Shadow

Author: dindiaadmin

I am brother of a martyr, and I support the ABVP

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I am not a student of Delhi University. I am a doctor, more specifically a medical graduate who has cleared NEET PG exam, but I write this as a relative of someone who sacrificed his life for this country.   And I do that, because suddenly the mainstream media has found it worthy to tell you what relatives of martyrs have to say over ABVP vs the Leftists issue at the Delhi University.   However, there is a problem. I have to say something they don’t want to hear. I am not the “right” kind of relative. But I must say it, because “free speech” exists in India.   The same free speech, for which the media is supposedly fighting. The same free speech, which exists in India because the armed forces make sure that it is not overrun by Jihadists and Naxals.   My cousin Dhiraj Singh at...
Armed forces’ pay-and-rank parity: PMO told defence ministry to get forces involved in policy; MoD did opposite

Armed forces’ pay-and-rank parity: PMO told defence ministry to get forces involved in policy; MoD did opposite

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Barely 10 days after the present government was sworn in May 2014, national dailies headlined "PMO tells MoD, MHA: Get forces involved in policy", elaborating that in an attempt to improve the working environment for the armed forces and other internal security outfits, the Prime Minister’s Office has directed the home and defence ministries to ensure that decisions, especially those relating to the uniformed forces, should be taken only after detailed consultations with their top officers. The news item elaborated that PMO strongly believed matters relating to the armed forces should not be decided by civilian bureaucrats sitting in North and South Block and that the military leadership should be involved more in decision-making. Above report further added Prime Minister Narendra Mo...
परमात्मा के ज्ञान में ही सारा ज्ञान समाहित है!

परमात्मा के ज्ञान में ही सारा ज्ञान समाहित है!

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मानव सभ्यता के नव निर्माण के लिए आते हैं दिव्य अवतार:- यह पृथ्वी करोड़ों वर्ष पुरानी है। इस पृथ्वी का जीवन करोड़ों वर्ष का है क्योंकि जब से सूरज का जीवन है तब से मनुष्य का जीवन है। भारत की सभ्यता सबसे पुरानी है। आज मनुष्य का जीवन बहुत ही सुनियोजित एवं वैज्ञानिक ढंग से चल रहा है। यहाँ पर जो प्रथम मानव उत्पन्न हुआ वो बिठूर में गंगा जी के घाट के पास उत्पन्न हुआ। बिठूर में गंगा जी के पास एक छड़ी लगी हुई है जो कि यह इंगित करती है कि मनु और शतरूपा यही पर उत्पन्न हुए थे। मनुष्य चाहे पहले कंदराओं में रहता हो चाहे कृषि युग में रहता हो या किसी अन्य युग में सभी युगों में कोई न कोई मार्गदर्शक मानव सभ्यता का नव निर्माण करने के लिए आये। भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है:- भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। पूरी दुनिया से लोग भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को जानने के लिए विदेशों से आते रहते...

20 Next Generation Predictions

विश्लेषण
During my last few blogs, I tried to establish a framework that can be used for enterprise and Service Provider companies and research organizations across the globe to help define how the next generation’s set of innovation could potentially impact the way we live and operate our life in this century and beyond. One way is to put together a list of innovations that can potentially have a major impact in personal and business life for facets of life on this planet, to look at what has happened and use stochastic processes in other predictive methods and use it to relatively show what could potentially happen. That is all one can do in our daily life outside of all the technical jargons we use every day. One can also look at all the new innovation at stake and make sense out of what is abo...
बयान पर विवाद या कटु सत्य पर प्रहार

बयान पर विवाद या कटु सत्य पर प्रहार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश के फतेहपुर की एक रैली में यह कहा जाना कि अगर किसी गांव को कब्रगाह के निर्माण के लिए कोष मिलता है,तो उस गांव को श्मशान की जमीन के लिए भी कोष मिलना चाहिए. गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए. अगर आप ईद में बिजलीकी आपूर्ति निर्बाध करते हैं, तो आपको दीपावाली में भी बिजली की आपूर्ति निर्बाध करनी चाहिए.यानि,  भेदभाव नहीं होना चाहिए. भाजपा सांसद साक्षी महाराज द्वारा यह कहा जाना कि ”चाहे नाम कब्रिस्‍तान हो, चाहे नाम श्‍मशान हो, दाह होना चाहिए। किसी को गाड़ने की आवश्‍यकता नहीं है।”  गाड़ने से देश में जगह की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्‍होंने कहा कि ”2-2.5 करोड़ साधु हैं सबकी समाधि लगे, कितनी जमीन जाएगी।20 करोड़ मुस्लिम हैं सबको कब्र चाहिए हिंदुस्‍तान में जगह कहां मिलेगी।” अगर सबको दफनाते रहे तो देश में खेती के लिए जगह कहां से आएगी...

UID, Cashless are projects of digital colonisation, compromising our constitutional rights and autonomy

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Serious concerns were raised regarding the UID/Aadhaar project and other digital platforms undermining citizen’s rights, in a workshop organised at the Sambhaavnaa Institute. Their particular concern was that the UID/Aadhaar is destroying people’s right to obtain justice, equality, liberty, and dignity. The workshop, titled ‘Digital Colonisation: Examining how digitization is undermining our economy, democracy and sovereignty’ was organised during February 24-26, 2017 to discuss the impact of the national digital ID system in India (UID / Aadhaar) and the push towards digital banking through demonetisation. 30 participants comprising of policy researchers, lawyers, technologists, activists, and journalists from across the country attended the workshop. At a time when the UID/Aadhaar ...
दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

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(26 फरवरी को पुण्य तिथि के उपलक्ष पर प्रचारित) क्रांतिकारी वीर सावरकार का स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना ही एक विशेष महत्व रखता है।  सावरकर जी पर लगे आरोप भी अद्वितीय थे उन्हें मिली सजा भी अद्वित्य थी।  एक तरफ उन पर आरोप था कि अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना बनाने का, बम बनाने का और विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों से सम्पर्क करने का तो दूसरी तरफ उनको सजा मिली थी पूरे 50 वर्ष तक दो सश्रम आजीवन कारावास। इस सजा पर उनकी प्रतिक्रिया भी अद्वितीय थी कि  ईसाई मत को मानने वाली अंग्रेज सरकार कब से पुनर्जन्म अर्थात दो जन्मों को मानने लगी। वीर सावरकर को 50  वर्ष की सजा देने के पीछे अंग्रेज सरकार का मंतव्य था कि उन्हें किसी भी प्रकार से भारत अथवा भारतीयों से दूर रखा जाये। जिससे वे क्रांति की अग्नि को न भड़का सके।  सावरकर के लिए शिवाजी महाराज प्रेरणा स्रोत थे।  जिस प्रकार औरंगजेब न...
The Corrupt Chief Justices of The Supreme Court of India

The Corrupt Chief Justices of The Supreme Court of India

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Rudimentary logic demands that the highest chairs must have the soundest legs. By that measure, judges ought to have impeccable moral character. But in India, judges are protected less by their sterling reputations than by an arcane law: the “contempt of court” act, which - strangely, only in India! - prohibits raising any questions about judges or their actions. This has reduced talk of judicial corruption to a sullen whisper rather than a democratic debate. Supreme Court lawyer Prashant Bhushan has fought this unhealthy immunity for 20 years. In September 2009, partly as a result of his relentless campaigns, the judiciary finally agreed to declare their financial assets. It was a big first step. Much remained to be done. Soon after, in an interview w...
अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

अभिव्यक्ति बनाम देशद्रोह

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दिल्ली के रामजस कॉलेज की चर्चा आजकल सुर्ख़ियों में हैं। कुछ दिनों पहले JNU में देशद्रोह के नारे लगाने वाले उमर खालिद को अपने शोध पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था। उमर खालिद के व्याख्यान का विरोध ABVP द्वारा किया गया। साम्यवादी मीडिया ABVP के विरोध को गुंडई और खालिद के देशविरोधी नारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहा हैं। भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को आज़ाद करने की बात केवल पाकिस्तान समर्थक करते है। ऐसे में देशद्रोह के आरोप में जमानत पर रिहा खालिद को व्याख्यान के लिए बुलाना देशद्रोही को प्रोत्साहन देने के समान है। खालिद चाहे शैक्षिक रूप से कोई बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी हो तब भी देशद्रोही को किसी प्रकार की छूट नहीं होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना अत्यन्त आवश्यक है। स्वामी दयानंद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े पक्षधर थे। परंतु उन्होंने दो विशेष नियमों के पालन करने पर विशेष...
विकास की नई सोच बनानी होगी

विकास की नई सोच बनानी होगी

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हाल ही में एक सरकारी ठेकेदार ने बताया कि केंद्र से विकास का जो अनुदान राज्यों को पहुंचता है, उसमें से अधिकतम 40 फीसदी ही किसी परियोजना पर खर्च होता है। इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, संबंधित विभाग के सभी अधिकारी आदि को मिलाकर लगभग 10 फीसदी ठेका उठाते समय अग्रिम नकद भुगतान करना होता है। 10 फीसदी कर और ब्याज आदि में चला जाता है। 20 फीसदी में जिला स्तर पर सरकारी ऐजेंसियों को बांटा जाता है। अंत में 20 फीसदी ठेकेदार का मुनाफा होता हैै। अगर अनुदान का 40 फीसदी ईमानदारी से खर्च हो जाए, तो भी काम दिखाई देता है। पर अक्सर देखने  आया है कि कुछ राज्यों मेें तो केवल कागजों पर खाना पूर्ति हो जाती है और जमीन पर कोई काम नहीं होता। होता है भी तो 15 से 25 फीसदी ही जमीन पर लगता है। जाहिर है कि इस संघीय व्यवस्था में विकास के नाम पर आवंटित धन का ज्यादा हिस्सा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है। जबकि हर प्रधानमंत्री भ...