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धर्म

नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते है भूल देवी के नवरात्र तब, लगते सभी फिजूल

नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते है भूल देवी के नवरात्र तब, लगते सभी फिजूल

TOP STORIES, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
क्या हमारा समाज देवी की लिंग-संवेदनशील समझ के लिए तैयार है? नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है। पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं। बहुत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपमान किया जाता है। आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है। ऐसा क्यों? क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं। कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें। इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं। दुनिया में और यौन भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलनों के साथ देवी की अवधारणा में विविधता लाने का समय आ गया है। -प्रियंका सौरभ नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृ...
योगी सरकार का एक निर्णय और छद्म धर्मनिरपेक्ष बैचेन-मृत्युंजय दीक्षित

योगी सरकार का एक निर्णय और छद्म धर्मनिरपेक्ष बैचेन-मृत्युंजय दीक्षित

BREAKING NEWS, धर्म, राज्य
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के एक निर्णय से छद्म धर्मनिरपेक्ष दल बहुत बैचेन और व्यग्र हैं। चिंता में हैं कि अब उनकी तुष्टिकरण की राजनीति का क्या होगा ? प्रदेश की राजनीति में अभी तक कहा जाता रहा है कि दिवंगत सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव चरखा दांव चलाया करते थे लेकिन इस बार असली चरखा दांव योगी आदित्यनाथ जी ने चल दिया है और मुस्लिम तुष्टिकरण तथा जातिवादी नेताओं को चित्त कर दिया है। जो लोग रामचरित मानस जैसे दिव्य व पवित्र ग्रंथ की कुछ चौपाईयों का गलत अर्थ निकालकर हिंदू समाज में जातिभेद व विवाद उत्पन्न कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने का प्रयास कर रहे थे अब सकते में हैं। ये लोग यह सोच रहे थे कि प्रदेश में भगवा लहर को सनातन धर्म और सनातन संस्कृति के आस्था के केंद्रो और धर्मग्रंथों का दुष्प्रचार करके और प्रदेश की सामाजिक समरसता का वातावरण दूषित करके रोका जा सकता है।प्रदे...
1 मार्च 1689 सम्भाजी महाराज का बलिदान

1 मार्च 1689 सम्भाजी महाराज का बलिदान

धर्म, समाचार, साहित्य संवाद
औरंगजेब द्वारा कठोर यातनाएँ, जुबान काटी, चीरा लगाकर नमक भरा रमेश शर्मा पिछले दो हजार वर्षों में संसार का स्वरूप बदल गया है । बदलाव केवल शासन करने के तरीके या राजनैतिक सीमाओं में ही नहीं हुआ अपितु परंपरा, संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक स्वरूप में भी हुआ है । किंतु भारत इसमें अपवाद है । असंख्य आघात सहने के बाद भी यदि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ दिख रहीं हैं तो इसके पीछे ऐसे बलिदानी हैं जिन्होंने कठोरतम प्रताड़ना सहकर भी अपने स्वत्व की रक्षा की है । झुकना या रंग बदलना स्वीकार नहीं किया । ऐसे ही बलिदानी हैं सम्भाजी महाराज जिन्हें धर्म बदलने के लिये 38 दिनों तक कठोरतम यातनाएँ दीं गईं जिव्हा काटी गई, शरीर में चीरे लगाकर नमक भरा गया पर वे अपने स्वत्व पर अडिग रहे ।सम्भाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे। उन्हें धोखे से बंदी बनाकर इतनी क्रूरतम प्रताड़ना दी गयी जिसकी कल्पना तक नहीं की...
भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु

धर्म
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा ( चैतन्य जयंती पर विशेष ) -भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभुजन्म - भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु जी का जन्म फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (संवत1407) में बंगाल के नवद्वीप ग्राम में हुआ था।उनके पिता का नाम श्री जगन्नाथ मिश्र और मां का नाम शची देवी था। ये बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे।इन्हें बंगाल के लोग श्री राधा जी का अवतार भी मानते हैं। चैतन्य महाप्रभु के गुरू जी का नाम श्री केशव भारती था वे एक प्रकांड विद्वान थे।सन्यास- चैतन्य महाप्रभु जी ने 24 वर्ष की अवस्था में सन्यास लिया और केशव भारती जी से दीक्षा ली।यह भी मान्यता है कि सन1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया में गए तब वहां पर उनकी भेंट ईश्वरपुरी नामक एक संत से हुई उन्होंने महाप्रभु को कृष्ण कृष्ण रटने को कहा और तभी से उनका जीवन बदल गया।अलौकिक घटनाएं -चैतन्य महाप्र...
बंगला कृत्तिवास रामायण में जब हनुमान्जी ने क्यों अपना सीना चीरकर दिखाया?

बंगला कृत्तिवास रामायण में जब हनुमान्जी ने क्यों अपना सीना चीरकर दिखाया?

धर्म
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग हमने कई चित्र ऐसे देखे हैं कि हनुमानजी अपना सीना फाड़कर उसमें प्रभु श्रीराम सीताजी सहित दर्शन करा रहे हैं। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि हनुमानजी को ऐसा क्यों करना पड़ा? यह दृश्य कब का है? इत्यादि। इन सब प्रश्नों का उत्तर बंगला कृत्तिवास रामायण के लंकाकाण्ड के अंतर्गत श्रीराम के राज्याभिषेक के शुभ अवसर का बड़े ही रोचकतापूर्ण वर्णित है।श्रीराम के अयोध्यापुरी में राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर अदृश्य रूप से ब्रह्माजी ने स्वर्ण-कमलों की माला आकाश से समर्पित की, जो श्रीराम के गले की शोभा बढ़ाने लगी। नाना प्रकार के मणि-माणिक्य, पारस-पत्थर से बना कुबेर का हार श्रीराम के कंठ की शोभा में चार चाँद लगा रहा था। देवताओं के द्वारा भेंट किए गए आभूषणों से श्रीराम संसार में पूजित हुए। जिस भी मनुष्य में श्रीराम के राज्याभिषेक के बारे में सुना उसी की पार्थिव सम्पदा बढ...
श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस में श्रीराम द्वारा शिव-धनुष भंग होने के उपरान्त राजा दशरथजी को श्रीराम के विवाह हेतु मिथिला नरेश ने दूतों द्वारा निमन्त्रण भेजा गया। इस निमन्त्रण पत्र के अनुसार अयोध्या से राजा दशरथजी गुरु वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप, मार्कण्डेय, कात्यायन, ब्रह्मर्षि तथा मंत्रियों सहित श्रीराम के विवाह में सम्मिलित होने गए। दशरथजी के दो पुत्र भरत एवं शत्रुघ्न भी उनके साथ गए थे। इनके अतिरिक्त दशरथजी के साथ उनकी रानियों एवं दासियों का उनके साथ जाने का वर्णन नहीं है। इस तरह श्रीरामजी के विवाह में महिलाओं का बारात में न जाना उनकी सहभागिता का अभाव लगता है।अत: सुधीजनों एवं पाठकों के लिए विभिन्न रामायणों में अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि श्रीरामजी के विवाह में ...
तीनों लोकों  में है जिनकी महिमा

तीनों लोकों  में है जिनकी महिमा

धर्म
डॉ कामिनी वर्माज्ञानपुर ( उत्तर प्रदेश )तन को विभिन्न प्रकार के रंगों से सराबोर करके, मन मे नवजीवन सा उल्लास जगाता , समाज मे समरसता और भाईचारे की भावना का विकास करके बुराई पर अच्छाई की और अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश देकर होली पर्व के जाते ही कानो में माता के जयकारे गूंजने की आहट सुनाई देने लगती है । नवरात्र के 9 दिनों में घण्टों  और घड़ियालों के नाद से देश का कोना कोना घनघना उठता है । ऐसे श्रद्धामय परिवेश में मन में अकुलाहट हो रही है माँ के दिव्य दर्शन और विराट स्वरूप से भिज्ञ होने की । देश भर में जिनकेे आयतन , आस्था और श्रद्धा का केन्द्र हुआ करते है ।मन की इस अकुलाहट को दूर करने के लिए पुरातात्विक और आभिलेखिक साक्ष्यों पर दृष्टि डालने पर ज्ञात हुआ कि हिन्दू धर्म मे देवी की उपासना प्रागेतिहासिक युग से ही हो रही है। सैन्धवकाल में शक्ति सम्पन्न मातृदेवी की आराधना के स्पष्ट प्रमाण प्र...
सनातन बोर्ड क्यों?

सनातन बोर्ड क्यों?

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Why Sanatan Board? लंबे अरसे से हिंदू मठ मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण पर सवाल उठते आ रहे हैं !पूछा जाता है कि सरकार केवल हिंदू मंदिरों पर ही नियंत्रण क्यों करती है , मस्जिदों और चर्च पर क्यों नहीं ? देश में हिंदू मठ मंदिरों की संख्या अनुमानतः 10 लाख है , जिनमें से 4 लाख 30 हजार मंदिरों का विभिन्न सरकारों ने अधिकरण किया हुआ है !दूसरी ओर इस्लामिक धर्मस्थलों पर नियंत्रण के लिए मुस्लिम वक्फ बोर्ड बना हुआ है , जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है !क्रिश्चियन इदारों पर भी बाहरी नियंत्रण की कोई आधिकारिक दखल नहीं है ! कल मध्य प्रदेश की महिला सांसद साध्वी प्रज्ञा ने मुस्लिम वक्फ बोर्ड की तर्ज पर हिंदू मठ मंदिरों के लिए सनातन बोर्ड की मांग की , जिसकी सारी व्यवस्था मठ मंदिर सनातन बोर्ड द्वारा की जाए , सरकार द्वारा नहीं । लाखों मंदिरों का दान में आया करोड़ों रुपया हर महीने सरकार ले जाती है , म...
हृदयनारायण दीक्षित बाते गीता के ज्ञान की 

हृदयनारायण दीक्षित बाते गीता के ज्ञान की 

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गीता विश्वप्रतिष्ठ दर्शन ग्रंथ है। भारतीय दर्शन बुद्धि विलास नहीं है। यह कर्तव्यपालन का दर्शन है। युद्ध भी कर्तव्य है लेकिन विषादग्रस्त अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं पण्डितजन जीवित या मृतक के लिए शोक नहीं करते।‘‘ (अध्याय 2.11) पण्डित की परिभाषा ध्यान देने योग्य है - जो शोक नहीं करते वे पण्डित हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हम तुम और सभी लोग पहले भी थे, भविष्य में भी होंगे। शरीरधारी आत्मा शिशु तरुण और वृद्ध होती है। यह मृत्यु के बाद दूसरा शरीर पाती है। इससे धीर पुरुष मोह में नहीं फंसते।‘‘ पुनर्जन्म हिन्दू मान्यता है। गीता के कई प्रसंगों में पुनर्जन्म का उल्लेख है। सुख दुख आते जाते हैं। दुख व्यथा देता है और सुख प्रसन्नता। श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘सुख दुख क्षणिक हैं। इन्हें सहन करने का प्रयास करना चाहिए। सुख दुख से विचलित न होने वाला ही मुक्ति के योग्य है।‘‘ (वही 14-15) ...
गूढ़ार्थ के पर्यायवाची – भगवान शिवशंकर

गूढ़ार्थ के पर्यायवाची – भगवान शिवशंकर

धर्म
प्रशांत पोळ सृष्टि में असीम आनंद का वातावरण हैं. वसंत की उत्फुल्लता चहुं ओर दृष्टिगोचर हो रही हैं. ऋतुओं के संधिकाल का यह महापर्व अपने पूरे यौवन पर हैं. वातावरण में बाबा भोलेनाथ के जयकारों की गूंज हैं. ‘कंकर – कंकर में शंकर’ की उक्ति पर दृढ़ श्रध्दा रखनेवाला हिन्दू समाज, उत्सव की मुद्रा में हैं. कल महाशिवरात्रि हैं..! *सृष्टि के आरंभ का दिन. सृष्टि के सृजन का दिन. भगवान शिव – पार्वती के विवाह का दिन. प्रत्यक्ष ब्रह्म से साक्षात्कार का दिन !* हिन्दू धर्म का सौन्दर्य हैं की यह धर्म एकेश्वरवादी धर्म नहीं हैं. ‘ईश्वर एक हैं’ यह तो मान्यता हैं. किन्तु इस एक ईश्वर के अनेक रूप हैं, यह पक्की आस्था हैं. इन्ही रूपों में से एक महत्व का स्वरूप हैं, ‘भगवान शंकर’ का. सृष्टि के विनाश के प्रतीक का. सृष्टि की ऊर्जा के स्रोत का. ईश्वर के सभी रूपों में सबसे गूढ और रहस्यमय स्वरूप यदि किसी का होगा...