दूध की बढ़ती कीमतें नहीं, हमारी चिंता शेयर बाजार है
मनोज कुमारदूध की बढ़ती कीमतें अब हमें नहीं डराती हैं। इस बढ़ोत्तरी पर हम कोई विमर्श नहीं करते हैं। हमारा सारा विमर्श का केन्द्र शेयर बाजार है। कौन सा पूंजीपति डूब रहा है, इस पर हम चिंता में घुले जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि शेयर मार्केट की चिंता नहीं करना चाहिए लेकिन पहले तय तो हो कि जीवन के लिए दूध जरूरी है कि शेयर? क्या हम मान लें कि एक साथ तीन रुपये दूध की कीमत में बढ़ोत्तरी कोई माथे पर सलवटें नहीं डालती हैं? क्या हम मान लें कि रोजमर्रा की महंगाई से दो-चार होने को हमने स्वीकार कर लिया है? क्या हम मान लें कि दूध से ज्यादा जरूरी है कि शेयर मार्केट उठ रहा है या गिर रहा है? शायद इस समय का सच यही है कि हमने दूध, सब्जी, किराना और इसी तरह की दिनचर्या की जरूरी चीजों की महंगाई को महंगाई नहीं मान रहे हैं। बढ़ती महंगाई के लिए सत्ता और शासन को हम दोषी बताकर किनारा कर लेते हैं लेकिन जिन्हें शायद कल स...