आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी जहाँ देश को आर्थिक आपातकाल की ओर ले जा रही है वहीं आंतरिक व बाह्य सुरक्षा के हालात बिगड़े तो राष्ट्रीय आपातकाल की नौबत भी आ सकती है।
गिद्धों के इस देश में !
आपदा में अवसर तो सभी तलाश रहे हैं अकेले मेडिकल व्यवसाय को क्यों दोषी दे रहे हैं हम ? इस देश में तो हर डाल पर गिद्ध ही गिद्ध बैठे हैं।हमने कुछ और गिद्ध ढूँढे हैं आप भी जानिए-
१)सबसे पहली गिद्ध केंद्र व राज्य सरकार है जो तेल के दाम बढ़ाकर अपने काम होते राजस्व को पूरा कर रही है।
२) दूसरे गिद्ध वो सरकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने आपदा के लिए आवंटित घन में घपलेबाजी की है।
३) तीसरे गिद्ध वे राजनेता हैं जो हर ज़्यादा लाभ कमाने वाले से दलाली खाकर चुप बैठे हैं।
४) चौथे गिद्ध वे उद्योगपति जिनकी बिक्री कम होती जा रही है मगर शेयर बाज़ार में उनकी कंपनी का शेयर चढ़ता जा रहा है।
५) पाँचवे गिद्ध वे व्यापारी जिन्होंने मेटल, केमिकल, निर्माण सामग्री, खाने पीने के सामनो , ज़रूरत की सभी चीज़ों के दाम दुगने तिगुने तक बढ़ा दिए। इसके साथ ही वस्तुओं की जमाख़ोरी, मिलावट, घटिया व नक़ली माल की आपूर्ति भी करता है।
६) छठे गिद्ध वे स्कूल कोलेज जो आज भी बिना पूरी सेवाए दिए पूरी फ़ीस ले रहे हैं और सरकार उनका साथ दे रही है।
७)सातवें गिद्ध बे जो बिना पूरा काम किए भी पूरा वेतन ले रहे हैं और जनता को आपदा में भी पूरा टैक्स देना पड रहा है। वे न्यायालय भी जो वर्षों तक मुक़दमे लटकाए रहते हैं व जनता को न्याय नहीं देते।
८) आठवें गिद्ध वह मेडिकल माफिया, दवा कम्पनियाँ ,डॉक्टर , पुलिसकर्मी , एम्बुलेंस वाले व शमशान से जुड़े लोग व अन्य बिचोलिए हैं जो बीमारों व मृतकों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर उनको लूट रहा है।
९) नवें गिद्ध वे मीडियाकर्मी हैं जो इन गिद्धों से पैसे खाकर इनकी खबरें दबाते हैं। साथ ही वे समाजसेवी व विभिन्न धर्मी के मठाधीश जिन्होंने समाजसेवा विश्राम को धंधा बना रखा है।
१०) दसवाँ गिद्ध यह सिस्टम है जो इन सभी गिद्धों को पनपने देता है और उनके ख़िलाफ़ कोई सख़्त कार्यवाही नहीं करता।
मोदी और महाआपदा: चुनोती और राह
केंद्र व राज्य सरकारों की प्रारंभिक रणनीतिक भूलों के कारण कोरोना की दूसरी लहर के फैलते संक्रमण और महाआपदा के बीच अभी तो देश में व्यापारिक राष्ट्रवाद चल रहा है। जीडीपी वाला विकास और मौत व बीमारियों के डर के बीच दवाइयों, वेंटिलेटर, अस्पताल , बेड,आक्सीजन, वेकसीन , कफ़न और लकड़ी का व्यापार। सरकार और समाज सब आपदा में अवसर तलाश रहे हैं। चीन के जैविक हमले में हमारे तो लाखों लोग मर गए व मर रहे हैं और हम कुछ न कर सके। शायद हम जबाब देने लायक़ ही नहीं। हम सभी को यह सच स्वीकार करना होगा कि कोरोना के कारण देश के हालात बद से बदतर हो गए हैं। हर ओर मरीज़ व मौत ही दिखाई देती है। सरकारी स्तर पर व्यापक कुप्रबंधन हुआ है। जनता में भारी आक्रोश है। जो भारी पड़ सकता है। मिनिमम गवर्न्मेंट- मैक्सिमम गवेरनेंस के सरकारी नारे के बीच कारपोरेट और सरकारी गवेरनेंस दोनो ग़ायब हैं। इस खेल में मेडिकल माफिया तीस – चालीस लाख करोड़ का टर्नओवर ज़रूर कर लेगा।
चीन में पूरी दुनिया की कम्पनियों कि निवेश था और यह स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप वर्षों से हो रहा था। वायरोलोज़ी के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए अनेक देश व बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ परस्पर सहयोग करती रही हैं। यहाँ तक कुछ भी ग़लत नहीं हुआ। ग़लत यह हुआ कि चीन ने वेश्विक महाशक्ति बनने के लिए वायरोलोज़ी का उपयोग एक जैविक हथियार के रूप में किया जिसके विनाशकारी परिणामों के कारण वेश्विक स्तर पर न तो स्वीकृति है न ही मान्यता। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि ऐल्फ़्रेड नोबेल ने डायनामाइट का अविष्कार चट्टान व पहाड़ तोड़कर रास्ते व नहरें बनाने के लिए किया मगर बाद में उसका उपयोग बम के रूप में होने लगा। बाक़ी अब जब बीमारी फैला दो गयी है तो उससे जुड़ी फ़ार्मा कम्पनियों का व्यापार तो खड़ा हो ही जाता है। लोग मरते है तब भी ताबूत, कफ़न व लकड़ी आदि का व्यापार भी तो होता ही है। मगर इस त्रासदी ने पुराने बिज़नेस मोडल व खिलाड़ियों की कमर तोड़ दो है और नई तकनीक वाले नए खिलाड़ी मेदान में छा गए हैं।
इन विषम परिस्थितियों में मुझे तो लगता है कि अंतत: आक्रामक राष्ट्रवाद ही एकमात्र विकल्प है। कोरोना से घर पर मरने से अच्छा है सीमा पर लड़ते हुए मरे। राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर पहले आंतरिक देशद्रोहियों का सफ़ाया और चीन से आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और इसके बाद क्वाड की सहायता से चीन से निर्णायक जंग।
तमाम विरोधों व कुप्रबंधन के बीच राष्ट्रवादी लोगों का तर्क है कि हिंदुत्व, सनातन संस्कृति व राष्ट्रवाद की रक्षा के लिए मोदी जी का बना रहना बहुत ज़रूरी है। ये लोग स्वयं कुछ नहीं करते और पूर्णतः मोदी जी पर ही निर्भर हैं।यही विडंबना है। ममता की सरकार आने के बाद ये बंगाल में हिंदुओं पर हुए अत्याचार व , हिंसा व पलायन से आक्रोशित हैं। हिंदुत्व की बात करने वाले वीरों से मैं पूछना चाहता हूँ कि बंगाल के हिंदुओं को लड़ने मरने की सलाह तो आप लोग बड़ी आसानी से दे रहे हो मगर दिल्ली एनसीआर में जो हालात बिगड़े है उसको ठीक करने के लिए आपने क्या क़ुर्बानी दी है ? यहाँ तो केंद्र, यूपी और हरियाणा में आपकी सरकार है और दिल्ली के भी आधे से ज़्यादा अधिकार आपकी सरकार के पास हैं। अपने जीवन की सबसे कठिन चुनोती से जूझ रहे मोदी जी के लिए अगले कुछ माह अग्निपरीक्षा के हैं और बे चक्रव्यूह में घिर चुके हैं। व्यापक जन आक्रोश के बीच उनको विपक्ष और अंदरूनी हमलों का भी सामना करना है। बदहाल अर्थव्यवस्था और ख़स्ताहाल समाज को अगर वे पटरी पर न ला पाए तो देश में बड़ा आंतरिक राजनीतिक संकट आना तय है।
ईश्वर करे सब महाआपदा से पहले जैसा हो जाए। मोदी जी व शाह जी इस महाआपदा से उभार कर सब कुछ ठीक कर दें। देश को पुनः हिंदू राष्ट्र बना दे व पाकिस्तान और चीन के टुकड़े टुकड़े कर दे और अवैध बांग्लादेशियो को खदेड़ दें। अगर यह सब कर सके तो उनकी तानाशाही भी मंज़ूर और कोरोना से हुए नरसंहार की त्रासदी भी।
जैविक युद्ध के असली खिलाड़ी: चीन और अमेरिका
ब्राज़ील, फ़्रांस और आस्ट्रेलिया के बाद #अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री #माइकल_पोम्पियो ने #कोरोना को #चीन का #जैविक_हमला बताया है। यह चीन का सौभाग्य या कोई साजिश है कि #डोनॉल्ड_ट्रंप हार गए। अन्यथा चीन की हालत कुछ और होती। एक तरीक़े से उन्होंने इशारा किया है कि चीन और डेमोक्रेटिक पार्टी का जोईंट वेंचर है यह वायरस। विचित्र बात यह है कि यह युद्ध राष्ट्रों के बीच में न होकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच में है और सरकारें, नेता, नोकरशाह, मीडिया और राजनीतिक दल इन कंपनियों के शेयरहोल्डर बनकर इनके एजेंट बन गए हैं।
वास्तव में सन 2016 में आयी ओबामा केयर योजना से शुरू हुआ था यह खेल। अब तो दुनिया की बहुत सारी सरकारें और राजनीतिक दल भी जुड़ गए हैं इस आत्मघाती खेल से । ज़्यादा लाभ के लालच और लाभ में बँटवारे के झगड़े के कारण गिद्धों के इस नर संहार के व्यापार की अब जल्दी ही और पर्तें खुलनी तय है और बड़े संघर्ष की राह भी।
जैविक युद्ध की आड़ में किए जा रहे द्रुतगामी बदलावों ने विश्व की राजनीति और शक्ति समीकरणों को तोड़ मरोड़ कर रख दिया है। महाशक्तियों के इस गंदे खेल में लगभग हर देश बार बार लगातार जैविक हमले (कोरोना वायरस) का शिकार हो रहा है और पहली, दूसरी, तीसरी , चौथी और पाँचवी लहर से घिरा हुआ है। ये लहरें तब तक चलती रहेंगी जब तक वह देश व उसके लोग नयी तकनीक, प्राद्योगिकी व व्यवस्थाओं के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं लेते। निश्चित ही यह कार्य कुछ महीनों में नहीं होने वाला बल्कि कुछ वर्ष तो लेगा ही । यानि अगले कुछ वर्षों तक दुनिया के हर देश व क्षेत्र में व्यापक अनिश्चितता, तबाही, उतार-चढ़ाव, बदलाव व राजनीतिक उठापठक होना निश्चित है।इन सबके बीच इन लहरो के नाम पर और अन्य दवाई के परीक्षण किए जाएंगे, लोगों की जान लेकर मोटा मुनाफा कमाया जाएगा, ये एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय सिंडीकेट है जो कोरोना और उससे जुड़ी बीमारियों को आसानी से खत्म नही होने देगा।
इस समय मेडिकल सिंडिकेट का चारों तरफ से मुनाफा हो रहा है, फेफड़े, ह्रदय, किडनी, आंखे, जबड़े, लिवर, हर अंग बेकार करके दवाइयों का और अन्य मेडिकल सामान का भरपूर व्यापार चल रहा।
यह बात अब बिल्कुल शीशे की तरह साफ है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के सहयोग से अमेरिकन मेडिकल माफिया ने कोरोना वायरस बनाने के लिये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को मोटा पैसा दिया था । अमेरिका राष्ट्रपति बाइडेन के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार के डाक्टर फुँची पर यह आरोप लग रहा है कि विहं इन्स्टिटूट ऑफ़ वायरोलो जी (wuhan institute of virology) ने मेडिकल माफिया के सरगना डाक्टर फुँची के कहने पर लैब में वायरस तैयार किया और उसको फ़ार्मा कम्पनियों की मदद से दुनिया भर में फैलाया । इस सब मे चीनी कम्युनिस्ट , मेडिकल माफिया पूर्णतः दोषी हैं । यह पूंजीवाद और कम्युनिज्म की पुरानी तकनीक है कि पहले कोई समस्या खड़ी करो फिर उसका हल मोटे दामों पर बेचो । डबल्यूएचओ ,पूंजीवादी मेडीकल कंपनियों और चीनी कम्युनिस्म का यह joint venture है । पहले आपको इन्होंने वायरस दिया फिर उसकी वैक्सीन तैयार करके मोटा माल हड़प लिया । पीपीई किट्स,,वेंटिलेटर ,रेमड्सवीर , फ़ेविफ़्लू, वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां जमकर पैसा बना रहीं है । अगर आप समझते हैं कि आप बच जाएंगे तो आपकी भूल है ।
पूंजीवाद और कम्युनिस्म की इस कोकटेल के लिये पैसा ही सब कुछ है । सही विकल्प है सनातन मॉडल । यह पहले आपको बीमार करेंगे फिर वैक्सीन लगाकर विकास का ढोल पीटेंगे । और आप सोचेंगे कि देखो साइंस कितनी तरक्की कर गई । ऐसे नकली विकास , नकली विज्ञान और नकली वैज्ञानिको पर लानत है। सनातन संस्कृति से ओतप्रोत मौलिक भारत ही एकमात्र विकल्प है।
क्या चीन के आगे घुटने टेक चूकी है दुनिया और भारत सरकार ?
चीन के जैविक हथियार कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को बर्बाद कर दिया है। पिछले 14 माह से हर देश में बीमारों और लाशों के ढेर लग रहे हैं। अर्थव्यवस्थाऐ चौपट हो चुकी हैं और बेरोज़गारों की संख्या रोज़ बढ़ रही है। दुनिया की जीडीपी 15-20% घट चूकी है। अंतत: आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, फ़्रांस और अमेरिका ने सीधे सीधे इस महाआपदा और महामारी की आड़ में शुरू हुए जैविक युद्ध के लिए चीन को कठघरे में लेना शुरू कर दिया है , किंतु भारत सरकार के मुँह में जैसे दही जमा हो या यूँ कहें घिग्घी ही बंध गयी हो। न वो चीन को दोषी ठहराने को तैयार न ही उसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही को तैयार। उल्टे चीन से व्यापार और वार्ता दोनो नई ऊँचाइयों पर हैं। अमेरिका में चीन के समर्थन से डेमोक्रेटिक जो बाईडेन के राष्ट्रपति बन जाने के बाद भारत की कूटनीति की धार कुंद पड़ गयी है और मोदी सरकार अनिश्चितता की स्थिति में है। सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन, किसान आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर के क़हर ने देश को बदहाली व अराजकता के कगार पर का खड़ा किया है और मोदी सरकार की साख , लोकप्रियता व धार को ख़ासा कमजोर कर दिया है। क्या भारत ने चीन के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है ? पूरी दुनिया में कोरोना से हुई मौतों का आँकड़ा तीस लाख से ऊपर पहुँच चुका है और डबल्यूएचओ का मानना है कि वास्तविक मौतें इसकी तीन गुना हैं। मानसिक सदमे व अन्य बीमारियों का इलाज न मिलने , भुखमरी व बेरोज़गारी के कारण भी इस आँकड़े से कई गुना मौतें देश व दुनिया में हो रही हैं। हर देश वास्तविक आँकड़े छिपा रहा है। भारत में जितने आँकड़े दिए जा रहे है , राज्यवार वास्तविकता उससे दस बीस पचास या सौ गुना तक अधिक हो सकती है। यह अत्यंत भयावह स्थिति है। इस एक तरफ़ा जैविक युद्ध में कोई भारतीय ऐसा नहीं जिसने अपनो को न खोया हो। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किसी देश को दुश्मन घोषित करने के मापदंड क्या होने चाहिए व जीवन जीने के क्या मापदंड होने चाहिए? क्या हमें वायरस के भय व आतंक के साये में कुत्ते की मौत स्वीकार है या दुश्मन का बहादुरी से सामना करते हुए सीने पर गोली खाकर ? इस चिंतन के बीच एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या चल रहे इस नरसंहार के पीछे दुनिया की सभी सरकारों की मौन स्वीकृति व गुप्त अजेंडा है ? यदि नहीं तो सामूहिक प्रतिकार की मात्र आवाज़ ही क्यों उठती है कोई बड़ी कार्यवाही चीन और मेडिकल माफिया के ख़िलाफ़ क्यों नहीं हो रही ? क्या सच में इतने गिलगिले , लालची, कमजोर, कायर और रीढ़विहीन और चीन के आगे बेबस हो गयी है दुनिया?
अनुज अग्रवाल
अध्यक्ष , मौलिक भारत
संपादक, डायलॉग इंडिया
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https://www.hindustantimes.com/india-news/india-backs-calls-for-further-studies-into-origin-of-covid19-101622185632201.html
https://www.wsj.com/amp/articles/intelligence-on-sick-staff-at-wuhan-lab-fuels-debate-on-covid-19-origin-11621796228
https://www.livemint.com/news/world/nobel-winning-scientist-claims-covid-19-virus-was-man-made-in-wuhan-lab/amp-11587303649821.html
https://www.republicworld.com/amp/world-news/rest-of-the-world-news/brazils-bolsonaro-blasts-china-over-covid-origin-links-pandemic-to-biological-warfare.html
https://m.businesstoday.in/lite/story/coronavirus-released-intentionally-china-using-misinformation-to-mislead-world-chinese-virologist/1/438792.html
https://khn.org/news/article/wuhan-lab-leak-coronavirus-virologists-seek-inquiry-covid-origins-bat-research/amp/
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