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Author: dindiaadmin

दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

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अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस, 3 दिसंबर, 2024 पर विशेष-ललित गर्ग:-हर वर्ष 3 दिसंबर का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग व्यक्तियों को समर्पित है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में मनाया गया और वर्ष 1981 से अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाने की विधिवत शुरुआत हुई। साल 2024 में विकलांग दिवस का विषय है, “एक समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना”। यह विषय विकलांग व्यक्तियों की भूमिका को मान्यता देता है, जो सभी के लिए एक समावेशी और टिकाऊ दुनिया बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही, यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी पर भी ज़ोर देता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विकलांगता के मुद्दों की समझ को बढ़ावा देना और विकलांग व्यक्तियों की गरिमा, अधिकारों और कल्याण के लिए समर...

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शहर के निर्माण और उसका डिजाइन* किसी ने ठीक ही कहा है “शहर का निर्माण और उसका डिजाइन तभी सार्थक होता है जब वह लोगों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए इसके साथ संवाद, उपयोग और आवागमन के तरीके बेहतर करता है और जिससे शहर रहने योग्य, टिकाऊ और बेहतर सुशासन वाला बनता है।“शहर के ‘टिकाऊपन’ और ‘स्थायित्व’ के विचार को शहरी योजना के केंद्र में बनाए रखना चाहिए। वस्तुतःशहरों को अक्सर आर्थिक विकास के केंद्र के रूप में देखा जाना चाहिए इस दृष्टिकोण से भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के वस्तुकरण या उसे उत्पाद में तब्दील करने की ओर बढ़ता है जिसके पर्यावरण के लिहाज से महत्त्वपूर्ण परिणाम होते हैं। इस अतिरिक्त विकास की लागत की प्रतिक्रिया के लिहाज से शहरों को टिकाऊ तरीके से विकसित करने की उम्मीदें बढ़ रही हैं ताकि दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित की जा सके।इस समग्र भावना से भोपाल में मेरे एक वस्तुविद मित्र ने एक यो...
पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

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पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं* कितनी विचित्र बात है विकसित देश अपने आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के बाद विकासशील देशों को पर्यावरण सुरक्षा का पाठ जबरन पढ़ा रहे हैं।सर्व विदित है कि आज ग्लोबल वार्मिंग संकट दुनिया के तमाम देशों के दरवाजे पर दस्तक देकर रौद्र रूप दिखा रहा है। ऐसे में बाकू में संपन्न कॉप-29 सम्मेलन में दुनिया की आबोहवा बचाने की दिशा में ठोस निर्णय न हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। दरअसल, विकसित देश विगत में की गई अपनी घोषणाओं से पीछे हट रहे हैं। वे गरीब मुल्कों को ग्लोबल वार्मिंग संकट से निपटने के लिये आर्थिक मदद देने को तैयार नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि दुनिया पर जलवायु संकट के गंभीर परिणामों से विकसित देश वाकिफ नहीं हैं। अमेरिका से लेकर स्पेन तक मौसम के चरम का त्रास झेल रहे हैं, लेकिन इसके घातक प्रभावों को देखते हुए भी सभी देश समाधान निकालने को लेकर सहमति क्यों नही...
राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे

राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे

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राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे- ललित गर्ग - कांग्रेस की उलटी गिनती का क्रम रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। महाराष्ट्र के नतीजे इसी बात को रेखांकित कर रहे हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस न तो भारतीय जनता पार्टी को टक्कर दे पा रही है और न ही देशहित के प्रभावी मुद्दे उठा पा रही है। देश में कॉर्पाेरेट विरोधी जो एकसूत्री एजेंडा राहुल ने अपनाया है, या संविधान-रक्षा एवं धर्म-निरपेक्षता के नाम पर एक सम्प्रदाय-विशेष की जो राजनीति वह कर रहे हैं, उसके सकारात्मक परिणाम नहीं आ रहे हैं, उनके इन मुद्दों के पक्ष में वोट नहीं मिले हैं।   निश्चित ही राष्ट्रीय राजनीति में अगर कोई एक चीज है, जो नहीं बदली है, तो वह है भाजपा को मात देने में कांग्रेस की अक्षमता। भाजपा से सीधी टक्कर में कांग्रेस की हार का औसत प्रतिशत बढ़ता ही जा रहे हैं। अब तो कांग्रेस के मुद्दों से इंडिया गठबंधन के...
संभल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से उपजे जटिल सवाल

संभल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से उपजे जटिल सवाल

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-ललित गर्ग- यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं त्रासद है कि उत्तर प्रदेश के संभल में एक बार फिर एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों ने जो हिंसा, नफरत एवं द्वेष को हथियार बनाकर अशांति फैलायी, वह भारत की एकता, अखण्डता एवं भाईचारे की संस्कृति को क्षति पहुंचाने का माध्यम बनी है। स्थानीय अदालत के आदेश पर एक मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा एवं उन्माद का भड़क उठना और इसके चलते तीन लोगों की जान चले जाना, चुनौतीपूर्ण, विडम्बनापूर्ण एवं शर्मनाक है। इस घटना में कई अन्य लोग घायल भी हुए, जिनमें 30 से अधिक पुलिसकर्मी भी हैं। इस हिंसा को टाला जा सकता था यदि अदालत के आदेश पर हो रहे सर्वेक्षण का हिंसक विरोध नहीं किया जाता। ध्यान रहे कि जब ऐसा होता है तो बैर बढ़ने के साथ देश की छवि पर भी बुरा असर पड़ता है। निःसंदेह इस सम्प्रदाय विशेष को भी यह समझने की आवश्यकता है कि जब देश कई चुनौतियों से दो-चार है, तब राष्ट्रीय एकता एवं सद्...
वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

वो चुपचाप आए और एक बार फिर खेला कर गए!

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सुशील कुमार 'नवीन' वो चुपके से आते हैं और सारा खेल बदल जाते हैं। वो भी इस तरह से कि किसी को सहजता से यकीन ही नहीं हो। प्रत्याशित को अप्रत्याशित में परिवर्तित करने वाले इन लोगों के पास न कोई पहचान पत्र होता है और न उनकी कोई अन्य विशिष्ट पहचान। सामान्य व्यक्तित्व,सामान्य वेशभूषा,सामान्य बोलचाल कुछ भी तो ऐसा अन्यतर नहीं होता,जिससे उन्हें अलग से पहचाना जा सके। न वो किसी से जाति, धर्म या संप्रदाय के रूप में उनकी पहचान पूछते हैं और न ही इस तरह की अपनी पहचान किसी को बताते हैं।     कौन है वो लोग, आखिर कहां से आते हैं? न उन्हें गाड़ी चाहिए, न फाइव स्टार होटल। न कोई अन्य वीआईपी ट्रीटमेंट। सामान्य ढाबे या सामान्य धर्मशालाएं जिन्हें परम वैभव से कमतर सुख देने वाले साधन से कम नहीं होते हैं। स्वहित से दूर राष्ट्रहित जिसके लिए सर्वोपरि होता है। बिना झंडे, बिना पर्चे राष्ट्रहित मे...
उड़ता भारत

उड़ता भारत

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उड़ता भारत विनीत नारायणकुछ वर्ष पहले एक फ़िल्म आई थी ‘उड़ता पंजाब’, जिसमें दिखाया गया था कि प्रदेश सरकार की लापरवाही से पंजाबके घर-घर में मादक दवाओं का प्रयोग फैल गया है। जिसके चलते पंजाब कि पूरी युवा पीढ़ी तबाह हो रही है। जिनमेंहर वर्ग के युवा शामिल हैं। ग़रीब-अमीर का कोई भेद नहीं। उस वक्त पंजाब में अकाली दल की सरकार थी, तो आमआदमी पार्टी ने सरकार को इस तबाही के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर अपना चुनाव अभियान चलाया। इधर पिछले दसवर्षों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर क्या ये सरकार दावे से कह सकती है कि दिल्ली में मादकपदार्थों की बिक्री सारे आम नहीं हो रही? कुछ महीने पहले हरियाणा के सोनीपत में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारीस्थानीय डिग्री कॉलेज के छात्रों को नशीली दवाओं के सेवन के विरुद्ध भाषण दे रहे थे। तभी एक छात्र ने उनसे पूछाकि हमारे कॉलेज के बाहर पान की दुकान पर नशीली दवाएँ रात-दिन बि...
प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

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प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मानमृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं से नए-नए कीर्तिमान रच रहे हैं और इसी क्रम में जुड़ गई है उनकी ताजा गुयाना यात्रा। प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2024 में ब्राजील में आयोजित जी -20 शिखर सम्मलेन में अपना लोहा मनवाने के बाद गुयाना की यात्रा की जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की विगत 56 वर्षो के पश्चात की गई गुयाना यात्रा थी । गुयाना में प्रधानमंत्री का भव्य स्वागत किया गया । गुयाना के दौरे में प्रधानमंत्री ने वहां की संसद को संबोधित किया तथा साथ ही गुयाना सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया। गुयाना दक्षिण अमेरिका में एक छोटा सा देश है किंतु उसके विकास की सभवनाएं अनंत है क्योंकि वहां तेल व गैस के बड़े भंडार मिले हैं । प्रधानमंत्री की गुयाना यात्रा के दौरान भारत और गुयाना के म...
प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

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*प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं* दिल्ली की दुर्दशा पर एक सरकारी बयान पढ़ने में आया, सरकार फ़रमाती है ‘हवा और पानी तो ऐसे हैं, जिन्हें रोका या बांधा नहीं जा सकता।“सरकार के पास बयानबाज़ी के अलावा विकल्प भी क्या है? जिस समय सर्वोच्च अदालत के ‘कोर्ट रूम’ में प्रदूषण पर सुनवाई चल रही थी, उस समय वहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक 994 था। वह ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी का प्रदूषण था। दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता 978 भी दर्ज की गई। ऐसे प्रदूषण में जीना भी ‘राष्ट्रीय शर्मिन्दगी’ है। सर्वोच्च अदालत का वह विशेष और संवेदनशील कक्ष होता है, जहां की हवा ‘गैस चैंबर’ के हालात को भी लांघ गई थी। यह शर्मनाक स्थिति नहीं है, तो और क्या है? राजधानी दिल्ली की ‘प्रदूषित हवा’ का औसत सूचकांक 500 को पार कर चुका है। अब एक दिन ऐसा भी आएगा, जब सडक़ों पर ‘मास्कधारी आबादी’ ही दिखाई देगी, लिहाजा अब सर्वोच्च ...
वायु प्रदूषण: सही कारण का हल ही करेगा नियंत्रण

वायु प्रदूषण: सही कारण का हल ही करेगा नियंत्रण

Today News, विश्लेषण
*रजनीश कपूरदीपावली के आस-पास हर साल दिल्ली में वायु प्रदूषण के आँकड़े बढ़ने लग जाते हैं। इस समस्या को हम कई सालों से सुनतेआ रहे हैं। एक से एक सनसनीखेज वैज्ञानिक रिपोर्टो की बातों को हमें भूलना नहीं चाहिए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिएकि दिल्ली से निकलने वाले गंदे कचरे, कूड़ा करकट को ठिकाने लगाने का पुख्ता इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया। सरकारयही सोचने में लगी है कि यह पूरा का पूरा कूड़ा कहां फिंकवाया जाए या इस कूड़े का निस्तार यानी ठोस कचरा प्रबंधन कैसेकिया जाए? जाहिर है इस गुत्थी को सुलझाए बगैर जलाए जाने लायक कूड़े को चोरी छुपे जलाने के अलावा और क्या चाराबचता होगा? इस गैरकानूनी हरकत से उपजे धुंए और जहरीली गैसों की मात्रा कितनी है जिसका कोई हिसाब किसी भीस्तर पर नहीं लगाया जा रहा है। इन सबके चलते आम नागरिकों पर सरकार द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों से असुविधा होरही है। परंतु सरकार या उसकी प्रदूषण ...