Shadow

“एनिमल” सिर्फ पर्दों तक नहीं होगा सीमित?

डॉ अजय कुमार मिश्रा

परम्परागत मान्यता हमारे समाज की यही रही है की फ़िल्में हमारें समाज का आइना है और उन्ही बातों और तथ्यों को उजागर करती है जिसकी हमें सच्चे रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता है जिससे सामाजिक एकता के साथ – साथ मानवीय गुणों का विकास सभी वर्गो में हो सकें | एक समय ऐसा भी था जब लगातार ऐसी फिल्मों का निर्माण होता रहा जिससे समाज को नई दिशा मिल सकी कई ऐसी कुरीतियों और पाखंडों सहित अनावश्यक नियमों को तोड़ने का काम हमारी फिल्मों ने किया भी | समय के चक्र ने कब क्षेत्रीय से राष्ट्रीय और अब अंतर्राष्ट्रीय चोला ओढ़ लिया यह पता ही नहीं चला | हम और हमारा समाज अभी भी वर्तमान परिवेश से कही न कही दशकों पीछे है फिर चाहे सुख-सुविधायों, मेडिकल सुविधायों या फिर रोजगार की बात हो | हाँ पर हम अपराध में और रिश्तों के प्रति अपनी संजीदगी और लगाव में भी आत्मा मुग्धता को प्राथमिकता देने लगे है | हम कह सकतें है की अपराध और अपराधिक गतिविधियों में दक्षता फिल्मों के माध्यम से मिल रही है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | पैसों का लालच और अवैध संबंधों का बढ़ता प्रचलन समाज को जिस विचारधारा से अंतर्मन से जोड़ दे रहा है उसका विघटन असंभव होगा |

चलियें अब सीधे मुद्दे की बात करतें है अभी हाल में आई फिल्म एनिमल की जमकर तारीफ हुई है जबकि लोगों को यह सोचना चाहिए की इस तरह की फिल्म हमारी अगली पीढ़ी पर किस तरह का प्रभाव डालने वाली है और हमारा समाज किस रास्तें पर जा रहा है | सोचने पर आपको यह संज्ञान होगा की अब लोग सबसे असुरक्षित अपने घर में ही महसूस करने लगे है | रिश्तों में भरोसे का टूटना अब आम बात है नृशंस हत्याएं और आँखों में पानी को सुखा देने वाली अपराध करने के तरीके अब लोगों को भाने लगे है | क्या हम यह सुनिश्चित कर सकेगें की अबोध बच्चे जिन्हें सही गलत का फर्क नहीं पता इस तरह की फिल्म आसानी से सोशल मीडिया वेबसाइट पर देखकर क्या सीख रहें होगे | साउथ की एक फिल्म जेलर जिसने बॉक्स ऑफिस पर 600 करोड़ से अधिक का कारोबार किया है इस फिल्म के एक दृश्य में अभिनेता द्वारा एक गुंडे का जिस तरह से सिर कलम कर दिया जाता है शायद ही कोई दर्शक आजीवन उसे भूल सकें | तमिल फिल्म लियो जिसने अब तक 618 करोड़ से अधिक का कारोबार किया उसमे जिस तरह से नृशंस हत्याएं दिखाई गयी है, उसके प्रभाव को शायद ही कोई भूल सकें | एनिमल फिल्म अभी तक 836 करोड़ से अधिक का कारोबार किया हुआ है और इस फिल्म में रिश्तों को तार- तार किया गया है क्या यह समाज में रिश्तों के प्रति लोगों को वफादार बनाएगा या फिर …कुछ और | यह सोचने का विषय है |

विगत एक दशक में ओटीटी ने सभी हदें पार कर दी और जिस तरह की कथा पटकथा और चलचित्र दिखा रहें है वह उम्र के आधे से अधिक की यात्रा कर चुके लोगों को भी गलत दिशा में धकेलने में देर नहीं करेगा फिर वही फ्री में सभी तबकों तक पहुँच रहा है और अबोध युवा इसे सही मानेगे या फिर गलत जहाँ भावनाएं विचार आवश्यकताओं पर उस उम्र में भारी होती है | मनोरंजन के नाम पर क्या अब हम सब कुछ स्वीकार करने लगें है ? कई लोगों का मानना है की फिल्मों को मनोरंजन के उद्देश्य से ही देखें जबकि जमीनी सच्चाई यह भी है की सभी के जीवन में किसी न किसी फिल्म का अहम् योगदान होता है कुछ मन के अन्दर तक परिवर्तित करने के लिए | अपराध, हत्याएं, लालच, पैसों की भूख, सेक्स, अवैध संबंधो की बढ़ती आवश्यकता अब सामान्य सी दिखाई पड़ने लगी है |

आज के चार दशक पहले जब टीवी ने घर घर अपनी पहचान बनायीं थी तबसे आज की यात्रा पर गौर करिए तो लोगों को मनोरंजन के नाम पर थोडा कुछ अच्छा और बहुत कुछ बुरा सिखने/देखने को मिला है | कहने को तो सेंसर बोर्ड है जो फिल्मों को प्रमाण पत्र जारी करता है और यह सुनिश्चित करता है की किस उम्र के लोग इसे देखेगे पर रिलीज़ होने के बाद हर तबके और उम्र के पास वह आसानी से उपलब्ध होता है | बात अगर हम ओटीटी की करें तो इसके कार्यक्रम देश के लोगों को अन्दर से खोखला करने में लगें हुए है जिस पर किसी का न कोई नियंत्रण है न दखल ही | क्या हम वास्तव में परिवर्तित हो रहें है या फिर हम कई ऐसी बातों और कार्यों को स्वीकार कर ले रहें है जिसकी वास्तव में हमें जरुरत नहीं | क्या हम वीभत्स नही होतें जा रहें है ?

दुनियां की सर्वाधिक आबादी वालें देश में नियंत्रण तभी आवश्यक रूप से कार्य कर पायेगा जबकि सरकार, प्रसाशनिक अधिकारी और जनता किसी उद्देश्य के लिए मिलकर कार्य करें अन्यथा मनोरंजन के नाम पर हम सभी को “एनिमल” बनाया जा रहा है | जिससे हमारी संस्कृति, विरासत, सहयोग की भावना, रिश्तों का कद्र करना, त्याग करना सिर्फ इतिहास के किताबों तक सीमित हो कर रह जायेगा और हम सभी एक ऐसी रेस में सामान रूप से दौड़ते हुए दिखाई देगे जिसका अंतिम लक्ष्य पैसा और व्यभिचार के आलावा कुछ भी नहीं होगा | अब ऐसी जरूरत अति आवश्यक हो गयी है की टेलिकॉम कंपनियां भी ऐसे सभी उपलब्ध कंटेंट को प्रचारित प्रसारित होने से रोके जिसके लिए किसी एक उम्र सीमा का निर्धारण है | केंद्र सरकार और राज्य सरकार भी इस विषय में नए सिरें से कार्य करने प्रभावशाली नियंत्रण रखें नहीं तो एनिमल फिल्म सिर्फ हम पर्दे पर ही नहीं बल्कि हर दुसरें घर में देख रहें होगे, हालाँकि अभी भी कई एनिमल व्याहारिक रूप में भी हम सभी को दिख भी रहें है | सोचियेगा जरुर …….     

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