चाणक्य के अर्थशास्त्र में राज्य की व्यवस्था एवं स्वरूप
- प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकजमहामति चाणक्य ने अपने महान ग्रंथ ‘अर्थशास्त्रम्’ राज्य के कर्तव्य और राज्य की शक्तियों तथा स्वरूप पर प्रकाश डाला है। परन्तु सबसे पहले यूरोपीय राजनीतिशास्त्रियों के सन्दर्भ में यह तथ्य सदा स्मरण रखना चाहिये कि भारत का कोई भी धर्मज्ञ विद्वान या राजशास्त्रप्रणेता कभी भी यह दावा नहीं करता कि वह इस विषय पर कोई नितांत नवीन बात कह रहा है। वह सदा आधारभूत शास्त्रों के प्रमाण देते हुये तथा पूर्व आचार्यों के मत श्रद्धापूर्वक उपस्थित करते हुये उसमें अपनी व्याख्या अथवा अपनी कोई नवीन उद्भावना इस विनय के साथ प्रस्तुत करता है कि वह परम्परा का ही पोषण कर रहा है और स्वधर्म का पालन कर रहा है। अतः भारत या विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय में चाणक्य सहित किसी भी भारतीय राजशास्त्र प्रणेता को पढ़ना और पढ़ाना तब तक अप्रामाणिक है, जब तक सनातन धर्म के आधारभूत तत्वों की भारतीय शास्त्रों...