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एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’

एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’

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एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’ *रजनीश कपूर कहते हैं कि एक बड़ी उपलब्धि कि शुरुआत छोटी सी पहल से ही होती है। दुबई का जेबेल अली इलाक़ा हाल ही में सुर्ख़ियों में था। दुनिया भर के हिंदुओं के लिए यह एक गर्व की बात है कि मुस्लिम बाहुल्य संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी दुबई में राम नवमी के दिन एक विशाल हिंदू मंदिर का लोकार्पण हुआ। इस विशाल हिंदू टेंपल की शुरुआत एक छोटे से कमरे से हुई थी। आज वही छोटा से कमरे वाला मंदिर 70 हज़ार वर्ग फ़ीट का एक विशाल मंदिर बन गया है। इस मंदिर को शांति, सद्भाव और सहिष्णुता के एक मजबूत संदेश के तौर पर भी देखा जा रहा है। 1958 में बने इस एक कमरे के मंदिर को गुरु दरबार सिंधी मंदिर के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर की स्थापना रामचन्द्रन सवलानी और विक्योमल श्रॉफ़ ने की थी। ज्यों-ज्यों दुबई में बसे हिंदुओं को इस मंदिर के बारे में पता चला तब से वे ब...
श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी

श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी

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श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी ह्रदय नारायण दीक्षित श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी। वे भारत के मन में रमते हैं। मिले तो राम राम, अलग हुए तो राम राम। राम का नाम हम सब बचपन से सुनते आए हैं। वे धैर्य हैं। सक्रियता हैं। परम शक्तिशाली हैं। भाव श्रद्धा में वे ईश्वर हैं। राम तमाम असंभवों का संगम हैं। युद्ध में पौरुष पराक्रम और निजी जीवन में मर्यादा के पुरुषोत्तम। राम भारतीय आदर्श व आचरण के शिखर हैं। भारतीय मनीषा ने उन्हें ब्रह्म या ईश्वर जाना है। श्रीकृष्ण भी विष्णु के अवतार हैं। वे अर्जुन को गीता (10.31) में बताते हैं ‘‘पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ और शास्त्रधारियों में राम हूँ।‘‘ राम महिमावान हैं। श्रीकृष्ण भी स्वयं को राम बताते हैं। श्रीराम प्रतिदिन प्रतिपल उपास्य हैं लेकिन विजयादशमी व उसके आगे पीछे श्रीराम के जीवन पर आधारित पूरे देश में श्रीराम लीला के उत्सव होते हैं। सम्प्रति...
आत्मनिर्भर भारत बनाम रामराज्य

आत्मनिर्भर भारत बनाम रामराज्य

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आत्मनिर्भर भारत बनाम रामराज्य या रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है आत्मनिर्भरता डॉ. शंकर सुवन सिंह हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूप (प्रतीक) के तौर पर किया जाता है। रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी। गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। आत्मनिर्भर भारत की नींव गांधी के रामराज्य पर टिकी थी। गाँधी का स्वराज्य, रामराज्य की परिकल्पना का आधार था। स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो। यही स्वराज्य रा...
हिन्दू जागरण के सूत्रधार  अशोक सिंहल जी

हिन्दू जागरण के सूत्रधार अशोक सिंहल जी

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हर_दिन_पावन "27 सितम्बर/#जन्म_दिवस" #हिन्दू_जागरण_के_सूत्रधार #अशोक_सिंहल_जी #श्रीराम_जन्मभूमि_आन्दोलन के दौरान जिनकी हुंकार से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, वे श्री अशोक सिंहल संन्यासी भी थे और योद्धा भी; पर वे स्वयं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक प्रचारक ही मानते थे। 27 सितम्बर, 1926 को आगरा (उ.प्र.) में हुआ। सात भाई और एक बहिन में वे चौथे स्थान पर थे। मूलतः यह परिवार #ग्राम_बिजौली (जिला #अलीगढ़, उ.प्र.) का निवासी था। उनके पिता श्री महावीर जी शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर में संन्यासी तथा विद्वानों के आने के कारण बचपन से ही उनमें हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय #प्रो_राजेन्द्र_सिंह (#रज्जू_भैया) ने उन्हें स्वयंसेवक बनाया। उन्होंने अशोक जी की मां विद्यावती जी को संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने अशोक जी को शा...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग कवि तोरवे नरहरि (कुमार वाल्मीकि) कृत कन्नड़ रामायण में जाबाली मुनि द्वारा श्रीराम का दु:ख निवारण आदिकवि वाल्मीकिजी की रामायण से प्रभावित होकर भारत में विभिन्न भाषाओं में श्रीरामकथा एवं काव्य की रचना की गई। गोस्वामी तुलसीदासजी के बहुत वर्ष पहले ही इतनी अधिक रामायणें तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम आदि भाषाओं में लिखी और पारायण की जाती रही थी। कन्नड़ भाषा में नागचन्द्र, पौन्न, कुमुदेन्दु, नारायण, विजगुणार्थ, योगीन्द्र, निम्भस प्रभृति कवियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से श्रीरामचरित्र लिखे। भारतीय साहित्य में रामायण-काव्यों की कोई कमी नहीं है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को कन्नड़ भाषा के ख्याति प्राप्त कवि 'कुमार व्यासÓ ने बड़े ही हृदय स्पर्शीय पंक्तियों में इस प्रकार व्यक्त किया है। तिणुकिदनु फणिराय रामायणद कविगल भारदलि। तिंर्थिणय रघुवर चरित येलि कालिऽलु तेरपिलु।। रामा...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग नारदजी, ब्रह्माजी और शिवजी भी पक्षिराज गरुड़ का सन्देह-मोह क्यों दूर नहीं कर सके? गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा।। अब सो कथा सुनहु जेहि हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू।। जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा।। इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो।। श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड ५८-१-२ हे गिरिजे! मैंने (शिवजी ने) वह सब इतिहास तुम्हें कहा है कि जिस समय मैं काकभुशुण्डी के पास गया था। अब वह कथा सुनो जिस कारण से पक्षिकुल के ध्वजा गरुड़ उस काक के पास गए थे। जब श्रीरघुनाथजी ने ऐसी रणलीला की जिस लीला का स्मरण करने से मुझे लज्जा होती है- मेघनाद के हाथों अपने को बँधा लिया- तब नारदजी ने गरुड़ को भेजा। सर्पों के भक्षक गरुड़जी ने श्रीराम-लक्ष्मण के नागपाश के बन्धन काटकर उन्हें मुक्त कर चले गए। तब गरुड़जी के हृदय मे...
सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी

सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी

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सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी -ललित गर्ग- भगवान गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे सात्विक देवता हैं और विघ्नहर्ता हैं। वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हैं। हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए है। मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक का चरित्र हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को सिद्धि विनायक भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणेश के रूप में विष्णु शिव-पावर्ती के पुत्र के रूप में जन्म थे। उनके जन्म पर सभी देव उन्हें आशीर्वाद देने आए थे। वि...
गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ

गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ

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गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ गणेश पूजन में दूर्वा पौराणिक धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार गणेशजी को दूर्वा अवश्य चढ़ाना चाहिए। अनलासुर नामक एक राक्षस था। वह देखने में भयानक लगता था। वह साधु संतों को जीवित अवस्था में ही निगल जाता था। सभी बड़े दु:खी और अशान्त थे। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। सभी सन्तजनों ने गणेशजी से प्रार्थना की कि वे इस दानव से मुक्ति प्रदान करें और उनकी रक्षा करें। गणेशजी ने सन्तों की प्रार्थना सुनी और वे अनलासुर राक्षस के पास गए। उन्होंने राक्षस को निकल लिया। ऐसा करने से गणेशजी के पेट में जलन होने लगी। गणेशजी बड़े परेशान हो गए। कश्यप ऋषि ने उन्हें हरी दूर्वा की इक्कीस और ग्यारह गाँठ चढ़ाई। इस प्रकार गणेशजी के पेट की जलन का शमन हो गया। तभी से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है। कुछ धार्मिक ग्रन्थों में गणेशजी को दूर्वा की माला पहनाने का वर्णन भी प्राप्त होता है। दूर्वा एक...
गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है

गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है एक समय की बात है कि श्रीराम महर्षि अगस्त्य के आश्रम में गए। उन्होंने महर्षि अगस्त्य को दण्डवत प्रणाम, नमस्कार किया। श्रीरघुपति को देखते ही महर्षि अगस्त्य उठ खड़े हो गए तथा उन्होंने बाहों में भरकर उनका आलिंगन किया। कुम्भज अर्थात् अगस्त्य ने श्रीराम का आलिंगन किया तथा वे आनन्दित हो गए। महर्षि बोले- हे श्रीरामजी! आपने मुझे पावन कर दिया। आज का यह दिन और घड़ी धन्य है। तदनन्तर उन्होंने आसन पर बैठाकर बहुत विनयपूर्वक उनका आदर-सत्कार किया फिर उन्होंने प्रभु को पके हुए तथा मीठे फल का आहार कराया तथा जलप्राशन करा दिया। पछे जुग्म कंकण होम हीरा, रत्नजड़ित विशाल, ते पहेराव्यां श्रीराम ने कर, अगस्त्य तत्काल। थया प्रसन्न कंकण जोईने, पूछयुं मुनि ने राम, कृतविधि वस्तु स्वर्गनी क्यांथी तमारे धाम। ग...
श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस में श्रीराम द्वारा शिव-धनुष भंग होने के उपरान्त राजा दशरथजी को श्रीराम के विवाह हेतु मिथिला नरेश ने दूतों द्वारा निमन्त्रण भेजा गया। इस निमन्त्रण पत्र के अनुसार अयोध्या से राजा दशरथजी गुरु वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप, मार्कण्डेय, कात्यायन, ब्रह्मर्षि तथा मंत्रियों सहित श्रीराम के विवाह में सम्मिलित होने गए। दशरथजी के दो पुत्र भरत एवं शत्रुघ्न भी उनके साथ गए थे। इनके अतिरिक्त दशरथजी के साथ उनकी रानियों एवं दासियों का उनके साथ जाने का वर्णन नहीं है। इस तरह श्रीरामजी के विवाह में महिलाओं का बारात में न जाना उनकी सहभागिता का अभाव लगता है। अत: सुधीजनों एवं पाठकों के लिए विभिन्न रामायणों में अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि श्रीरामजी के विवाह में बार...