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ये भारत क्यों छोड़ रहे हैं ?

ये भारत क्यों छोड़ रहे हैं ?

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भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे मेधावी अब भी विदेशी निगमों में रोजगार को प्राथमिकता दे रहे हैं, तो देश का धनाढ्य वर्ग भी अपनी सरजमीं छोड़ने में पीछे नहीं है। इस साल जून में आई हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2023 के अंत तक 6500 करोड़पतियों के भारत छोड़ने की संभावना है। ये क्यों भारत छोड़ रहे हैं? हेनली में एक वरिष्ठ पार्टनर घुमा-फिरा कर इसे ‘हाल की और लगातार उथल-पुथल’ बताते हैं। उन्होंने कहा कि महत्त्वपूर्ण बात यह है कि और भी ज्यादा निवेशक सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तथा जलवायु परिवर्तन के असर के कारण अपने परिवारों को भारत से निकालकर विदेश ले जाने पर विचार कर रहे हैं। ब्रेन-ड्रेन या प्रतिभा पलायन का यह एक पहलू है। पहले सरकारी खर्च पर देश के आला संस्थानों से शिक्षित और योग्य इंजीनियर और प्रबंधन छात्र रोजगार के अवसरों के लिए पश्चिम के देशों ...
महंगाई, डायन खाय जात है

महंगाई, डायन खाय जात है

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बढ़ती महंगाई लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है, महंगाई के लिए खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति संबंधी चिंताओं के बीच कच्चे तेल की कीमतें पिछले 10 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंचने से महंगाई की चुनौती और कठिन हो गई है। ऐसे में सरकार के लिए महंगाई कम करना बड़ा मुद्दा बन गया है। यद्यपि केंद्र सरकार ने 29 अगस्त को घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम 200 रुपए घटाकर बड़ी राहत दी है, लेकिन आम आदमी सरकार से खाद्य पदार्थों की कीमतों के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल के दामों में कुछ कमी की भी अपेक्षा कर रहा है। हाल ही में 5 सितंबर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि जुलाई 2023 में जो मुद्रास्फीति सप्लाई चेन के झटकों के कारण ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है, उसे कम करने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार जून 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 4.87 प्रतिशत थी, वह...
भारतीय संस्कृति वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनने की ओर अग्रसर

भारतीय संस्कृति वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनने की ओर अग्रसर

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भारत आदि काल से ही एक जीता जागता राष्ट्र पुरुष है, यह मात्र एक जमीन का टुकड़ा नहीं है। भारत के कंकड़ कंकड़ में शंकर का वास बताया जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में भारत के आर्थिक विकास में विरासत पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है और भारत में आर्थिक विकास के साथ ही सांस्कृतिक विकास पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। जिसके चलते अन्य देशों की तुलना में भारत की आर्थिक विकास दर मजबूत बनी हुई है। बल्कि अब तो अन्य कई देश, विकसित देशों सहित, भी अपने आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के हल हेतु एवं अपने आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से भारतीय सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता 75 वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर ली थी, परंतु भारत की सनातन संस्कृति आदि काल से चली आ रही है एवं लाखों वर्ष पुरानी है। भारत को ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में जाना जाता रहा है और भारतीय सनातन...
भारत का गौरव एवं समृद्धि: यूरोप से तुलनात्मक कालक्रमानुसार विवरण

भारत का गौरव एवं समृद्धि: यूरोप से तुलनात्मक कालक्रमानुसार विवरण

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प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकजभाग 1 महाभारत काल: योगेश्वर कृष्ण का काल(ईसा पूर्व ३१३८ अर्थात आज से लगभग 5200 वर्ष पहले)यूरोपीय क्षेत्र में इस सम्पूर्ण अवधि में हिमयुग है। पूरा क्षेत्र मोटी बर्फीली परतों से ढँका।भारतवर्ष का तत्कालीन विस्तार:भीष्म पर्व के अन्तर्गत जम्बू खण्ड विनिर्माण पर्व में नवम अध्याय में श्लोक 38 से 70 तक में लगभग 250 जनपदों के विवरण हैं।- इन राज्यांे के वैभव, भवन, प्रासाद, नगर, मार्ग, वीथी, सरोवर, शिल्प-वैभव, मन्दिर, चैत्य आदि का विशद वर्णन महाभारत में है।- आदि पर्व में प्रथम अध्याय में ही कुलपति, सत्रों आदि का वर्णन।- सूत कुल की गरिमा का आख्यान।- वाणी, व्याकरण, शास्त्रांे के ज्ञान की विपुलता।- प्राचीन काल से चले आ रहे इतिहास-वर्णन का प्रमाण (आदिपर्व, अध्याय 1, श्लोक 76)- काल सम्बन्धी विराट ज्ञान।- महान राजवंशों की विपुलता-कुरू, यदु, भरत, ययाति, इक्ष्वाकु आदि।- देशांे, तीर्...
पनिवेशवाद, साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद के बाद अब राष्ट्रीयता पर आधारित हो अर्थव्यवस्था

पनिवेशवाद, साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद के बाद अब राष्ट्रीयता पर आधारित हो अर्थव्यवस्था

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अमेरिकी महाद्वीप की खोज के साथ ही उपनिवेशवाद का प्रारम्भ हुआ और यह 20वीं शताब्दी के लगभग आधे भाग तक निर्बाध रूप से चलता रहा। उपनिवेशवाद की पहली खेप 16वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुई जब फ्रान्स, स्पेन एवं इंग्लैंड ने पृथ्वी के दक्षिणी भाग में स्थिति छोटे छोटे देशों को अपना उपनिवेश बना लिया। पश्चिमी देशों ने उपनिवेश देशों के मूल निवासियों को दूर दराज इलाकों में भेजते हुए यूरोपीयन देशों के निवासियों के लिए इन उपनिवेश देशों के व्यापार एवं प्रशासन पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। इन देशों के मूल निवासियों को न केवल उपनिवेश देशों में श्रमिकों के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा बल्कि अन्य उपनिवेश देशों एवं पश्चिमी देशों में भी इन मूल निवासियों को ले जाकर श्रमिकों के तौर पर बसाया गया। उपनिवेश देशों से बहुत सस्ती दरों पर कच्चा माल अपने देशों में ले जाकर, इस कच्चे माल से उत्पाद निर्मित कर इन ...
<strong>अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूपीआई की स्वीकार्यता भारतीय रुपए को मजबूती प्रदान करेगी</strong>

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूपीआई की स्वीकार्यता भारतीय रुपए को मजबूती प्रदान करेगी

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भारतीय यूनीफाईड पेमेंट इंटरफेस को कई देश अपनाने को तैयार हो गए हैं। भारत के पड़ौसी देश श्रीलंका ने भी अभी हाल ही में यूपीआई को अपना लिया है। पूर्व में, भारत और श्रीलंका की सरकारों के बीच इस सम्बंध में सहमति बन गई थी। फ्रान्स, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर ने पहिले ही भारतीय यूपीआई को अपना लिया है। इससे भारत के नागरिकों एवं यूपीआई अपनाने वाले अन्य देशों के बीच रुपए का लेनदेन आसान हो जाएगा। आम नागरिकों को इससे बहुत फायदा होगा क्योंकि रुपए को पहिले अमेरिकी डॉलर में बदलकर फिर अन्य देशों की मुद्रा में परिवर्तन करने के अतिरिक्त खर्च से बचा जा सकेगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत आने वाले सभी यात्रियों को यूपीआई के माध्यम से भुगतान करने की सलाह दी है ताकि रुपए के उपयोग को बढ़ावा मिल सके।        विभिन्न देशों के बीच विदेशी व्यापार के व्यवहारों का निपटान करने हेतु उत्पादों...
<strong>भारतीय रिजर्व बैंक ने नहीं बढ़ाई ब्याज दर</strong>

भारतीय रिजर्व बैंक ने नहीं बढ़ाई ब्याज दर

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वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की तुलना में मुद्रास्फीति को दी जा रही है प्राथमिकताआज विश्व के समस्त देश आर्थिक विकास के एजेंडा पर कम ध्यान देते हुए मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। हालांकि मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए आपूर्ति के साधनों में सुधार करने पर पूरा ध्यान होना चाहिए परंतु बाजार में उत्पादों की मांग कम करने के उद्देश्य से समस्त देश केवल ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते पाए जा रहे हैं। ब्याज दरों में लगातार बढ़ौतरी से न केवल वित्त की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगता है बल्कि वित्त की लागत भी बढ़ने लगती है, जिससे बाजार में उत्पादों की मांग कम होने लगती है, उत्पादन गतिविधियों में ठहराव आता है, बैकों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है एवं रोजगार के अवसर कम होने लगते हैं। कुल मिलाकर, पूरा आर्थिक चक्र ही विपरीत रूप से प्रभ...
भारत की आर्थिक प्रगति को कुछ देश प्रभावित करना चाहते हैं

भारत की आर्थिक प्रगति को कुछ देश प्रभावित करना चाहते हैं

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भारतीय सनातन संस्कृति की अपनी कुछ विशेषताएं हैं, जिनके पालन से भारत आर्थिक क्षेत्र में चंहुमुखी विकास करता दिखाई दे रहा है। परंतु, कुछ देश भारत की आर्थिक प्रगति को प्रतिस्पर्धा के नजरिए से देखते हुए इसे पचा नहीं पा रहे हैं क्योंकि आज भारत की विकास दर इन देशों से कहीं आगे निकल गई है जबकि इन देशों की न केवल विकास दर लगातार कम हो रही है बल्कि इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आती दिखाई दे रही हैं। आज पूरे विश्व में भारतीय सनातन संस्कृति सबसे पुरानी संस्कृति मानी जा रही है, अतः वैश्विक स्तर पर कुछ देश एवं संस्थान मिलाकर भारतीय सनातन संस्कृति पर लगातार प्रहार करते दिखाई दे रहे हैं ताकि न केवल भारत के सामाजिक तानेबाने को छिन्न भिन्न किया जा सके बल्कि भारत की आर्थिक विकास दर को भी प्रभावित किया जा सके। हाल ही में, भारत के मणिपुर एवं हरियाणा जैसे र...
भारत, विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति

भारत, विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति

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-बलबीर पुंज बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दावा किया। उन्होंने 26 जुलाई को दिल्ली स्थित 'भारत मंडपम' का उद्घाटन करते हुए कहा, "मैं देश को... विश्वास दिलाता हूं कि हमारे तीसरे कार्यकाल में भारत, शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में पहुंच कर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है।" स्वतंत्र भारत के इतिहास में जो आजतक नहीं हुआ, क्या वह अगले कुछ वर्षों में संभव है या फिर यह दावा मात्र चुनावी जुमला है? मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार आई, तब भारत— विश्व की दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था थी। तब देश का आर्थिक आकार अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)— लगभग दो ट्रिलियन डॉलर था, जो जून 2023 में बढ़कर पौने चार ट्रिलियन डॉलर हो गया। इन नौ वर्षों में भारत, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। यह उपलब्धि इसलिए बड़ी और सकारात्मक है, क्योंकि स्वतंत्र भारत को एक ट्रिलिय...
<strong>विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय स्टॉक (पूंजी) बाजार में बढ़ रहा है निवेश</strong>

विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय स्टॉक (पूंजी) बाजार में बढ़ रहा है निवेश

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किसी भी देश के लिए स्टॉक (पूंजी) बाजार में हो रहा उतार चढ़ाव उस देश की अर्थव्यवस्था में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है। यदि स्टॉक बाजार में तेजी दिखाई देती है तो इसका आशय सामान्यतः यह लगाया जाता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था में सुधार दृष्टिगोचर है। इसके विपरीत यदि स्टॉक बाजार नीचे की ओर जाता दिखाई देता है तो इसका आशय यह लगाया जाता है कि निकट भविष्य में उस देश की अर्थव्यवस्था में कुछ समस्याएं आने वाली हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में आज लगभग किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, जिसके चलते भारत का स्टॉक बाजार नित नई ऊंचाईयां हासिल करता दिखाई दे रहा है। इसके ठीक विपरीत अमेरिका, चीन, रूस, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, आदि जैसे लगभग सभी विकसित देशों में आज आर्थिक समस्याओं का अंबार लगा है। मुद्रा स्फीति की समस्या को तो कई विकसित देश अभी भी सम्हाल नहीं पाए हैं। विदेशी निवेशक संस्थानों का ...