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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग नारदजी, ब्रह्माजी और शिवजी भी पक्षिराज गरुड़ का सन्देह-मोह क्यों दूर नहीं कर सके? गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा।। अब सो कथा सुनहु जेहि हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू।। जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा।। इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो।। श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड ५८-१-२ हे गिरिजे! मैंने (शिवजी ने) वह सब इतिहास तुम्हें कहा है कि जिस समय मैं काकभुशुण्डी के पास गया था। अब वह कथा सुनो जिस कारण से पक्षिकुल के ध्वजा गरुड़ उस काक के पास गए थे। जब श्रीरघुनाथजी ने ऐसी रणलीला की जिस लीला का स्मरण करने से मुझे लज्जा होती है- मेघनाद के हाथों अपने को बँधा लिया- तब नारदजी ने गरुड़ को भेजा। सर्पों के भक्षक गरुड़जी ने श्रीराम-लक्ष्मण के नागपाश के बन्धन काटकर उन्हें मुक्त कर चले गए। तब गरुड़जी के हृदय मे...
सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी

सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी

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सुखी एवं समृद्ध जीवन के आधार है गणेशजी -ललित गर्ग- भगवान गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे सात्विक देवता हैं और विघ्नहर्ता हैं। वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हैं। हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए है। मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक का चरित्र हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को सिद्धि विनायक भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणेश के रूप में विष्णु शिव-पावर्ती के पुत्र के रूप में जन्म थे। उनके जन्म पर सभी देव उन्हें आशीर्वाद देने आए थे। वि...
गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ

गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ

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गणेशजी की रोचक लघुकथाएँ गणेश पूजन में दूर्वा पौराणिक धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार गणेशजी को दूर्वा अवश्य चढ़ाना चाहिए। अनलासुर नामक एक राक्षस था। वह देखने में भयानक लगता था। वह साधु संतों को जीवित अवस्था में ही निगल जाता था। सभी बड़े दु:खी और अशान्त थे। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। सभी सन्तजनों ने गणेशजी से प्रार्थना की कि वे इस दानव से मुक्ति प्रदान करें और उनकी रक्षा करें। गणेशजी ने सन्तों की प्रार्थना सुनी और वे अनलासुर राक्षस के पास गए। उन्होंने राक्षस को निकल लिया। ऐसा करने से गणेशजी के पेट में जलन होने लगी। गणेशजी बड़े परेशान हो गए। कश्यप ऋषि ने उन्हें हरी दूर्वा की इक्कीस और ग्यारह गाँठ चढ़ाई। इस प्रकार गणेशजी के पेट की जलन का शमन हो गया। तभी से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है। कुछ धार्मिक ग्रन्थों में गणेशजी को दूर्वा की माला पहनाने का वर्णन भी प्राप्त होता है। दूर्वा एक...
गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है

गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग गुजराती गिरधर रामायण के अनुसार सब दानों में अन्नदान ही सर्वश्रेष्ठ है एक समय की बात है कि श्रीराम महर्षि अगस्त्य के आश्रम में गए। उन्होंने महर्षि अगस्त्य को दण्डवत प्रणाम, नमस्कार किया। श्रीरघुपति को देखते ही महर्षि अगस्त्य उठ खड़े हो गए तथा उन्होंने बाहों में भरकर उनका आलिंगन किया। कुम्भज अर्थात् अगस्त्य ने श्रीराम का आलिंगन किया तथा वे आनन्दित हो गए। महर्षि बोले- हे श्रीरामजी! आपने मुझे पावन कर दिया। आज का यह दिन और घड़ी धन्य है। तदनन्तर उन्होंने आसन पर बैठाकर बहुत विनयपूर्वक उनका आदर-सत्कार किया फिर उन्होंने प्रभु को पके हुए तथा मीठे फल का आहार कराया तथा जलप्राशन करा दिया। पछे जुग्म कंकण होम हीरा, रत्नजड़ित विशाल, ते पहेराव्यां श्रीराम ने कर, अगस्त्य तत्काल। थया प्रसन्न कंकण जोईने, पूछयुं मुनि ने राम, कृतविधि वस्तु स्वर्गनी क्यांथी तमारे धाम। ग...
श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस में श्रीराम द्वारा शिव-धनुष भंग होने के उपरान्त राजा दशरथजी को श्रीराम के विवाह हेतु मिथिला नरेश ने दूतों द्वारा निमन्त्रण भेजा गया। इस निमन्त्रण पत्र के अनुसार अयोध्या से राजा दशरथजी गुरु वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप, मार्कण्डेय, कात्यायन, ब्रह्मर्षि तथा मंत्रियों सहित श्रीराम के विवाह में सम्मिलित होने गए। दशरथजी के दो पुत्र भरत एवं शत्रुघ्न भी उनके साथ गए थे। इनके अतिरिक्त दशरथजी के साथ उनकी रानियों एवं दासियों का उनके साथ जाने का वर्णन नहीं है। इस तरह श्रीरामजी के विवाह में महिलाओं का बारात में न जाना उनकी सहभागिता का अभाव लगता है। अत: सुधीजनों एवं पाठकों के लिए विभिन्न रामायणों में अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि श्रीरामजी के विवाह में बार...
बिहारी जी मंदिर में मौत क्यों ?

बिहारी जी मंदिर में मौत क्यों ?

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बिहारी जी मंदिर में मौत क्यों ? विनीत नारायण श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन वृंदावन के सुप्रसिद्ध श्री बाँके बिहारी मंदिर में मंगला आरती के समय हुई भगदड़ में दो लोगों की जान गई और कई घायल हुए। इस दुखद हादसे पर देश भर के कृष्ण भक्त सदमे में हैं और जम कर निंदा भी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम विडीयो भी देखे जा सकते हैं जहां श्रद्धालुओं की भीड़ किस कदर धक्का-मुक्की का शिकार हो रही है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर भक्तों को अव्यवस्था के चलते जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उनसे शायद मथुरा प्रशासन को भविष्य के लिए सबक सीखने की आवश्यकता है। मंदिरों की अव्यवस्था के चलते हुई मौतों की सूची छोटी नहीं है। 2008 में हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में डेढ़ सौ से अधिक जाने गईं थी। महाराष्ट्र के पंडरपुर में भी ऐसा ही हादसा हुआ था। बिहार के देवघर में शिवजी को जल चढाने...
*कांवड़ यात्रा – श्रृद्धा को नमन*

*कांवड़ यात्रा – श्रृद्धा को नमन*

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*कांवड़ यात्रा - श्रृद्धा को नमन* कांवड़ यात्रा का चलन 1990 के दशक के उत्तरार्ध से प्रारम्भ होता है, जब 15-20 युवा, महादेव की भक्ति में लीन होकर हरिद्वार से नंगे पैर पैदल चलकर कांवड़ लेकर चले थे। उस समय उन सभी का एकमात्र उद्देश्य श्रवण कुमार की भांति अपने माता-पिता को पुण्य दिलाने का था। श्रवण कुमार अपने माता-पिता को एक कांवड़ में बिठाकर, मिट्टी के पात्र में गंगा जल भर कर अपने कंधे पर उठाकर तीर्थ यात्रा कराने के लिए निकले थे और मार्ग में जितने भी शिवालय पड़ते थे, वहाँ पर वो यदि उनके हाथ से सम्भव हुआ तो ठीक नहीं तो उनके निमित्त थोड़ा सा जल चढ़ाते हुए आगे बढ़ते थे। अर्थात् उनका कांवड़ यात्रा करने का उद्देश्य विशुद्ध रूप से माता-पिता का कल्याण एवं उनके स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का प्रयास था। समय के साथ-साथ कांवड यात्रा का स्वरूप भी शनै-शनै बदलता चला गया। जहाँ पूर्व में इस यात्रा में मात्र पुरु...
कैसे काशी विश्वनाथ मंदिर हो गया ज्ञानवापी मस्जिद

कैसे काशी विश्वनाथ मंदिर हो गया ज्ञानवापी मस्जिद

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कैसे काशी विश्वनाथ मंदिर हो गया ज्ञानवापी मस्जिद आर.के. सिन्हा काशी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने के दावे हो रहे है। इसकी सच्चाई का भी पता चल ही जाएगा पर इस तथ्य से कौन इंकार कर सकता है कि काशी में मुस्लिम शासकों ने सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा। ज्ञानवापी मस्जिद तो काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर निर्मित है, जिसका निर्माण औरंगजेब ने कराया था। औरंगजेब ने 9 अप्रैल, 1669 को इस मं‌दिर सहित बनारस के तमाम मंदिर तोड़ने का आदेश जारी किया था। इस आदेश की कॉपी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है। मस्जिद का मूल नाम है ‘अंजुमन इंतहाजामिया जामा मस्जिद’। मोहम्मद गोरी के ‌सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर औरंगजेब तक काशी के मंदिरों को ध्वस्त करने से बाज नहीं आए। अविमुक्तेश्वर को काशी में शिव द्वारा स्थापित आदि‌लिंग माना गया है। उनमें एक का स्थान ज्ञानवापी ...
लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं?

लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं?

TOP STORIES, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग लक्ष्मण रेखा के बारे में ये रामायणें क्या कहती हैं? प्राय: सभी भाषाओं की श्रीरामकथाओं-रामायणों में स्वर्णमृग (राक्षस मारीच) का कथा प्रसंग है। स्वर्ण मृग मायावी सर्वप्रथम सीताजी को आकर्षित करता है तथा सीताजी उसको प्राप्त करने के लिए श्रीराम को कहती हैं। श्रीराम सीताजी की सुरक्षा का भार लक्ष्मणजी को सौंपकर उस मृग के पीछे चले जाते हैं। श्रीराम के स्वर्ण मृग के पीछे जाने के बाद श्रीरामजी के स्वर में हा सीते, हा लक्ष्मण ध्वनि सीताजी सुनती हैं। सीताजी लक्ष्मण को उनके सहायतार्थ जाने को कहती हैं तब लक्ष्मणजी उन्हें कहते हैं कि श्रीराम बहुत सक्षम हैं, उनको कोई भी तीनों लोकों में हानि नहीं पहुँचा सकता है। वे तो देवों के देव हैं, किन्तु लक्ष्मणजी द्वारा बहुत समझाने के उपरान्त भी सीताजी अत्यन्त दु:खी रहती है। वे अन्त में लक्ष्मणजी से कहती हैं कि यदि...
शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग

शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग

धर्म, विश्लेषण, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक, साहित्य संवाद
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग शिवजी की श्रीराम भक्ति एवं सतीजी का मोह भंग लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।। संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।। श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड २-३-४ श्रीराम को शिवजी के समान कोई प्रिय नहीं तथा शिवजी की भक्ति न करने वाला भी श्रीराम को कभी भी स्वप्न में नहीं प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार श्रीराम एवं शिव की भक्ति एक-दूसरे के बिना अपूर्ण है। इसको विशेष रूप से दृष्टिगत रखते हुए श्रीरामचरितमानस में शिवजी की पत्नी दक्षकुमारी सतीजी का श्रीराम की परीक्षा लेने का वर्णन बड़ा ही रहस्यपूर्ण है। सतीजी के पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा शिवजी का यज्ञ में भाग न देने एवं शिवजी की निन्दा करने पर सतीजी ने उस समय योगाग्नि में शरीर भस्म कर डाला। तत्पश्चात शिवजी ने यज्ञ विध्वंस करने हेतु ...